Sunday, September 20, 2015

भारत में समाज सुधार : अंग्रेजी हुकूमत का अनमोल योगदान

यदि दलित इतिहासकारों को छोड़ दिया तो भारतीय इतिहासकार पूरी तरह से ब्राह्मणवाद और सामंती सोच से पीड़ित रहें है। उन्होंने ने इतिहास का निष्पक्ष लेखा-जोखा करने के बजाय ब्राह्मणों और सवर्णों का महिमामंडन कर भारतियों को गुमराह किया। भारतीय इतिहासकरों द्वारा रचित इतिहास हमेशा से भेद-भाव पूर्ण रहा है। 
 इन धूर्त इतिहासकारों ने जहाँ एक तरफ कट्टर हिंदूवादी सामंती सोच और मनुवाद से बीमार धूर्त राजनेता मोहनदास को महात्मा बना डाला तो वही दूसरी तरफ झलकारी बाई के अदम्य सहस, शौर्य और बहादुरी को लक्ष्मीबाई के नाम लिखा दिया, बाबा साहेब को सिर्फ दलित मसीहा और देश द्रोही बना डाला तो पटेल, तिलक, मालवीय इत्यादि जैसे कट्टर हिन्दू को भारत के मसीहा और सच्चा देशभक्त। 
 इसी चरण में इन धूर्त इतिहासकारों ने अंग्रेजों को सिर्फ एक शोषक के रूप में याद किया है और बीमार भारतीय सोच, ब्राह्मणवाद और मनुवाद जैसे निकृष्ट सिद्धांतों को पोषक के रूप में । 
 अंग्रेजों ने भारत का शोषण जरूर किया लेकिन इन्ही अंग्रेजों ने भारत को समाज सुधार एवं निकृष्ट ब्राह्मणों और उनके सिंद्धातों को नकार कर आधुनिक भारत को मानवाधिकार का अनमोल उपहार भी दिया है । आइये, एक नज़र डाले कि कैसे अंग्रेजी हुकूमत ने भारत की बीमार सोच को नश्तनाबूत कर, भारत समाज सुधार में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया - 
 1- अंग्रेजो ने 1795 अधिनयम 11 द्वारा शुद्रो को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
 2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमे न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी । 6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल का सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई।
 3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजो ने लगाया (लड़कियो के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमे दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)
 4- 1813 मे ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियो और धर्मो के लोगो को अधिकार दिया ।
 5- 1813 में अंग्रेजो ने कानून बनाकर दास प्रथा का अंत किया। 
 6- 1817 में समान नागरिक संहिता बनाया (1817 के पहले सजा का प्राविधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नही, शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था । अंग्रेजो ने सजा का प्राविधान समान कर दिया ।) 
 7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियो के शुद्धिकरण पर रोक लगाया (शुद्रो की शादी होने पर दुल्हन अपने घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देना पड़ता था)
 8- 1830 नरवलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रो (स्त्री व् पुरुष दोनों ) को मन्दिर में सिर पटक कर चढ़ा देता था) ।
 9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान ,धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
 10- 1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ । जिसका प्रमुख उद्देश्य जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर कानून बनाने की व्यवस्था करना था।
 11- 1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया कि शुद्रो के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेक देना चाहिये । पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट, स्वस्थ एवं तेज़ दिमाग वाला पैदा होता है । यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे)
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
 13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजो ने शुद्रो को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
 14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओ को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
 15- देवदासी प्रथा पर रोक । शुद्र अपनी लड़कियो को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे । मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेक देते थे और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगड़ना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमे 2 लाख देवदासियां मन्दिरो में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो में चल रही है ।
 16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत कर दिया।
 17- 1849 में कलकत्ता में जे ई डी बेटन ने एक बालिका विद्द्यालय ने स्थापित किया।
 18- 1854 में अग्रेजो ने 3 विश्वविद्यलय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किया ।1902 में विश्वविद्यलय आयोग नियुक्त किया गया।
 19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजो ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियो से जकड़े शुद्रो की जंजीरो को काट दिया भारत में जाति, वर्ण और धर्म के विना एक समान क्रिमिनल लॉ लागु कर दिया।
 20- 1863 अंग्रेजो ने कानून वनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया ( आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रो को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था । इस पूजा में मान्यता थी कि भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगे।)
 21- 1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
 22- 1871 में अंग्रेजो ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ किया। यह जनगणना 1941 तक हुई । 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगाया।
 23- 1872 में सिविल मैरेज एक्ट द्धवारा 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओ एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़को का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाया।
 24- अंग्रेजो ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियो को सेना में भर्ती किया लेकिन 1892 में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।
 25- रैयत वाणी पद्गति अंग्रेजो ने बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया।
 26- 1918 में अंग्रेजो ने साऊथ बरो कमेटी को भारत भेजा। यह कमेटी भारत में सभी जातियो का विधि मण्डल (कानून बनाने की संस्था) में भागीदारी के लिए आया। शाहू जी महाराज के कहने पर पिछडो के नेता भाष्कर राव जाधव ने एवम् अछूतों के नेता डा अम्बेडकर ने अपने लोगो को बिधि मण्डल में भागीदारी के लिये मेमोरण्डम दिया। 
27- अंग्रेजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।
 28- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दिया था और कहा कि इनके अंदर न्यायिक चरित्र नही होता है।
29- 25 दिसम्बर 1927 को डा अम्बेडकर द्वारा मनु समृति का दहन किया।
 30- 1 मार्च 1930 को डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक) प्रवेश का आंदोलन चलाया।
31- 1927 को अंग्रेजो ने कानून बनाकर शुद्रो को सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।
 32- नवम्बर 1927 को साइमन कमीशन की नियुक्ति किया। 1928 को भारत के लोगो को अतरिक्त अधिकार देने के लिए आया। भारत के लोगो को अंग्रेज अधिकार न दे सके इस लिए इस कमीशन के भारत पहुचते ही गांधी ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। साइमन कमीशन अधूरा रिपोर्ट लेकर वापस चला गया । इस पर अंतिम फैसले के लिए अंग्रेजो ने भारतीय प्रतिनिधियों को 12 नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में बुलाया।
 33- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजो ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिसमे प्रमुख अधिकार निम्न दिए----
 A--वयस्क मताधिकार
 B--विधान मण्डलों और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतों को आरक्षण का अधिकार 
 C--सिक्ख, ईसाई और मुसलमानो की तरह अछूतों को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रो में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगे।
 D--प्रतिनिधियों के चुनने का दो बार वोट का अधिकार मिला एक वार चुन अपने प्रतिनिधियों को वोट देगे और दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देगे।
 34-- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई । अंग्रेजो ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।
 35-- अंग्रेजो ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 से लेकर डा अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया। लेबरो को डा अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया।
 36-- 1937 में अंग्रेजो ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट का चुनाव करवाया।
 37-- 1942 में अंग्रेजो से डा अम्बेडकर ने 50 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतों एवम् पिछडो में बाट देने के लिए अपील किया । अंग्रेजो ने 20 वर्षो की समय सीमा तय किया था।
 38-- अंग्रेजो ने शासन प्रसासन में ब्राह्मणों की भागीदारी 2.5 प्रतिशत पर लेकर खड़ा कर दिया।

 अंग्रेजों ने भारत का आर्थिंक दोहन जरूर किया था लेकिन भारत के शूद्रों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों ) के जीवन की जंजीरों को कटाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान भी इन्ही अंग्रेजों ने दिया था ।
यदि हम ब्रिटिश इंडिया और इंडिपेंडेंट इंडिया पर गौर करे तो समाज सुधार और शूद्रों के उत्थान में ब्रिटिश इंडिया का योगदान सर्वश्रेष्ठ है जबकि अंग्रेजों के पहले के भारत एवं आज के इंडिपेंडेंट इंडिया का शून्य । ब्राह्मणवाद, सामंती सोच और मनुवाद जैसे मानसिक रोग से पीड़ित भारत, भारतीय समाज के सुधार के दृष्टिकोण से अंग्रेज किसी मसीहा से कम नहीं थे । 
 कुल मिलकर, यदि हम भारत में समाज सुधार के बारे में निष्पक्ष रूप से विश्लेषण करे तो हम पाते है कि समानता और सामाजिक सुधार के परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी हुकूमत ने १५० वर्षों में वो कर दिखाया जो भारत और भारतीय समाज अपने पूरे जीवन कल में नहीं कर सका ।
रजनीकान्त इन्द्रा 
सितम्बर २०, २०१५ 

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