Wednesday, January 8, 2014

शादी या सौदेबाजी

शादी , जीवन का वह मधुर उत्सव  जिसमे एक ऐसे दोस्त का आगमन  होता है जो अपने आपमें माँ - बाप , भाई - बहन , बेटा - बेटी , पति - पत्नी और दोस्त - प्रेमी जैसे  पवित्र रिश्तों को समेटे  रखता है । एक ऐसा दोस्त जो हर  सुख - दुःख में सदा साथ रहता है । हमारे ख्याल से , शादी जीवन का सबसे  अनोखा  और  महत्वपूर्ण निर्णय होता है । जीवन का यह बंधन , हमारे जीवन की दिशा और दशा दोनों को तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाता है ।

लेकिन हमारे भारतीय समाज में , शादी जैसे मधुर और पवित्र  पर्व का महत्व , जीवन के एक निर्णायक कदम के रूप में कम और झूठे समाज में माँ-बाप की झूठी नाक और साख बचने का जरिया ज्यादा है ।  यह इस बात से साबित हो जाता है कि आज भी लगभग सारी  शादियाँ  किसी  ना किसी  प्रकार के दबाब का परिणाम होती है । भारतीय पुरुष प्रधान समाज में , बेटे की इच्छा को कुछ अहमियत मिल भी  जाती है , लेकिन बेटियो की  तो खुले आम सौदेबाजी होती है । भारत आजाद  जरूर है , लेकिन बेटियों की स्थिति गाय जैसे जानवरो से ज्यादा कुछ भी नहीं है । ये समाज और देश राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होने के वजूद मुर्दों द्वारा बनायीं गयी सड़ी - गली , रूढ़िवादी परम्परों और कुरीतियों का आज भी पूर्णता गुलाम है ।

 हमारे समाज में , झूठी इज्जत  , झूठी  नाक और पडोसी के सामने ओछी साख की खातिर बेटियों की मवेशियों  जैसे  खरीद - फरोख्त , एक ऐसी परंपरा  है जो सदियों से चली आ रही है । भारतीय समाज में , बेटियों की जिंदगी , बेटियों की अपनी जिंदगी  कम और माँ-बाप की नाक ज्यादा होती है । इसी वजह से भारतीय समाज की  बेटियों को अपने मौलिक मूलभूत संवैधानिक और मानव अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है । नतीजा - उनके प्रेम , प्रेमी और खुशियों की निर्मम हत्या , जीवन भर वैश्या जैसा जीवन । क्या किसी  भी तरह के दबाव में की गयी शादी , वास्तविक शादी हो सकती है ? जहाँ तक हमारा विचार है - किसी  भी तरह के दबाव में की गयी शादी कुछ और नहीं , बल्कि बेटी को पति रुपी एक ग्राहक के लिए कोठे पर बैठना है ।  हमारे देश का ये दुर्भाग्य ही है कि प्रेम विवाह को छोड़कर हमारे समाज की हर शादी इसी के तहत आती है ।

आज हमारे समाज में विरले और दुर्लभ ही शादियां होगीं जहाँ पर माँ-बाप अपने बच्चों के प्रेम , उनकी  खुशियों और उनके मानव अधिकारो की रक्षा और सम्मान करते है । आज भी भारत में जहाँ एक तरफ  हर बेटे का बाप , शादियों में बोली लगाकर अपने बेटे को खुले आम बेचता है , वहीं  दूसरी तरफ हर लड़की का बाप अपनी बेटी के लिए अपने हैसियत के अनुसार दामाद के रूप में अपनी बेटी के लिए एक निजी बलात्कारी - ग्राहक खरीदता  है । ये पति  रुपी बलात्कारी - ग्राहक जहाँ एक तरफ अपने कोठे की अपनी इस निजी वैश्या  के जीवन भर के भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेता है , तो वहीं दूसरी तरफ पूरे जीवन इस वैश्या के दिल - दिमाग और शरीर का बलात्कारी रूप से  उपभोग करता है । जो माँ - बाप अपनी बेटी को प्यार करने का दवा करते है , वहीं माँ - बाप एक तरफ  समाज , धर्म और परम्परा के खौफ से बेटी के प्यार और उसके प्रेमी की हत्या करते है , तो दूसरी तरफ अपनी बेटी को दामाद रूपी एक बलात्कारी - ग्राहक को सौपकर अपने जीवन में कन्यादान का पुण्य कमाने का ढोग करते है । क्या यही विवाह रूपी पवित्र और मधुर पर्व है ???

समाज की बदलती धारा  को देखते हुए , कुछ माँ - बाप बेटियों की इच्छा जानने का दावा जरूर करते है , लेकिन यह एक कोरे झूठ के सिवा  कुछ भी नहीं है । क्योकि यदि लोग बेटियो की इच्छा का सम्मान करते तो खाप पंचायत , समाज और माँ-बाप द्वारा प्रेमियों की निर्मम हत्या क्यों होती ? प्रेमी जोड़े खुदकुशी क्यों करते ? मनगढंत कहानियों में लिखे राधा - कृष्ण की प्रेम गाथा लोग जितनी  भक्ति , प्रेम और लगाव से गाते  है , उससे ज्यादा दिलचस्पी और चाव से प्रेमियों की हत्या करते है । आखिर क्यों ? 

भारतीय समाज की ये शादियाँ , जीवन का मधुर उत्सव नहीं , बल्कि उनके मानवाधिकारो की निर्मम हत्या और उनके जीवन की सौदेबाजी है । इस समाज में , हमारे युवाओं को देश की  सरकार  चुनने का अधिकार है , देश के भाविष्य का निर्णय करने का अधिकार है  , लेकिन खुद का जीवन और जीवन साथी  चुनने का अधिकार नहीं है । आखिर क्यों ? यदि कोई प्रेम विवाह कर ले तो पंचायत , समाज और घर में  भूचाल जाता है । आखिर क्यों ?

हमारे युवाओं के जीवन का निर्णय वो बूढ़े भेड़िये ( मुर्दो द्वारा बनायीं सड़ी-गली , अमानवीय कुरीतियों को मानने वाले लोग ) करते है जिनकी खुद की  जिंदगी  कुछ  दिनों की ही मेहमान होती है ।  बूढ़े  , कट्टर और रूढ़िवादी लोगों की इच्छा के खिलाफ जाने का मतलब है - समाज और घर में चरित्रहीन होना । क्या ये  न्याय है ? माँ-बाप , जो अपना जीवन इन बच्चों के लिए जीते है , वे ही अपने बच्चो के सबसे बड़े दुश्मन बन जाते है | आखिर क्यों ? माँ-बाप कहते है कि वे बच्चों के भले के लिए सोचते है और सब-कुछ बच्चों के भले के लिए ही करते है | क्या ये तर्क यहाँ किसी  भी तरह न्याय संगत है ?

        क्या  घिसी-पिटी , अवमानवीय  , रूढ़िवादी धर्म और परम्पराओ के नाम पर हमारे युवाओं के अधिकारो और उनके जीवन की वलि चढाई जा सकती है ? आज की बेटी यानि कल की माँ , जो लोगों को जीवन देती है , उसी के जीवन और अधिकारो वलि दी जाती है | आखिर क्यों ? क्या ये बेटियों  धर्म और परम्परों की वेदी के लिए बनी है ? क्या हमारे युवाओ का उनके ही जीवन पर कोई अधिकार नहीं है ?

भारतीय समाज में महिलाओ की गुलामी और उनकी  दैनीय अवस्था का कोई जोड़ नहीं है । नारी की इस विवशता का सिर्फ और सिर्फ एक ही हल है - प्रेम - विवाह । प्रेम - विवाह ही वह हथियार है जो इस सड़ी - गली परम्पराओ वाले भारतीय समाज और इसकी निकृष्ट मानसिकता से नारी जाती को मुक्ति दिला सकती है । भारतीय युवतियो और युवको को कदम से कदम मिलकर प्रेम और प्रेम विवाह के पथ पर आगे बढ़ते हुए अपने मौलिक मूलभूत संवैधानिक मानवाधिकार के लिए दृढ़ता पूर्वक लड़ना होगा । देश के नौजवान युवको और युवतियों को एक साथ कंधे से कन्धा मिलकर भारतीय समाज के निकृष्ट परम्पराओ को नेस्तानाबूत करना होगा । झूठे और ओछे समाज में झूठी नाक और इज्जत के नाम पर हो रहे अत्याचारो के खिलाफ लड़ना होगा । किसी भी समाज में इज्जत और इज्जतदार होने का माप-दंड समाज में मानवाधिकारो की रक्षा होती है है । इसलिए समाज में हो रहे मानव अधिकारो के हनन को रोकना होगा , पुराने अत्याचारी परम्पराओ को नेस्तनाबूत करते हुए सिर्फ और सिर्फ प्रेम और प्रेम - विवाह को बढ़ावा देना होगा । 

देश के युवाओ ,
जब तक हमारे देश में लोगों का मानवाधिकार सुरक्षित नहीं होगा , तब तक हमारे देश का भाविष्य सुरक्षति नहीं होगा । जो युवा अपने जीवन के अधिकारो के लिए  नहीं लड़ सकता है , उससे देश के रक्षा की आशा करना व्यर्थ है । आज देश को मानवाधिकारो के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारियों की जरूरत है । आज दुनिया में विकाश का एक महत्वपपूर्ण मापदंड - देश में बेटियों के अधिकरों की रक्षा , स्त्रियों की दशा , शिक्षा और जागरूकता है । क्या हमारा भारत और हमारे युवा और युवतियां इस चुनौती के लिए तैयार  है ???

रजनीकान्त इन्द्रा 
विधि छात्र, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ 
जनवरी ०८, २०१४ 

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