Tuesday, May 30, 2017

चमार नहीं, जम्बार

भाषा विद्वान कहते है कि समय के साथ-साथ भाषा और शब्दों में भी बदलाव आता है। इसी बदलाव के तहत अपभ्रंश शब्दों का जन्म होता है। यदि हम इन अपभ्रंश शब्दों के मूल शब्द को समझ जाए तो हम उस मूल शब्द के काल में रही संस्कृति और उसकी पहचान को बेहतर ढंग से जान सकते है, समझ सकते है। 

"चमार" शब्द ने हमें बचपन से ही सोचने को मजबूर कर रखा था।बचपन में हिंदी की कक्षा में अपभ्रंश शब्दों के विषय में पढ़ा था। हमें क्या पता कि भविष्य में यही अपभ्रंश ज्ञान "चमार" शब्द के पीछे के रहस्य को सुलझा देगा। हालांकि हम यहाँ ये कहना चाहते है कि चमारों को अपनी बुनियादी पहचान को जानने के लिए चमार शब्द की यात्रा के बारे में जानना बेहद जरूरी है। जब हम चमार शब्द की इस यात्रा का जिक्र करते है तो हमारे लिए यह जानना नितान्त आवश्यक हो जाता है कि "चमार" शब्द "जम्बार" शब्द का अपभ्रंश है। ये तो बहुत पहले ही सिद्ध हो चुका है कि चमार जम्बू द्वीप के मूलनिवासी है। इसलिए यहाँ पर हम सिर्फ चमार शब्द के बारे में ही चर्चा कर रहे है। "जम्बार" शब्द, जो कि मूल शब्द है, की चमार शब्द, जो कि जम्बार शब्द का अपभ्रंश है, तक की यात्रा कुछ इस प्रकार से है-

जम्बार (मूल शब्द) ---> चम्मार ---> चमार (अपभ्रंश शब्द)

वैसे तो शब्दों का अपने आप में कोई मायने नहीं होता है। शब्दों को समाज जो मायने देता है या जिस सन्दर्भ में शब्दों को परोसता है, शब्द उसी मायने को धारण कर लेते है। ठीक यही "चमार" शब्द के साथ हुआ। "चमार" शब्द को तथाकथित स्वघोषित विद्वान ब्राह्मणों ने वही मायने दिया जो चमारों को उनकी मूल पहचान, शिक्षा और संस्कृति से दूर रख सके और ब्राह्मणों का सामाजिक वर्चश्व सदा कायम रहे और ये चमार समुदाय इन ब्राह्मणी रोगियों का सदा गुलाम बना रहे। हम सब जानते है कि शिक्षा के नष्ट होने से विचार व विचारक नष्ट हो जाते है जिसके परिणामस्वरूप इतिहास और फिर इतिहास के नष्ट होने से संस्कृति मर जाती है, और अंततोगत्वा वो समाज खुद-ब-खुद ही नेस्तनाबूद हो जाता है इसी के चलते आज के चमार समुदाय के लोगों की पहचान, इतिहास और संस्कृति लगभग मिट सी गयी हैफलतः चमार समुदाय को तथाकथित मुख्यधारा वाले समाज से बहिष्कृत कर जानवरों से भी बद्तर जीवन जीने को मजबूर कर दिया गया। 

आज चमार मूलनिवासी समुदाय को ये जरूरत है कि वो अपनी अस्मिता को जाने, संस्कृति को पहचाने। इसके लिए आज के अपभ्रंश "चमार" शब्द से मूल शब्द "जम्बार" की तरफ लौटने की सख्त जरुरत है। मतलब कि-


चमार (अपभ्रंश शब्द) --->  चम्मार  ---> जम्बार (मूल शब्द)

हालांकि "चमार" शब्द "जम्बार" से ही निकल कर आया और इसका मायने भी वही होता है जो कि इसके मूल शब्द "जम्बार" का होता है, लेकिन आज के तथाकथित हिन्दू मुख्यधारा वाले समाज में, "चमार" शब्द आज जहाँ एक तरफ हिन्दू समाज में सबसे नीचे होने का द्योतक है, वहीँ दूसरी तरफ "जम्बार" शब्द मूलनिवासी चमारों के इस देश के अधिपति व मूलनिवासी होने का सशक्त प्रमाण है।

हमारे विचार से, "चमार" शब्द को इसके मूल शब्द "जम्बार" का मायने देने के लिए या फिर यूँ कहें कि "चमार" शब्द के मूल शब्द "जम्बार" को पुनः स्थापित करने के लिए "चमार" शब्द के स्थान पर "जम्बार" शब्द का प्रयोग ज्यादा मायनेपूर्ण है। इससे जहाँ एक तरफ हिन्दू समाज व संस्कृति का हिस्सा बन चुके "चमार" शब्द से मुक्ति मिल जाती है, वही दूसरी तरफ जातिविहीन और मूलनिवासी चमार समाज की अस्मिता को स्थापित करने वाले "जम्बार" शब्द का अस्तित्व पुनः स्थापित हो जाता है। 

हमारे विचार से, भारत के चमारों को "चमार" शब्द के इस्तेमाल को बन्द करके "जम्बार" शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए। संसद व विधानसभाओं में बैठे प्रतिनिधियों द्वारा "चमार" शब्द को असंवैधानिक घोषित कर "जम्बार" शब्द व इसके इस्तेमाल को संवैधानिक दर्जा देना चाहिए। क्योंकि, "चमार" शब्द गैरबराबरी वाले निकृष्ट हिन्दू संस्कृति का हिस्सा बन चुका है और ये शब्द अपने असली मायने को भी खो चुका है, लेकिन "जम्बार" शब्द का ना तो हिन्दू व्यवस्था से कोई ताल्लुक है, ना ही किसी जाति व्यवस्था व जाति विशेष से। जम्बार शब्द अपने आप में अपने वज़ूद व अपनी पहचान को समेटे मूलनिवासियों की अपनी अस्मिता व संस्कृति को बयान करता एक जातिविहीन शब्द है। कहने का तात्पर्य यह है कि "जम्बार" शब्द अपने आप में एक परिपूर्ण शब्द है। चमार से जम्बार तक की ये मायनेपूर्ण यात्रा जहाँ एक तरफ भारत में जम्बार मूलनिवासियों के सांस्कृतिक सशक्तिकरण का द्योतक है, वही दूसरी तरफ ये मूलनिवासियों का हिन्दू शोषण व्यवस्था से पूर्ण आज़ादी व स्वतंत्र मानवीय अस्तित्व का परिचायक भी है।
जय भीम, जय भारत

रजनीकान्त इन्द्रा 
इतिहास छात्र, इग्नू 


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