Sunday, July 24, 2016

मनुवादी ब्राह्मणी भारतीय मीडिया - एक सम्मानित पेशा नहीं, एक घिनौना धंधा है।

हमारे प्यारे देशवासियों,
आज आज़ादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी, भारत की समाजिक व्यवस्था में कोई अंतर नहीं आया है। देश के हर क्षेत्र के हर स्तर पर जातिवादी विषमता और गैर-बराबरी पूरी तरह से कायम है। देश में हो रहा हर अत्याचार कहीं ना कहीं जातिवाद का ही परिणाम है। इस देश में शोषण का आधार ही जाति है और जातिगत शोषण एक घिनौनी सच्चाई। यही ब्राह्मणों द्वारा किया गया एक मात्र अविष्कार है। जिससे देश को फायदा नहीं, सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है। 
साथियों,
आज देश में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़ों के प्रति अत्याचार एक परम्परा बन चुकी है। यह वही अत्याचार है जो सदियों से मनुवादी ब्राह्मणी विचारधारा के लोग करते आये है। लेकिन यदि इन सब अलग हटकर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आवाज की बात करे तो हम पाते है इनके ऊपर कितना भी अत्याचार हो लेकिन इनकी आवाज कभी अख़बारों, न्यूज चैनलों और पत्रिकाओं की सुर्ख़ियों में दिखाई नहीं देती है। इनके मुद्दों पर कभी प्राईम टाइम पर विचार-विमर्श नहीं होता है। सारा का सारा मीडिया तंत्र देश और मानव समाज  के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने बजाय इन मुद्दों को दबाने में लग जाता है। आखिर ऐसा क्यों है ? 

 साथियों,
जातिगत मानसिकता, जातिगत भेदभाव और जातिगत शोषण में मामले में भारत की मीडिया कंपनियां भी कम नहीं है। ये मीडिया हॉउस मोर्डेन होने का ढोंग करते है। लेकिन इनकी रगों में भी बही ब्राह्मणवादी सोच अपनी जड़ जमाए वैठी है। सूट-बूट पहन कर टेलीविजन चैनलों में बैठकर राष्ट्रिय महत्त्व के मुद्दों को दबाकर अपने राजनितिक, पूंजीपतियों व अन्य मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी आकाओं को बचाने के लिए सनसनीखेज बनाकर टीवी पर भौकने वाले या फिर अंग्रेजी में जोर-जोर चिल्लाकर अपने आपको बहुत समर्पित एंकर व पत्रकार साबित की कोशिस करने वाले, ये तथाकथित एंकर व पत्रकार अपने आपको मोर्डेन सोच वाला पत्रकार और एंकर समझते है। हकीकत में ये सारे लोग एंकर व पत्रकार कम, व्यापारी ज्यादा है, जनता की आवाज कम, मनुवादी ब्राह्मणों के दल्ले ज्यादा है। किसी के जीवन की निजता का ख्याल करे बगैर, दूसरे के फटे में झाककर खबर देने को ये पत्रकारिता और एंकरिंग समझते है। देश की भोली-भाली जनता को सच्चाई से परे रखकर, उनको गुमराह करके, ये देशभक्ति का दावा ठोकते है। भारत का मीडिया हमारे दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज के साथ ऐसा निर्मम, निकृष्ट और भेदभाव पूर्ण वर्ताव क्यों कर रहा है। भारत का मीडिया दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज उठाने के बजाय उनकी आवाज को दबाने का प्रयास क्यों कर रहा है ? आज यही सबसे बड़ा प्रश्न है। ये सोचने का विषय है कि अखबारों, न्यूज चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं में जो दिखता है, क्या वो हकीकत में भारत की आवाज है या फिर कुछ मनुवादी ब्राह्मणों और मनुवादी ब्रह्मणीं विचारधारा से बीमार लोगों की।
 साथियों, 
आज का ये दौर सूचनाओं का दौर है। आज युद्ध का मंच के मीडिया माध्यमों तक सीमित होकर रह गया है। आज के इस दौर में जिसका मीडिया है, उसकी आवाज है; जिसकी आवाज है, उसका वर्चश्व है; जिसका वर्चश्व है, उसी की जीत है। जिसका उदाहरण 16वी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की एक तरफा जीत है। हम सभी जानते है कि १६वी लोकसभा का चुनाव में तथाकथित मनुवादी ब्राह्मणी बीजेपी का पूर्ण बहुमत संवैधानिक डेमोक्रेसी का नहीं, बल्कि मीडियाक्रेसी का अदभुद परिणाम है। १६वी लोकसभा का चुनाव जमीनी स्तर पर नहीं, बल्कि न्यूज चैनलों के दफ्तरों से लड़ा गया था। १६वी लोकसभा के चुनाव में देश की जनता ने अपने  सूझ-बूझ के बजाय न्यूज चैनलों पर चिल्लाने वाले जातिवादी एंकरों के बहकावे में आकर वोट दिया है जिसका परिणाम आज देश की ८५ फीसदी से ज्यादा जनता भुगत रही है। गुलाम ब्राह्मणी नरेंद्र मोदी ने गुजरात मॉडल की बात करके आपके साथ एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा था उस समय उस षड्यंत्र में इसी मीडिया ने मोदी का साथ दिया था जिसका परिणाम आज पूरा भारत भुगत रहा है। मनुवादी गुलाम मीडिया ने ब्राह्मणी बीजेपी का साथ देकर गुजरात मॉडल के षड्यंत्र को विकास मॉडल बनाकर बीजेपी जैसे कट्टर जातिवादी राजनितिक दल को सत्ता पर कब्ज़ा दिला दिया है। जबकि हम सब जानते है कि हिन्दू-मुस्लिम दंगा, सवर्ण-दलित दंगा और अन्य जातीय व धार्मिक उन्माद को राजनीति फायदे, सत्ता का सुख भोगने व देश में मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए, एक विशिष्ट प्रबंधकीय ढंग से वोट को एकत्र कर सत्ता पर कब्ज़ा करना ही गुजरात मॉडल है। लेकिन ब्राह्मण बनिया मीडिया ने अपने जमीर और पत्रकारिता की आत्मा को बेचकर गुजराती फासीवादी मॉडल को विकास का मॉडल बना दिया। यही आज के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक दौर में मनुवादी वैदिक ब्राह्मणों के राज का रह्श्य है। 
साथियों,
हमारे मीडिया चैनल, अख़बार और पत्रिकाएं हमारे लिए सूचनाओं का साधन है। हमारे देश की भोली-भली जनता सही-गलत का फर्क किये बगैर न्यूज चैनलों पर चिल्लाने वाले एंकरों द्वारा बोले और संपादकों द्वारा लिखी गयी बातो को सच समझकर गुमराह हो जाती है। इसलिए आज देश की जनता को ये सोचना होगा कि क्या मीडिया हमारी आवाज है या फिर हमारी आवाज को दबाने मात्र का साधन, क्या मीडिया एक देश सेवा का माध्यम है या उच्च जातियों और पूजी-पतियों का गुलाम, न्यूज चैनलों में सूट-बूट पहनकर चिल्लाने वाला इंसान हकीकत में एंकर है या फिर मनुवादी ब्राह्मणी सोच वालों का दल्ला। ये निर्णय देश की जनता को करना है, ये फैसला हम और आपको करना है, हमारे ये फैसले ही हमे और हमारे देश को गुमराह होने से बचा सकते है। 
 साथियों,
यदि हम मीडिया में दलितों, आदिवासियों  पिछड़ों का प्रतिनिधित्व देखे तो यह लगभग शून्य है। आज सोचने का विषय यह है कि देश के पत्रकारिता के कालेजों में आरक्षण के आधार पर ही सही लेकिन जो दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के बच्चे पत्रकारिता की पढ़ाई करते है, पत्रकारिता सीखते है, आखिर पढाई के बाद वो सब कहाँ गायब हो जाते है, वो मीडिया में क्यों नही दिखाई देते है? इंजिनीरिंग और मेडिकल की तरह पत्रकारिता में भी आरक्षण है। इंजिनीरिंग और मेडिकल जैसे पेशे में दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के बच्चे दिखाई देते है लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में क्यों नहीं ? आखिर ये ४९.५ फीसदी पत्रकार कहाँ खो जाते ? ये सब सोचने का विषय है। हमारी आवाजे दब क्यों जाती है , हमारी आवाजे दब जाती है या जानबूझकर दबाई जाती है। 
साथियों,
यदि हम ताजे उदाहरण के सन्दर्भ में देखें तो हम पाते है कि रोहित बेमुला की सांस्थानिक मामलें में भी इसी मीडिया ने सौतेला बर्ताव किया, क्यों? गुजरात में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर मीडिया ने चुप्पी क्यों साध रखी है, क्यों? सदियों से सताये हुये दलितो को अर्धनग्न अवस्था में गाड़ी से बांधकर लोहे के सरियों से पिटाई की जाती है। ये अत्याचार पुलिस के सामने होता है। गोरक्षको  व मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों के हौसले इतने बुलन्द थे कि उन्होंने ही वीडियो बनाया और वायरल कर दिया और मीडिया हमेशा की तरह शांत ही रही, क्यों? सदियों से सताये हुये दलितों में विद्रोह की भावना जाग गई। इस प्रतिकार में दलितों ने पूरे गुजरात में आन्दोलन कर दिया। सुरेन्द्र नगर में तो मरी गाय के तीन ट्रक भरकर कलेक्ट्रेट ऑफिस के सामने पटक दिया और गो-रक्षको व अन्य मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी आतंकवादियों को ललकारा कि अब तुम अपनी माओं का दाह संस्कार खुद ही कर लो। यहाँ से आन्दोलन चल निकला लेकिन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी  मीडिया ने मुद्दे को कवर करने के बजाय दबाने का प्रयास किया, क्यों? घोर जातिवादी राज्य हरियाणा में भगाना की चार बहनों के साथ बलात्कार होता है मीडिया शांत और खामोश रहती है क्यों? इन दिनों में बलात्कारियों के हौसले इतने बुलन्द है कि जिन लड़कियों के साथ बलात्कार किया उन्ही लड़कियों को बयान वापस लेने का दबाव बनाया गया। जब वो लड़कियाँ नहीं मानी तो उन्ही लोगो ने दुबारा बलात्कार किया।  फिर भी मीडिया ने मुद्दे को नहीं उठाया, क्यों? बाबा साहेब का भवन गिराये जाने के विरोध में, महाराष्ट्र का आन्दोलन जिसमें लोग बड़े पैमाने पर लोग इकठ्ठा हुये। ब्राह्मणी मीडिया आखे बंद करके कोप भवन में चली गई, क्यों? बहन कुमारी मायावती जी पर बीजेपी नेता द्वारा अभद्र टिपण्णी के मुद्दे को मीडिया ने उस तरह से क्यों नहीं प्रस्तुत किया जिस तरह से मनुस्मृति ईरानी को डियर बोलने पर प्रस्तुत किया था, भारत का मानवाधिकार और महिला आयोग भी चुप है, क्यों? हद तो तब हो गई जब मीडिया ने बहन जी की बारे में प्रयोग किये गए अभद्र भाषा को देश के सामने लाने के बजाय बिकाऊ मीडिया अभद्र भाषा बोलने वाले बीजेपी उपाध्यक्ष की माँ, बीबी और बेटी के राजनितिक व षड्यंत्रकारी हरकतों और करतूतों को महिला सम्मान व अधिकार का राष्ट्रिय मुद्दा बना दिया। मीडिया ने बीजेपीनेता के असभ्य व्यवहार को देश के सामने लाने के बजाय बहन जी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। क्यों? सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती जी एक दलित है। 
 साथियों,
एक महिला जिसकी शौर्य, प्रशासन क्षमता और सहसपूर्ण निर्णय व मर्दानगी के किस्से मर्दों में बड़े शौक से कहे जाते है, जिसके शासन का पूरा देश लोहा मानता है , जो चार बार भारत के सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश की मुखिया रह चुकी है, जो कई बार राज्यसभा और लोकसभा की सदस्य रह चुकी है यदि उन आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती जी के खिलाफ बोले गए अभद्र भाषा पर आज देश का मीडिया चुप, खामोश है, तो आप सोचे कि इस ब्राह्मणी मीडिया से हम देश के गरीब, दलित, आदिवासी और पिछड़ों की आवाज उठाने की उम्मीद कैसे कर सकते है? अत्याचार और अनाचार की इसे बड़ी मिशाल और क्या हो सकती है। हमारे ख्याल से मनुवादी ब्राह्मणी मीडिया को नंगा करने और इसके दोगलेपन को साबित करने का इससे बेहतर उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता है। यही नहीं, यह भी सोचने का विषय है कि क्या कारण है कि अत्याचार और अनाचार के इस दौर में भी, बात-बात पर देश की राजव्यवस्था के हर अंग को निष्पक्ष और ईमानदारी का नसीहत देने वाले स्वघोषित निष्पक्ष जज भी चुप है, क्यों ? यह सब सोचने का विषय है। हमारे सामने आज भी वही लड़ाई और वही मुद्दा है जो बाबा साहेब के समय में था। आज भी हम उसी स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे है जिसे बाबा साहेब जैसे महापुरुषों ने शुरू किया था। आज भी वही गैर-बराबरी हमारे शोषण का आधार है जो सदियों पहले था।
साथियों,
देश के हर चैनल, हर अख़बार और हर पत्रिका पर सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मण बनियों का कब्ज़ा है।हमारे पास अपना कोई मीडिया नहीं है, हमारी आवाज को मीडिया वाले दबने का प्रयास करते है और सत्ता पर काबिज मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोग इनका उपयों करते है। 
साथियों,
हमारी आवाज दबाई जा रही है, नकारी जा रही है तो इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है वो है देश के मीडिया चैनलों में, अखबारों में और पत्र-पत्रिकाओं में हमारे समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व जो कि लगभग शून्य के बराबर है। हमारे समाज के पत्रकारिता के बच्चों के अवसर का देश के अख़बारों, चैनलों और पत्रिकाओं में नकारा जाना, ये सब मनुवादी ब्राह्मणी विचारधारा के लोग जो समाज में अपनी जातिवादी वर्चश्व को कायम रखना चाहते है, ये सब उन्हीं मनुवादी ब्राह्मणी विचारधारा के लोगों द्वारा रचा गया एक घिनौना षड़यंत्र है। 
आज के पत्रकार पत्रकारिता के वसूल भूल चुके है। एक समय था जब पत्रकारिता एक सम्मानित पेश हुआ करता था लेकिन हमारे सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त मनुवादी ब्राह्मणी सोच ने, हमारे देश की पत्रकारिता को अपने आगोश बुरी तरह जकड़ रखा है। आज पत्रकारिता एक सम्मानित पेश होने के बजाय एक धंधा बनकर रह गया। आज के पत्रकारों ने पत्रकारिता के वसूलों को धन उगाही का जरिया बना दिया है, देश की पत्रकारिता का ये गिरता स्तर देश को सिर्फ और सिर्फ बर्बाद करने का माध्यम बनकर रह गया है। पत्रकारिता का मतलब होता है - समाज और देश में हो रही घटनाओं को निष्पक्ष रूप से जनता और सरकार की निगाह में लाना जिससे समाज और देश में सकारात्मक सोच विकसित हो सके; मानवाधिकार की बात करे जिससे मानव समाज और उसके सतत विकास को एक नई दिशा मिल सके; लेकिन दुर्भाग्यवश, पत्रकारिता का ये सम्मानित पेश एक धंधा बनकर रह गया है। देश का पत्रकार वर्ग अपने पत्रकारिता के वसूलों से परें, देश की आवाज बनने के बजाय ये पत्रकार और एंकर मनुवादियों, ब्राह्मणों और भष्ट नेताओं, गुंडों, दरिंदों और जाहिलों दल्ला बनकर रह गए है। आज के पत्रकार, अख़बार, न्यूज चैनल एक मोटी रकम तो जरूर कमा लेते है लेकिन उनकी इस हरकत की वजह से भारत की पूरी की पूरी पत्रकारिता बदनाम हो रही है, इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। आज की पत्रकारिता और पत्रकार देश के लिए नहीं बल्कि अपने आकाओं को खुश करने तक ही सीमित रह गए है।
साथियों, 

आज गौ-रक्षा के नाम पर दलितों के साथ जो सामूहिक निर्मम अत्याचार हो रहा। जिसे एक तरफ दुनिया का सबसे बड़ा मीडिया बीबीसी भी ताल ठोककर दिखा रहा है और इन अत्याचारी मनुवादी ब्राह्मणी आतंकवादियों को खुले आम गुंडा लिख रहा है तो वही दूसरी तरफ भारत की मीडिया पूरी तरह से खामोश है। भारत में बढ़ते मनुवादी ब्राह्मणी आतंकवाद को देश और दुनिया के सामने नंगा करने के बजाय मीडिया के धंधेबाज खुद नंगे होकर सो रहे है। क्या दलितों पर हो रहा निर्मम, निकृष्ट और अमानवीय अत्याचार देश का मामला नहीं है? क्या दलित महिलाओं और बच्चियों के साथ हो रहा व्यभिचार, अनाचार और अत्याचार महिला सम्मान और महिला अधिकार का राष्ट्रिय मुद्दा नहीं है ? क्या दलितों, आदिवासियों अल्पसख्यकों और पिछड़े वर्ग के लोग इंसान नहीं है? आखिर क्यों, मीडिया वर्ग दलितों, आदिवासियों अल्पसख्यकों और पिछड़ों के साथ इस तरह से सौतेला वर्ताव कर रहा है। ये सोचने का विषय है? 
साथियों,
सूचना के माध्यमों जैसे की अख़बारों, पत्रिकाओं और आज के ज़माने के न्यूज चैनलों द्वारा हमारी आवाज को नकारे जाने का ये कोई नया मामला नहीं है। इसका भी एक इतिहास है। यदि हम २०वी सदी के आन्दोलन की बात करें तो हम पाते है कि जब गाँधी, पटेल, नेहरू और तिलक जैसे मनुवादी ब्राह्मण, भारत के अपने मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी व्यवस्था के राज के पुनर्स्थापना के लिए राजनितिक आज़ादी की बात कर रहे थे उसी दौर में मानवता मूर्ति बाबा साहेब डॉ आंबेडकर इंसानियत की आज़ादी के लिए महायुद्ध कर रहे थे। उस समय भी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी मीडिया ने दुनिया के सबसे बड़े महायुद्ध को आज़ाद कराने वाले मानव मसीहा को नेपत्थ में भेजने का पुरजोर प्रयास किया था। उस समय भी मीडिया के सारे भारतीय साधन इन्ही मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों के हाथों था। उस समय भी पूँजी उन्ही मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों की गिरफ्त में थी और आज भी है। उस समय भी इन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों ने हमारी आवाज को दबाने के पुरजोर प्रयास किया था और आज भी कर रहे है। उस वक्त भी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगों ने हमारे साथ जातिगत अमानवीय व्यवहार करते थे और आज भी इस आज़ाद संवैधानिक लोकतान्त्रिक भारत में भी ये मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोग हमारे साथ वही भेदभाव कर रहे है। उस समय भी हम लाचार थे और आज भी लगभग उसी स्थिति में है। मीडिया के माध्यम व इसके महत्त्व को जानकर ही बोधिसत्व ने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता,  समता और प्रबुद्ध भारत जैसे मीडिया के माध्यमों को विकसित किया। 
साथियों,
दुनिया द्वारा दिए गए इंटरनेट जैसे महान मीडिया के साधन द्वारा अपनी आवाज को उठाने का प्रयास करों। आज आपको अपनी आवाज उठाने के लिए किसी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी न्यूज चैनल, अख़बार और पत्र-पत्रिका का मुख ताकने की जरूरत नहीं है। हमें इन मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी गुलाम मीडिया का मोहताज नहीं चाहिए। आप खुद ही मीडिया बन जाओ। अपनी आवाज को दुनिया के जर्रे-जर्रे तक पहुंचाओं। खुद जागो, लोगों को जगाओं। खुद जानें, लोगों को जनाओं। आप इंटरनेट का सदुपयोग करके अपनी आवाज को देश-दुनिया के कोने-कोने तक इतनी बुलंद कर दो कि आसमान का भी सीना फट जाए।   
याद रखों, हमारी एक आवाज और एक सोच भारत देश को नयी दिशा व दशा दे सकती है। इसलिए आप भी शासन-प्रशासन, संसद, न्यायालय, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, मीडिया, सिविल सोसायटी व अन्य सभी क्षेत्र में अपने समुचित स्वप्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को स्थापित करने के इस महायुद्ध में एक सिपाही बनों। उखाड़ फेकों मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचार धारा को, नेस्तनाबूद कर दो ब्राह्मणी हिन्दू व्यवस्था को, स्थापित करों बेगमपुरा को। 
साथिओं,
हमारी लड़ाई किसी सत्ता पाने या सत्ता का सुख भोगने की लड़ाई नहीं है, हमारी लड़ाई है भारत एक समतामूलक समाज की स्थापना की; हमारी लड़ाई है अपने आत्मसम्मान को बचाने की; हमारी लड़ाई है, सामाजिक न्याय को स्थापित करने की; हमारी लड़ाई है बाबा साहेब के सपनों का भारत बनाने की।
साथिओं,
हमारी लड़ाई का सबसे खूबसूरत पहलू ये है कि हम लड़ रहे है- इंसानियत की रक्षा के लिए; हम लड़ रहे है सामाजिक न्याय के लिए; हम लड़ रहे है स्वतंत्रता; समता और बंधुत्व के लिए; इस लिए मानवता की रक्षा के इस युद्द का सबसे खूबसूरत और अटल है इसका परिणाम - मतलब की हमारे इस महाजंग का सिर्फ और सिर्फ एक ही परिणाम है - जीत, जीत और सिर्फ जीत। तो मेरे सिपाहियों, आगे आओ, कमर कस लो; आगे बढ़ों और उखाड़ फेकों गई-बराबरी और विषमता के मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी विचारधारा को; नेस्तनाबूद कर दो मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी व्यवस्था को। आगे बढ़ो और मदद करों, भारत में सामाजिक परिवर्तन की जंग लग लड़ रहे उन महायोद्धाओं योद्धाओं की जो बाबा साहेब के मिशन को आगे बढ़ाने का काम कर रहे है। भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के लिये महासंघर्ष कर रहे है। याद रखो, बाबा साहेब के मिशन की पूर्ण सफलता में ही भारत व मानवता का का सुन्दर भविष्य सुरक्षित है। 
जय भीम, जय भारत!!!


रजनीकान्त इंद्रा 
सितम्बर २४, २०१६ 

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