Monday, August 21, 2017

हर पल वंचित जगत पर हो रहे हमलों के मायने...

दिन-प्रतिदिन वंचित जगत के लोगों, खासकर छात्रों और बुद्धिजीवियों, पर लगातार हमले हो रहे है। वंचित जगत की मातृ शक्ति की अस्मिता को तार-तार किया जा रहा है। ज्ञान के केंद्र स्कूलों, संस्थानों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में आये दिन ना सिर्फ वंचित जगत के छात्र-छात्राओं पर बल्कि वंचित जगत के अध्यापकों, प्रोफेसरों और अधिकारीयों पर खुलेआम हमले हो रहे है। सरकारी दफ्तरों में वंचित जगत का शोषण किया जा रहा है, वंचित जगत के अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ नग्न भेद-भाव हो रहा है। इस मुद्दे पर शासन-प्रशासन-ससंद और न्यायालयों में बैठे पदाधिकारी ब्राह्मणी रोग चलते अपंग बने हुए है। हाल-फ़िलहाल में ऊना, सहारनपुर, हरियाणा, हैदराबाद विश्वविद्यालय, जेएनयू आदि के क्रम में इसी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू व्यवस्था के तहत बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विवि लखनऊ के अंबेडकरवादी छात्र पर ब्राह्मणी रोग से पीड़ित रोगियों ने जानलेवा हमला कर दिया है। ये सब निंदनीय है, क्रूरतम है, निर्दयी है, अमानवीय है, निकृष्टतम है।

फ़िलहाल हमारे विचार से, वंचित जगत अपने समाज के साथ हो रहे इस क्रूरतम क्रूरता से भलीभांति परिचित है। वंचित जगत मज़बूर बेबस और लचर जरूर है लेकिन, जहाँ तक हमारी समझ है, वंचित जगत निराश, हताश बिलकुल नहीं है। ये वंचित जगत इन दुश्वारियों के बावज़ूद भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहा है।

बुद्ध-अम्बेडकर महावृक्ष से निकली समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित बहुजन आन्दोलन, बहुजन राजनीती, बहुजन विचारधारा के तीव्र वेग और इसके रास्ते में आने वाले उतर-चढ़ाव को देखते हुए, हमारे विचार से, वंचित जगत पर चारों तरफ से हो रहे ये हमले बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा व बहुजन आन्दोलन से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण संकेत देते है।

एक, ब्राह्मणों व ब्राह्मणी रोग से ग्रसितों के मन में वंचित जगत के प्रति नफरत है कि बढती ही जा रही है। ब्राह्मणो व ब्राह्मणी रोगियों को वंचित जगत का पढ़ना-लिखना, अधिकारों के साथ जीना, स्वतंत्र विचार रखना, स्वाभिमान की बात करना, आत्मसम्मान के लिए बगावत करना, सत्ता में गलियारों में बैठना, न्यायालयों में ठाट से चहल-कदमी करना, संसद में सवाल-जबाब करना, शानों-शौक़त से रहना, बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चलना, बेहतरीन कपड़े पहनना, रॉयल इनफील्ड से चलना आदि इनकों रास नहीं आ रहा, बर्दास्त नहीं हो रहा, इनको कचोट रहा है, इनके रात की नींद हराम कर चुका है, कल तक इनकी जी हुज़ूरी करने वाले इनके बराबर ही नहीं बल्कि देश के सबसे बड़े ओहदों तक पहुंच चुके है, ये सब हज़म नहीं हो रहा, देखते ही देखते सदियों-सदियों तक की सत्ता ख़ाक में मिल चुकी है, ये सब इनकों सोने नहीं देता है, हर पल हर शै इनको कचोटता है, ये सब मातम मना रहे है, रूदन कर रहे, दुखी है। ठीक उसी तरह जैसे कि मनुस्मृति में मनु कहता है कि शूद्रों को नए कपडे नहीं पहनना चाहिए, शूद्रों को ज्ञान हासिल नहीं करना चाहिए, सक्षम होते हुए भी शूद्रों को धन संचय नहीं करना चाहिए। शूद्र के धन जमा करने, ज्ञान हासिल करने, नए कपडे पहनने आदि से सवर्णों को दुःख होता है।

वंचित जगत के लिए गाँधी सवर्णों के ह्रदय परिवर्तन की बात करते थे लेकिन ये एक कोरा षड्यंत्र था। यदि गाँधी जैसे मंझे हुए षड्यंत्रकारी राजनेता के ह्रदय परिवर्तन के सिद्धांत को उनका एक आदर्श सिद्धांत मान भी लिया जाय, जो कि हकीकत में संभव ही नहीं है, तब भी एक गाँधी की दूरदृष्टि पूर्णतः संदिग्ध है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब गाँधी सवर्ण ह्रदय परिवर्तन की बात करते है तब या तो, वो इंसानी फितरत, ब्राह्मणी षड्यंत्र व सामंती सोच से अनभिज्ञ थे। या फिर, गाँधी खुद ब्राह्मणी रोग से ग्रसित एक लचर-बेबस रोगी थे, शोषण-दमन-सामंती-ब्राह्मणी व्यवस्था के पुजारी थे, भक्त थे। या फिर, जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू सामंती सोच व व्यवस्था के पुरोधा थे। लेकिन किसी भी सूरत-ए -हाल में गाँधी एक निष्पक्ष इन्सान कभी नहीं थे, वंचितों के हितैषी कभी नहीं थे। गाँधी या तो ब्राह्मणों के आदर्श गुलाम थे, या फिर खुद ब्राह्मणी व्यवस्था के षड्यंत्र को बारीकी से जानने वाले एक नाइंसाफ़, गुलाम पसंद जातिवादी, नस्लभेदी इन्सान थे। गाँधी मानव कल्याण के हितैषी कभी भी किसी भी कीमत पर नहीं थे।

दूसरा, बहुजन समाज पर हो रहे अत्याचार स्पष्ट रूप से दर्शा रहे है कि बहुजन के मुँह में जुबाँ आ चुकी है, उसने हिला-डुलना शुरू कर दिया है, पैर पर चलना सीख रहा है, ओलम्पिक में दौड़ने को आतुर है।
कल तक के गूँगे समाज को बाबा साहेब ने ज़बान दे दिया है, अपाहिज़ समाज को पैर दे दिया है, लूले समाज को संविधान रुपी हथियार दिया है। बहुजन समाज जो सदियों से ब्राह्मणी षड्यंत्रों के चलते गुलामी की जिंदगी जी रहा था, जिनकी जबाँ तक काट दी गयी थी, आज समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित बाबा साहेब निर्मित भारत लोकतंत्र की इमारत में महफूज़, बाबा साहेब रचित भारत संविधान को हथियार बनाकर सदियों से सताया हुआ भारत का वंचित जगत अपने अधिकारों के साथ स्वाभिमान व आत्मसम्मान का महासंग्राम लड़ रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ये वंचित जगत सिर्फ और सिर्फ महायुद्ध ही नहीं लड़ रहा बल्कि दुश्मन के हर किले को ध्वस्त कर मजबूती से फतह भी हासिल कर रहा है। कहने का मतलब यह है कि भारत का ये मूक समाज सिर्फ नींद से जागा ही है कि दुश्मन के खेमे में भूचाल आ गया है। बाबा साहेब का मिशन आगे ही बढ़ता जा रहा है।

तीसरा, धर्म व समाज के ठेकेदार समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व के सिद्धांत से हिले हुए है, उन्हें पता है कि कल तक जो समाज सोया हुआ था अब जाग चुका है। अगर बहुजन आन्दोलन पर गौर करे तो हम पाते है कि बहुजन अभी-अभी गहरी नींद से उठा है, इसने चलना भी शुरू नहीं किया है कि मनुस्मृति जला दी गयी, वेदों-पुराणों-गीता व रामायण को न्याय के कटघरे में खड़ा कर दोषी करार कर दिया गया है। सोचने वाली बात यह है कि जिस दिन बहुजन चलना शुरू कर देगा उस दिन भारत का हुक्मरान कौन होगा, निस्संदेह-बहुजन ही होगा। बहुजन आंदोलन ने आज जो मुकाम पाया है वो बाबा साहेब के अथक संघर्षों का मधुर परिणाम है। समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व के विचारधारा की फ़तेह है। हमारे विचार से, हर वो सिद्धांत, हर वो क़िताब, हर वो धर्म, हर वो शास्त्र, हर वो सोच, हर वो विचार एक गुनाह है, जो समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व के खिलाफ है।

चौथा, बहुजन समाज धर्म, अन्धविश्वास, अज्ञान, अत्याचार, अनाचार, निर्दयता पर आधारित ब्राह्मणी व्यवस्था को नकार चुका है। आज हर वो धर्म, संस्कृति व विचारधारा ख़तरे में है जो समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व को इन्कार करता है। ब्राह्मण कहता है कि हिंदुत्व ख़तरे में है, मुस्लिम कहता है कि इस्लाम खतरे में है लेकिन हकीकत ये है कि समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व की विचारधारा ने धर्म के इन ठेकेदारों (ब्राह्मणों और मौलवियों) की अमानवीय सत्ता को तबाही के मुहाने पर ला दिया है। इसलिए ये कहते है कि हिंदुत्व ख़तरे में है, इस्लाम ख़तरे में है। बहुजन साथियों को थोड़ा सा जागरूक होने की जरूरत है कि "धर्म के ठेकेदारों की ठेकेदारी खतरे में है, इसीलिए धर्म के ठेकेदार कहते है कि हिंदुत्व खतरे में है, इस्लाम खतरे में है।"

पांच, सतीप्रथा के तहत जिसे जिन्दा जलाया गया, डोलाप्रथा के तहत जिसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया गया, होली के त्यौहार के रूप में जिसे आज भी जलाया जाता है, रक्षाबंधन के तहत जिसे कमज़ोर कहा जाता है, ब्राह्मणो-सामन्तों के भोग के लिए जिसे देवदासी बनाया गया, जिसे बच्चा पैदा करने की मशीन समझा जाता रहा है, जिसे भोग-विलास के लिए कोठों पर बिठा दिया गया, जिसे जन्मजात नीच व दासी समझा गया, तुलसी जिसे ताड़न का अधिकारी कहता है, मनु जिसे अपवित्र कहता है, ब्राह्मण जिसे दान की वस्तु मानता है, जिसके शिक्षा की मनाही थी, सदियों तक घरों की चहारदीवारियों में कैद रही वो मातृ-शक्ति आज अपनी अस्मिता को खोज रही है, गुलामी के खिलाफ बगावत कर रही है, जो आज तक सिर्फ और सिर्फ बिस्तर की शोभा समझी जाती थी वो मातृ शक्ति बिस्तर से उठकर अधिकारों की माँग कर रही है, ब्राह्मणी व्यवस्था की ख़िलाफ़त कर रही है।

छठा, बुद्ध, अशोक, कबीर, रैदास, गाडगे, ज्योतिर्बा फुले, पेरियार, नारायणा गुरु, बिरसा, शाहूजी फ़ातिमा शेख़, रमाबाई, सावित्री फुले, काशीराम, मायावती और बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षाप्रतीक मानवता मूर्ती बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर ने बहुजन समाज को गहरी नींद से जगाकर सकल बहुजन समाज को एकता के सूत्र बाँधा है। आज ये अपने वज़ूद को समझ रहा है, इसके लिए लड़ रहा है। आज का भारत भले ही तमाम जातियों व धर्मों में बटा है लेकिन फिर भी समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व के बुद्ध-अम्बेडकरी सिद्धांत के तहत सकल वंचित जगत वैचारिक तौर पर एक सूत्र में बँध रहा है। हो सकता है कि ये गति थोड़ा धीमी हो लेकिन सच्चाई यही है कि ये बहुजन वंचित जगत गतिमान है। इसमें सिर्फ चाल ही नहीं, त्वरण भी है, दिशा भी है। संक्षेप में कहें तो बहुजन समाज सिर्फ चाल से नहीं बल्कि बहुत ही तीव्र वेग से समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित भारत को मूर्तरूप देने के लिए अग्रसर है।

सातवां, समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व रुपी कवच को धारण किये हुआ वंचित जगत लोकतंत्र रुपी रथ पर सवार होकर संविधान रुपी हथियार लेकर दुश्मन के ख़ेमे में घुसकर स्वाभिमान व आत्मसम्मान का महासंग्राम लड़ रहा है। भारत का भविष्य बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा से ओत-प्रोत होगा जिसमें समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व के सिद्धांत का राज़ होगा।

अपंग हाथों में कटार, विकलांग पैरों को रथ का तीव्र वेग देकर आज जिस तरह से बहुजन वंचित जगत अपने पैरों की बेड़ियों को काट रहा है, ख़ुद जागकर दूसरों को जगा रहा है, महासंग्राम की कमान अपने हाथों लेकर राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक सत्ता की बागडोर सभालने की तरफ अग्रसर है उससे निःसंदेह निःसंकोच अटल अटूट विश्वास के साथ हम कहते है कि आने वाला भारत समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व की विचारधारा पर आधारित बुद्ध का भारत होगा, अशोक, कबीर, रैदास, गाडगे, ज्योतिर्बा फुले, पेरियार, नारायणा गुरु, बिरसा, शाहूजी फ़ातिमा शेख़, रमाबाई, सावित्री फुले, काशीराम, मायावती का भारत होगा, बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षाप्रतीक मानवता मूर्ती बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर का भारत होगा, हमारा भारत होगा, ऐसा भारत जो आज के पहले दुनिया के पास कभी नहीं था सुन्दर भारत, समता का भारत, स्वतंत्रता का भारत, बंधुत्व का भारत।
धन्यवाद
जय भीम, जय भारत।

रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली


No comments:

Post a Comment