Wednesday, January 31, 2018

कासगंज - देशभक्ति या भगवा आतंकवाद

हमारे प्यारे भारत देशवासियों,
अभी गणतंत्र दिवस (जनवरी २६, २०१८) के अवसर पर जिस तरह से भगवा आतंकवादियों ने कासगंज में ताण्डव किया उससे निःसंदेह तौर पर कहा जा सकता है कि उन्हें शासन की तरफ से पूरा सपोर्ट है, ठीक उसी तरह से जैसे कि गोधरा के दरमियान गुजरात में था। लेकिन ख़ुशी की बात ये है सीसीटीवी की मदद से असली आतंकवादियों की पहचान हो गयी और देश पर आने वाली एक बहुत बड़ी विपदा टल गयी, और साथ ही साथ बगैर किसी पुलिस या सैन्य आपॅरेशन के ही आतंकियों के हाथों ही एक आतंकी ढेर हो गया लेकिन यहाँ दुःख की बात यह है कि आतंकी की मौत पर लोग सरकार से नौकरी व मुआबजा की धनराशि माँग रहे है। आज तक भारत में सीमा पर शहीद होने वाले फौजियों व देश के नेताओं आदि को ही तिरंगे में लपेटा जाता था लेकिन यहाँ खुद एक दहशतगर्द को तिरंगे में लपेटकर उसके शव का प्रदर्शन किया गया। ये देश की लिए एक गंभीर व सोचनीय प्रश्न है। ये देश को समझना होगा कि देश किस तरफ मुड़ रहा है?
हालांकि ये आतंकी वारदात पूरी तरह से पूर्व नियोजित थी। इसका मक़सद देश का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना था। ये सब लोकसभा चुनाव-२०१९ के मद्देनज़र किया था। फ़िलहाल हम यही कहना चाहते है कि देश की जनता को भक्ति का चश्मा उतार कर देखना होगा कि कब तक आप धर्म की मैली चादर ओढ़कर अपने ही लोगों का खून बहता रहेगें? कब तक आप देशभक्ति के नाम पर देश को टुकड़ों में बांटते रहेगें? कब तक आप ब्राह्मणी आतंकवाद के गुलाम बने रहेगें?
फ़िलहाल, मुख्य मुद्दे पर आते है। कासगंज की घटना के सन्दर्भ में मुस्लिम समाज ने देश के प्रति वफादारी साबित करने के लिए तमाम प्रदर्शन किये। इसी तरह के एक प्रदर्शन के तहत अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने जुलूस निकला जिसमे "पाकिस्तान मुर्दाबाद" के नारे लगाये गए।
फ़िलहाल हमारे विचार से भक्ति जाहिलियत का प्रतीक है जो सवालों पर रोक लगाती, सोच को कुन्द करती है, उन्नति, रचनात्मकता, सृजनात्मकता, तार्किकता व वैज्ञानिकता पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाती है। संक्षेप में कहें तो भक्ति शब्द का मतलब मानसिक रूप से विकलांग होना है। इसलिए हम भक्ति शब्द के इस्तेमाल को ही अवैज्ञानिक होने का प्रथम लक्षण मानते है। इसके बावजूद यदि समाज में देश के प्रति हमारे कर्तव्य व वफादारी के सन्दर्भ में देशभक्ति शब्द का इस्तेमाल किया जाता है तो हमारा मानना है कि इस देश के किसी भी नागरिक को किसी के सामने अपनी देशभक्ति साबित करने की कोई जरूरत नहीं है। इस देश पर इस देश के हर नागरिक का, यहाँ तक कि बेजुबान पशु-पक्षियों का भी, बराबर का हक़ है। जहाँ तक रही बात देशभक्ति ( देश व मानवता के प्रति वफादारी ) की तो हमारी निजी राय है "बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ती बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर द्वारा रचित बुद्धमय भारतीय संविधान के अनुरूप आचरण ही देश व मानवता के प्रति सच्ची वफादारी है, सच्ची देशभक्ति है।"
इसलिए हमारा मानना है कि किसी भी एक नागरिक या संगठन को अपने ही देश के दूसरे नागरिक या संगठन से देशभक्ति का प्रमाणपत्र माँगने या देने का कोई अधिकार नहीं है। देशभक्ति का मतलब किसी भी देश के "मुर्दाबाद" का नारा लगाना नहीं है। भारत के परिप्रेक्ष्य में तो बिलकुल नहीं। आपका ऐसा कोई भी कृत्य जो बुद्ध-अम्बेडकरी भारत संविधान की विदेश-नीति के सख्त खिलाफ है, आपको सिर्फ और और सच्चा देशद्रोही ही साबित करेगा। आप भारत के बुद्ध-अम्बेडकरी चरित्र को नकारकर देशभक्त तो छोड़ों, आप इन्सान ही कहलाने के भी हक़दार नहीं रह जाओगें। महानतम बुद्ध-अम्बेडकरी भारत संविधान के खिलाफ काम करके आप कभी भी भारत के सच्चे नागरिक नहीं हो सकते हो,सिवाय सच्चे देशद्रोही व सच्चे आतंकवादी के।
जहाँ तक रही बात मुस्लिम समाज द्वारा जुलूस निकलना तो हम यही कहना चाहते है कि आप देश-समाज में हो रहे हर असंवैधानिक व अमानवीय कृत्य के खिलाफ प्रदर्शन करों, जुलूस निकालों। ये आपका ही नहीं बल्कि हम सब का देश व मानवता के प्रति प्रथम कर्तव्य है। लेकिन जैसा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने जुलूस निकला और "पाकिस्तान मुर्दाबाद" के नारे लगाये, उसके सन्दर्भ में हम भारत के मुस्लिम समाज से यही कहना चाहते है कि भारत के प्रति आपकी वफादारी पर ना तो किसी भी सच्चे भारतीय को कोई शक है, और ना ही आपको किसी के भी सामने अपनी देशभक्ति साबित करने की कोई जरूरत है, वो भी ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों के सामने तो बिलकुल नहीं, लेकिन फिर भी यदि ऐसा करना ही है तो अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए "पाकिस्तान मुर्दाबाद" के नारे मत लगाओं, बल्कि ब्राह्मणी आतंकवादियों के दोगले चरित्र को नंगा कर दो, आपकी देशभक्ति खुद-ब-खुद साबित हो जाएगी।
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू

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