Friday, May 19, 2017

ताकि प्यार जिन्दा रहे...

सच्चा धर्म (न्याय - स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व पर आधारित होता है) ख़ुशी, सुख, समृद्धि और इंसानियत का पाठ पढ़ता है, मौत का रास्ता नहीं दिखता है। 
धर्म के नाम पर मासूमों पर जुल्म और कत्ल-ए-आम कब तक करोगे ? कब तक धर्म के नाम पर सियासत करोगे ? धर्म की खातिर कब तक मासूम दिलों को कुर्बान करते रहोगें ? कब तक अपनी जिगर के टुकड़ों को धर्म के नाम पर बलि चढ़ाते रहोगें ? कब तक धर्म के नाम पर नापाक कर्मों को अंजाम देते रहोगें ? क्या यही आपका वह धर्म है जिसका आप सब दम्भ भरते हुए कहते हो कि आपका धर्म बंधुत्व की बात करता है, मोहब्बत का पैगाम देता है ? यदि आप सबका धर्म मोहब्बत की बात करता है तो वह किसका धर्म है जो क़त्ल-ए-काम को तस्लीम करता है ? वह किसका धर्म है जो मासूमों की मोहब्बत का गला घोटकर शिज़दा करता है ? वह किसका धर्म है जो बात-बात पर खतरे में पढ़ जाता है ? धर्म के नाम पर अपने बेटों और बेटियों की बलि चढ़ाना बंद करों। जाति के नाम पर कत्ल करने के बजाय जाति का क़त्ल करों, इंसानियत चैन की साँस लेगी, उसकी उम्र बढ़ जाएगी। धर्म इंसान के जीवन मे समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए होना चाहिए, सियासत का मोहरा नहीं। अंतर्धार्मिक विवाह सम्बन्ध भारत की विविधता को वो मुक़द्दस पहचान दे सकता है जो शायद ही दुनिया के किसी अन्य मुल्क को नशीब हो। लेकिन, दुःख इस बात का है कि धर्म कुछ मुट्ठीभर ठेकेदारों की जागीर बन कर रह गया है और ये ठेकेदार धर्म को अपनी निजी मिल्कियत समझते है, अपने निजी कोठे की वैश्य समझकर हर पल उसका बलात्कार करते है। ये ठेकेदार धर्म के नाम पर इंसानियत का क़त्ल करते है, धर्म के साथ-साथ लोगों की आस्था और उनके विश्वास का भी बलात्कार करते है और कहते है कि धर्म खतरे में है और फिर धर्म के रक्षा की बात करते है, फिर शुरू होता है क़त्ल-ए-आम जिसमे बलि चढ़ती है धर्म में आस्था रखने वालों की, जुल्मो-सितम होता होता है मासूम औरतों पर, बच्चियों पर, मासूम बच्चों पर और इससे भी ज्यादा शर्मानक बात है कि आवाम या तो मूक दर्शक बनी बैठी रहती है या फिर खुद बी धर्म के उन्माद में क़त्ल-ए-आम में शरीक होकर जन्नत में पहुंचने का ख़्वाह देखती है, अगले जन्म में बेहतर मानव बनाने का दम्भ भरते है। लानत है ऐसे धर्म पर जिसमे इंसानियत की कोई कदर नहीं, मोहब्बत के लिए कोई जगह नहीं, नफ़रत पर जिन्दा हो| लानत है धर्म के उन धर्माधों  ठेकेदारों पर जो इसे पाल-पोष रहे है।
जो धर्म जाति व्यवस्था, वर्गभेद, रंगभेद, लिंग भेद , नफ़रत, और एक को दूसरे से ऊँचें होने का घमण्ड कराती है, उस मनहूस धर्म का मिट जाना ही बेहतर। हमारे निर्णय में हर उस धर्म का मिटाना आवश्यक है जो जाति व्यवस्था, वर्गभेद, रंगभेद, लिंग भेद , नफ़रत, और एक को दूसरे से ऊँचें होने की भावना पैदा करती है। हम तो केवल उस धर्म को मानते है जो न्याय पर आधारित हो और सिर्फ और सिर्फ उस न्याय को मानते है जो समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित हो, मोहब्बत पर आधारित हो, अपनेपन पर आधारित हो, जिसमें न्याय का मकसद केवल दण्डित करना नहीं बल्कि परिणामात्मक रूप से सुधारवाद में विश्वास रखता हो, दण्डित करने में भी मानवाधिकारों का ख्याल रखता हो, जघन्यता से परे हो। 
हमारा दृढ विश्वास है कि जिस धर्म को मोहब्बत से खतरा हो, उस धर्म की मौत इंसानियत के लिए आवश्यक है। आखिर, आप सब समझोगे कि धर्म इंसान के लिए है, इंसान धर्म के लिए।

जय भीम, जय भारत,
जय संविधान, जय लोकतंत्र,
जय बहुजन समाज, जय बहुजन क्रांति!

 #ताकि प्यार जिन्दा रहे...


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