Thursday, May 10, 2018

आलोचना कीजिए लेकिन सृजन के लिए...

प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
दुःख होता है कि जिन्होंने अपनी जिन्दगी के चार सेकेण्ड भी समाज के लिए नहीं निकला वो भी ४० साल से भी ज्यादा समय से बहुजन समाज के लिए अपनी जिंदगानी लगा देने वाली सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन जी को रात-दिन कोसते ही रहते है। इतनी कुण्ठा अच्छी बात नहीं है। बहन जी भी हम-आप की तरह इन्सान ही है, उनसे भी कुछ गलतियाँ हो सकती है। यदि बहन जी ने कुछ गलत कर दिया हो तो आप भी अपने जिंदगी का कुछ समय समाज को दीजिए, मैदान में उतरिये। यदि गलती से बहन जी ने कुछ गलत कर दिया है तो उनके उस गलत को सही कीजिए। समाज को जागरूक कीजिए लेकिन कुंठित लोग ऐसा कर तो सकते नहीं। क्योकि इनकी जिंदगी ही कुण्ठा और नकारात्मकता से भरी हुई है।
आम बहुजन से हमारी यही गुजारिश है कि आप भी अपने हिस्से की लड़ाई लड़ों, जिस लायक हो उसके मुताबिक अपना योगदान दो। आप अपनी सारी जिम्मेदारियाँ अपने नेता पर ही नहीं लाद सकते है। आप की कुछ जिम्मेदारी बनती है। सिर्फ वोट देकर आप तटस्थ नहीं हो सकते है। मैदान में आपको भी उतरना होगा। सामाजिक परिवर्तन के लिए, बहुजन जागरूकता और कारवां चर्चा में आपको ही लीड करना होगा। राजनैतिक सत्ता आपके आन्दोलन को गति दे सकती है, संरक्षण दे सकती है लेकिन ये कहिए कि इस लोकतंत्र में आपके नेता ही सब कुछ करे तो ये गलत बात है, ये सम्भव भी नहीं है। सामाजिक परिवर्तन के मुद्दों पर जन-जागरूकता, बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी कारवां चर्चा और सदियों से मानवता को ज़लील करते आ रहे ब्राह्मणवाद के खिलाफ आपको ही आना होगा। आप अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते है। ये सिर्फ आपके ही जिंदगी मात्र का मामला नहीं है। ये सदियों से चली आ रही अमानवीय निकृष्टतम घिनौनी ब्राह्मणी संस्कृति से अपने आने वाले नश्लों को सुरक्षित रखने का मुद्दा है, मानवीय हकों को सुरक्षित कर समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित न्याय का प्रश्न है, कराहती को मानवता पुनः सुरक्षित व स्वस्थ जीवन प्रदान करने का सबसे अहम् सवाल है। ये सुन्दरतम भारत के नव निर्माण का मामला है। आप इसमें तटस्थ कैसे हो सकते हो? 
आप भी जानते है कि बहन जी आपसे कारवां चौथ, रक्षाबंधन, होली-दिवाली, मंदिर, कथा-प्रवचन, रामायण-पाठ, श्राद्ध, पिंड-दान, मुंडन, मृत्यु-भोज आदि का बहिष्कार नहीं करवा सकती हैं। ये सब बहिष्कार आपको खुद ही करना होगा, लेकिन ये आप लोग कर नहीं सकते है। क्यों, क्योकि इतने अत्याचार सहने के बाद भी आपकी सोइ हुई बुद्धि आज भी जाग नहीं पायी है। बुद्ध-फुले-बाबा साहेब-पेरियार-मान्यवर साहेब ने आपको कितनी बार समझया कि ब्राह्मणवाद, मन्दिरों और समस्त ब्राह्मणी रीति-रिवाजों और कर्मकाण्डों का बहिष्कार करों, लेकिन क्या आपने किया? नहीं किया, क्यों, क्योकि आप मानसिक गुलाम हो, आपको गुलामी की लत लग चुकी है।
बहुजन आन्दोलन के लिए आपको कोई रॉकेट साइन्स बनांने जैसा कार्य नहीं करना है। आप सिर्फ अपने जीवन और अपने परिवार को ही अमानवीय निकृष्टतम ब्राह्मणवाद के कैद से आज़ाद करवा लो। ये ही बहुजन आन्दोलन में आपका बहुत बडा योगदान होगा। आप भी अच्छी तरह से वाकिफ है कि बाबा साहेब की २२ प्रतिज्ञाओं को आज लगभल छः दशक हो चुके है, क्या आपने बाबा साहेब की २२ प्रतिज्ञाओं को अपनाया? नहीं अपनाया, क्यों? क्योकि अब आपके कुछ अधिकार सुरक्षित हो गए है, कुछ मिल भी गए है, इसलिए अब आप ब्राह्मण बनने की फिराक में हो। क्या ऐसा कभी हो सकता है? आप कितने भी मंदिर का घण्टा बजा लो, उपवास-व्रत कर लो, पढाई भी कर लो, दौलत भी बना लो लेकिन जब तक ब्राह्मणवाद को तिलांजलि नहीं दे देते हो तब तक आप वही रहोगे जो बनकर पैदा हुए थे-शूद्र, सेवक, जन्मजात गुलाम या फिर अछूत।वैसे बाबा साहेब की २२ प्रतिज्ञाओं को अपनाने में किसी भी तरह का आर्थिक बोझ आप पर नहीं पड़ेगा, फिर आप बाबा साहेब की २२ प्रतिज्ञाओं को नहीं अपना पा रहे हो। आपको तो बस बाबा साहेब की तश्वीर और मूर्ती देख कर भक्तों की तरह नतमस्तक होना है, दण्डवत प्रणाम करना है। साल में एक बार आंबेडकर महोत्सव में नाच लिया ही आपकी, जय भीम का जयकारा लगा लिया, और हुआ तो नौटंकी देख लिया, या खुद ही कर लिया, सालों में एक बार वोट डाल दिया, मान्यवर साहेब को याद कर लिया, संत शिरोमणि संत रैदास को याद कर लिया, कभी-कभी कबीर के दोहे दुहरा दिया, बुद्ध को नमन बोल दिया, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है आपका अम्बेडकरवाद। 
याद रखों, बाबा साहेब के विचारों को ताख पर रखकर, नज़रअंदाज़ करके आप लोग ये सब जो कर रहें हो, इसका कोई खास मायने नहीं रह जाता है। बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी विचारों के बगैर ये सब अम्बेडकरवाद नहीं है बल्कि ब्राह्मणवाद का मीठा ज़हर। हमारे विचार से, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर के विचारों को जानना, समझना, पढ़ना और उसके मुताबिक आचरण करना ही अम्बेडकरवाद है। अब आपको ये तय करने में आसानी होगी कि आप अम्बेडकरवादी हो या फिर बाबा साहब डॉ अम्बेडकर का नाम जपने वाले ढोंगी? 
आप भी जानते हो दुर्गा-पूजा गणपति महोत्सव में हज़ारों खर्च करने वाले आंबेडकर महोत्सव में दस रूपये भी देने को तैयार नहीं होते है। वैसे क्या आपने कभी ठण्डे दिमाग से सोचा है कि हिन्दुओं के सारे त्यौहारों पर ज्यादा जोश शूद्रों में ही क्यों दिखता है। शूद्र ही दुर्गापूजा, गणपति क्यों बैठते है? क्या वजह है कि कावड़ लेकर सैकड़ों मील पैदल चलने वाले भक्त शूद्र ही क्यों होते है? धर्म के नाम पर होने वाले दंगों में मरने वाला शूद्र ही क्यों होता है, ब्राह्मण-क्षत्रिय या फिर वैश्य क्यों नहीं होता है? मंदिरों में घण्टा बजाना, सत्य नारायण की कथा सुनना, श्राद्ध करना, पिंडदान करना, रामायण-पाठ करवाना, ये सब अन्धविश्वास पर आधारित अवैज्ञानिक हिंसक ब्राह्मणी कर्मकाण्ड में शूद्र ही क्यों होते है, शूद्र ही क्यों ज्यादा उत्सुक होते है? याद रखिये, अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद एक साथ नहीं चल सकते है। या तो आप अम्बेडकरवादी हो या फिर ब्राह्मणवादी हो। इनके बीच में कोई विकल्प नहीं है। इस लिए पूरे होश-ओ-हवाश में पहले ये तय कर लीजिए की आपकी जीवन-शैली कैसी है?
बाबा साहेब के कारवाँ के सन्दर्भ ये भी याद रखिए कि यदि संविधान मात्र से हमारे सारे अधिकार सुरक्षित हो जाते और समाज में हमारा, हमारे लोगों का सम्मान-स्वाभिमान स्थापित हो जाता तो बाबा साहेब को हमें बुद्धिज़्म की तरफ ले जाने की जरूरत नहीं होती। वैसे हमारा संविधान सिर्फ राजनैतिक-आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक दस्तावेज भी है लेकिन फिर बाबा साहेब अच्छी तरह से जानते थे कि संविधान अकेले ही हमें, हमारे लोगों को समाज में सम्मान नहीं दिला सकता है। इसलिए बाबा साहेब ने हम सब को बुद्धिज़्म की राह दिखाई थी, लेकिन क्या आप बाबा साहेब द्वारा दिखलाई गई बुद्धिज़्म की राह पर एक भी कदम चले है?
इसलिए हमारा स्पष्ट मानना है कि बहुजन आन्दोलन को उसके अंतिम लक्ष्य - समता मूलक समाज की स्थापना, तक पहुँचाने के लिए बहन जी के अलावा आम बहुजन को भी मैदान उतरना होगा और ब्राह्मणवाद, ब्राह्मणी तीज-त्यौहार, रीति-रिवाज, कर्मकाण्ड आदि का बहिष्कार कर बाबा साहेब की २२ प्रतिज्ञाओं को अपने अपने ज़हन में उतरना होगा, अपने घर में स्थापित करना होगा, अपने समाज में लागू करना होगा। राजनैतिक तौर पर सामाजिक परिवर्तन की महानायिका का और अन्य सभी बहुजन नायकों-महानायकों, लेखकों, विचारकों, चिंतकों और समाज सेवकों संग बहुजन सिपाहियों का पूरी सिद्दत के साथ, साथ देना होगा। रही बात बहुजन आन्दोलन के विभिन्न पहलुओं के आंतरिक समीक्षा की, तो वो होती रहनी चाहिए लेकिन सृजन के लिए, बहन जी या बहुजन आन्दोलन को सिर्फ गाली देने के लिए।
जय भीम…
नमों बुद्धाय…
रजनीकान्त इन्द्राइतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली

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