Monday, September 21, 2015

गणपति का सच

"बुद्ध" का मतलब ही "अष्टविनायक" और "गणपति बाप्पा मोरया" अर्थात "चन्द्रगुप्त मोरया" है । लोकशाही युग में देश का प्रमुख राष्ट्रपति है, उसी प्रकार प्राचीन भारत के गणों के समूह के मुखिया को राजा, सम्राट, और गणपति कहते थे ।
इस प्राचीन भारत के, एक राज घराने में सिद्धार्थ गौतम नामक राजकुमार का जन्म हुआ जो आगे चलकर शाक्य गण का प्रमुख बना। सिद्धर्थ के सतचरित्र की सुप्रसिद्धि चारो तरफ फैलने लगे। सिद्धर्थ गणों के साम्राज्य के सम्राट बन गए जिसके कारण लोग उन्हें गणपति कहने लगे। कालांतर में सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्त किया और जब अष्टांगिक मार्गों का प्रचार-प्रसार शुरू किया तो लोगों ने उन्हें अष्टविनायक भी कहना शुरू कर दिया। 
महात्मा बुद्ध के अनुसार - जगत में दुःख है। दुःख को दूर कर सुखी होने के लिए, महात्मा बुद्ध ने आठ सर्वश्रेष्ठ मार्ग भी बताये और कहा कि इस अष्टांगिक मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख का नाश होता है। ये आठ नियम या सिद्धांत विनय से सम्बंधित है। इसलिए बुद्ध को विनायक कहा गया। महात्मा बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख का नाश और सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए बुद्ध को लोग सुखकर्ता और दुखहर्ता कहने लगे। इस प्रकार महात्मा बुद्ध का नाम "गणपति" और "अष्टविनायक" पड़ा ।
कालान्तर में आगे चलकर, चन्द्रगुप्त के रूप में भी एक प्रसिद्ध विशाल साम्राज्य वाला गणपति हुआ। चन्द्रगुप्त की ख्याति के कारण लोग उसे गणपति बाप्पा मोरिया कहने लगे। 
यहाँ दो बिन्दु गौर तलब है। एक, जब बुद्ध लोगों को धर्म का सन्देश देते थे तब उनके संदेशों में दो शब्दों का मूलभूत रूप से उल्लेख होता था- चित्त और मल्ल । चित्त यानि शरीर (मन) और मल्ल याने मल । महात्मा बुद्ध कहते थे कि तुम्हारे शरीर से मल (गन्दगी और बुराई इत्यादि ) निकाल देने पर तुम शुद्ध हो जाओगे और दुःख से मुक्त हो जाओगे। दूसरा, बुद्ध की माँ महामाया को सपने में एक हाथी आकर भविष्यवाणी करता है कि उसकी कोख से एक दिव्य बालक का जन्म होगा अर्थात सपने का हाथी, बुद्ध के जन्म का प्रतीक है और हाथी बौद्ध धर्म का भी प्रतीक है और बुद्ध हाथी वंश का है।  उपर्युक्त तथ्यों को विकृत कर ब्राह्मणों ने पार्वती के शरीर से मल निकालकर एक नागवंशीय बालक के जन्म की कहानी को प्रस्तुत किया। पाली भाषा में नाग का अर्थ हाथी होता है अर्थात यह बालक हाथी वंश का था। इसलिए इस नए जन्मे बालक को हाथी के स्वरुप में बताना जरुरी था। इसलिए धूर्त ब्राह्मणों ने शंकर द्वारा इस बालक का गर्दन कटवाया और सिर्फ हाथी का गर्दन ही लगवाया ना कि किसी शेर, बैल, घोड़े आदि का।  
इसलिए ब्राहमणों ने काल्पनिक गणपति को अष्टविनायक भी कहा और सुखकर्ता दुखहर्ता भी कहा। इसका तात्पर्य यह है कि गणपति कोई और नहीं बल्कि महात्मा बुद्ध ही है। ब्राहमणों ने सकल समावेशी मानव विकासवादी महात्मा बुद्ध के अस्तित्व को नष्ट करने और अपने सनातन हिन्दू ब्राह्मण धर्म को बचने के लिए एक नए काल्पनिक गणपति का निर्माण किया।  
धूर्तता का विद्वान होने के कारण ब्राह्मण सत्य ज्ञान नहीं जान पाये कि झूठ के पैर नहीं होते है इसलिए लिए वो ज्यादा दूर तक नहीं चल सकता है। झूठी महिमामंडन करते समय उन्होंने जो गलतियां की जिससे ब्राहमणों की धूर्त सोच उजागर होती है। वे इस प्रकार है-
(१) शंकर जब देवों का देव है तो गणपति का सर धड से अलग करते उसे समय यह पता क्यों नहीं चला कि वह उसका पुत्र है। 
 (२) जब गणपति देव था तो उसे यह कैसे पता नहीं चला कि जिसे वह रोक रहा है वह उसका बाप है। 
(३) शंकर को यह कैसे पता नहीं चला कि उसकी बीवी गर्भवती थी और  बच्चा जन्म ले चुका है।  
 (४) अगर पार्वती शरीर के मैल से बालक बना सकती है तो वह उसी मैल से बालक का सर क्यों नहीं बना पाई। 
 (५) जीवन मृत्यु का शाप वरदान देने वाले शंकर की शक्ति कहाँ गई थी कि वे भी अपने ही बेटे का सर फिर से नहीं जोड़ पाये ?  ईश्वर होते हुए भी शंकर ने एक निष्पाप हाथी की जान क्यों ली ?
 (६) ये भी सोचने की बात है कि क्या किसी छोटे से हाथी का सर भी किसी मनुष्य की गर्दन में फिट किया जा सकता है ?
 (७) सतयुग में गणपति का वाहन सिंह था और उसके दस हाथ थे । त्रेतायुग में उसका वाहन मोर बना और छः हाथ हो गए । द्वापरयुग में उसका वाहन मूषक अर्थात चूहा बना और चार हाथ हो गए। अगर गणेश समय और परिस्थिति के अनुसार अपने हाथ घटा बढ़ा सकता था तो अपना सर क्यों नहीं ठीक कर पाया । 
(७) प्राणी हत्या से जन्मे गणपति को सुखकर्ता दुख्कर्ता कैसे कहा जा सकता है । 
(८) शिवपुराण के अनुसार पर्वती ने मल के गोले पर गंगा का पानी गिरा और गणपति का जन्म हुआ । ब्रम्हवैवर्त पुराण के अनुसार - पार्वती अपने मल का गोला लेकर ब्रह्मदेव के पास ले जाती है और उसे जिन्दा करने के लिए विनती करती है तब उस पर प्रसन्न होकर ब्रम्हदेव अपने वीर्य का छिडकाव करता है और उस मल के गोले को गणपति बना देता है।
यहाँ सवाल ये उठता है कि गणपति का असली पिता कौन है ?
(९) आगे चलकर गणपति का विवाह ऋद्धी और सिद्धी यानि कि ब्रम्हदेव की पुत्रियों के साथ होता है अर्थात ब्रम्हवैवर्त पुराण के आधार पर ब्रम्हदेव के वीर्य से जन्म लेने वाले गणपती ने अपनी ही बहनों के साथ शादी किया। यदि ऐसा है तो खाप पंचायत जैसे असंवैधानिक और अवैध अदालते और हिन्दू धर्म के ठेकेदार एक ही गॉव में शादी करने वाले बच्चो को मौत की सजा क्यों देते है ? खाप पंचायतों और हिन्दू धर्म  ठेकेदारों द्वारा पहले गणपति को ही शूली पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है ?
(१०) आगे चलकर चन्द्रगुप्त मोर्य यह मोर्य वंश का गणपति हुआ इसलिए ब्राहमणों ने "गणपति बाप्पा मोर्या" ऐसी घोषणा दिये। क्योकि मोर्या (मोरिया) शब्द के बारे में ब्राहमणों के इतिहास में कोई उत्तर नहीं मिलता है।
कर्णाटक में चन्द्रगुप्त मोर्य ने जैन धर्म का प्रचार किया इसलिए उस क्षेत्र में कई लोग खुद के नाम के आगे मोरया नाम लगाते थे। महाराष्ट्र में मोरे सरनेम भी मोर्य का ही अपभ्रंश है। 
हालांकि १४ वीं सदी में ब्राम्हणो ने संत तुकाराम, जो कि एक मोरे थे,  के बारे में एक भ्रान्ति फ़ैलाने का कि एक मोरया गोसवि के नाम से लोगों ने मोरया सरनेम अपनाया, की असफल कोशिस की थी। ब्राह्मणों ने तुकाराम महाराज और पेशवाओं ने शिवाजी महाराज की हत्या करवाने के बाद बौद्ध लेणी (गुफा) और विहार की जगहे काबिज क़र वहां काल्पनिक देवी देवता बिठाना शुरू किया। कार्ला की बुद्ध लेणि में बुद्ध की माता महामाया को ब्राह्मणी एकविरा देवी का स्वरुप दिया; जुन्नर के लेन्याद्रि बुद्ध लेणी में गणपति बिठाकर उसे काल्पनिक अष्टविनायक गणपती का प्रमुख स्थल बनाया गया; शेलारवाडी, पुणे की लेणी में शिवलिंग बिठाकर कब्जा किया गया । 
सच्चा इतिहास यह है कि, प्राचीन भारत बौद्धमय था। अशोक सम्राट ने बुद्ध के बाद सारे भारत को बौद्धमय किया था। लेकिन ब्राम्हण समाज ने अशोक के वंश को ख़त्म कर बौद्ध धर्म में विचार और इतिहास को नष्ट करने की असफल कोशिस की और 33 करोड़ देवताओं को जन्म दिया।
निष्कर्ष - भारत में ब्राह्मणों ने अपने शोषणवादी धर्म को बचने और सकल समावेशी मानव विकासवादी बुद्ध धर्म के अस्तित्व के ख़त्म करने के लिए ही बुद्ध की सभी बातों को गीता और पुराण जैसे किताबो में डालने की नाकाम कोशिस की थे। मनगढ़ंत देवी-देवताओं को जन्म दिया। झूठा इतहास लिखा। परन्तु उन्हें वो सफलता नहीं मिली जो कि  वे चाहते थे। 

इसलिए ही उन्होंने ने हिन्दू सनातनी ब्राम्हण धर्म को नाश करने वाले बुद्ध को ही विष्णु का दसवाँ अवतार बनाने की बेशर्मी भरी असफल कोशिश की। इन धूर्तों का ये प्रयास भारत में हिन्दू आतंकवादी संगठनों के माध्यम आज भी जारी है लेकिन ख़ुशी की बात यह है बुद्ध की स्वीकारिता पूरी दुनिया में बढ़ी है जबकि मानवता विरोधी और शोषणवादी हिन्दू धर्म की स्वीकारिता भारत में ही धीरे-धीरे ही सही पर निरन्तर घाट रही है । 
रजनीकान्त इन्द्रा 
सितम्बर २१,२०१५ 

No comments:

Post a Comment