Tuesday, June 9, 2020

बहुजन दल की पहचान कैसे करें?

बहुजन दल की पहचान कैसे करें?
आज सैकड़ों दल, संगठन, पत्र-पत्रिकाओं और संस्थाओं की बाढ़ सी आ गयी हैं। हर कोई “जय भीम” बोल रहा हैं। हर कोई बहुजन (एससी-एसटी-ओबीसी-कॉंवेर्टेड मॉयनॉरिटीज़) समाज का हितैषी होने का दावा कर रहा हैं। हर कोई अपने को अम्बेडकरवादी कहता फिर रहा हैं। ऐसे में बहुजन समाज का वास्तविक हितैषी कौन हैं? तमाम पत्र-पत्रिकाओं, संगठनों, राजनैतिक दलों और संस्थाओं में से बहुजन समाज का अपना कौन हैं? ये तय करना आम जनमानस (बहुजन समाज) के लिए कठिन हो गया हैं।
ऐसे में, बहुजन इतिहास-संस्कृति, बहुजन महानायकों-महनायिकाओं, उनकी वैचारिकी और गौरवगाथाओं एवं संघर्षों से सीखते हुए इसके लिए कुछ मापदण्ड तय किये जा सकते हैं, जिसके आधार पर बहुजन समाज अपने हितैषी, अपने शोषक, और शोषक के चमचों को आसानी से पहचान सकता हैं।
किसी भी दल, संगठन, संस्था, पत्र-पत्रिका आदि के बहुजन होने की कुल सात शर्ते निर्धारित की जा सकती हैं। यदि कोई भी दल, संगठन, संस्था, पत्र-पत्रिका आदि इन सातों शर्तों को एक साथ पूरा करता हैं तो बहुजन उसको बेहिचक अपना दल, संगठन, संस्था, पत्र-पत्रिका आदि स्वीकार कर सकता हैं।
पहला, बहुजन इतिहास व सांस्कृतिक विरासत से गहरे लगाव का होना।
दूसरा, बहुजन वैचारिकी का होना।
तीसरा, बहुजन नायकों-नायिकाओं का होना।
चौथा, बहुजन वित्त से पोषित होना।
पाँचवा, बहुजन एजेण्डे का होना।
छठा, बहुजनों द्वारा बनायीं रणनीति का होना।
सातवां, बहुजन नेतृत्व और उसमे अपने बहुजन एजेण्डे क पूरा करने की इच्छा, क्षमता व प्रतिबद्धता का होना।
स्पष्ट हैं कि सिर्फ बहुजन समाज में जन्म लेने वाले नेतृत्व और उसके बहुजन वोटर मात्र से कोई भी दल, संगठन, संस्था, पत्र-पत्रिका, अख़बार आदि बहुजन नहीं बन जाता हैं। किसी दल, संगठन, संस्था, पत्र-पत्रिका और अखबार आदि के बहुजन होने के लिए उपरोक्त सातों शर्तों पर एक साथ खरा उतरना होगा।
आइयें, एक राजनैतिक दल (बहुजन समाज पार्टी) के माध्यम से इन सारी शर्तों को समझते हैं। 
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ही एक मात्र बहुजन दल हैं, कैसे?

·    पहली शर्त, बहुजन इतिहास व सांस्कृतिक विरासत से गहरे लगाव का होना -
बाबा साहेब कहते हैं कि जो समाज अपना इतिहास नहीं जनता हैं वो कभी अपना इतिहास नहीं बना सकता हैं। बाबा साहेब के इस कथन को बसपा ने अपने जीवन में उतारा हैं। यदि बसपा के संघर्ष और उसकी हुकूमत पर गौर करें तो हम पाते हैं कि बसपा की ऐतिहासिक विरासत बुद्ध से शुरू होती हैं। बुद्ध के बाद सम्राट अशोक का शासन, संत शिरोमणि संत रैदास, कबीर दास, गुरु घासीदास, नानक की वाणी, नारायणा गुरु, बिरसा-तिलका मांझी का विद्रोह, फुले-शाहू-अम्बेडकर-पेरियार-गाडगे का संघर्ष और मातादीन-झलकारी-उदा-उधम सिंह का बलिदान और भीमकोरे गांव का शौर्य बसपा का अहम् अंग हैं। इस बहुजन इतिहास से ना सिर्फ बसपा ने प्रेरणा ली हैं बल्कि गैर-बहुजनों द्वारा मिटा दिए इतिहास को फिर से स्थापित किया हैं। डॉ अम्बेडकर समाजिक परिवर्तन स्थल लखनऊ, परिवर्तन चौक, लखनऊ, राष्ट्रिय दलित प्रेरणा स्थल नोएडा, मान्यवर काशीराम इको गार्डन लखनऊ, बहुजन नायकों एवं नायिकाओं के नाम पर स्मारक, मूर्तियाँ, विश्वविद्यालय, संस्थान, सड़क, योजनाओं और जिलों का निर्माण आदि बसपा की बुनियाद में बहुजन इतिहास और सांस्कृतिक विरासत के तौर पर स्थापित हैं। मान्यवर काशीराम साहेब खुद अशोक के भारत का निर्माण करने की बात किया करते थे। मान्यवर साहब १४ अक्टूबर २००६ को धम्म की दीक्षा लेना चाहते थे, लेकिन ०९ अक्टूबर २००६ को ही उनका परिनिर्वाण हो गया। बहन जी ने बौद्ध संस्कृति से मान्यवर साहेब का अन्तिम संस्कार किया। ये सब साबित करता हैं कि बहुजन इतिहास व संस्कृति बसपा की बुनियाद की प्रमुख ईंट हैं।
·     दूसरी शर्त, बहुजन वैचारिकी का होना - 
बसपा जब अपना इतिहास बुद्ध से शुरू करती हैं, भारत से खो चुके बुद्ध को खोजकर पुनः स्थापित करती हैं तो यह तभी संभव हैं जब बसपा बुद्ध की वैचारिकी को मानती हो। अपने इतिहास व संस्कृति से प्रेरित होकर बसपा ने खुद अपनी वैचारिकी को चुना हैं। बुद्ध-रैदास-फुले-शाहू-अम्बेडकर की वैचारिकी को मान्यवर साहेब ने एक सूत्र में पिरोया हैं जिसे बसपा ने पूरी सिद्धत से अपनी वैचारिकी के तौर पर अपनाया हैं। इसी बुद्ध-अम्बेडकरी बहुजन वैचारिकी के आधार पर समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित समतामूलक समाज का सृजन बसपा का उद्देश्य हैं। स्पष्ट हैं कि बसपा की बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी अपनी खुद की वैचारिकी हैं, जिसे बहुजन वैचारिकी कहा जाता हैं।
·     तीसरा, बहुजन नायकों-नायिकाओं का होना -  
मान्यवर साहेब कहते हैं कि हम दक्षिण से कई बाबा लाये हैं - एक दाढ़ी वाले बाबा, एक पगड़ी वाले बाबा, अचकन वाले बाबा और एक टाई वाले बाबा। आगे, मान्यवर साहेब कहते हैं कि जिन महानायकों-नायिकाओं को हम खोज सके हैं, उनकों खोजे हैं। अब आप लोगों को भी अपने अन्य सभी नायकों-नायिकाओं को खोजना और स्थापित करना हैं। बसपा के नायकों-नायिकाओं की बहुत लम्बी लिस्ट हैं।बुद्ध, अशोक, रैदास, कबीर, फुले, अम्बेडकर, शाहू, पेरियार, गाडगे, घासीदास, बिरसा मुण्डा, उधम सिंह, झलकारीबाई, उदा देवी, महावीरी देवी, सावित्री फुले, रमाबाई आंबेडकर और अन्य सभी बसपा के सारे नायक-नायिकायें बहुजन समाज के ही हैं। अपने इन सभी नायकों-नायिकाओं की प्रतिमाओं को स्थापित कर बहन जी ने भारत में सभी बहुजन नायकों-नायिकाओं, उनके इतिहास और संघर्ष गाथाओं को पुनर्जीवित कर ऐतिहासिक कार्य किया हैं। स्पष्ट हैं कि बसपा के पास अपने बहुजन समाज में जन्में नायकों-नयिकाओं की लम्बी सूची हैं, जिनके वैचारिकी पर चलकर उनके सपनों का भारत निर्माण (समतामूलक भारत का सृजन) बसपा का उद्देश्य हैं। 
·     चौथा, बहुजन वित्त से पोषित होना - 
बिना वित्त के कोई भी संगठन, संस्था, दल, पत्र-पत्रिका आदि को चलाया नहीं जा सकता हैं। ऐसे में वित्त की आवश्यता संस्था और वैचारिकी के प्रचार-प्रसार के अहम् हैं। प्रो विवेक कुमार मान्यवर साहेब के हवाले से कहते हैं कि "यदि आप किसी से सहारा लेगें, तो इशारा भी मिलेगा।" मतलब कि यदि आप किसी गैर-बहुजन से वित्तीय सहारा लेगें तो वो आपको इशारा भी देगा। आपको उसकी शर्ते माननी पड़ेगी। ऐसे में यदि आप किसी गैर-बहुजन का इशारा मानेगें तो बहुजन आन्दोलन नहीं चल पायेगा। ऐसे में अपने को आत्मनिर्भर बनाना होगा।
इसीलिए मान्यवर काशीराम साहेब ने कभी किसी उद्योगपति, गैर-बहुजन संगठन या समाज आदि से किसी भी तरह का वित्तीय सहारा लेने के बजाय मान्यवर साहेब और बहन जी अपने बहुजन लोगों से सीधे आर्थिक मदद मांगते हैं। इस सदंर्भ में मान्यवर साहेब "एक नोट, एक वोट" का नारा देते हैं। बहुजन समाज द्वारा दिए गए वित्तीय मदद की मदद से मान्यवर साहब और बहन जी बसपा को राष्ट्रिय दल के रूप में स्थापित करते हैं। आज भी बसपा और बहन जी किसी उद्योगपति या धन्नासेठ से कोई मदद नहीं नहीं लेती हैं। आज भी बसपा को बहुजन समाज के विभिन्न तबकों से उनके सामर्थ्य के मुताबिक हर साल आर्थिक सहयोग मिलता रहता हैं। बहुजन समाज के इसी आर्थिक सहयोग द्वारा इकट्ठा किये गए धन से बहन जी ने भारत के लगभग हर प्रान्त में भव्य प्रदेश कार्यालयों का निर्माण करवाया। वहां दो-तीन गाड़ियों समेत पार्टी वर्कर्स के लिए समुचित प्रबंध किया गया हैं। स्पष्ट हैं कि बसपा खुद बहुजन समाज के कामगार लोगों की वित्तीय सहायता पर खड़ा एक स्वायत्त व स्वंतन्त्र राजनैतिक दल हैं। आर्थिक सहयोग के मामले में बसपा गैर-बहुजन संगठन व समाज से पूरी तरह उचित दूरी बनाये हुए जिसके कारण बसपा बुद्ध-अम्बेडकरी मिशन को बिना अवरोध निरन्तर आगे बढ़ रहीं हैं।
·     पाँचवा, बहुजन एजेण्डे का होना -  
बसपा के अलावा बहुजन समाज का हितैषी होने का दावा करने वाले संगठनों, संस्थाओं, दलों, पत्र-पत्रिकाओं आदि के पास अपना कोई एजेण्डा नहीं तक नहीं हैं। मान्यवर काशीराम साहेब कहते हैं कि किसी मुद्दे पर विरोध करने मात्र से काम नहीं चलेगा, आपको उसका हल भी बताना होगा। इसलिए बसपा अन्य दिशाहीन राजनैतिक दलों की तरह सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध नहीं करती हैं बल्कि देश हित में विपक्ष की सकारात्मक व जिम्मेदार भूमिका निभाते हुए समाधान देने का भी कार्य करती हैं। 
बसपा के पास उसके अपने मुद्दे हैं जो उसने बहुजन संस्कृति व विरासत से लिए हैं। भूमिसुधार, भूमि का आवण्टन, राष्ट्रीकरण, आरक्षण का समुचित क्रियान्वयन, अछूतों का पृथक व्यवस्थापन, सभी नागरिकों के हक़ों व उनके जीवन की सुरक्षा, संविधान सम्मत शासन व कणों व्यवस्था, समतामूलक समाज का सृजन, बौद्ध संस्कृति की स्थापना व प्रचार-प्रसार, रोजगार और अन्य तात्कालिक व जरूरी मुद्दे। स्पष्ट हैं कि बसपा के मुद्दे प्रतिक्रिया का परिणाम नहीं हैं, बल्कि पहले से ही तय किये हुए हैं, जो कि खुद उसके हैं, उसके अपने बहुजन समाज के हैं। स्पष्ट हैं कि बसपा के पास देशहित में अपने मुद्दे हैं, एजेण्डे हैं, जो किसी प्रतिक्रिया का परिणाम नहीं हैं बल्कि बहुजन आन्दोलन की बुनियाद हैं। 
·      छठा, खुद बहुजनों द्वारा बनायीं गयी रणनीति व नारों का होना-
बसपा ने अपनी राजनीति को अपनी रणनीति पर खड़ा किया हैं। इसके खुद के नारे हैं। इन नारे में उसका इतिहास, संस्कृति, रणनीति, एजेण्डा, आर्थिक स्वतंत्रता, शासन-प्रणाली आदि निहित हैं। बसपा के नारे बहुजन इतिहास, नायक, संस्कृति, एजेण्डा, आर्थिक बुनियाद और इसकी कार्यप्रणाली व रणनीति को स्पष्ट करते हैं।
ü बसपा का अभिवादन और वैचारिकी का सूचक नारा - "जय भीम, जय भारत, नमों बुद्धाय"
ü भारत के विषमतावादी सामाजिक व्यवस्था में लोकतंत्र को परिभाषित करती बसपा - "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी।"
ü बुद्ध-फुले-शाहू-अम्बेडकरी मिशन को मुक़म्मल अंजाम तक पंहुचने की बसपा की दीर्घकालीन रणनीति - "बसपा वोट से लेगें पीएम-सीएम, आरक्षण लेगें एसपी-डीएम।"
ü बूथ कैप्चरिंग और ब्राह्मणी गुण्डों को चुनौती देते हुए बहुजन समाज को एकजुट करते हुए हौसलाअफजी करते हुए बसपा कहती हैं - "चढ़ गुण्डों की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर।" 
ü बहुजन समाज को चिन्हित करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं - "ठाकुर ब्राह्मण बनिया छोड़, बाकि सब हैं डीएस-फोर।"
ü बहुजन समाज के लोगों को उनकी अपनी राजनैतिक पार्टी से पहचान करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि - "बीएसपी की क्या पहचान, नीला झण्डा हाथी निशान।"
ü देश के सामंतों द्वारा जबरन कब्ज़ा की गयी सरकारी जमीन को देश के भूमिहीनों में बांटने के संदर्भ में बसपा कहती हैं - "जो जमीन सरकारी हैं, वो जमीन हमारी हैं।"
ü बसपा सिर्फ और सिर्फ एक ही ऐसी बहुजन समाज की अपनी पार्टी हैं जिसने अपनी विरासत को अपनी हुकूमत के दौरान ना सिर्फ स्थापित किया बुद्ध से अम्बेडकर तक की यात्रा को सम्पूर्ण सम्मान दिया हैं, उसे आत्मसात किया हैं। इसलिए सामाजिक परिवर्तन के इस संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए बसपा कहती हैं - "बाबा तेरा मिशन अधूरा, काशीराम करेगें पूरा।"
ü मान्यवर कांशीराम साहेब के संघर्षों को आगे बढ़ाने वाली बहन जी के संर्दर्भ में बसपा और बहुजन समाज के लोग कहते हैं कि - "काशी तेरा मिशन अधूरा, बहन जी करेगी पूरा।"
ü बहुजन समाज में बुद्ध-अम्बेडकरी कारवाँ इस कदर आगे बढ़ चुका हैं कि आज बहुजन समाज का हर बच्चा कहते फिरता हैं की- "बच्चा बच्चा भीम का, बीएसपी की टीम का।"
ü मान्यवर कांशीराम साहेब के संघर्ष को याद करते हुए बसपा और बहन जी कहती हैं की - "काशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।"
ü बसपा अपनी आर्थिक स्वतंत्रता को बरक़रार रखने के लिए आज भी बहुजनों के ही आर्थिक मदद पर निर्भर हैं। बसपा आज भी इस बात पर कायम हैं कि यदि आप किसी से सहारा लेगें तो आपको उसका इशारा भी मानना पड़ेगा, यही वजह हैं बसपा आज भी "एक नोट, एक वोट" के फॉर्मूले पर कार्यरत हैं।
स्पष्ट हैं कि बसपा अपने बलबूते खड़ी एक स्वतन्त्र बहुजन राजनैतिक दल हैं जिसकी अपनी वैचारिकी और एजेण्डे को हकीकत के धरातल पर उतारने के लिए एक तरफ उसकी अपनी रणनीति हैं तो दूसरी तरफ उसका बसपा को आमजन (बहुजन समाज) को जोड़ने वाले खुद के गढ़े जोश भरते नारे हैं।
·      सातवाँ, बहुजन नेतृत्व और उसमे अपने बहुजन एजेण्डे क पूरा करने की इच्छा, क्षमता व प्रतिबद्धता का होना –
बहुजन दल, संगठन और संस्थाओं में बहुजन समाज का समुचित व सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ बहुजन नुमाइंदे का नेतृत्व के केंद्र में होना आवश्यक हैं। यदि बसपा पर गौर तो स्पष्ट हैं कि बसपा का नेतृत्व शुरू से ही बहुजन समाज (मान्यवर साहेब और बहन जी) के हाथ में रहा हैं। संविधान निहित लोकतान्त्रिक मूल्यों के मद्देनज़र बसपा ने अपने पार्टी के अंदर सर्व समाज के समुचित प्रतिनिधित्व का ध्यान रखा हैं। इसका अंदाजा बहन जी के मुख्यमंत्रित्व काल के मंत्रियों की सूचीं से आसानी से लगाया जा सकता हैं। बहन जी अपने टिकट वितरण और मंत्रलयों के आवंटन में संविधान निहित लोकतान्त्रिक व संवैधानिक मूल्यों का ख्याल रखते हुए ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ-साथ सर्व समाज के लोगों को भी समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी का पूरा ध्यान दिया हैं।
संगठन के तमाम पदों, बहुजन नेतृत्व की सरकार के मन्त्री-मण्डल में सबके समुचित प्रतिनिधित्व के साथ-साथ सबकी सक्रियता और उनमे अपनी वैचारिकी और एजेण्डानुसार निर्णय लेने की इच्छा, क्षमता व दृढ़ प्रतिबद्धता भी होना चाहिए। यदि बहन जी के नेतृत्व में बसपा सरकार पर गौर करे तो हम पाते हैं कि बहन जी ने ना सिर्फ हर तबके को सरकार में प्रतिनिधित्व दिया बल्कि अपनी बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी के तहत अपने एजेण्डे को अपने ठोस निर्णयों द्वारा अमली जामा भी पहनाया। जिसका प्रमाण बहन जी के हुमूकत में दुनिया ने देखा हैं। उदहारण स्वरुप - संविधान सम्मत शासन, सबके साथ न्याय, आरक्षण, आधारभूत संरचना का निर्माण, इतिहास, संस्कृति और स्मारकों का निर्माण, रोजगार, जरूरतमंदों को पेंशन, स्वस्थ, बिजली, शिक्षा, आदि। बहन के बेहतरीन शासन का ही परिणाम रहा हैं कि निष्पक्ष विद्वान बहन जी आधुनिक अशोक कहते हैं।
निष्कर्ष –
उपरोक्त मापदण्डों की कसौटी पर बहुजन हितैषी होने का दावा करने वाले तमाम दलों, संगठनों, संस्थाओं, पत्र-पत्रिकाओं आदि को कसे तो बसपा के सिवाय अन्य सभी फेल हो जाते हैं। बहुजन समाज के नाम से राजनीति करने वाले तमाम दलों की विचारधारा गैर-बहुजन समाज की हैं। उनके नायक तक गैर-बहुजन हैं। उनके पास अपने कोई दूरदृष्टि वाले नारे व रणनीती तक नहीं हैं। उनके मुद्दे गैर-बहुजन दलों की प्रतिक्रिया व अपने स्वार्थी राजनैतिक फायदे से प्रेरित हैं। बहुजन इतिहास व इसकी सांस्कृतिक पूँजी तक से इनका कोई सरोकार नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण ये हैं कि इनकी फण्डिंग तक गैर-बहुजन समाज, संगठनों, उद्योगपतियों व धन्नासेठों से आती हैं। इनमे हर समाज को उनका समुचित प्रतिनिधित्व व भागीदारी तक को पूरा नहीं किया जाता हैं। इन दलों के पास सत्ता में आने के पश्चात् देशहित में ठोस निर्णय लेने की दूरदृष्टि तक नहीं हैं। उदहारण के तौर पर, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, महाराष्ट्र आदि में बहुजन हितैषी होने का दावा करने वाले के क्षेत्रीय दलों को उपरोक्त सात शर्तों पर एक साथ खरा होने का परिक्षण कीजिये, सब फेल हो जायेगें।
ऐसे में, पूरे भारत के सभी राजनैतिक दलों का निष्पक्ष तौर पर आंकलन किया जाय तो स्पष्ट हो जाता हैं कि सम्पूर्ण भारत में बहुजन दल होने की अनिवार्य सात शर्तों पर यदि कोई राजनैतिक पार्टी पूरी करती हैं तो वह बसपा हैं। इसलिए बसपा पूरे भारत में ओबीसी-दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यक समुदाय की एकमात्र राजनैतिक दल व बुद्ध-अम्बेडकरी वैचारिकी पर संघर्षरत एक मात्र संस्था हैं। यहीं वजह हैं ओबीसी-एससी-एसटी-कन्वर्टेड मॉयनॉरिटीज पूरी सिद्दत से बसपा के साथ खड़े हैं।
रजनीकान्त इन्द्रा

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