Tuesday, May 8, 2018

गाँधी, जातिवाद और अपने


प्रिय मूलनिवासी बहुजन साथियों,
जाति व्यवस्था और धार्मिक अलगाव भारतीय की सबसे कड़वी सच्चाई है। हमारे विचार से कोई भी निष्पक्ष इन्सान जाति और धर्म के नाम पर शोषण पर को इंकार नहीं सकता है। इसलिए भारत के किसी भी मुद्दे पर भारत की सामाजिक व्यवस्था को सन्दर्भ में लिए बगैर कोई निर्णय या विमर्श आत्मघाती ही होगा।
फ़िलहाल, आज के तथाकथित स्वघोषित मुख्यधारा के विद्वानों का भारत के मुद्दों पर जाति और धर्म को सन्दर्भ में रखें बगैर लिखना और विमर्श करना, प्रगतिशीलता समझी जाती है। और, भारत की सामाजिक व्यवस्था को चैलेंज करते हुए भारत के ज़हन पर हो रहे घावों को सबके सामने रखने वाले ही जातिवादी कहें जाते है।
भारत ही दुनिया का का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ ८५% आबादी वाले मूलनिवासी बहुजन समाज के मूलभूत मानवाधिकारों, संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकारों की माँग करने वाले विचारक, लेखक, नेता और आम लोग जातिवादी, अलगाववादी और देशद्रोही कहे जाते है। और, चंद मुट्ठीभर हिंसक अपराधी अमानवीय ब्राह्मण-सवर्ण गैर-बहुजन लोग राष्ट्रभक्त, बुद्धिजीवी और प्रगतिशील विद्वान कहें जाते है।
तथाकथित स्वघोषित मुख्यधारा के अपराधी जातियों से सम्बन्ध रखने वाले विद्वान हमेशा यही मानकर रिसर्च करते है, लेख लिखते है, विमर्श करते है कि भारत में हर कोई समानंता के साथ जी रहा है जबकि हक़ीक़त इसके उलट है। यही कारण है अपराधी जातियों के तथाकथित बुद्धिजीवी लोगों के लेख और विचार प्रगतिशीलता और वंचित जगत के लोगों के लेख और विचार जातिवादिता की श्रेणी में आते है।
हमारा स्पष्ट मानना है कि रोग (भारत की ब्राह्मणी सामाजिक व्यवस्था) को इंकार करके रोगी (भारत) को कभी भी किसी भी सूरत-ए-हाल में ठीक नहीं किया जा सकता है। ये बहुत दुःखद है कि तथाकथित स्वघोषित मुख्यधारा के अपराधी जातियों से सम्बन्ध रखने वाले विद्वानों ने जाति और धर्म पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को संदर्भ में रखे बगैर ही सारी एनालिसिस करते रहते है। नतीजा, भारत की बीमारी जस की तस बनी हुई है।
मूलनिवासी बहुजन समाज को टॉरगेट करके अक्सर तोहमत लगाया जाता है कि भारत में लोग, उनका समाज, अपने-अपने हकों को सुरक्षित करने के लिए ही जद्दोजहद कर रहें है, जबकि अपराधी जातियों के हर मुद्दे को राष्ट्रभक्ति के तौर पर दिखाया जा रहा है। ऐसे में ये जानना नितान्त आवश्यक है कि जहाँ एक तरफ, अपराधी जातियों (ब्राह्मण-सवर्ण) के लोग मूलनिवासी बहुजन समाज के अधिकारों पर अनैतिक, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक रूप से क़बज़ा जमाये हुए है, और मूलनिवासी बहुजन समाज पर लगातार अत्याचार करते जा रहे है। वही दूसरी तरफ, मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग अपने मूलभूत अधिकारों जैसे कि समाज में इन्सानी सम्मान, सम्यक राजनैतिक भागीदारी, आर्थिक भागीदारी के साथ-साथ रोटी-कपडा-मकान-स्वास्थ और शिक्षा के लिए जीवन-मौत के तौर पर जद्दोजहद कर रहे हैं।
हर आधे घण्टे में वंचित जगत की बहन-बेटियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं। मजदूरों को जबरन काम पर लगाया जा रहा है। इंकार करने पर उनकों जूतों से मूत्र पिलाया जा रहा है। शांति पूर्ण बहुजन विरोध प्रदर्शन पर अपराधी जातियों की हुकूमत द्वारा सरेआम गोलियाँ चलवाई जा रही है। स्कूलों में बहुजन बच्चे जान-बूझकर फेल किये जा रहे है। उनकों क्लास में अलग लाइन में बैठाया जा रहा है। स्कूलों व विश्वविद्यालयों में छात्रों की संस्थानिक हत्या की जा रही है और छात्राओं का बलात्कार और फिर हत्या की जा रही है। 
ऐसे में अपराधी जातियों द्वारा किये जा रहे दमन के सन्दर्भ में पीड़ित समाज के लोगों को "अपने समाज" की संज्ञा दी गयी है। ऐसे में अपने लोगों का वहीं मायने है जो भारत के ब्राह्मणी व्यवस्था के सन्दर्भ में बाबा साहेब की थी। ऐसे में, हमारा और हमारे हर बहुजन साथी का एक मात्र लख्य है दमन करने वाली अपराधी जातियों से "अपने लोगों" (सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक तौर पर सदियों से जिल्लत की जिंदगी जीता आ रहा दलित वंचित शोषित समाज) को बचाना, उनके अधिकारों के लड़ना और उनके मूलभूत मानवाधिकारों को सुरक्षित करना, और उनकों सम्मान व स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीने के लिए सम्यक मानवीय समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित "बुद्धिज़्म" की संस्कृति का सन्देश पहुँचाना और एक बेहतर जिन्दगी जीने का माहौल व सुरक्षा देना। 
फ़िलहाल "अपने-पराये" की बात पर हमारा भी मानना है कि भारत को, हमें, हम सब को अपने-पराये से ऊपर उठना होगा लेकिन यह तभी संभव है जब भारत में समानता (सामाजिक,राजनैतिक और आर्थिक तौर पर) लागू हो जाए। इसके लिए ब्राह्मणी व्यवस्था को नेस्तनाबूद करना होगा। और, ये भी सच है कि ब्राह्मणी व्यवस्था को नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी तथाकथित स्वघोषित उच्च जातियों (जिन्हें हम उनके कृत्यों के आधार पर अपराधी जाति कहते है) पर ही है। अब देखना ये है कि क्या अपराधी जातियाँ इसके लिए तैयार है? हमारा स्पष्ट मानना है कि जब तक भारत में समानता (सामाजिक,राजनैतिक और आर्थिक तौर पर) पूर्णतः लागू नहीं हो जाती है तब तक "अपने समाज" और "पराये समाज" की भावना बरक़रार रहेगी। फ़िलहाल आप इसकी आलोचना कर सकते है।
हालाँकि, दिखावे के लिए स्वघोषित अपराधी जातियों के निष्पक्ष लोग अक्सर यही कहते है कि वो बाबा साहेब को भी मानते है और गाँधी जी को भी, जबकि ये सरासर झूठ और गैर-जिम्मेदाराना जबाब है। ये और बात है कि ब्राह्मणी मुख्यधारा के स्वघोषित विद्वान यही राग अलापते रहते है।
हमारा स्पष्ट मानना है कि गाँधी और बाबा साहेब में १८० डिग्री का फेज डिफरेंस है। हालाँकि, तथाकथित मुख्यधारा के लोगों द्वारा दुनिया के सामने इतिहास और वैचारिकी को "गाँधी और अम्बेडकर" के तौर पर बताया जा रहा है लेकिन हकीकत में भारत का इतिहास "गाँधी बनाम अम्बेडकर" है।
इतिहास गवाह है कि गाँधी जाति व्यवस्था को बनाये रखना चाहते थे, क्योकि वो अच्छी तरह से जानते थे कि जातिगत भेदभाव ही हिंदुत्व की नीव है। जाति की बुनियाद पर ही जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिंदु धर्म व् संस्कृति टिकी है। इसलिए, बेहिचक निःसंदेह गाँधी जाति व वर्ण व्यवस्था के कट्टर सपोर्टर थे। ऐसे में हमारा मानना है कि "जो गाँधीवादी है वहीं जातिवादी है, और जो जातिवादी है वही गाँधीवादी है।"
हो सकता कि लोग हमें जातिवादी कहें लेकिन फिर भी हमारा स्पष्ट मानना है कि जो गाँधीवादी है वो अम्बेडकरवादी नहीं हो सकता है। और, जो अम्बेडकरवादी है वो गाँधीवादी नहीं हो सकता है। क्योकि, गाँधी की कथनी व् करनी पर गौर करें तो स्पष्ट है कि गाँधीवाद ही जातिवाद है और जातिवाद ही गांधीवाद है।
यदि आप गांधीवादियों की लिस्ट देखिये तो इसमें सारे लोग अपराधी जातियों से ही आते है जो कि जाति के कट्टर सपोर्टर है। और, ये भी सच है कि जो जाति के सपोर्टर है वही लोग गाँधी को बनाये रखते हुए भारत के मुख्यधारा के इतिहास से बाबा साहेब को मिटा दिए है। धन्यवाद मान्यवर काशीराम साहब को, जिन्होंने बाबा साहेब को हर बहुजन तक पहुँचाया और अपराधी जातियों के लोगों को और ढोंगी इतिहासकारों को मजबूर कर दिया कि आज वे बाबा साहेब को ना चाहते हुए भी याद कर रहे है।
ऐसे में हम बौद्ध विद्वान आंनद भदन्त कौसल्यायन को उद्धरित करना चाहते है। बौद्ध विद्वान आंनद भदन्त कौसल्यायन ने कहा है कि "जनता गाँधी को भूल जाना चाहती है लेकिन (अपराधी जातियों की) सरकार है कि भूलने नहीं देती है, और सरकार बाबा साहेब को भूला देना चाहती है लेकिन जनता (बहुजन समाज) है कि सरकार को भूलने नहीं देती है।"
इसलिए, हमारे ख्याल से मामला स्पष्ट है। और, आप बुद्धिजीवी है, विद्वान है। इसलिए अब आप खुद ही तय कर सकते है कि आप "अपने लोगों" की परिभाषा में आते है या नहीं? आप शोषणकर्ता है या शोषित? आप मानवतावादी है या फिर अमानवीय हिंसा पसन्द?
धन्यवाद...
      जय भीम....
नोट - कर्म के आधार पर ही सदियों से अत्याचार, बलात्कार और हिंसा करने वाली ब्राह्मण-सवर्ण जाति के लोगों को, उनकी जाति व समाज को अपराधी लोग, अपराधी जाति व अपराधी समाज कहा जाना चाहिए। हमारे विचार से, आप सब भी ब्राह्मणों-सवर्णों को, उनकी जाति को, उनके समाज को अपराधी, अपराधी जाति व अपराधी समाज ही कहिए, लिखिए। 
रजनीकान्त इन्द्राइतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली

No comments:

Post a Comment