Saturday, November 14, 2009

न्यायपालिका और भ्रष्टाचार

भष्टाचार और संविधान द्वारा दी गयी शक्ति का दुरूपयोग आज हमारी सरकार में आम बात है | आज हमारे देश के एक चपरासी से लेकर नेताओ , पुलिस अधिकारीयों और प्रशासनिक अधिकारियो तक पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके है , और दोषी मिलाने पर सजा भी हुई है | लेकिन आज तक गिने चुने दो - चार न्यायाधीशों पर ही आरोप लगें है क्यों ? परन्तु और भी आश्चर्य यह है कि आज तक ये सिद्ध किसी भी न्यायाधीश पर नहीं हुआ है क्यों ? क्या सारे के सारे आरोप झूठे थे | इसकी सिर्फ न्यायिक जाँच होती है | इनका फैसला सिर्फ कोलेजियम करता है | इसके पारदर्शिता और निष्पक्षता के बारे में कोई भी इन्फोर्मेशन जनता को नहीं है क्योकि ये जनता के अधिकार क्षेत्र से बाहर है , आखिर क्यों ? हमारे न्यायाधीश अपने को कानून से ऊपर मानते है जबकि हमारे सुप्रीम कोर्ट के ही एक न्यायाधीश ने कहा है कि सब लोग हमारी भारतीय जनता के नौकर है | जब सब नौकर है तो मालिक ( भारतीय जनता ) को हिसाब देने में हिचक क्यों ? संपति को ना बताने की असफल कोशिस इसका एक उदहारण है |

               भारत सरकार के विभिन्न अंग के लोगो पर आरोप लगे है , जाँच हुई है और सजा भी मिली है लेकिन आज तक कोई जज दण्डित क्यों नहीं हुआ ? क्या सारे आरोप झूठे होते है | हमारे नेताओ के मामले में राजनितिक फायदे के लिए आरोप लगते है लेकिन जज तो स्वतंत्र होते है ये किसके दबाव में आकार या किस राजनीति के लिए अपने संवैधानिक पॉवर का दुरूपयोग करते है ? भारत में न्यायाधीशों का वेतन भी उनके समक्ष लोगो से ज्यादा होता है फिर भी ये हालत है क्यों ? बात चाहे जो भी हो लेकिन हमारे न्यायपालिका का राजनीतिकरण हो चुका है | उदहारण स्वरुप इंदिरा गाँधी द्वारा अपने मन पसंद को मुख्य न्यायाधीश बनाकर इमरजेंसी को सही साबित करना , न्यायाधीश सब्बरवाल पर लगे आरोप , न्यायाधीश दिनकरण पर लगे आरोप | इसी तरह से ढेर सारे उदहारण है लेकिन ये उजागर नहीं हो पाते है क्योकि संविधान ने इसको एक पॉवर अवमानना की दी है | न्यायपालिका कितना भी निष्पक्ष क्यों ना हो जाए फिर भी राजनीति के दायरे से नहीं निकल सकती है | इसका कारण खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति की अपारदर्शी प्रकिया और अवमानना का अधिकार है | फ़िलहाल जो कुछ भी हो अब भी कुछ नहीं बिगाडा है | हमारे देश की सी.बी.आई और पुलिस को अधिकार दिया जाए जिससे कि ये उनकी जाँच कार सके | किसी को भी अधिक स्वतंत्रता देना लोक तंत्र के लिए घातक होगा | संविधान निर्माण के समय न्यायाधीशों के अधिकारों को कम करने पर बल दिया गया था लेकिन सफल नहीं हुआ क्यों कि हमारी संविधान निर्माता समिति ने इस पद बैठने वालों को इस पद पर बैठने से पहले ही मान लिया कि वे बहुत ही इमानदार है | नतीजा आज सामने है कि सारे आम संविधान का उल्लंघन हो रहा है , उदहारण स्वरुप कर्नाटक के न्यायाधीश दिनाकरन को धक्का दिया जाना और दो न्यायाधीशों को विरोध प्रदर्शन के दौरान मामलों की सुनवाई स्थगित करने से इनकार करने पर अदालत हाल में बंद कर दिया गया। ये संविधान का अपमान ही तो है | लेकिन हमारे वकील भाई भी उताने ही सही है , जितना कि संविधान , क्योंकि आज वे जो कुछ कर रहे है वह जनता की भलाई के लिए और न्यायपालिका को विश्वनीय , पारदर्शी बनाने के लिए ही है | जब जनता में अधिकार और पारदर्शिता की बात आएगी तो संविधान का उल्लंघन होना तय है क्योकि संविधान के दायरे में रह कर परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है | हमारे कानून मंत्री हमेशा हर निर्णय न्यायपालिका पर छोड़ देते है तो क्या इनको जनता ने कुर्शी तोड़ने के लिए बैठाया है | संसद का काम है समय के अनुसार कानून बनाना और परिवर्तित करना जबकि न्यायपालिका और कार्यपालिका का काम है उसका पालन करना | जबकि न्यायपालिका खुद ही कानून बनाना चाहती है तो फिर संसद और न्यायपालिका में जंग निश्चित है | ठीक यही हुआ था श्री सोमनाथ चटर्जी और न्यायपालिका के बीच | जनता ने भी सोम दादा का समर्थन किया था क्योकि संसद से सांसदों का निलंबन सही निर्णय था | जनता ने सदा सही का ही साथ दिया है और सदा देगी भी | अब वक्त आ गया है की न्यायाधीशों को सीधे पुलिस और सी.बी.आई. जाँच के दायरे में लाया जाए |

                 आज लोग कहते है कि चुनाव आयोग का ही सब जगह शासन हो , जो कि लोकतंत्र में संभव नहीं है फिर भी ये भारतीय चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता को दर्शाता है | श्री राम विलास पासवान के उस प्रस्ताव का हम स्वागत करते है जिसमे कहा गया था कि जब भारत के सर्वोच्च पदों जैसे भारतीय चुनाव आयोग और राजस्व विभाग , विदेश विभाग को चलने वाले आई.ए.एस. जैसी अग्नि परीक्षा देकर आते है तो न्यायाधीश क्यों नहीं ?

              देश कि जनता आज अपना हिसाब चाहती है , पारदर्शिता और निष्पक्षता चाहती है जो कि उसका अधिकार है तो उसे मिलाना ही चाहिए क्योकि कि स्वतंत्र भारत में जनता ही राजा है बाकी सब सेवक | अतः भारत सरकार के हर अंग को सी.बी.आई.और पुलिस के जाँच के दायरे में लाना चाहिए | यदि सरकार कोई और स्वतंत्र , निष्पक्ष , पारदर्शी और न्यायपूर्ण कमीशन बनाना चाहती है तो वह सराहनीय है परन्तु उस कमीशन में सरकार के हर अंग के लोग होने चाहिए जैसे कि आई.ए.एस. , आई.पी.एस. , आई.एफ.एस. , आई. आर.एस. , भारतीय थल सेना , भारतीय वायु सेना , भारतीय जल सेना , न्यायाधीश , राजनेता , पत्रकार , समाज सेवक , वैज्ञानिक और संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य | ये कमीशन हर क्षेत्र के लोग को अपने में समाहित किये हुए है जो कि न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता का एक उत्तम विकल्प है | जब जाँच कमीशन में हर तरह के और हर क्षेत्र के लोग होगें तो भ्रष्टाचार , अन्याय पर अंकुश लगेगा औए जनता का सरकार में विश्वाश बढेगा | अब जनता अपने कमाई का हिसाब चाहती तो उसे देना होगा क्योकि जनता ही स्वतंत्र भारत का राजा है जबकि और सब सेवक |

हम भारत सरकार से उम्मीद करते है कि वह निष्पक्षता, न्याय और पारदर्शिता लाने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाएगी |


जय हिंद


Nov. 14 , 2009

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