Saturday, May 14, 2022

बहुजन आन्दोलन में नेतृत्व (बहनजी) मार्गदाता हैं, मुक्तिदाता नहीं।

समाज को अपनी जिम्मेदारी खुद उठानी होगी।

बहुजन आन्दोलन की शुरुआत जगतगुरु तथागत गौतम बुद्ध से मानी जाती है। तथागत के ज्ञान की परम्परा को सम्राट अशोक, जगतगुरु संत शिरोमणि संत रैदास, जगतगुरु संत कबीर दास, जगतगुरु घासीदास, नारायणा गुरु, राष्ट्रपिता ज्योतिबा फूले, छत्रपति शाहू जी महाराज, ज्ञानमूर्ति बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर, लोकतंत्र के महानायक मान्यवर साहेब और सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहनजी सहित तमाम बहुजन नायक-नायिकाओं ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आगे बढ़ाया है। ये सभी महामानव समाज के मार्गदाता हैं। गुरु हैं। इनके संघर्षों और बहुजन आन्दोलन का ही प्रतिफल है कि भारत के शूद्रों, अछूतों, आदिवासियों और अन्य शोषित पीड़ित समाज में सामाजिक परिवर्तन की लौ रौशन है।

आन्दोलन के दरमियान तमाम उतार-चढाव आते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर मनुवादियों संग तात्कालिक बहुजन समाज के लोगों ने फूले का विरोध किया, बाबासाहेब का विरोध किया अंग्रेजी हुकूमत का एजेंट तक कहा, मान्यवर साहेब को सीआईए का एजेंट बताया और आज बहनजी को मानवता विरोधी आरएसएस और भाजपा का एजेंट बता रहे हैं। हालांकि, बहनजी बार-बार बहुजन समाज को सचेत करती रहती है।

बहुजन आन्दोलन में मार्ग (ज्ञान) की परम्परा है, मुक्ति (मनुवादी मोक्ष) की नहीं। जगतगुरु तथागत गौतम बुद्ध ने कहा कि 'मैं मार्गदाता हूं, मुक्तिदाता नहीं।' बहुजन समाज आन्दोलन के सभी वाहकों ने भी यही कहा है परन्तु मनुवाद के प्रभाव में जी रहा बहुजन इन सबको मार्गदाता के बजाय मुक्तिदाता समझ रहा है। यही वजह है कि खुद की जिम्मेदारी भी अपने नेतृत्व के कन्धों पर डाल कर किनारे खड़े होकर मनुवाद के तांडव का नृत्य देख रहा है। ये मनुवाद से इस कदर ग्रसित है कि अपने नेता से काल्पनिक 'सुपर पर्सनल' की उम्मीद करता है। बहुजन समाज अपने नायकों में मनुवादी कपोल कल्पित देवताओं वाली छवि देखना चाहता है।

बहुजन समाज बुद्ध को मानता है परन्तु मनुवादी हिंसक देवताओं को अनुसरण करता है। यही वज़ह है राजनीति में संवैधानिक व लोकतांत्रिक मार्ग पर चलकर सत्ता हासिल करने के बजाय अनावश्यक धरना, तोड-फोड, जुलूस, अनर्गल प्रलाप आदि में अपनी सीमित ऊर्जा और समय खर्च कर देता है। जबकि बाबासाहेब, मान्यवर साहेब ने, संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीकों की वकालत की है और बहनजी उन्हीं के पथ पर अग्रसर है लेकिन बहुजन समाज को हिंसक मनुवादी रास्ते ज्यादा रास आ रहें हैं। इसलिए बहुजन अपने नायकों के सिद्धांतों से दूर मनुवाद के काले आगोश में समाये जा रहा है।

जगतगुरु तथागत गौतम बुद्ध कहते हैं कि - 'जैसे आप सोचते हैं, वैसा ही प्रतिफल आपको मिलता है।' बहुजन समाज के लोग अपनी पूरी ऊर्जा और समय भाजपा का डर फ़ैलाने में खर्च करते हैं, बहुजन विरोधी टीएमसी, आप, राका, आरजेडी, जदयू, सपा और कांग्रेस आदि को प्रमोट करेंगे, इनको वोट करेंगे, इनका सपोर्ट करेंगे और फिर सवाल पूछेंगे कि बसपा सत्ता से दूर क्यों है, बहनजी क्या कर रही हैं।

बहुजन समाज खुद को बौद्ध परम्परा का वाहक कहता है परन्तु अभी भी यह नहीं समझ पाया है कि बहनजी मार्गदाता हैं, मुक्तिदाता नहीं। बहनजी बहुजन समाज व अन्य सभी को भी शांति, सुख, समृद्धि, सत्ता और सामाजिक परिवर्तन हेतु सतत मार्गदर्शन कर रही हैं परन्तु बौद्ध अनुयाई होने का दम्भ भरने वाले लोग क्या बहनजी के बताये रास्ते पर चल रहे हैं।

ऐतिहासिक तथ्य है कि बुद्ध ने मार्ग बताया, भारत विश्वगुरू बन गया। कालांतर में, लोग भटक गये और मनुवाद ने भारत से बौद्ध धम्म और विश्वगुरू की पहचान छीन ली तो इसमें मार्गदाता बुद्ध का दोष है या फिर समाज का?

ठीक इसी तरह जब तक बहुजन समाज ने मार्गदाता बहनजी की बात मानी बहुजन समाज सत्ता में रहा, उत्तर का चहुंमुखी विकास हुआ। भारत में ही नहीं, विश्वफलक पर बहुजन समाज को पहचान मिली। परन्तु मनुवादी दलों के षड्यंत्रों का शिकार होकर जब बहुजन समाज ने अपने नेतृत्व को कोसना शुरू कर दिया तो वह ना सिर्फ सत्ता से दूर हुआ बल्कि शोषण का शिकार भी होता जा रहा है, उसके मूलभूत अधिकार तक ख़तरे में है। इसमें मार्गदाता की ग़लती है या फिर समाज की?

स्पष्ट है कि - मनुवादियों की साजिशों का शिकार होकर जब समाज ने बौद्ध धम्म से दूरी बनाई तो विश्वगुरू का खिताब छिन गया, सत्ता से दूर हो गया, पहचान मिट गई, शोषण का शिकार हो गया। इसी तरह आज भी बहुजन समाज मनुवादियों द्वारा बसपा और बहनजी के खिलाफ फैलाये गये दुष्प्रचार का शिकार होकर जब अपनी बहुजन समाज पार्टी और बहनजी से दूरी बना रहा है तो ना सिर्फ वो सत्ता से दूर हो गया है बल्कि शोषण का शिकार भी होता जा रहा है।

इन्द्रा साहेब

(इन्द्रा साहेब 'मान्यवर कांसीराम साहेब संगठन- सिद्धांत एवं सूत्र' शोधग्रंथ के लेखक हैं)

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