Wednesday, June 21, 2017

कांग्रेस, कम्युनिस्ट और बीजेपी

कांग्रेस का जन्म १८८५ में एक राजनैतिक मंच के रूप में हुआ जिसका उद्देश्य ब्रिटिश इण्डिया में भारत के लोगों और उनकी मांगों को सरकार के सामने एक सुनियोजित ढंग से रखना था। अलग-अलग जानकारों में मतान्तर है। कुछ लोग कांग्रेस को रष्ट्रवादी पार्टी मानते है तो कुछ सेफ्टीवाल्व तो कुछ समाज सुधार का भी श्रेय देने से पीछे नहीं हटते है। जबकि सभी कांग्रेसी नेताओं ने समाज सुधार का सिर्फ और सिर्फ ढोंग ही किया है। फ़िलहाल, हम यहाँ पर कांग्रेस ने अभी तक क्या किया, क्या नहीं किया, ये बताने के बजाय ये बताना चाहते है कि इनका बहुजन समाज के लिए बहुजन इतिहास में क्या स्थान है।
सबसे पहले तो ये कि कांग्रेस ने बहुजन समाज के लिए कुछ भी नहीं किया है। बहुजन समाज के सारे मुशीबतों और दुश्वारियों का कारण सिर्फ और सिर्फ जाति व्यवस्था है। इस क्षेत्र में कांग्रेस ने कभी भी कुछ भी नहीं किया है जबकि ये भारत के सेन्ट्रल-विंग की पार्टी है। 
कम्युनिस्ट पार्टी का भी भारत में अपना एक स्वतंत्र वज़ूद दिखता है। रूस के समाजवाद से बहुत सारे कांग्रेसी नेता प्रभावित थे। इनमे जवाहर लाल नेहरू भी शामिल है। कांग्रेस ने तो अपनी पार्टी में ही एक विंग बना रखा था जिसमे जवाहरलाल मुख्य भूमिका में थे। इसी कड़ी में कम्युनिस्ट पार्टी का भारत में अपना एक वज़ूद तय होता है। ये कम्युनिस्ट पार्टी भारत में वर्ग विभाजन के एक को शोषक और दूसरे को शोषित ठहराते हुए दो वर्ग में बाँट कर अपनी राजनैतिक रोटी सेंक रहा है। लेकिन कम्युनिस्ट की विचारधारा यूरोप के उस समाज में पनपी और पली-बढ़ी है जिसमे कोई सामाजिक विभाजन नहीं, बल्कि आर्थिक विभाजन है। कम्युनिस्ट की विचारधारा आर्थिक रूप से असमान समाज में आसानी से काम कर सकती है। इसी आर्थिक असमानता के दायरे में रूस जैसे देश और इनके कम्युनिज़्म की संकल्पना आती है। ये और बात है कि कुछ ही दशकों पश्चात् रूस में कम्युनिज़्म की संकल्पना को ढोना मुश्किल हो जाता है और रूस का विखंडन हो जाता है। फिर भी हम यहाँ रूस को एक अच्छे उदाहरण के तौर पर ले सकते है। लेकिन जब बात भारत की आती है तो भारत में वर्ग विभाजन नहीं बल्कि जाति विभाजन है। ये भारतीय जाति विभाजन एक सामाजिक समस्या है और इस सामाजिक समस्या को आर्थिक आधार पर दूर करने की बात सोचना, खुद को गुमराह करना है। फ़िलहाल, भारत में कम्युनिस्ट यही कर रहे है। कम्युनिस्टों के भाषण जिसमे वे आर्थिक रूप पर समानता, सबको शिक्षा और सबके हक़ की बात करते है, ये सब सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन भारत की जमीनी हकीकत को देखे तो ये सब नरेंद्र मोदी का मूर्खतापूर्ण भाषण ही लगता है। क्योकि इस तरह से आर्थिक गैर-बराबरी को कम्युनिज़्म की संकल्पना से दूर करना सामाजिक रूप से समान समाज में संभव है लेकिन सामाजिक रूप से असमान समाज में नहीं। फ़िलहाल कम्युनिस्ट भारत में यही मूर्खता करते आ रहे है, यदि नही तो फिर भारत के जनमानस को मूर्ख जरूर बनाते आ रहे है। बाबा साहेब भारतीय बहुजन समाज की गरीबी का कारण जाति एवं वर्ण व्यवस्था को ही मानते है जो कि  एक सामाजिक समस्या है। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि कम्युनिस्ट सदा से ही भारत की सामाजिक बीमारी के लिए आर्थिक बीमारी की गोली देने का निरर्थक प्रयास कर रहे है। 
इसी तरह से बीजेपी का वज़ूद भारतीय जन संघ से जुड़ा हुआ है और ये बीजेपी भारत में हार्ड-कोर हिंदुत्व पर आधारित राजनैतिक पार्टी है। भारत में सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी आतंकवाद का श्रेय हिंदुत्व और इसके लीडर्स को ही जाता है। इनमे अंग्रेजों के सामने समर्पण करने वाले सावरकर, तिलक, दीनदयाल, गोलवलकर आदि जैसे लोग प्रमुख है। बीजेपी द्वारा भारत में हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने की कथा दुनिया जानती है फिर चाहे वो सावरकर, तिलक, दीनदयाल, गोलवलकर का आतंकवादी सिद्धांत रहा हो या फिर आडवाणी रथयात्र, गुजरात में नरेंद्र मोदी की अगुवानी में मुस्लिम नरसंहार, कल्याण सिंह की सरकार में अटल बिहारी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य हिन्दू आतंकवादियों के नेतृत्व में लश्कर-ए-ब्राह्मण द्वारा बाबरी मस्जिद का विध्वंस, मोदी के नेतृत्व में किसानों, जवानों की हत्या और यूपी में अजय कुमार बिष्ट का आतंकवाद। इसके सिवा बड़े पैमाने पर बीजेपी की झोली में और कुछ भी नहीं है। बीजेपी देश के खून की सनातनी मनुवादी वैदिक ब्रामणी अत्याचारी निर्दयी हिन्दू होली खेलकर सत्ता में आयी है। हमारे निर्णय में, इससे ज्यादा बीजेपी का कुछ और परिचय नहीं हो सकता है।
अब रही बात इन तीनों (कांग्रस, कम्युनिस्ट और बीजेपी) पार्टियों का बहुजन समाज के प्रति रवैया का तो तीनों ही बहुजन समाज के लिए एक ही है। इनका मकसद एक ही है। देश की आज़ादी को लगभग सात दसक का वक्त बीत चुका है लेकिन बहुजन समाज की स्थिति वही है जो पहले थी और यदि कुछ सुधार हुआ है तो वो बाबा साहेब के संघर्षों और संविधान में निहित मूलभूत लोकतान्त्रिक अधिकारों का परिणाम है। भारत में कांग्रेस, कम्युनिस्ट और बीजेपी नाम की तीन मुख्यधारा की राजनैतिक पार्टियां जरूर है लेकिन यदि भारतीय सामाजिक व्यवस्था को मद्देनज़र रखकर देखे तो भारत में सिर्फ और सिर्फ एक ही पार्टी है, भारत में आज तक सिर्फ और सिर्क एक ही पार्टी ने शासन किया है, एक ही पार्टी है जो खुद सत्ता में रहती है और उसी समय खुद विपक्ष में भी रहती है। आज़ादी के बाद से इस तरह से भारत में शासन करने वाली वो एक मात्र पार्टी है - ब्राह्मण पार्टी। यदि हम कांग्रेस. कम्युनिस्ट और बीजेपी के कम्पोज़ीशन को देखे तो हम पाते है इन पार्टियों पर सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणो का कब्ज़ा है। इस देश में ब्राह्मण २-३% है लेकिन देश के सभी राजनैतिक दलों पर, लोकशाही पर, न्यायपालिका पर, उद्योगलय पर, संसद पर, सरकार पर, विश्वविद्यालय पर और सिविल सोसाइटी पर सिर्फ और सिर्फ एक ही जाति ब्राह्मण का कब्ज़ा है। 
कांग्रेस की नीव भी ब्राह्मणों के इन्टरेस्ट को सुरक्षित करने के लिए पड़ी थी, भारत की आज़ादी के लिए नहीं। शुरू में यदि कांग्रेस पर नज़र डालें तो हम पाते है कि कांग्रेस देश के ब्राह्मणो और सवर्णों के लिए कुछ सहूलियतों के अलावा कुछ नहीं चाहता था। ये ब्राह्मण और बनियों की पार्टी रही है। धीरे-धीरे ये कांग्रेस ब्राह्मण-बनिये सहूलियतों से आगे निकल कर सत्ता के लिए लड़ना शुरू किया, लेकिन कभी भी सत्ता में बहुजन भागीदारी को मान्यता नहीं दिया। हलाकि बाद में, ब्राह्मणी कांग्रेस ने अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक लोगों को शामिल करने का दिखावा जरूर किया लेकिन इनका मकसद हमेशा से ब्राह्मण-बनिया-सवर्ण कल्याण ही रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस ने कभी भी जाति व्यवस्था के खिलाफ बगावत नहीं किया, बल्कि कांग्रेस के नेता गाँधी, मालवीय आदि तो जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था के कट्टर समर्थक रहे है।  गाँधी, तिलक, मानवीय ने अपनी पूरी जिंदगी ब्राह्मण-बनिया-सवर्ण के इंटरेस्ट को सुरक्षित रखने के लिए जाति व वर्ण व्यबस्था की पुरजोर वकालत की। क्योकि ये आधुनिक षड्यंत्रकारी जानते थे कि यदि जातिव्यवस्था व वर्ण व्यवस्था टूटती है तो बहुजन समाज के लोग बराबरी का हक़ मागेंगे और सत्ता में हिस्सेदारी भी जो कि गाँधी जैसे तथाकथित महात्माओं और मानवीय, तिलक जैसे अत्याचारी ब्राह्मणों व इनके फाइनेंशर बनियों को हरगिज़ मंजूर नहीं था। नतीजा कांग्रेस राष्ट्रिय पार्टी का दवा जरूर करती रही लेकिन मकसद साफ था, बहुजन शोषण। कांग्रेसियों ने कभी जाति  को ध्वस्त करने के लिए आन्दोलन नहीं किया, जबकि भारत की माँग ये थी कि पहले भारत को अंग्रेजों से आज़ाद करने के बजाय सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म और संस्कृति से भारत आज़ाद कराया जाय। लेकिन, ब्राह्मणों ने ऐसा नहीं किया क्योकि उन्हें जाति व्यवस्था से ही फायदा था। इसीलिए कभी भी कांग्रेस, जो कि सेन्ट्रल विंग की पार्टी है, ने कभी जाति उन्मूलन कार्यक्रम नहीं चलाया।
कांग्रेस के बाद कम्युनिस्ट और फिर बीजेपी का उदय भारत के लोकतंत्र को मजबूत करना नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक ही जाति ब्राह्मण और इसके गुलामों (क्षत्रिय और बनियों) के हाथों में सदा के लिए भारत की सत्ता को बरकार रखना था। इस तरह से इनमे से कोई भी पार्टी सत्ता में रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योकिं सत्ता में होता तो ब्राह्मण ही है। यही वजह रही है कि भारत में आज़ादी के इतने सालों के बाद भी बहुजन समाज की सामाजिक स्थिति आज भी वही है जो कि आज़ादी के पूर्व में थी। बहुजन समाज के लिए ये तीनों राजनैतिक दल अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही है। हमारे निर्णय में, बहुजन समाज के लिए तीनों (कांग्रेस, कम्युनिस्ट और बीजेपी) तीनों ही शत्रु है। 
इन तीनों ब्राह्मण पार्टियों के चरित्र को सरल भाषा में कुछ तरह से समझा जा सकता है कि बहुजन समाज के लिए बीजेपी एक चिरपरिचित कड़वा जहर है जिसे बहुजन जानता और समझता है, कांग्रेस बहुजन समाज को मीठी नींद देकर मारने वाला जहर है और कम्युनिस्ट तो मीठा जहर है। कहने का मतलब है कि बीजेपी को बहुजन समाज पहचानता है कि यदि बीजेपी के साथ रहे तो मौत निश्चित है, इसलिए इससे सावधान रहना सबसे आसान है। कांग्रेस नींद में मारने वाला ऐसा जहर है जिससे मरने वाला अनजान रहता है। इसीलिए आज तक कांग्रेस ने देश राज भी किया अंदर ही अंदर बहुजन समाज को नींद में सुला कर मरती रही। जहाँ तक रही बात कम्युनिस्टों की तो ये मीठा जहर है जिसे बहुजन समाज के लोग मिठाई समझ कर खुद अपनी मर्जी से मिठाई समझकर खाते है और मरते रहते है। बीजेपी और कांग्रेस में बहुजन की मौत पक्की है, ये तो बहुजन जानता है लेकिन कम्युनिस्ट के जहर को मिठाई और औषधि समझ कर खाता है और अपनी सामाजिक बीमारी के लिए कम्युनिस्टों को, जो कि  इसके ज़िम्मेदार है, को ज़िम्मेदार ठहराने के बजाय खुद को ज़िम्मेदार ठहराते रहते है, परिस्थितयों को कोसते रहते है है।     
दुसरे शब्दों में इन तीनों ब्राह्मण पार्टियों को चित्रित करे तो कुछ इस प्रकार से कह सकते है कि देश के बहुजन समाज के लिए बीजेपी वो दुश्मन है जो सामने खड़ा होकर युद्ध करता है, कांग्रेस वो दुश्मन है जो बहुजन समाज की सेना में शामिल होकर बहुजन समाज की ही सेना को काटता है, और कम्युनिस्ट तो वो शत्रु है जो बहुजन समाज के ऊपर निर्भर रहता है, बहुजन समाज की आस्तीन में रहता है, और उपयुक्त मौका पाते ही बहुजन समाज को ही डस लेता है। कहने का तातपर्य यह है कि बीजेपी हमारा वो शत्रु है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है, जिसे कोई भी बहुजन पहचान सकता है, कांग्रेस वो शत्रु है जिसे पहचाने के पैनी नज़र की जरूरत होती है लेकिन आस्तीन के साँप, कम्युनिस्टों, को पहचानना सबसे कठिन होता है क्योकि ये बात तो करता है बहुजन समाज के हित की, इसकी बातों में भी बहुजन समाज का ही हित ही नज़र आता है, इसकी विचारधारा में भी बहुजन समाज का ही हित झलकता है लेकिन हकीकत की ज़मीन पर नज़र डाल कर देखो तो पता चलता है कि यही बहुजन समाज के आस्तीन में छुपा हुआ सबसे खतरनाक शत्रु है। इसलिए देश के बहुजन समाज से अपील है कि आप इन सब में से किसी पर भी भरोसा ना करे, आप अपनी लड़ाई खुद लड़ें, आप अपनी राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान खुद बनाये। याद रहे, बहुजन की लड़ाई बहुजन को ही लड़नी होगी, और इस लड़ाई को जीतने के लिए बीजेपी, कांग्रेस या कम्युनिस्टों का सहारा लेना अपनी विजय को खुद ही पराजय में बदल देना है।
बहुजन समाज ने बीजेपी जैसी शत्रुओ को आसानी से पहचान लिया है, और कांग्रेस को भी पहचान लिया है। इसीलिए बहन कुमारी मायावती जी ने संसद की पटल पर कहा था कि बहुजन समाज के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों एक ही है, एक सांपनाथ (कांग्रेस) है तो दूसरा नागनाथ (बीजेपी) है। लेकिन बहन जी ने कम्युनिस्टों के बारे में कुछ नहीं कहा। हमारे निर्णय में, बहुजन समाज के लिए तीनो (बीजेपी, कांग्रेस और कम्युनिस्ट) ही शत्रु है, तीनों का उद्देश्य बहुजन समाज को धर्म, धर्मनिरपेक्षता और गरीबी से मुक्ति के नाम पर गुमराह करके शोषण करना है। जनता भी इतने सालों से इनके छलावे में उलझी रही है। इसलिए हमारे निर्णय में, तीनों एक ही है, एक साँपनाथ (काँग्रेस) है, दूसरा नागनाथ (बीजेपी) है तो तीसरा अज़गर (कम्युनिस्ट) है। ये तीनों ही बहुजन समाज और बहुजन सामाजिक परिवर्तन महाक्रान्ति को रोकने पर लगे हुए है। ये तीनों ही बाबा साहेब के नाम का इस्तेमाल करते है और फिर बाबा साहेब के ही दर्शन की धज्जिया उड़ाते है। इस लिए बहुजन समाज को इन तीनों से सतर्क रहना है और बाबा साहेब के "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो" के सिद्धांत पर चलते हुए इन तीनों ही बहुजन समाज के शत्रुओं से डट कर मुकाबला करना है।

रजनीकान्त इन्द्रा 
इतिहास छात्र, इग्नू 
जून २१, २०१७

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