Monday, June 12, 2017

उपवास - एक असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और मानवाधिकार विरोधी कुप्रथा

वैसे तो उपवास भारत में संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों प्रमुख धर्मों में इसने अपना स्थान बना लिया है। फ़िलहाल हम यहाँ पर उपवास के सांस्कृतिक पहलु पर चर्चा करने के बजाय राजनैतिक पहलु पर प्रकाश डालना चाहते है।
भारत की राजनीति में उपवास का सबसे प्रखर उदहारण गाँधी ने दिया और अपनी बात मनवाने लिए हर संभव इसका भरपूर इस्तेमाल किया है। उन्ही  नक़्शे कदम पर उनके चेले किशन बाबू राव हज़ारे और आज उनके ही चेले शिवराज चौहान, मुख्यमंत्री, .प्र. चल रहे है।
उपवास कोई भी इंसान स्वेच्छा से नहीं करता है। कभी त्यौहार का लिबास ओढ़कर करता है तो कभी भक्ति-भगवान् के नाम पर तो कभी रीति-रिवाज़, परम्परा के नाम लेकिन किसी भी बार इन्सान अपनी तर्कशक्ति और स्वेच्छा से नहीं करता है बल्कि धर्म, रीति-रिवाज़ और परम्परा के नाम से डर कर और समाज कुरीतियों के बंधनों से मजबूर होकर करता है। कहने का आशय यह है कि कभी कोई खुद इन धार्मिक परम्पराओं के डर उपवास करता है तो कभी उससे करवाया जाता है। उपवास जिस भी कारण से हो वो इन्सान की इच्छा के खिलाफ होता है, अंधविश्वास और डर के कारण किया जाता है, करवाया जाता है। यह हर रूप में हर तरह से इन्सानी हकों के खिलाफ है, मानवाधिकारों के खिलाफ है, संविधान के खिलाफ है, कुदरती हकों के खिलाफ है, कुप्रथा है।
उपवास को धर्म के ठेकेदार अक्सर मेडिकल साइन्स से जोड़कर अपने आपको सही सिद्ध करने की नाकाम कोशिस करते है। जबकि दुनिया जानती है कि ब्राह्मणों आदि के धर्म का धन्धा विज्ञान के समान्तर तर्कवाद और मानवता के खिलाफ रेस कर रहा है।
आज आज़ाद भारत में तीन तरह के उपवास है। एक तो वह है जो धर्म, रीति-रिवाज़ के नाम पर हो रहा है जिसके पीछे चंद ब्राह्मणों और बनियों के व्यापार का स्वार्थ छिपा है, जो अन्धविश्वास, अज्ञानता और डर पर आधारित है।
दूसरा वह है जिसमे गरीबी-लाचारी के चलते हमारे समाज के लाखों लोग हर रोज खली पेट सोते है। संविधान और मानवाधिकार की नीति के तहत भी हर इंसान को भोजन-पानी-कपडा और मकान का मूलभूत अधिकार है। ये हर इन्सान का कुदरती अधिकार है जो उसे इंसान होने के होते मिलते है। इसके बावजूद भारत में एक बड़ी आबादी हर रोज खली पेट सोती है, उपवास करती है। जबकि सरकारों का ये नैतिक कर्तव्य है कि वो अपने नागरिकों के मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा करे, कुदरती हक़ों का ख्याल रखे। लेकिन आज़ादी के लगभग सात दशक बीत चुके है लेकिन देश के गरीब जनता के रहन-सहन के स्तर में कोई सुधर नहीं आया है। स्वघोषित टैलेंटधारी ब्राह्मणों और उनके गुलाम सवर्णों ने आज तक देश पर शासन किया है लेकिन फिर भी देश की जनता रात उपवास क्यों करती है। इसका जिम्मेदार कौन है, उपवास करने वाली इतनी बड़ी आबादी या फिर ब्राह्मणों की शोषणवादी नीतियां? यदि का ब्राह्मणवादी शोषक हमेशा अपने गुनाहों के ठीकरा मासूम-लाचार-बेबस जनता के ही माथे पर फोड़ता रहा है। इस देश की जनता है कि इनके षड्यंत्रकारी कुचक्र को समझकर उससे लड़ने के बजाय इसमें ही उलझता ही जा रहा है। तीसरा उपवास वह है जिसका अविष्कार गाँधी ने किया है। ये सबसे जघन्यतम षड्यंत्रकारी उपवास है जिसका गाँधी ने के हर मोड़ पर इस्तेमाल किया था। इसी षड्यंत्रकारी उपवास के चलते  बड़ी धूर्तता से गाँधी ने वंचित जगत के हाथों से उनकों मिला रैमसे मैक डोनाल्ड आवार्ड/ पृथक निर्वाचन क्षेत्र के अधिकार छीन लिया। जिस तरह सरकार, गाँधी ने जनता और खुद बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर को उपवास रुपी हड़ताल करके ब्लैकमेल किया, ठीक उसी तरह से उनके चेले किशन हज़ारे ने डॉ मनमोहन सिंह को ब्लैकमेल किया और उनकी सरकार को खा गया। गाँधी ने वंचितों का अधिकार छीन कर वंचित समाज का हाथ-पैर काट डाला था, उसी तरह से आज के ढोंगी शिवराज सिंह चौहान भी सात से अधिक किसानों को गोली से भुनवाकर मौत के घात उतार दिया, कई घायल अस्पताल में अपनी सांसे गईं रहे है। शिवराज पाखण्डी गाँधी की तरह उपवास कर अपने आपको शुद्ध कर रहे है, पश्चाताप कर रहे है। गाँधी की ही तरह से शिवराज का भी उपवास सेवन स्टार ही था। नए-नए कूलर लाये गए थे, फर्नीचर की वीआईपी व्यवस्था के साथ-साथ ऐश--आराम की सारी व्यवस्था थी। ये उपवास क्यों किया गया था? इससे मरने वाले किसानों और उनके घर-परिवार को क्या मिला? .प्र. का ये ब्राह्मणों का गुलाम मुख्यमत्री शिवराज से शवराज और फिर शवराज से यमराज बन चुका है। इसके १२-१३ के कार्यकाल के दौरान २०००० से भी ज्यादा किसान शहीद हो चुके है लेकिन ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ के तहत इन्होने ने विकास का किस्सा सुना-सुनाकर .प्र. की भोली-भली जनता को ठग रहे है। जिंतने भ्रष्टाचार (व्यापम) इस यमराज के शासन काल में हुए है इसके उगाजर होने पर इसके सारे गवाह और वे लोग जो इस यमराज को सजा दिला सकते थेमार दिए गए। किसानों का कत्लेआम करवाकर गुजरात के नरसंहारक नरेंद्र मोदी की तरह ये भी अपने आप को साफ-सुथराना दिखाने का असफल प्रयास कर रहा है।
गाँधी ने उपवास को एक षड्यंत्रकारी हथियार बना दिया है। पहले गाँधी ने इसका इस्तेमाल किया और अब उनके चेले चपाटे कर रहे है। सबका मकसद एक ही है आम जनता को मूर्ख बनाना, ब्लैकमेल करना, धन्ना सेठों और ब्राह्मणों के आतंकवादी नीतियों की सम्पूर्ण सुरक्षा करना। वंचित जगत के खिलाफ गाँधी द्वारा किया गया षड्यंत्रकारी कृत्य आज भी बहिष्कृत जगत के किए श्राप बनी हुई है। ये श्राप ख़त्म होने के बजाय गाँधी के बाबू राव हजारे और शिवराज जैसे बंदरों की वजह से फल-फूल रही है। इन्हीं षड्यंत्रकारी षड्यन्त्रिण के चलते ही जीतनराम मांझी, रामदास अठावले, रामविलास पासवान, जगजीवन राम जैसे गद्दार अपने वंचित शोषित पीड़ित समाज के लिए कार्य करने के बजाय अपने निजी स्वार्थ के चलते ब्राह्मणों के तलवे चाट रहा है। इन नेताओं ने राजनीति और सत्ता को निजी मिलकियत समझ लिया है, इन्हें इस बात का भी एहसास नहीं रहा कि राजनीति देश-समाज को एक बेहतर दिशा देने का एक बेहतरीन माध्यम होता है।
हमारे निर्णय में उपवास, धर्म, रीति-रिवाज़, परम्परा, गरीबी और गाँधी के षड्यंत्र पर आधारित हर उपवास, हर तरह से एक अन्धविश्वास, डर, शोषण पर आधारित तर्क और मानवता के खिलाफ एक असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और मानवाधिकार विरोधी एक निकृष्ट सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी कुप्रथा है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली
जून ०६, २०१७

No comments:

Post a Comment