Tuesday, January 14, 2014

शिक्षा - विकास की राह

सामान्य तौर पर , विकास का आशय मानव और उससे जुडी चीजो से होता है । जिसमे शिक्षा , विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है । इसी कारण शिक्षा की गणना विकास के महत्वपूर्ण सूचकों में की जाती है । इसलिए मानव के विकास में एक समुचित शिक्षा प्रणाणी की अहम् जरूरत होती है । यह मानव के कार्य प्रणाणी की को क्षमता बढ़ा देती है । सूचनाओ के विकेंद्रीकरण में शिक्षा एक महत्वपूर्ण स्थान होता है , जो कि प्रशासन और विकास में लोगों की भागीदारी को करता है ।
शिक्षा , लोगो में अपने अधिकारो और कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता लाने के साथ - साथ , लोगो में उन्नत उद्यम लाने और गरीबी दूर करने का महत्वपूर्ण हथियार सावित हो सकता है । शिक्षा की जागरूकता ही लोगो में अपने लिए बेहतर राजनितिक प्रतिनिधि चुनने और देश को एक उन्नतशील सरकार देने में सक्षम है । फ़िलहाल , समाज और देश के नवयुवकों को उनकी क्षमता के अनुसार रोजगार प्रदान करना सरकार के सामने एक बड़ी जिम्मेदारी है । इसके लिए सरकार को अर्थव्यवस्था के हर पहलू पर ध्यान होगा । भारत को अपने मानव संसाधन के बहुमूल्य निधि का सदुपयोग करने के लिए अपने घरेलु उद्योगो को बढ़ने के सख्त जरूरत है।  
विकासशील देशों की बढती जनसँख्या को काबू करने , जनसँख्या को नयी दशा और दिशा देने के लिए , गरीबी उन्मूलन , स्वच्छ प्रशासन और विकास में जन भागीदारी आदि के क्षेत्रों में शिक्षा ही एक मात्र कारगर हथियार है । शिक्षा के विकाश के लिए सरकार को शिक्षा के मूलभूत ढाचे को सुदृढ़ और विश्व मानक के अनुसार तैयार करना होगा । विश्व मानक के तौर पर तैयार निजी विश्वविद्यालय और संस्थानो की स्थापना और सहयोग , देश की तररकी के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प और जरूरत है । इसके साथ ही भारत सरकार को शिक्षा के मापदंडो को तैयार करने वालो सरकारी संस्थानो और उनके प्रवंधन की तरफ खास ध्यान देना होगा । बीमार शिक्षा प्रवंधन का मतलब होगा - बीमार इंजिनीरिंग और मेडिकल संसथान , जो कि देश के लिए उपयोगी होने के बजाय घातक ही सिद्ध होगा ।
विकास अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है । इसके लिए उन्नत सोच , दूरदृष्टि , राजनितिक सहयोग , जनता की भागीदारी , निजी संस्थानो का सहयोग और एक बड़ी पूजी की आवश्यकता होती है । इस सब के लिए जरूरत होती है - एक सोच की । सोच की पहेली सीढ़ी होती है - शिक्षा । इसी कारण , बगैर शिक्षा के विकास के कल्पना करना ही व्यर्थ है ।
देश के विकास में शिक्षा के कई पहलू हो सकते है । एक , वह शिक्षा जो हमारे देश के शिक्षण संस्थानो और विश्वविद्यालयो में मिलती है । यह देश के नव जवानो को तकनिकी और व्यवसायिक शिक्षा के तौर पर दी जाती है । यह शिक्षा देश में इंजिनीरिंग , मेडिकल , वकालत , एकाउंटेंसी , अनुसन्धान , विकास और प्रवंधन से जुडी होती है । यह देश को उन्नत प्रशासन और विकाशवादी सरकार देने में सबसे अहम् भूमिका अदा कराती है ।
दूसरी , वह शिक्षा वो लोगो में अपने अधिकारो , मानव अधिकारो , देश के प्रति कर्त्तव्य , अपने बच्चों के प्रति कर्त्तव्य , पर्यावरण और समाज के बूढ़े और बुजुर्गों के प्रति हमारे कर्त्तव्यों से जुडी होती है । यह कोई जरूरी नहीं है कि यह शिक्षा कालेजों में दी जाये । यह शिक्षा इंसान के अपने घर परिवार , आस-पड़ोस , समाज , रेडिओ , टेलीविजन , सेमीनार , पंचायत , अखबार , पत्रिका , सम्मलेन , सोसल मीडिया , गैर-सरकारी संगठनो , सरकार के प्रायोजित कार्यकर्मो और अन्य जगहो से जुडी होती है ।
शिक्षा के ये माध्यम देश के किसानो को उन्नत बीज , आधुनिक तकनीकी , वैज्ञानिक सहयोग , सिचाई की विधियां सिखाती है , तो वही सरकार के योजनाओ , और उनसे लाभ लेने के तरीके औए सरकारी मशीनरी के सदुपयोग के गुण सीखने का भी कारगर काम करती है । उदहारण के तौर पर चार से पांच साल की कृषि शिक्षा देश के किसानो की दयनीय दशा को नयी दिशा देने के लिए काफी है । लेकिन इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है - देश के किसानो का दिमागी तौर पर तैयार होना , बदलाव की लहर का स्वागत करने के लिए तैयार होना , नयी तकनिकी और वैज्ञानिक उन्नति को आत्मसात करने के लिए तैयार होना । इन सबके लिए सबसे जरूरी है - एक नयी सोच की , नव युवको और नव युवतियों के भागीदारी की , सरकार के साथ-साथ गैर सरकारी संगठनो के भागीदारी की और एक जन-आंदोलन की । कोई भी सरकार किसी भी देश की गरीबी को तब तक दूर नहीं कर सकती है , जब तक की उस देश का हर नागरिक गरीबी दूर करने और नयी सोच को आत्मसात करने के लिए उत्सुक और तन , मन और धन से तैयार ना हो ।
तीसरा , देश के विकाश लिए सिर्फ बढ़ी-बढ़ी फैक्टरिया , उद्योग , नौकरियां और बढ़ी अर्थव्यवस्था आदि ही काफी नहीं है । देश के विकाश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है - मानवाधिकारों के हनन से छुटकारा पाना । आज भी हमारे देश में ऊँच-नीच , जातिवाद , सम्प्रदायवाद , क्षेत्रवाद के साथ-साथ , नागरिको और बच्चो के मानवाधिकारो का खुले आम हनन होता है । हमारे समाज में , जहाँ एक तरफ जाति के नाम पर , तो वही दूसरी तरफ धर्म के नाम पर खुले आम दंगे होते है । हमारे परिवार में , आज भी इज्जत और मान-सम्मान के नाम पर माँ-बाप खुद अपने बेटे-बेटियों के खून की होली से खेलते है । आज भी हमारे समाज में प्रेमी-जोड़े गंगा और यमुना में छलांग लगते है ? आखिर क्यों ? अंतरजातीय विवाह आज भी ना के बराबर है । प्रेम विवाह को माँ-बाप अपने परिवार के लिए कलंक और अपमान समझते है । आज भी हमारे समाज में लगभग सारी की सारी शादियां लगभग बच्चों के मन-मर्जी के खिलाफ ही होती है । धर्म और परिवार की नाक के नाम पर माँ-बाप , आज भी बच्चो की वलि चढ़ाते है । ये सब मानवाधिकारो का हनन है । शिक्षा के प्रथम उद्देश्य - देश के हर नागरिक के मानव अधिकारो की रक्षा है । वह देश कभी विकास नहीं कर सकता है , जहाँ के नागरिको का मानवधिकार सुरक्षित नहीं है । दुर्भग्य से हमारा देश अभी इसी श्रेणी में आता है , जहाँ एक तरफ आज भी माँ - बाप परिवार की इज्जत नाम पर अपने बच्चो की और उनके प्रेम की वलि पर चढ़ाते है , तो वही दूसरी तरफ राजनेता जातिवाद और धर्म के नाम लेकर वोट मागंते है ।
विकास में सबसे अहम् मुद्दा है - देश की महिलाओ और बच्चियो को पुरुषो और लड़कों के बराबर का हक़ देना । आज भी घर के किसी भी काम के निर्णय में महिलाओ में मन-मर्जी को व्यर्थ ही समझा जाता है । शादी में बेटी की इच्छा का कोई खास महत्व नहीं दिया जाता है । महिंलाये देश की कुल जनसख्या का आधा हिस्सा है , लेकिन पूरे देश , समाज और घर का निर्णय केवल पुरुष वर्ग ही करता है । आखिर क्यों ? जब तक पुरुष वर्ग , महिलाओ के अधिकारो की इज्जत नहीं करेगा , जब तक देश की बेटी को अपने जीवन के निर्णय का अधिकार नहीं मिलेगा , जब तक देश की महिला वर्ग देश के निर्णय में हिस्सेदार नहीं बन जाती है , तब तक देश का विकास की बात करना सिर्फ और सिर्फ एक स्वप्न मात्र होगा । इसलिए हमारे परिवार , समाज और देश को महिलाओ और बच्चियों के अधिकारो के प्रति सचेत और उन्नत होना होगा ।
शिक्षा , सूचना और जागरूकता एक दूसरे से जुड़े एक अनमोल पहलू है । ये तीनो एक दूसरे के पूरक और समाज की दशा और दिशा तय करने के अनमोल हथियार है । एक जागरूक समाज ही सूचनाओ का सही उयोग कर शिक्षा द्वारा अपने अधिकारो को जान सकता है और अपने मानव अधिकारो के लिए लड़ सकता है । अमेरिका , ब्रिटेन और अन्य विकसित देशो के उन्नति का एक राज .... वहाँ के समाज और सरकार द्वारा वहाँ के बच्चो और अन्य नागरिको के मानवाधिकारो की रक्षा और महत्ता है ।
संक्षेप में , आज देश का विकास , मानवाधिकारो की रक्षा , नयी सोच , उन्नत तकनिकी , दूरदृष्टि और स्वार्थ रहित राजनीति के साथ-साथ समाज का मनोवैज्ञानिक तौर पर एक नए बदलाव के लिए तैयार होना है । देश का विकास , शिक्षा , नारी अधिकारो के साथ हर इंसान के मानवाधिकारो की रक्षा ....., देश के हर नागरिक का अधिकार, कर्त्तव्य और मूलभूत धर्म होना चाहिए। देश से गरीबी उन्मूलन , धर्म और परिवार के नाम पर मानवाधिकारो का शोषण , महिला अधिकारो के अधिकारों के प्रति उदासीनता और देश की मौजूदा बीमार हलात और देश की अर्थव्यवस्था को नयी दशा और दिशा देने के लिए पहला और सबसे कारगर हथियार है - शिक्षा ।
रजनी कान्त इन्द्रा
विधि छात्र, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
जनवरी १४, २०१४



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