Sunday, July 22, 2018

बुद्ध-अम्बेडकर का व्यापार


"भारत में बुद्धिज्म के पतन का एक मुख्य कारण भंतों व बौद्धाचार्यों का परोहितपन भी है जिसे बहुजन समाज सदियों से नजरअंदाज करता आया है! जब तक भंते पुरोहित बनकर नामकरण, विवाह जैसे सभी ब्रहम्णी संस्कार करवाते रहेगें तब तक ब्रहम्निज्म मजबूत होता रहेगा!

सामान्यत: हर ब्राह्मणी संस्कार को जीवन की जरूरत बताते हैं! यह भंते व बौद्धाचार्य ही हैं जो ब्रहम्णी संस्कारों को अंजाम देने के लिए ब्रहम्णों की तरह घण्टों संस्कृत के बजाय पालि भाषा में ब्रम्हा-विष्णु-महेश के बजाय बुद्ध व बाबा साहब की प्रतिमा रखकर बुद्ध व बाबा साहब को सरेआम बेचते हैं!


कभी गौर कीजिए तो आप पायेगें कि भंते-बौद्धाचार्य व उनके भक्त वही करते हैं जो ब्रहम्ण व उसके मानसिक गुलाम यजमान! आज भारत में भंते व बौद्धाचार्य बुद्ध को नकारकर बुद्ध के नाम पर बुद्ध-धम्म के बजाय ब्राह्मणों की तरह अपने धम्म को ही अपना धंधा बनाकर बहुजनों को बुद्ध के नाम पर गुमराह करते आ रहे हैं! आए दिन भंते व बौद्ध आचार्य वही करते नजर आ रहे हैं जो ब्राह्मण करता रहा है! ऐसे में बुद्ध धर्म का पतन होना कोई अचरज की बात नहीं है!

हमारा स्पष्ट मानना है कि बुद्ध-अम्बेडकरी विचारधारा मानव के जीवन को आसान बनाने के लिए है, ना कि उनके जीवन को अंधविश्वास, भक्ति, ढोंग-पाखण्ड, अमानवीय, अवैग्यानिक रीति-रीवाजों व परम्पराओं में उलझाने के लिए!

आप गौर कीजिए आप पायेगें कि जिस तरह संस्कृत के श्लोक का अर्थ बताये बगैर ब्रहम्ण सारे संस्कार करवाता आ रहा है, ठीक उसी तरह से ये भंते व बौद्धाचार्य लोग सभी ब्रहम्णी संस्कारों को पालि भाषा में पढकर करवाते हैं! मतलब कि इन भंतों व बौद्धाचार्य लोगों ने चोला जरूर बदल लिया है लेकिन ये सब ब्रहम्णी रोग से ग्रसित रोगी मात्र ही है जो बहुजनों के लिए ब्रहम्णी रोग का वायरस बनकर बहुजनों को भी ब्रहम्णी रोग से संक्रमित कर रहे हैं, या यूं कहें कि संक्रमित कर चुके हैं!

हमारे विचार से, बुद्ध-अम्बेडकर एक दार्शनिक हैं, वैग्यानिक हैं! उनको पढने के लिए, जानने के लिए, उनके दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए किसी भी अंधविश्वास, पूजा-पाठ, अवैग्यानिक कर्मकाण्डों व रीति-रिवाजों की कोई जरूरत नहीं है!

जरा सोचिये, क्या भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित आदि को पढ़ने के लिए किसी अंधविश्वास, ढोंग-पाखंड, कर्मकांड, रीत रिवाज, धूप अगरबत्ती पूजा पाठ आदि की जरूरत होती है? यदि नहीं, तो फिर बुद्ध अंबेडकर के विज्ञान व दर्शन को पढ़ने, जानने व समझने के लिए और बुद्धिज्म के ज्ञान को मानव समाज तक पहुंचाने के लिए भंते-बौद्धाचार्य व समाज के लोग ढोंग-पाखंड, अंधविश्वास पर आधारित रीति-रिवाज, पूजा पाठ, धूप-अगरबत्ती आदि का सहारा क्यों लेते हैं?

हमारा स्पष्ट मत है कि बुद्ध और अंबेडकर विज्ञान हैं, दर्शन है! इनको विज्ञान व दर्शन की तरह ही जीवन पढ़ा जाना चाहिए, समझा जाना चाहिए और अपने जीवन में आत्मसात किया चाहिए जैसे कि हम भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित आदि के सिद्धांतों को पढ़ते हैं, उनका विश्लेषण करते हैं और उनको अपने जीवन में आत्मसात करते हैं!

फिलहाल बात-चीत के दौरान भंते ने बताया कि बुद्ध लोगों को देखकर उनका भविष्य बता देते थे! ब्रहम्ण भी ज्योतिष के नाम पर यही करता रहता है! भंते के मुताबिक बुद्ध चमत्कार करते थे लेकिन हम यही जानते हैं और मानते हैं कि बुद्ध कोई ब्रहम्णी चमत्कारी नहीं बल्कि एक आम मानव की तरह ही थे जिन्होंने ने अपनी तर्कशक्ति का बेहतर उपयोग किया और हमारे जीवन को सरल सुगम व सुखमय बनाने का रास्ता दिखाया! इसलिए गौतम बुद्ध और बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर को एक ऐसे मानव के रुप में ही याद किया जाना चाहिए जिन्होंने मानवता की बेहतरी के लिए अपने बुद्धि का बेहतरीन इस्तेमाल किया!

सामान्यत: ब्रहम्णी रोग से संक्रमित सभी भंते व बौद्धाचार्य बुद्ध का वर्णन व चमत्कारी महिमागान उसी तरह करते हैं जैसे कि ब्रहम्ण! हमारा स्पष्ट मानना है कि यदि आप बुद्ध की राह पर चलना चाहते हैं तो कृपया बुद्ध-अम्बेडकर की पूजा ना कीजिए, धूप-अगरबत्त, पूजा-पाठ, ब्रहम्णी कर्मकाण्ड व सभी अवैज्ञानिक रीति रिवाज से दूर रहिये! बुद्ध-अम्बेडकर को उसी तरह से देखिए जैसे एक मार्गदर्शक, दार्शनिक व वैग्यानिक को देखते हैं!

याद रहे, बुद्ध-अम्बेडकर को खतरा पुरोहित बने भंतों व बौद्धाचार्यों, पूजा-पाठ, धूप-अगरबत्ती जैसे अवैग्यानिक कर्मकांडों, रीति-रिवाजों व परम्पराओं आदि से है! इसलिए इन सबका परित्याग आवाश्यक है! इसी में सकल बहुजन समाज तथा बुद्धिज्म का सुन्दर सम्यक भविष्य निहित है!"
 #एक दोस्त की शगाई के दौरान प्राप्त अनुभव, जुलाई 22, 2017 (इलाहाबाद)
नमो बुद्धाय...
जय भीम,जय भारत...
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली


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