Monday, August 15, 2016

आज़ादी

साथियों,
आज लालकिले के प्राचीर से, हमारे प्रधानमंत्री ने आज़ादी की शुभकामना दी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी को स्पष्ट नहीं किया। यहाँ हम प्रधानमंत्री से आज़ादी का मतलब इसलिए पूछ रहे है क्योकि मोदी के लिए आज़ादी का मतलब शायद वो नहीं है जो हम जानते है। यदि नरेंद्र मोदी के पृष्ठभूमि पर नजर डाले तो हम पाते है कि मोदी के लिए आज़ादी का मतलब आरएसएस द्वारा तय की गयी आज़ादी है। आरएसएस द्वारा परिभाषित आज़ादी का मतलब- एक राष्ट्र, एक भाषा, एक संस्कृति और एक प्रतीक वाले हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करने की आज़ादी है। इस आज़ादी का सीधा सम्बन्ध मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी व्यवस्था को बढ़ावा देने से है। इसलिए नरेंद्र मोदी द्वारा आज़ादी की परिभाषा को स्पष्ट करने की नितान्त आवश्यकता थी लेकिन माननीय प्रधानमंत्री ने आज़ादी की बधाई तो दिया लेकिन आज़ादी को स्पष्ट नहीं किया। इसलिए लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा बोले गए आज़ादी शब्द मतलब पूरी तरह से संदिग्ध है। 
साथियों, 
हम सब आज़ादी का पर्व बड़े धूम-धाम से मानते आ रहे है, लेकिन क्या हम सब के लिए आज़ादी का मतलब एक ही है? यह एक सोचने का विषय है। भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में, आज़ादी का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग हो सकता है। हम तो यहाँ तक कहेगें कि भारत में आज़ादी का मतलब हर फिरके के लिए अगल-अलग ही है। भारत में आज़ादी का मतलब भारत की विविधता के अनुसार अलग-अलग बिल्कुल स्पष्ट दिखाई पड़ती है। सवर्णों के लिए आज़ादी का मतलब है दलितों पर अपना दब-दबबा बनाये रखने की आज़ादी; ब्राह्मणों के लिए आज़ादी का मतलब है मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म को बढ़ावा देने की आज़ादी; पूजीपतियों के लिए आज़ादी का मतलब है समाज के दलित-आदिवासी लोगों को उनकी जंगल और जमीन से वंचित कर अपनी पूँजी का विस्तार करना इत्यादि। लेकिन हमारे लिए, हमारे देश के वंचित तबको के लिए और हमारे देश के संविधान के लिए आज़ादी का मतलब है- स्वाभिमान से जीने का हक, आत्मसम्मान से रहने का हक़, संविधान में निहित अधिकारों का हक़।
साथियों,
आज़ादी के इतने दशक बीत जाने के बाद भी हमारा समाज (दलित) अपने स्वाभिमान, सम्मान और हक़ लिए आज भी वही खड़ा नज़र आता है जहाँ वह सदियों पहले था। ऐसी क्या वजह है की देश के चंद मुट्ठी भर लोगों ने अपने ही देश की एक बड़ी आबादी पर आज भी वही अमानवीय अत्याचार कर रहे है जो सदियों पहले था। ये शोषणवादी सामंती वर्ग, क्यों इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए लड़ रहा है। 
साथियों,
मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी सामन्ती विचारधारा के लोगों के लिए आज़ादी का मतलब है- शोषणवादी व्यवस्था को किसी भी कीमत पर बनाये रखना; उनके लिए अधिकार का मतलब है शोषण करने का अधिकार; उनके लिए आज़ादी का मतलब है शोषण करने की आज़ादी, मनुवादी आतंकवाद को बढ़ावा देने की आज़ादी, छुआछूत और जातिपात को चरम पर पहुँचाने की आज़ादी, गरीब दलित आदिवासी महिलाओं की अस्मिता के साथ खेलने की आज़ादी। 
साथियों, 
भारत के मनुवादियों ने हर शब्द के मायने को बदलने का भरपूर प्रयास किया है और उनका ये प्रयास आज भी जारी है। यदि आप नजर डाले तो आप पाएंगे कि आज की मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी बीजेपी सरकार ने इतिहास का मायने बदलने के लिए सबसे पहले इतिहास पर प्रहार किया, इतिहास को मनुवाद की जमीं से खोदकर निकालने वाले विश्वविद्यालयों पर आघात, संविधान में निहित समानता शब्द को समरसता बताने की प्रयास, दलितों पर अत्याचार की ब्राह्मणी परम्परा को बढ़ावा देने का प्रयास, दलितों की आवाज दबाने का प्रयास, दलित महापुरुषों को इतिहास के पन्नो से हटाने का प्रयास। 
साथियों,
हमारे विचार से, आज़ादी का असली मतलब वही जान सकता है जिसको मूलभूत मानवीय अधिकारों से वंचित रखकर उसके साथ जानवरों से भी बद्तर व्यवहार किया गया हो। 
साथियों,
हमारे विचार से आज़ादी का मतलब होता है- देश के हर शहरी का अधिकारों के अधिकार के साथ जीने का अधिकार; हर इंसान को बिना किसी भी भेद-भाव के स्वाभिमान और आत्मसम्मान के साथ जीने का हक़, लोकतंत्र के हर क्षेत्र के हर स्तर पर हमारे समुचित प्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी का अधिकार और समानता का हक़। हमारा अधिकारों के जीने का अधिकार ही हमारी आज़ादी का आइना है। हमारे अधिकार ही हमारी आज़ादी का मापदंड है। 
साथियों,
हमारी आज़ादी सिर्फ तब तक ही सुरक्षित है जब तक कि हमारे अधिकार। यदि हमारे अधिकारों पर अतिक्रमण होता है तो हमारी आज़ादी पर अतिक्रमण होता है। हमारे निगाह में आज़ादी और अधिकार एक दूसरे के सम्पूरक है। यदि हम भारत में दलित-आदिवासी तबको की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति पर गौर करे तो हमें सिर्फ उनकी ही नहीं बल्कि भारत की भी आज़ादी और अधिकारपूर्ण जीवन संदिग्ध नज़र आता है क्योकि देश की एक बड़ी आबादी के सम्मनपूर्ण जीवन, स्वाभिमानमय अस्मिता, देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में इन तबकों की समुचित प्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी को नज़रअंदाज कर भारत कभी स्वतन्त्र नहीं हो सकता है। भारत की आज़ादी देश के दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक आज़ादी में ही निहित है। 
जय भीम, जय भारत! 
रजनीकान्त इन्द्रा 
इतिहास छात्र, इग्नू 
अगस्त १५, २०१६ 

No comments:

Post a Comment