Thursday, March 22, 2018

आर्थिक आधार पर आरक्षण का मनुरोग...

प्रिय साथियों,
मनुरोगियों का अक्सर कहना होता है कि गरीबी सवर्णों में भी है। इसलिए आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए। तो ऐसे मनुरोगियों में हमारा कहना है कि यदि आरक्षण आर्थिक आधार पर चाहते हो तो जाति को भी आर्थिक आधार पर कर दो, आरक्षण स्वयं आर्थिक पर हो जायेगा। लेकिन हम जानते है कि इसके लिए कोई भी मनुरोगी तैयार नहीं होगा। क्यों, क्योंकि ये मनुरोगी है।

सवर्ण गरीबी के सन्दर्भ में, मनोरोगियों से कहना चाहते है कि हो सकता है कुछ गिनती के सवर्ण गरीब हो तो इसका कारण आरक्षण बिलकुल नहीं है बल्कि इसका मूलभूत और एक मात्र कारण सन १९४७ से लेकर आज तक सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर गैर-लोकतान्त्रिक तरीके से काबिज़ ब्राह्मणों की ब्राह्मणी पॉलिसी ही है। जहाँ तक रही बात गरीबी की तो गरीबी दूर करने के लिए अपनी ब्राह्मणी सरकारों से बोलो कि संविधान को उसकी आत्मा के अनुसार लागू करें, रोजगार के संसाधन जुटाएं और हर किसी को उपलब्ध कराये।

फ़िलहाल आरक्षण के सन्दर्भ में, देश को, खासकर मनुरोगियों, को सबसे पहले आरक्षण के मायने को समझना होगा। आरक्षण को समझने से पहले लोकतंत्र को समझना होगा जो कि भारत की नीव है। लोकतंत्र का मतलब होता है कि "लोगों के द्वारा लोगों के लिए लोगों की सरकार", अब्राहम लिंकन। यहाँ "लोगों" का मतलब सिर्फ "ब्राह्मण व अन्य सवर्ण" नहीं होता है। यहाँ लोगों का मतलब होता है - सवर्ण, शूद्र, अछूत, आदिवासी, क्रिश्चियन, मुस्लिम, बौद्ध आदि। कहने का तात्पर्य यह है देश की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर हर समाज के लोगों की समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी। इसी लोकतंत्र को मान्यवर काशीराम के शब्दों में कहें तो "जिसकी जितनी संख्या भरी, उसकी उतनी भागीदारी"।

फ़िलहाल १९४७ के बाद से देखे तो हम पाते है कि सत्ता शुरू से ही सवर्णों के ही हाथों में रही है। इन्होने कभी भी देश के अन्य तबकों के लिए लोकतंत्र के हित में सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर उनकी खुद की समुचित भागीदारी व सक्रिय स्वप्रतिनिधित्व को ना तो लागू किया, और ना ही लागू होने दिया। नतीजातन, संविधान में मूलनिवासी बहुजन समाज के "समुचित भागीदारी व सक्रिय स्वप्रतिनिधित्व (आरक्षण)" का प्रावधान होने के बावजूद भी आज तक बहुजन समाज का कोटा पूरा नहीं हुआ, या यूँ कहें कि ब्राह्मणों-सवर्णों द्वारा पूरा नहीं होने दिया गया है।

जब मान्यवर काशीराम ने पिछड़ों के आरक्षण के लिए आंदोलन चलाया तब कहीं जाकर मजबूरन मण्डल कमीशन को आधे-अधूरे मन से लागू किया गया, जिसका आरएसएस व बीजेपी से पुरजोर विरोध किया था और आज भी यही इसका विरोध करते आ रहे है। बहुजन समाज को आधे-अधूरे मिले आरक्षण के लोकतान्त्रिक व संवैधानिक अधिकार को अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक तरीके से ब्राह्मणों द्वारा अपहृत सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर का ब्राह्मणी षड्यंत्र लगाकर पिछड़ों को, जिनकी आबादी तक़रीबन ५४ फीसदी है, को सिर्फ २७% मिले आरक्षण को भी प्रभावहीन कर दिया है। समय-समय पर आरक्षण विरोधी ब्राह्मणी निर्णयों के चलते और इसके आलावा विश्वविद्यालयों व अन्य जगहों पर डिपार्मेंट के हिसाब से आरक्षण कहकर आरक्षण के मायने को ही बदल दिया गया है। समग्र रूप से देखें तो सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर ब्राह्मणों व सवर्णों का ही कब्ज़ा बना हुआ है। ऐसे में देश की गरीबी का यदि कोई एक मात्र जिम्मेदार है तो वह है ब्राह्मण-सवर्ण।

जहाँ तक रही बात आरक्षण के मायने की तो आरक्षण लोकतंत्र को मजबूत कर राष्ट्र निर्माण करने का सर्वोत्तम संवैधानिक व लोकतान्त्रिक मार्ग है। यदि हम भारत के आरक्षण का निष्पक्ष रूप से लेखा-जोखा करें तो हम पाते है कि आरक्षण ने देश में लोकतंत्र को मज़बूत किया है। आरक्षण ही वह वजह है जिसके कारण आज सत्ता व संसाधन के क्षेत्र में कहने भर का ही सही बहुजन लोग मिल जाते है। ऐसे में यदि संविधान प्रदत्त आरक्षण के लोकतान्त्रिक अधिकार को आरक्षण की मंशा के अनुरूप (जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदार) लागू कर दिया जाय तो भारत का लोकतंत्र और मजूत होगा। लोकतंत्र की मजबूती, लोगों के अधिकारों की रक्षा आदि सब भारत के राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान करेगा।

ऐसे में यदि निष्पक्ष रूप से विश्लेषण किया जाय तो स्पष्ट तौर पर हम पाते है कि आरक्षण भारत जैसे विषमतावादी देश में लोकतंत्र को मजबूत कर राष्ट्र निर्माण को तीव्र गति देने वाला सबसे अचूक हथियार है। ऐसे में हर वो शख्स जो बहुजन समाज के मूलभूत संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकार आरक्षण (देश की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर हर समाज के लोगों की समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी) का विरोधी भारत के राष्ट्र निर्माण का विरोधी है, देशद्रोही है, अलोकतांत्रिक सामंती मानसिकता से बीमार विषमतावदी जातिवादी नारीविरोधी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू मानवीय वैचारिकता से पूर्णतः विकलांग मनुरोगी ही है।

जहाँ तक रही बात आरक्षण की तो ये आरक्षण सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, यूरोप समेत दुनिया के तमाम देशों में मौजूद है। ध्यान रहें, आरक्षण गरीबी के आधार पर कहीं भी नहीं है, और ना ही इसका मकसद गरीबी दूर करना है। आरक्षण का सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद है कि देश की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर हर समाज के लोगों की समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी। सनद रहें, भारत समेत दुनिया के तमाम देशों ने गरीबी दूर करने के लिए रोजगार के समुचित प्रबंध किये है, यदि भारत ये काम नहीं कर पाया है तो इसके एक मात्र जिम्मेदार देश की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर काबिज़ एन्टीनाधारी ब्राह्मण व उनके आदर्श गुलाम सवर्ण ही है।

फ़िलहाल हाल के ही दशक में ब्राह्मणी कांग्रेस ने दिखावें के लिए नरेगा रुपी गरीबी उन्मूलन प्रोग्राम चलाया है। ऐसे में यदि सवर्णों में गरीबी है तो सवर्णों को भी नरेगा में कमाना चाहिए जैसे दुसरे लोग कमाते है। फ़िलहाल, भारत में ब्राह्मणी मनुरोगियों ने ही गरीबी दूर करने के लिए "नरेगा" जैसे कार्यक्रम चलाये हैं तो ब्राह्मणी रोगियों को चाहिए कि वे अपने किये का भरपूर लाभ उठायें। 

कुछ मनुरोगियों का कहना है कि आरक्षण से देश पिछड़ रहा है लेकिन अब सवाल ये भी है प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में आरक्षण तो अमेरिका, कनाडा, चीन जापान, दक्षिण अफ्रीका, इजराइल, ताइवान, फ़िनलैंड, फ़्रांस, जर्मनी, नार्वे, रोमानिया, रूस, ब्रिटेन जैसे देशों में भी है तो क्या ये देश पिछड़े है? हमारा स्पष्ट मत है कि भारत बुद्धिज़्म राजाओं के शासन को छोड़कर भारत जब भी पिछड़ा था, पिछड़ा है या फिर आगे ऐसा ही रहता है तो इसका एक मात्र कारण चंद मुट्ठीभर नकारा निकम्मे भिखारी ब्राह्मणों-सवर्णों व अन्य ब्राह्मणी रोगियों द्वारा देश के मेहनतकश ८५% आबादी बहुजनों को सत्ता, संसाधन और अवसर से दूर रखना मात्र ही है। भारत  बर्बादी का एक मात्र कारण ब्राह्मणवाद है। ब्राह्मणवाद के इस भयानक मानसिक रोग ने भारत की अधिकांश जनसख्या को ब्राह्मणी रोग का मानसिक रोगी बना दिया है। जब तक ये ब्राह्मणी रोगी मानसिक रूप से पूर्णतयः स्वस्थ नहीं हो जाते है तब तक भारत का कल्याण नहीं होगा। 

आरक्षण के सन्दर्भ में अब यही कहना चाहता हूँ कि आरक्षण, सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर हर समाज को समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने का संवैधानिक व लोकतान्त्रिक प्रावधान है, इसे गरीबी उन्मूलन प्रोग्राम समझने की भूल मत करना। कृपया संविधान व संविधान सभा के डिबेट, पूना पैक्ट, साइमन कमीशन तथा गोलमेज सम्मलेन को पढ़कर ही आरक्षण पर टिपण्णी कीजिए, अन्यथा आप वैचारिक रूप से विकलांग ही कहे जायेगें। विषमतावादी जातिवादी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू व मानवीय वैचारिकता रूप से पूर्णतः विकलांग रोगियों को ही मनुरोगी कहते है।

फ़िलहाल मनुरोगियों के सन्दर्भ में हम इतना ही कहना चाहते है कि मनोरोगी वह होता है जो अपने रोग को पहचानता है और इलाज करवाना चाहता है लेकिन मनुरोगी वह होता है जो अपनी मानसिक गुलामी को ख़ुशी पूर्वक जीता है आनंदित रहता है, ऐसे रोगी को आदर्श गुलाम भी कहते है। मनोरोगियों के तो तमाम डाक्टर है लेकिन मनुरोगियों के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही डाक्टर है - बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति बाबा साहेब डॉ आंबेडकर।
जय भीम, जय भारत।
रजनीकान्त इन्द्रा 
इतिहास छात्र, इग्नू- नई दिल्ली 

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