Tuesday, May 1, 2018

बहुजन समाज के प्रति सिनेमा जगत


प्रिय बहुजन साथियों, 
आम तौर पर सबको लगता है कि भारत में दो लोग, दो समुदाय या दो फिरके लड़ रहे हैं लेकिन हकीकत की सरजमीं पर गौर कीजिए, इतिहास को खंघालिए तो आप पायेगें की ये संस्कृतियों का द्वन्द है!
सांस्कृतिक सत्ता सदियों तक चलती है! इसके द्वारा लोगों को गुलाम नहीं बनाया जाता है बल्कि लोग खुद-ब-खुद "आदर्श गुलाम" बन जाते हैं! षंडयंत्रकारी अपराधी फ़ितरत वाले समाज की अपराधी जातियों द्वारा आम जन को गुलाम बनाकर अपनी कालजयी सत्ता को स्थापित करने के लिए ये लोग अपने षडयंत्र को काल्पनिक कहानियों और कथाओं को अपराधी जाति के वाले लोगों द्वारा आम जनता के सामने हकीकत के तौर पर परेसा जाता है! आम जन को उस भगवान से डराया जाता है, उसका महिमामंडन किया जाता है, गुणगान किया जाता, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है! आप सब जानते हैं कि डर सबसे ज्यादा उसी से लगता है जिसको किसी ने देखा ही ना हो! बस इसी बात का फायदा उठाकर धर्म के ठेकेदार आम जन को डराते है और लूटते रहते हैं! यही तो होता रहा है ब्रहम्णवाद की व्यवस्था में!
जाति व्यवस्था को कोई चुनौती ना दे इसलिए कहा गया कि जाति का निर्माण ईश्वर ने किया! आश्रम व्यवस्था को कोई नारी चैलेंज ना करे इसलिए ऩारी समाज को अशिक्षित रखा गया है! नारी अपने अधिकारों के लिए बगावत ना कर दे इसलिए नारी को देवियों, पति-परमेश्वर के सोच तक सीमित कर चहरदीवारी में कैद कर दिया गया! आखिर क्या वजह थी कि रामायण की सीता राम को अपने पवित्रता की परीक्षा देने को मजबूर हो जाती है लेकिन राम पर कोई शक नहीं करता है, उसको परीक्षा देने की बात तक नहीं की जाती है! क्या वजह है कि गर्भवती सीता को राम जंगल भेज देता? सबसे अहम सवाल यह है कि क्यों सीता राम के अत्याचारों को सहती रहती है?
महाभारत में दुर्वासा यग्य के बहाने कुंती का बलात्कार करता है... और इससे पैदा होने वाले कर्ण का बाप आग के दहकते गोले सूर्य को बना दिया जाता है, क्यों? ये इसलिए किया जाता है ताकि कर्ण की हालात के लिए ब्रहम्ण दुर्वासा को नही, एक अबला नारी कुंती को जिम्मेदार ठहराया जा सके! एक नारी (कुंती) द्वारा दूसरी नारी (द्रोपदी) को वस्तु के तौर पेश किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप द्रोपदी को वस्तु की भांति पॉच मर्दों में बॉट दिया जाता है, क्यों? ये सब एक नारी द्वारा इसलिए कराया जाता है ताकि महाभारत की नारी की दुर्दशा को नारी के मत्थे मढ़ा जा सके!
चंद लोगों की स्वार्थी कल्पना आम लोगों को, उनकी सोच को एक पिजरे में कैद कर कुंद कर देती है, फिर आम लोग कोरी कल्पना को हकीकत समझ खुद को शोषण कर्ताओं के हाथ में खुशी-खुशी सौप देते हैं! इन्हीं कल्पनाओं को हकीकत कह कर लोगों के मानसिक विकास को कुंद कर उनको मानसिक गुलाम बना दिया जाता है! यही भारत की हकीकत है!
हालांकि पश्चिम के देश इससे अलग नहीं रहे हैं! पश्चिम के देश भी सदियों पहले इसकी गिरफ्त में थे लेकिन वहॉ के तर्कशील लोगों ने बौद्धिक तार्किक वैग्यानिक क्रांति किया, लोगों को सोचना सिखाया, वैग्यानिक सोच को स्थापित कर आम जन को शोषणवादी षडयंत्र से आजाद कराया लेकिन भारत बुद्ध, बाबा साहेब, कबीर, पैदा, फूले, शाहू जी, मान्यवर साहेब काशीराम जैसे महानायकों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक विचारकों व समाज विग्यानियों के अथक संघर्ष के बावजूद भी ब्रहम्णवादी षडयंत्र से आजाद होने के बजाय खुद ही लगातार गिरफ्तार होता जा रहा है!
1950 के बाद आम लोगो की मानसिक गुलामी को स्थापित करने में रामानंद सागर (रामायण) व बी आर चोपड़ा (महाभारत) जैसे लोगों का बहुत बड़ा हाथ है! इन्ही की देन हैं कि लोग वाल्मीकि की षडयंत्रकारी रामायण की कल्पना, तुलसी दूबे की महिमामंडन वाली राम चरित मानस, व्यास की महाभारत व गीता के षडयंत्र आदि को सच मान बैठे हैं! महाभारत जिसमें तकरीबन 2500 श्लोक थे, को लाख तक पहुंचा दिया गया, ये सब कैसे हुआ, किसी को कोई मतलब नही! सब लोग बी आर चोपड़ा की महाभारत को भी हकीकत मान बैठे हैं! नतीजा ये हुआ कि लोग हकीकत की तहकियात करने के बजाय इन नाटकों को सच मान बैठे हैं! आप डिक्शनरी देखिए, हिन्दू विद्वानों को ही देख लीजिए सब कहते हैं कि ये रामायण, महाभारत आदि सब "Mythology" है! लेकिन हिन्दू ही एक ही जमात है जिसको Mythology और History में अंतर ही नही पता है! ये दोनों को एक ही समझता है... नतीजा, उनको ये तक मालूम ही नहीं है कि वो इतिहास पढ़ रहा है कि कोरी कल्पना!
ऐसे समाज के बौद्धिक विकास में रूकावट लाजमी है! ब्रहम्णों के इस षडयंत्र को रमानंद सागर व बी आर चोपड़ा ने मंनोजरन के नाम पर देश की युवा पीढ़ी की सोच पर ही विराम लगा दिया है लोक तर्क के बजाय चमत्कार के किस्से कहने व सुनने में व्यस्त है!
ऐसे में हम बेहिचक पूरी प्रबलता प्रखरता और विश्वास से कहते हैं कि "रामानन्द सागर (रामायण) और बी आर चोपड़ा (महाभारत) ने भारत में मानवता के बौद्धिक विकास को कुन्द कर भारत को भक्ति के ब्रह्मणी श्राप से सींच कर भारत की उन्नति को बड़ी बेरहमी से रौंद डाला है!"
अब तय आपको करना है कि भारत की उन्नति कहॉ पर निहित है, कपोल-कल्पित कोरी मनगढंत कहानियों में या फिर तर्क व विग्यान में???

रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली


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