Tuesday, August 29, 2017

ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति के खिलफ अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ने वाली मातृ शक्ति को सलाम

भारत की सरज़मी को ऋषिओं-मुनियों और बाबाओं की धरती कहा जाता है। भारत के प्राचीन इतिहास को ऋषिओं-मुनिओं से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि वे बहुत विद्वान लोग होते थे, महान लोग होते थे। साथ-साथ दुनिया को बनाने वाले भगवानों के सारे अवतार भारत में ही हुए। ये सब तथ्य नहीं बल्कि भ्रमित करने वाले मनगंढ़त किस्से है जिन्हें बड़ी ही धूर्तता से लिपिबद्ध करके इतिहास का रूप दे दिया गया। इसी अन्धविश्वास पर आधारित इतिहास ने आज के आधुनिक भारत में भी बाबाओं की सत्ता को जीवित रखा है।

भारत की इसी कुतर्कपूर्ण ब्राह्मणी संस्कृति की बदौलत आज मी हमारे भारत में आसाराम, रामपाल, गुरमीत राम-रहीम जैसे बलात्कारी बाबा घूम रहे है। यदि भारत की ब्राह्मणी संस्कृति पर नज़र डाले तो हम पाते है कि ब्राह्मणी संस्कृति महिलाओं के शोषण और शूद्रों व वंचितों की गुलामी पर ही आधारित है। ऋग्वेद हो या अन्य सब वेद-पुराण व भागवत गीता जैसे सभी शास्त्रों और उनमे वर्णित कर्मकाण्डों में महिलाओं का यौन शोषण आम है। यही पुरुषवादी नारी-विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था का सार है।

यज्ञों परम्परा भी बलि, सुरापान और महिलाओं के साथ यौन-आनन्द पर आधारित है। यज्ञ की इसी यौन-आनन्द विधि के तहत ही वृद्ध दशरथ के चार पुत्र हुए। मतलब कि दशरथ के चारों पुत्र दशरथ की नहीं बल्कि दशरथ के दामाद, ऋषि श्रृंगी, के पुत्र थे। बाल्मीकि कहते है कि ऋषि श्रृंगी, जो कि दशरथ के दामाद थे, की कृपा से दशरथ की तीनों रानियों को गर्भ धारण हुआ था। वाल्मीकि रामायण के बालकांड के अनुसार –

इक्ष्वाकूणाम् कुले जातो भविष्यति सुधार्मिकः |

नाम्ना दशरथो राजा श्रीमान् सत्य प्रतिश्रवः || काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 2

अर्थ - ऋषि सनत कुमार कहते हैं कि इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न दशरथ नाम के धार्मिक और वचन के पक्के राजा थे।

अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति |

कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति || काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 3

अर्थ - उनकी शांता नाम की पुत्री पैदा हुई जिसे उन्होंने अपने मित्र अंग देश के राजा रोमपाद को गोद दे दिया, और अपने मंत्री सुमंत के कहने पर उसकी शादी श्रृंगी ऋषि से तय कर दी थी ,

अनपत्योऽस्मि धर्मात्मन् शांता भर्ता मम क्रतुम् |

आहरेत त्वया आज्ञप्तः संतानार्थम् कुलस्य च || काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 5

अर्थ - तब राजा ने अंग के राजा से कहा कि मैं पुत्रहीन हूँ, आप शांता और उसके पति श्रंगी ऋषि को बुलवाइए मैं उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए वैदिक अनुष्ठान कराना चाहता हूँ।

श्रुत्वा राज्ञोऽथ तत् वाक्यम् मनसा स विचिंत्य च |

प्रदास्यते पुत्रवन्तम् शांता भर्तारम् आत्मवान् || काण्ड 1 सर्ग 11 श्लोक 6

अर्थ - दशरथ की यह बात सुन कर अंग के राजा रोमपाद ने हृदय से इस बात को स्वीकार किया, और किसी दूत से श्रृंगी ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए बुलाया।

आनाय्य च महीपाल ऋश्यशृङ्गं सुसत्कृतम्।

प्रयच्छ कन्यां शान्तां वै विधिना सुसमाहित।। काण्ड 1सर्ग 9 श्लोक 12

अर्थ - श्रंगी ऋषि के आने पर राजा ने उनका यथायोग्य सत्कार किया और पुत्री शांता से कुशलक्षेम पूछकर रीति के अनुसार सम्मान किया।

अन्त:पुरं प्रविश्यास्मै कन्यां दत्त्वा यथाविधि।

शान्तां शान्तेन मनसा राजा हर्षमवाप स:।। काण्ड 1 सर्ग10 श्लोक 31

अर्थ - (यज्ञ समाप्ति के बाद) राजा ने शांता को अंतःपुर में बुलाया और और रीति के अनुसार उपहार दिए, जिससे शांता का मन हर्षित हो गया।

इसी तरह से कुन्ती और दुर्वासा भी कर्ण के नाज़ायज़ माँ-बाप थे। दुर्वासा ने सुन्दर कुंती की सुंदरता से मन्त्र-मुग्ध होकर ही कुन्ती को अपने यज्ञ के लिए राजा कुंतभोज से माँग लिया। फिर यज्ञ के यौन-आनन्द के तहत कर्ण का जन्म हो गया। अपने इस कृत्य को छिपाने के लिए सूर्य, जो कि आग के एक बड़े गोले के सिवा कुछ नहीं है, को कर्ण का बाप बना दिया। मतलब कि इन ब्राह्मणों ने अपने कृत्यों को छिपाने के लिए सूर्य चन्द्रमा और अन्य ग्रहों को भी नहीं बक्सा है।

कहने का तात्पर्य यह है कि मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी संस्कृति ही गुलामी और यौन-आनन्द पर आधारित है। तथाकथित महात्मा करमचंद गाँधी के बारे में "महात्मा और मधुबन" इंडिया टुडे ने अपने कवरपेज पर स्थान दिया है। इसमें अहमदाबाद से शत्रुघन शर्मा ने "अनेक लड़कियों के साथ निर्वस्त्र सोते थे बापू" नमक लेख लिखा है। ब्रिटेन के किसी म्यूजिम में रखी गाँधी-हरिमोहन चिट्ठी के हवाले से कुछ ऐसी ही कहानी दैनिक जागरण ने हरिमोहन के बारे में छपी थी जिसमे गाँधी अपने बेटे हरिमोहन को अपनी बेटी के साथ यौन-सम्बन्ध के लिए समझते है। फ़िलहाल गाँधी खुद सब कुछ करते थे तो ठीक था उनके बेटे ने अपनी बेटी से किया तो गलत, क्यों ? यही ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति है, गाँधी इसी के उपासक थे, इसी संस्कृति के लिए पूरी जिन्दगी बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतिक नारी-अस्मिता रक्षक बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से लड़ते रहे।

ऐसे में यदि गुरमीत राम-रहीम जैसे धर्म धुरंधर किसी नाबालिक लड़कियों, अपनी मुँह बोली बेटियों के साथ, के साथ ही सही यदि यौन-सम्बन्ध बनाते है तो ये किसी भी तरह से मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी संस्कृति व धर्म के खिलाफ नहीं है। भारत की इसी ब्राह्मणी संस्कृति के चलते ही आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद्, बीजेपी, अन्य सभी ब्राह्मणी संगठन और इनके भक्त अदालत में आईपीसी के तहत गुनाह साबित होने के बाद भी इनके साथ पूरी निष्ठा से खड़े होते है। बीजेपी सांसद साक्षी महाराज, अमित शाह और सुब्रमणियम स्वामी आदि इसी कारण आशाराम, रामपाल, गुरमीत राम-रहीम जैसे बलात्कारियों के साथ खड़े होते है। यही इनकी संस्कृति है, यही इनका धर्म है, यही इनका ईमान है, यही इनका वज़ूद है।

यदि और गहराई में जाकर ब्राह्मणी संस्कृति को देखे तो मंदिरों की देवदासी प्रथा, जो कि आज भी दक्षिण भारत में सहज़ है, प्रमाणित करते है कि ब्राह्मणी मन्दिर कुछ और नहीं धर्म की आड़ में समाज के रईशों व ब्राह्मणों के भोग-विलास का केंद्र मात्र है। इसे और सरल भाषा में कहें तो ब्राह्मणी मंदिर कुछ और नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ धार्मिक वैश्यालय है। मंदिरों और मठों में आज भी समाज सेवा, अध्यात्म, भक्ति आदि के नाम यही वैश्यवृति का धंधा ही होता है। यही ब्राह्मणी मंदिरों और मठों की नंगी सच्चाई है।

मंदिरों और मठों (जैसे कि सोमनाथ मन्दिर, मथुरा के मन्दिर, आयोध्या आदि) को मुस्लिम शासकों द्वारा ध्वस्त किया जाना कोई आम घटना नहीं है। ग़ज़नवी ने इन सभी मंदिरों और मठों से हज़ारों-हजार देवदासियों को ब्राह्मणों और सामंतों के चंगुल से मुक्त करने के ही इन सभी ब्राह्मणी मन्दिरों व मठों पर हमला कर नेस्तनाबूत किया था। लेकिन, भारत के तब के पढ़े-लिखे लोग ब्राह्मण ही होते थे। इसलिए इन सभी ब्राह्मण व ब्राह्मणी इतिहासकारों ने सोमनाथ आदि मंदिरों व मठों पर हुए हमलों के मुख्य कारण को छिपाते हुए ग़ज़नवी द्वारा सोना लूटने की झूठी बात को इतिहास बनाकर परोस दिया। दुर्भाग्य है भारत के छात्रों को जो भारत की ब्राह्मणी संस्कृति से वाकिफ ना होकर गलत फहमी में जी रहे है, ग़लत इतिहास पढ़ रहे है।

यदि आगे शोषणवादी ब्राह्मणी संस्कृति के इतिहास को देखे तो तथाकथित हिन्दुओं की लडकी का जब विवाह होता था तो ब्राहमण द्वारा दूल्हा दुल्हन की अग्नि के फेरी लगवाकर अग्निपरीक्षा ली जाती थी और विवाह सम्पन्न मान लिया जाता था। शादी होने के पश्चात् दुल्हन के पिता द्वारा विष्णु को कन्यादान किया जाता था। जब कन्यादान विष्णु को हो जाता है तो मतलब की कन्या की शादी विष्णु के साथ हो जाती है तो फिर सुहागरात भी विष्णु ही मनाएगा। लेकिन विष्णु नाम का कोई है ही नहीं इसलिए ब्राह्मण अपने षड्यंत्र को जायज ठहरने के लिए कहता है –

देवों धीनम जगत, मंत्रो धीनम च देवता।

ते मन्त्रे ब्राह्मण धीनम, तस्मात् ब्राह्मण देवता।।

इस मन्त्र से ब्राह्मण ये सिद्ध करता है कि संसार का सबसे बड़ा देवता खुद ब्राह्मण ही है। अतः विष्णु के स्थान पर वह नव विवाहिता के साथ सुहागरात मानाने का अधिकारी है। और इसी अधिकार के तहत ब्राह्मण नव विवाहिता के साथ तीन रात सुहागरात मनाता है, नव विवाहिता को शुद्ध करता है। इसे ही शुद्दिकरण या डोला प्रथा कहा जाता है। शुद्दिकरण के दौरान दुल्हन व दूल्हे को ब्राहमण के घर की साफ-सफाई व अन्य घरेलू कार्य भी करने पडते थे। और फिर तीन-दिन-तीन रात पूरा होने पर नव विवाहिता को उसके पति को सौप देता है।

आज भी लडके-लडकी के विवाह के समय, पिता अपनी लडकी का कन्यादान विष्णु को करता है और पंडित से दुल्हन व दूल्हे का शुद्धीकरण करवाने के लिये, लडकी के पिता से "हां" करवाई जाती है। फिर व्राह्मण द्वारा दुल्हन के कान में और दूल्हे के पीठपीछे में फूंक मारी जाती है और दूल्हे व दुल्हन का शुद्धिकरण मान लिया जाता है। यह भी माना जाता है कि ब्राह्मणों द्वारा दुल्हन की शादी विष्णु से करवाई जाती है और दूल्हे को विष्णु का अंश(बीज) माना गया है। परन्तु प्रतीकात्मक रुप से शुद्धिकरण-प्रथा आज भी जारी है।लेकिन दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है बस उसका स्वरुप जरूर बदला गया है।

डोलाप्रथा जिसके तहत शादी के बाद लड़कियों को शादी के बाद पहले के तीन दिन और तीन रातें अपने पति के साथ ना रह कर ब्राह्मण के साथ रहना पड़ता था, सोना पड़ता था। इसे ब्राह्मण शुद्धिकरण का नाम देता है। कहने का मतलब यह है कि लड़किया अशुद्ध होती है। इसलिए शादी के बाद पहले तीन दिन-तीन रात ब्राह्मण लड़कियों को शुद्ध करता है फिर वो अपने पति के लायक होती है। ये शुद्धिकरण की डोला प्रथा क्या है? ब्राह्मणी संस्कृति में शादी भी एक अनुष्ठान है। ये एक यज्ञ की तरह है। ब्राह्मण अपने यौन आनन्द के लिए ही इस निकृष्ट प्रथा को जन्म दिया था। धन्यवाद, अंग्रेजी हुकूमत का जिसने सन 1819 में "अधिनियम 7" द्वारा इस शुद्धीकरण प्रथा पर रोक लगा दी थी।

यदि पुरुषवादी नारी-अस्मिता विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था ही यही है तो ऐसे में इनके धर्म बाबाओं, गुरुओं, महात्माओं द्वारा करना, जो इनके तथाकथित महान ऋषियों, मुनियों और बाबाओं ने किया है, नाबालिक के साथ बलात्कार करना, अपनी मुँह बोलीबेटीयों और भक्तों संग यौन-आनन्द क्रीड़ा करना, अपनी पोतियों के साथ निर्वस्त्र सोना आदि कोई नयी बात नहीं है। यही पुरुषवादी नारी-अस्मिता विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था है। इस पूरे व्यवस्था को छोटे और सरल भाषा में ब्राह्मणवाद कहते है।

ऐसे में आज के वैज्ञानिकता वाले समाज में भी इस तरह की शोषणवादी व्यवस्था में आम इन्सान कैसे फँस जाता है? ये हमारे सामाजिक विचारकों, चिंतकों और विद्वानों के बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है। महानतम समाजशास्त्री बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर ने कहा है, "ब्राह्मणवाद ब्राह्मणों के ज्ञान पर नहीं बल्कि शूद्रों और अतिशूद्रों के अज्ञान पर टिका है।" यदि आज के समय में भी सजा याफ्ता बलात्कारी बाबाओं के भक्तों की फौज है तो इसका एक मात्र कारण है कि इनके भक्तों (जो कि प्रायः शूद्र और अतिशूद्र तबके से आते है) तक ज्ञान पहुँच ही नहीं पाया है। हमारी सरकारें वैज्ञानिक शिक्षा का चाहे जितना ढिढोरा पीट लेकिन सच्चई यही है कि भारत के डिग्रीधारक, जो अपने आपको आधुनिक और शिक्षित समझते हुए आधुनिक और शिक्षित होने की गलत-फहमी में जी रहे है, भी पूरी तरह से अंधविश्वासी और अज्ञानी है। क्योंकि गुरमीत राम-रहीम जैसे बाबाओं के आर्थिक तंत्र को देखे तो निःसंदेह हम कह सकते है कि ग़रीब समाज भीड़ तो जुटा सकता है लेकिन आर्थिक सहयोग नहीं कर सकता है। ऐसे में ऐसे बाबाओं के पास सोने का चढ़ावा, लाखों का दान, हज़ारों एकड़ में फैली ज़मीने कौन मुहैया करता है ? निःसंदेह, ये पढ़ा-लिखा डिग्रीधारक सम्पन्न वर्ग ही है।

बलात्कारी संस्कृति के तहत बलात्कारी बाबाओं के लिए जो भीड़ इकट्ठा होती है। उसके भी कई पहलु है। पहला, इनके मठ और आश्रम धर्म, अध्यात्म और समाज सेवा के नाम पर सबसे सुरक्षित वैश्यालय है। अध्यात्म की बात करते है। समाज के लिए अस्पताल आदि बनवा दिए जाते है। धर्म के नाम पर लोग शौक से बेहिचक जाते है। ब्राह्मणी व्यवस्था के तहत इन स्थानों पर जाना समाज के एक अच्छा चरित्र जाता है। माँ-बाप अपने बच्चों को, सास-ससुर अपनी बहुओं को, माँ-बाप अपनी बेटियों को, पति अपनी पत्नी को आदि सब यहाँ जाते है। ऐसे में ऐसे सभी स्थान सम्मान प्राप्त होते है। इन सबसे इनके मूल चरित्र को धर्म, अध्यात्म और समाज सेवा का सफ़ेद चादर मिल जाता है। इस सफ़ेद चादर के अन्दर इनका असली धन्धा चलता है-देवदासी प्रथा पर आधारित वैश्यावृति का आज का धन्धा। 

तमाम चारित्रिक रूप से भ्र्ष्ट समाज के रसूखदार, बड़े-बड़े राजनेता, शासन-सत्ता और अन्य सभी उच्च पदों पर बैठे लोग जो काम कहीं और नहीं कर सकते है वे लोग अपनी ऐय्यासी का बेहतरीन स्थान ऐसी जगहों पर ही पाते है। बाबाओं की कृपा से यहाँ पर उनकी सेवा में अनगिनत भक्त लड़कियाँ और भक्त औरते उपलब्ध रहती है। अक्सर ग़रीब और मज़बूर औरते बाबा के चमत्कार के चलते वहाँ जाती और बाद में उनके तिलस्म में फँसकर शोषण की आदि हो जाती है। 

ऐसे में जब बाबा इन वीआईपी लोगों की इतनी सेवा करते है तो बाबा के चमत्कार के लिए ये वीआईपी लोग भी अपना पूरा-पूरा योगदान करते है। ग़रीब जनता, जिसके पास खाने तक को नहीं है और जो इन बाबाओं के चंगुल में फसती है, उसकी समस्या कितनी बड़ी हो सकती है। आप अंदाज़ा लगा सकते है। ऐसे में वीआईपी लोगों के योगदान की बदौलत बाबा अपने आशीर्वाद से इन गरीबों की समस्या सुलझाकर वाह-वाही बटोरने में सफल हो जाते है। ये राजनेता किसी एक ही पार्टी विशेष के नहीं होते है क्योंकि वैवाहिक जीवन से परे स्त्री-सुख को लालायित नेता और दलाल हर पार्टी में मिल जाते है। जैसा कि हाल के ही दिनों में बीजेपी के नेताओं द्वारा सेक्स रैकेट में पकड़े जाना काफी सुर्ख़ियों में रहा है। इस प्रकार इन बाबाओं को अपार जन-समर्थन मिल जाता है। बाद में फिर, यही जन-समर्थन इन बाबाओं को ही वोट बैंक बना देती है। इससे इनकी पहुँच सत्ता के गलियारों तक कायम हो जाती है। 

उदहारण के तौर पर बाजपाई जब प्रधानमत्री थे तो भी बलात्कारी आशाराम बापू से आशीर्वाद लेते थे, मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बलात्कारी बाबा गुरमीत राम-रहीम से सिर्फ आशीर्वाद ही नहीं लेता है बल्कि गुरमीत को सरकारी कार्यक्रम स्वच्छता अभियान का ब्रांड अम्बेस्डर बना देती है, खच्चर (खट्टर) जैसे नेता सदा बाबा की छत्रछाया में ही वास करता है। दंगे करवाता है जिसमे अरबों की सम्पति को आग के हवाले कर दिया जाता है, ३८ लोगों की जान चली जाती है। पूरी की पूरी कानून व्यवस्था पंगु हो जाती है। दंगाइयों को कंट्रोल करने के लिए बॉर्डर पर लड़ने वाले फौजियों को बुलाना पड़ता है। बलात्कार का दोषी पाए जाने पर एक मामूली गुरमीत जैसा गुण्डा सरकार तक को नतमस्तक कर देता है। अदालत द्वारा सज़ा होने के बाद बीजेपी के अध्यक्ष अमितशाह हिंसा के लिए अदालत को जिम्मेदार ठहराते है। 

नारी-विरोधी और मानसिक दीवालियापन का एक उदाहरण खुद आरएसएस के प्रवक्ता राकेश सिन्हा जी है। आरएसएस के विचारक राकेश सिन्हा कहते है कि व्यास केवट पुत्र था, बाल्मीकि भील पुत्र था, वशिष्ठ वेश्या पुत्र था, विदुर दासी पुत्र था। राकेश जी से हम यह जानना चाहते है कि मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू व्यवस्था तो पुरुष प्रधान व्यवस्था रही है तो व्यास, बाल्मीकि, वशिष्ठ और विदुर माताओं के पुत्र के रूप में ही क्यों जाने जाते है ? क्या ये व्यास, बाल्मीकि, वशिष्ठ और विदुर के नाजायज ब्राह्मण बापों, उनके कुकृत्यों व पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का नाम छुपा कर महिलाओं को ही नीच साबित करने का षड्यंत्र नहीं है। राकेश सिन्हा जिन व्यास, वाल्मीकि, वशिष्ठ और विदुर की बात कर रहे है वे उनकी माताओं के बारे में उनकी जाति और उनके पेशे को उजागर कर क्या साबित करना चाहते है। राकेश सिन्हा क्यों नहीं इन ऋषियों के नाज़ायज़ बापों और उनकी जाति का उल्लेख करता है। राकेश सिन्हा क्यों इन ऋषियों के बापों को छुपा रहा है। क्यों नहीं, राकेश सिन्हा इन ऋषियों के नीच बापों की जाति को छिपा रहा है। राकेश सिन्हा वशिष्ठ की माता का जिक्र तो करते है लेकिन अपने तथाकथित भगवन राम के जैविक पिता (श्रृंगी ऋषि) की बात क्यों नहीं करता है। राकेश सिन्हा भारत की संस्कृति की बात करता है। राकेश सिन्हा को पता होना चाहिए की दामाद (श्रृंगी ऋषि) और सासु माँओ (कैकेई, कौशल्या, सुमित्रा) के संसर्ग, भारत की संस्कृति का नहीं, सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणों की संस्कृति का हिस्सा है। इसलिए रामायण को भारत की संस्कृति का हिस्सा कहकर भारत संस्कृति को अपमानित करने का अधिकार किसी को नहीं है। ये सब राकेश सिन्हा जैसे मानसिक दीवालियापन के शिकार जातिवादी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दुओं की सोच व चरित्र उजागर करता है। ये सब बताता है कि ये किस गिरी मानसिकता के शिकार है। यही है आरएसएस का महिलाओं के प्रति सम्मान। यही है बीजेपी मैदान में, महिलाओं के नहीं, ब्राह्मण पुरुषों के सम्मान में। 

बीजेपी सांसद साक्षी महाराज और सुब्रमणियम स्वामी जैसे निकृष्ट नेता साज़ याफ्ता मुज़रिम और बलात्कारी गुरमीत राम-रहीम की खुलेआम पैरवी करते है। देश का प्रधानमंत्री नरेडंरा मोदी भी चुप रहता है। मज़बूरन चंडीगढ़ हाईकोर्ट को ये कहना पड़ता है कि मोदी को पता होना चाइये कि वो देश का प्रधानमंत्री है, बीजेपी का नहीं। ये सब कोई संयोग नहीं है। ये सब एक दिन में नहीं हो जाता है। इतने सारे असलहे, गाड़ियाँ और भीड़ एक दिन में नहीं बनाई जा सकती है। इसके पीछे सत्ताखोरों का भरपूर साथ व सहयोग रहता है। या यूँ कहें कि सत्ताखोर और अन्य उच्च पदों बैठे लोग मन्दिरों, मठों और आश्रमों में चलने वाले इस वैश्यावृत्ति के धंधे के महत्पूर्ण अंग है, शेयरधारक है।

यदि बाबा के चमत्कारों और उनकी सत्ता के गलियारों में हनक को देखे तो इसकी डोर बाबाओं के वैश्यवृत्ति के धन्धे पर ही टिकी हुई है। मतलब कि महिलाओं के शोषण पर। हां यहाँ एक अंतर जरूर है जो लड़कियाँ और औरते आम बाज़ारों धन्धा करती है समाज उन्हें गिरी नज़र से देखता है, नीच, चरित्रहीन, बद्चलन और कुलटा कहता है जबकि जो लड़कियाँ और औरते बाबा की छत्रछाया में रहकर सेवा प्रदान करती है उन्हें समाज सम्मान से देखता है, इज़्ज़त करता है, सभ्य और भक्त या फिर साध्वी कहता है। धंधा वही है बस इंफ्रास्ट्रक्चर बदलने मात्र से ही कोई सभ्य तो कोई बद्चलन हो जाता है, कोई चरित्रवान तो कोई चरित्रहीन हो जाता है, कोई सम्मान योग्य बन जाता है तो कोई तिरस्कार। ये सब सिर्फ और इंफ्रास्ट्रक्चर का कमाल है। 

दूसरा, कुछ एक राज्य को कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाय तो आज़ाद भारत पर शुरू से ही पुरुषवादी नारी-अस्मिता विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दुओं का ही कब्ज़ा रहा है। इन्होनें आज तक समाज को उनके मूलभूत स्वास्थ के अधिकार से वंचित रखा है। जिसके चलते लोगों को छोटी-छोटी बीमारियों से पीड़ित होकर काल के गाल में अकाल ही समाना पड़ता है। मेडिकल सुविधाओं का ग़रीब और आम जान तक ना पहुँच पाना तांत्रिकों और उनकी बढ़ते कारोबार का सबसे अहम् कारण है। ऐसे में ग़रीब और आम जनता इन बाबाओं के खैराती दवाखानों से दवा लेती है और इसे भी मेडिकल साइंस का योगदान समझने के बजाय बाबा का वरदान ही समझती है। 

इसी श्रेणी में वो मुद्दा भी आता है कि क्यों महिलाएं ही इन बलात्कारी बाबाओं की भक्त ज़्यादा होती है? इसमें निहित एक महत्वपूर्ण सवाल ये है कि आखिर क्यों जो पुरुष अपनी औरतों और लड़कियों को हमेशा परदे के पीछे रखता है वो क्यों अपने घर की लड़कियों और महिलाओ को बाबा के यहाँ खुला छोड़ देता है? विज्ञानं भी इस बात को स्वीकार करता है आज की भाग-दौड़ की जिन्दगीं में पुरुषों में लगातार प्रजजन क्षमता गिरती जा रही है। जिससे उनमें बच्चे पैदा करने की क्षमता गिरती जाती है। पुरुष प्रधान समाज में कुछ समय के लिए तो बहुओं और बेटियों को ही कोसा जाता है, ताना दिया जाता है कि वो बाँझ है। इस कार्य में महिलाएँ ही सबसे आगे रहती है। यहाँ पर महिला की दुश्मन है। 

बच्चे ना पैदा होने की स्थिति में प्रायः पत्नी की ही सारी मेडिकल जाँच कराई जाती है, पति की नहीं। क्योंकि पति की नपुंसकता की जाँच मतलब उसकी मर्दानगी पर हमला। ऐसे में पुरुष इसके लिए कभी तैयार नहीं होता है। लेकिन जब सभी तरह की मेडिकल जाँच में पत्नी फिट पायी जाती है तो ऐसे में साड़ी ज़िम्मेदारी पति पर ही आती है लेकिन फिर भी पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित पुरुष अपनी कमियों को स्वीकार नहीं करता है। ऐसे में, वो पति और खुद घर वालों अक्सर यही कहते है कि उसमे तो सब कुछ सही लेकिन फिर भी बच्चा नहीं पैदा हो रहा है, भूत-प्रेत की आशंका है। भूत-प्रेत की आशंका जताने से पहले ये पुरुषवादी पति और घर वाले इन पतियों की मेडिकल जाँच के नहीं सोच पाते है, क्यों। क्योकि, इससे पति की मर्दानगी को ठेस लगेगी। समाज के लोग क्या कहेगें। 

फिर इसी भूत-प्रेत की आशंका के पीछे अपनी कमियों को छुपाये ये लोग अपनी बेटियों और बहुओं को बाबाओं की शरण में ले जाते है। ऐसे में जब ये बाबा को बताते है कि मेडिकल जाँच के अनुसार उनकी बहु या बेटी में कोई कमी नहीं है तो बाबा भी समझ जाता है कि कमी कहाँ पर और किसमे है। मेडिकल साइंस ये प्रमाणित कर चुकी है कि बाबाओं के भभूत से बच्चे नहीं पैदा होते है। ये बात पति-पत्नी-घरवाले-बाबा और पूरी दुनिया जानती है। लेकिन पुरुषवादी लोग अपनी नपुंसकता को छुपाने के लिए अपनी बहन-बेटियों-पत्नियों आदि को बाबाओं के हवाले कर देते है। 

नतीज़न, फिर कुछ महीनों तक बाबा के दर्शन और पूजा-पाठ (पूजा-पाठ में क्या होता है, आप सब जानते है) करने से गर्भ ठहर जाता है और कुछ समय पश्चात् नपुंसक पति को औलाद मिल जाती है। ऐसे में उसकी नपुंसकता भी छिप जाती है, और वो पत्नी रोज-रोज बाँझ कहलाने से बच जाती है, और परिवार वालों को भी वंश चलाने वाला वारिस मिल जाता है। समाज में अपनी नपुंसकता छिपाकर औलाद पाने की परम्परा इसी पुरुषवादी नारी-अस्मिता विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड में वर्णित राम-लक्ष्मण-भारत-शत्रुघ्न का जन्म इसी विधि से हुआ था। दशरथ ने अपनी नपुंसकता को छिपाने के लिए श्रृंगी नाम के बाबा को बुलाया था। हाँ अगर देखा जाय तो श्रृंगी ऋषि ने खुद अपने ससुर के कहने पर अपनी सासु माँओं को पुत्र दिया। मतलब कि श्रृंगी ने अपनी सासु माँओं कौसल्या, कैकेई और सुमित्रा के साथ वही किया जो मेडिकल साइंस कहती है। मतलब साफ है कि राम-लक्ष्मण-भारत-शत्रुघ्न का जन्म किसी भभूत या प्रसाद की वजह से नहीं हुआ था.....

इसी प्रकार बाबाओं के आश्रम में जिस तरह से सम्मानित वीआईपी पुरुषों आदि को वैवाहिक जीवन से बाहर स्त्री-सुख मिल जाता है, ठीक उसी प्रकार से इन बाबाओं के आश्रम में वीआईपी और कुछ मनचली लड़कियों और औरतों को भी अपने वैवाहिक जीवन से परे पूरे सम्मान के साथ दूसरे पुरुषों से शारीरिक सुख मिल जाता है। कहने का मतलब बस इतना है कि बाबा के मन्दिर, मठ और आश्रम आदि ऐसे धन्धों के लिए सबसे उपयुक्त और सबसे सम्मानित जगह है। इसमें कोई रोक-टोक नहीं। धर्म का स्थान है, भगवान् का वास स्थान है। यहाँ पर धर्म और अध्यात्म की आड़ में मनचाहे तरीके से सब कुछ हासिल हो जाता है जो सामन्यतः तथाकथित स्वघोषित सम्मानित लोग चाहते है, वीआईपी लोग चाहते है। 

तीसरा, बेरोजगारी ने समाज में गरीबी को और बढ़ावा दिया है। इसके चलते लोगों में अशान्ति बढ़ती है। उनका चित्त एक जगह नहीं ठहरता है। वे इधर-उधर भ्रमण करते रहते है। भ्रमित है लोग। ऐसे में वे अक्सर इन बाबाओं के रूप इनकों एक शान्तिदाता मिल जाता है। बाबा का कॉर्पोरटे वर्ल्ड काफी बड़ा है तो उसमे कुछ को किसी भी तरह का छोटा-मोटा काम मिल जाता है। इससे ये पाखण्डी बाबा लोगों के दिलों में उदारता वाली छबि बना लेते है। ये लोगों के दिलो-दिमाग में बस जाते है। लोग इन पाखण्डियों के बस में हो जाते है। फिर ये पाखण्डी बाबा इन भक्तों को जो भी कहें ये ये भक्त उसकी तामील करने को हर पल तैयार रहते है। आगे चलकर यही भक्त इन बाबाओं के लठैत बन जाते है, ट्रेनिंग लेकर असलहाधारी गुण्डे बन जाते है, मानव बम बन जाते है जिसका ट्रिगर पाखण्डी बाबाओं के हाथ में ही होता है। ऐसे में ये भक्त अपने साथ-साथ अपने घर-परिवार और रिश्तेदारों को भी बाबा की इस मण्डली में जोड़ लेते है। धीरे-धीरे बाबा के पास जहाँ एक तरफ अपार भक्तों की भीड़ बन जाती है वही दूसरी तरफ इनकी अपनी सरकार के समानांतर एक खुद की भी फौज कड़ी हो जाती है। उदहारण - आशाराम, रामपाल और गुरमीत राम-रहीम जैसे पखड़ियों के पास अपनी खुद की फौज है, वो भी हथियारों से तैयार। आखिर इनको ये हथियार रखने की परमिशन कहाँ से मिलती है। इसका जबा सिंपल है - इनके आश्रम में वैवाहिक जीवन के बाहर स्त्री-सुख के लिए आने वाले वीआईपी से। 

चौथा, शिक्षा का आभाव। आज भी भारत में करोड़ों डिग्रीधारक है लेकिन उनमे शिक्षा बिलकुल नहीं है। वो विज्ञानं जरूर पढ़े हुए होते है लेकिन सिर्फ और सिर्फ परीक्षा पास करने के लिए। भारत का मौजूदा प्रधानमंत्री गोबर विज्ञानं, गौमूत्र विज्ञानं की बात करता है। इसरों का चीफ रॉकेट लॉन्च करने से पहले हवन करवाता है। मेडिकल साइंस वाला भी सुबह-सुबह क्लिनिक पहुँचने पर सबसे पहले मनगढ़न्त देवी-देवताओं की पूजा करता है। विश्वविद्यालयों में सीता की अग्नि-परीक्षा, हनुमान की उड़न-यात्रा आदि पर रिसर्च कराया जाता है। स्कूल पहुँचते ही देवियों और देवताओं के नाम की प्रार्थना करवाया जाता है। संविधान की वजह से मानवीय जीवन जी रहे लोग भी ब्राह्मणी अंधविश्वासों में पड़े है, इसके शिकार है तो इसका कारण भारत में ब्राह्मणी संस्कृति, धर्म और व्यवस्था बोलबाला है। आज भी भारत में जितने मन्दिर, और मस्जिद होगें उतने स्कूल नहीं होगें। 

भारत में साक्षरता जरूर बढ़ी है लेकिन शिक्षा आज भी भारत के लोगों से कोसों दूर है। विज्ञानं के क्षेत्र में हमने थोड़ी-बहुत उपलब्धि जरूर हासिल कर ली है लेकिन वैज्ञानिकता और वैज्ञानिक सोच की पहुँच हमारे लोगों तक आज भी सुलभ नहीं हो पायी है। कुतर्क करने माहिर ब्राह्मण और ब्राह्मणी रोगी कितना भी आधुनिक बनाने की कोशिस करे लेकिन ये तर्क से मीलों दूर है। देश में साक्षरता वाली डिग्रीधारकों की संख्या जरूर बढ़ी है लेकिन शिक्षा नहीं है। देश में कुशल और साक्षर लोगों की तादात बढ़ी है लेकिन शिक्षितों की नहीं। 

ये सब कोई संयोग नहीं है। ये अपने आपमें पूरा एक सिस्टम है। ये सिस्टम है पैसा-पॉवर-धर्म का। इनका केंद्र बिंदु है - वैश्यवृत्ति। इसी के इर्द-गिर्द पूरा का पूरा सिस्टम घूमता है। लेकिन आज़ाद भारत के मानवतावादी संविधान ने लोगों को रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ, वैज्ञानिक शिक्षा और मानवाधिकारों के लिए अधिकार देता है। लड़ने की साहस देता है। बाबा साहेब के संघर्षों ने पुरुषवादी नारी-अस्मिता विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था की जड़े हिलाकर रख दिया है। जो मातृशक्ति कभी इनकी गुलाम थी, आज बाबा साहेब की बदौलत अपनी अस्मिता के लिए समरभूमि में कूद रही है। गति धीमी ही सही लेकिन जो कभी नारी-शक्ति पुरुषवादी नारी-अस्मिता विरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था की गुलाम थी, दासी थी, आज वही इस पूरी की पूरी व्यवस्था को चैलेंज कर रही है। जिस नारी शक्ति को ब्राह्मणी हिन्दू व्यवस्था ने पढ़ने तक का अधिकार नहीं दिया था, बाबा साहेब रचित संविधान के तहत ही वो नारी ना सिर्फ पढ़ रही है बल्कि कदम दर कदम ब्राह्मणी हिन्दू संस्कृति, धर्म व व्यवस्था को खुलेआम चुनौती दे रही है। 

बाबा साहेब रचित संविधान के चलते ही बलात्कारी गुण्डे गुरमीत राम-रहीम के चंगुल में कैद में दो मातृ शक्तियों ने गुरमीत के पूरे सिस्टम को ही चुनौती दे डाली। जहाँ जनता गुलाम हो चुकी है, अन्धविश्वास का बोलबाला है, भक्ति चरम पर है, भक्तों का ताण्डव आज का जलता हुआ सच है, गौमूत्र राज़ / गोबर राज़ / नरसंहार राज़ / बलात्कार राज़ क़ायम हो चुका है, बीजेपी शासित चारोँ राज्यों (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी) और खुद केंद्र सरकार जिस गुरमीत की मुट्ठी में कैद है, जिस गुरमीत की खुलेआम वकालत में खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, साक्षी महाराज, सुब्रमणियम स्वामी आदि जैसे सत्ता में बैठे लोग कर रहे है, ऐसे में भी प्रॉस्टिट्यूट मीडियालय, जिसने अपने जिस्म को ही नहीं बल्कि अपने ज़मीर को भी धंधे पर लगा दिया है, इनके ही गुणगान में व्यस्त है, जिन बलात्कारी गुण्डे बाबाओं और उनके तिलस्म को कन्ट्रोल करने के लिए बॉर्डर पर लड़ने वाली सेना को बुलाना पड़ा, ऐसे में, हम उन भारत बेटियों को सलाम करते है, उन मातृ शक्तियों का इस्तकबाल करते है जिन्होंने ने डेढ़ दशक तक, अपार मानसिक पीड़ा और यातना को सहते हुए इन खूंखार आदमखोरों से ना सिर्फ़ जंग लड़ा बल्कि ऐतिहासिक फ़तेह भी हासिल किया।

हमें इस मुद्दे पर सोचना होगा कि आखिर यह कैसी व्यवस्था जहां राम रहीम जैसों का ऐसा कद बन जाता है? राजनीति में भी अमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा। धर्म के धन्धे को राजनीति से पूर्णतः अलग करना होगा। धर्म से कुतर्क, अंधविश्वास, कर्मकाण्ड आदि को चुन-चुनकर निकलना होगा। 

देश के हितैषियों को, साजशात्रियों को, विचारकों को, विद्वानों को यह सोचना होगा कि ब्राह्मणवाद की इस तिलस्म कैसे तोडा जाय? कैसे बुद्ध-अम्बेडकर को हर घर तक पंहुचाया जाय? कैसे बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर से लोगों को जोड़ा जाय? यदि आज बलात्कारी बाबाओं के भक्तों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा है। इन पाखण्डी बलात्कारी बाबाओं का तिलस्म बढ़ता जा रहा है। इनका कॉर्पोरटे वैल्यू बढ़ती जा रही है तो इसका एक मात्र कारण यह है कि देश का बुद्धिजीवी, विचारक, विद्वान, शिक्षित वर्ग लोगों तक बुद्ध-अम्बेडकर के विचारों को ले जाने में असफल रहा है। इन सबके लिए कोई एक नहीं बल्कि पूरा का पूरा देश ज़िम्मेदार है, खासकर ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग जो अपनी व्यक्तिगत मुक्ति के लिए देश को ब्राह्मणवाद, अन्धविश्वास, कर्मकाण्ड, पाखण्ड और पाखंडियों के हवाले कर देश की जनता को ब्राह्मणवाद की भट्ठी में धकेल रहा है। 

धन्यवाद 
जय भीम, जय भारत। 

(रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली, अगस्त २९, २०१७)






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