Thursday, June 15, 2017

आरक्षण के लिए नहीं, रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड के लिए लड़ों।

इतिहास गवाह है कि जब से वंचित जगत के लिए स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) का लोकतान्त्रिक और संवैधानिक प्रावधान लागू हुआ है तब से देश का शोषक वर्ग (ब्राह्मण, बनिया और अन्य सवर्ण) लगातार वंचितों के इन मूलभूत लोकतान्त्रिक व संवैधानिक मानवाधिकारों के प्रति जहर उगलता आ रहा है। कभी मेरिट के नाम पर, तो कभी समानता के नाम पर। ये और बात है कि इनकों ना तो मेरिट की फ़िक्र है, और ना ही समानता की मूलभूत बुनियाद का ज्ञान है। देश के सत्ता-संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर यही ब्राह्मण-बनिये-स्वर्ण काबिज़ है, लेकिन फिर भी आज़ादी के सात दशक बाद भी आज तक भारत का वो विकास नहीं हो पाया जो भरतीय संविधान के पिता बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षाप्रतीक मानवतामूर्ति बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर चाहते थे, जो हमारा संविधान, हमारा लोकतंत्र चाहता है, क्यों ?  
सत्ता, संसद, न्यायपालिका, नौकरशाही, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडियालय और सिविल सोसायटी सभी महत्वपूर्ण स्थानों का अवैध, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक रूप से कब्ज़ा जमाये बैठा ब्राह्मण-बनिया वर्ग ने आज़ादी के बाद से ही वंचितों के स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के अधिकार को आरक्षण का नाम दे डाला है। वंचितों के इस मूलभूत अधिकार को वो शक्ल दे डाला है जो कि ना यो संविधान की मंशा है, और ना ही संविधान के पिता ने कभी ऐसा चाहा था। ब्राह्मण-बनिया मीडिया और एन्टीनाधारी स्वघोषित विद्वानों ने वंचितों के मूलभूत लोकतान्त्रिक और संवैधानिक अधिकारों को गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम बना डाला है। ब्राह्मण-बनियों ने बाकायदा संगठन बनाकर तथाकथित आरक्षण की मूल भावना को बेरहमी से तार-तार कर रहे है। बीजेपी जैसी ब्राह्मणी पार्टियाँ अपने चुनाव प्रचार में आरक्षण हटाने को मुद्दा बनती है। जहाँ एक तरफ ये सब ये जाहिर करता है कि आज भी तथाकथित सवर्ण समाज वंचित जगत को आगे बढ़ता नहीं देख सकता है, वही दूसरी तरफ देश का वंचित बहुजन समाज अपने इस संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकार व संविधान की मूल भावना को बचाये रखने के लिए आज भी जद्दोजहद कर रहा है। 
हमारे निर्णय में, आज तक सारी लड़ाई "आरक्षण हटाओं" और "आरक्षण बचाओं" तक सीमित होकर रह गयी है। आरक्षण हटाओं और आरक्षण बचाओं की ये लड़ाई वंचित जगत के घर में खड़े होकर लड़ी जा रही है। "आरक्षण हटाओं" की बात करने वाले "आरक्षण बचाओं" वालों के घरों में खड़े होकर लड़ रहे है। परिणामस्वरूप, लड़ाई के दौरान सारा का सारा नुकसान वंचित समाज का ही हो रहा है क्योकि लड़ाई जब आपकी ज़मीन पर या आपके घर में घुसकर लड़ी जाती है तो सारा का सारा नुकसान आपका ही होता है। 
आज तक के संघर्ष को यदि बरीकी से देखा जाय तो वंचित जगत अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहा है, कोई युद्ध नहीं कर रहा है, बल्कि ब्राह्मण-बनियों के आक्रमण से अपनी रक्षा मात्र कर रहा है। जबकि भारत में लोकतंत्र और संविधान को सही मायने में लागू करने के लिए लोकतंत्र और संविधान विरोधियों (ब्राह्मण-बनिया-सवर्ण) पर लोकतान्त्रिक तरीके से संवैधानिक हमले होने चाहिए, लेकिन यहाँ सब इसके विपरीत हो रहा है। लोकतंत्र व संविधान विरोधी, लोकतंत्र व संविधान की रक्षा करने वालों पर बेख़ौफ़ होकर (दैहिक, भावनत्मक, संस्थागत, कानूनी-गैरकानूनी और अन्य तरह के सारे) हमले कर रहे है (रोहित वेमुला, डेल्टा मेघवाल जैसे शहीद इसके प्रखर उदहारण है), संविधान को तोड़-मरोड़ रहे है, ब्राह्मणी व्याख्या कर रहे है। और, लोकतत्र व संविधान की रक्षा करने वाला वंचित समाज सिर्फ अपनी और लोकतंत्र व संविधान की रक्षा मात्र कर रहा है, जबकि जरूरत है कि लोकतत्र व संविधान के दुश्मनों (ब्राह्मण-बनिया-सवर्ण) पर लोकतान्त्रिक तरीके से संवैधानिक आक्रमण करके, उन्हें नेस्तनाबूद कर लोकतंत्र और संविधान को सही ढंग लागू करने की। 
हमारा मानना है कि अब वंचित समाज को आरक्षण की रक्षा के नहीं लड़ना चाहिए बल्कि उस रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार के लिए लड़ना चाहिए जिसे गाँधी ने षड्यंत्र करके बाबा साहब से छीन लिया था। बाबा साहेब ने आज वाला आरक्षण कभी नहीं माँगा था। उन्होंने ने तो वंचित जगत के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की माँग की थी, उस समय के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री माननीय रैमसे मैक डोनाल्ड ने मान भी लिया था लेकिन गाँधी जैसे षड्यंत्रकारी ने आमरण उपवास करके बाबा साहेब को मजबूर कर फिया और ब्रिटेन सरकार से मिले इस महत्वपूर्ण अधिकार को छीन लिया था। गाँधी एक षड्यंत्रकारी और कट्टर हिन्दू थे। जाति व्यवस्था और वर्णाश्रम व्यवस्था के कट्टर सार्थक थे। गाँधी ये जानते थे कि यदि ये रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार लागू हो जायेगा तो जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था को ध्वस्त होने में वक्त नहीं लगेगा। जाति व्यवस्था व्यवस्था के ध्वस्त होते ही अमानवीय निकृष्ट सनातनी मनुवादी वैदिक ब्रामणी हिन्दू धर्म व संस्कृति हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तनाबूद हो जायेगा। कट्टर जातिवादी गाँधी जानते थे कि यदि वंचित जगत को रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार मिल जायेगा तो कोई भी सरकार वंचित जगत की मर्जी के बगैर नहीं बन सकती है। ऐसे में वंचितों का सशक्तिकरण हिन्दू धर्म को हमेशा-हमेशा के लिए दफन कर देगा। इसीलिए षड्यंत्रकारी गाँधी ने आमरण उपवास करके बाबा साहेब को मजबूर कर दिया और बेबस, लाचार बाबा साहेब को रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन का अधिकार छोड़ना पड़ा और मुआबजे के तौर पर मिले आरक्षण से ही समझौता करना पड़ा। 
हमारे निर्णय में, वंचित जगत को अपनी लड़ाई पर पुनर्विचार करना चाहिए। और, नए सिरे से रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार के लिए एक लोकतान्त्रिक व संवैधानिक महासंग्राम शुरू करना चाहिए। वंचित समाज को आरक्षण बचाओं की लड़ाई लड़ने के बजाय आरक्षण बढ़ाओ के लिए लड़ना चाहिए। ये लड़ाई सही मायने में आरक्षण हटाओं के घर में खड़ी होकर लड़ी जाएगी। आरक्षण बढ़ाओं की जंग की शुरुआत रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार को लेकर लड़ी जानी चाहिए। 
जहाँ तक हम समझते है, वंचित समाज को अब आरक्षण के लिए लड़ना ही नहीं चाहिए बल्कि रैमसे मैक डोनाल्ड अवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार को लागू करने के लिए लड़ना चाहिए। यदि वंचित जगत रैमसे मैक डोनाल्ड आवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र के लिए युद्ध छेड़ता है तो हम पूरे विश्वास से कहते है कि वंचित जगत के दुश्मन (ब्राह्मणी-बनिया-स्वर्ण) खुद वंचित समाज को मिले लोकतान्त्रिक व संवैधानिक स्वप्रतिनिधित व सक्रिय भागीदारी रुपी आरक्षण के रक्षा ही नहीं करेगें बल्कि आरक्षण को खुद बढ़ाने की पहल भी करेगें। रैमसे मैक डोनाल्ड आवार्ड के लिए युद्ध छेड़ने भर की जरूरत है इनकी हलक सुख जाएगी। पूना पैक्ट साइन होने के अगले दिन धिक्कार दिवस में बाबा साहेब ने रोते हुए कहा था कि-
"मेरी बच्चों,
मैंने पूना पैक्ट पर साइन करके अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की है लेकिन मै मजबूर था।
मेरे बच्चों,
मेरी इस गलती को सुधर लेना था।"
बाबा साहेब ने पूना पैक्ट वाली गलती को सुधारने के लिए कहा है, देश के सत्ता-संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर वंचित जगत की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए कहा है, क्योकि जब तक सत्ता, संसद, न्यायपालिका, नौकरशाही, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडियालय और सिविल सोसायटी सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर वंचित जगत स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित नहीं होगी तब तक भारत में ना तो लोकतत्र सही मायने में लागू हो सकता है, और ना ही संविधान का राज। भारतोत्थान के लिए भारत में सही मायने में लोकतंत्र व संविधानराज़ को लागू होना अनिवार्य है। और, इस अनिवार्यता को पूरा करने के लिए सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर वंचितों का स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी अनिवार्य है। वंचित के स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के लोकतान्त्रिक व संवैधानिक अधिकार को ज़मीन पर उतरने के लिए रैमसे मैक डोनाल्ड आवार्ड / पृथक निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार के लोकतान्त्रिक व संवैधानिक युद्ध छेड़ना ही होगा। ये युद्ध भारत में लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के लिए सबसे अहम व निर्णायक युद्ध होगा। इसके बाद संविधान के दुश्मन (ब्राह्मण-बनिये-सवर्ण) खुद संविधान के सबसे बड़े रक्षक बन जायेगे क्योंकि इसके अलावा इनके पास कोई दूसरा राष्ट होगा ही नहीं। 
जय भीम, जय भारत !


रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू
जून १४, २०१७

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