Sunday, September 25, 2016

डॉ आंबेडकर का भगवाकरण - एक ब्राह्मणी चाल

साथियों,
जब से बीजेपी सत्ता में आयी है तब से भारत के सबसे बड़े प्रान्त उत्तर प्रदेश पर इसकी नज़र टिकी हुयी है। आज बीजेपी उस कौम में सेंध लगाने का असफल प्रयास कर रही है जिस कौम की बस्तियां यही वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू लोग गांव की दक्षिण दिशा में बसाते थे ताकि उस तरफ से गुजरने वाली हवा इन पाखण्डी ब्राह्मणी लोगो को अपवित्र ना कर दे। भारत की ही धरती पर हिन्दू छुआछूतवादी व्यवस्था में पैदा हुए बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने अपनी कौम को एक ऐसी राह दिखाई जिस पर चलकर मान्यवर काशीराम ने दलितों की कौम को एक ऐसा सियासी ब्राण्ड बना दिया कि आज वैदिक ब्राह्मणी लोग भी इस कौम के चरणों में अपने जीवन का वज़ूद ढूंढ रहे है। 

साथियों,
आज लोकतान्त्रिक भारत में ब्राह्मणी राजनितिक दल बाबा साहेब की जयंती मानते है, हर दिन उनके नाम की माला जपकर अपने आपको को अम्बेडकरवादी बताने का असफल प्रयास कर रहे है। इन्ही हिंदूवादी संगठनों ने ही बाबा साहेब को देश द्रोही कहा था। कांग्रेस ने बाबा साहेब के खिलाफ षड्यंत्र किया था जिसके तहत ही बाबा साहेब को कई बार चुनाव में हारका सामना करना पड़ा। भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ पर संविधान के निर्माता और भारत के प्रथम कानून मंत्री को दो-दो बार षड्यंत्र करके चुनाव हराया जाता है। इससे भी बड़ी हास्यपद बात ये है जो लोग बाबा साहेब को देश का दुश्मन कहते थे आज वही लोग बाबा साहेब के सबसे बड़े अनुयायी होने का पाखंड कर रहे है। बाबा साहेब ने ठीक ही कहा था जब इन ब्राह्मणों और सवर्णों की गर्दन पर लोकतंत्र की तलवार पड़ेगी तब ये ब्राह्मणी लोग वो सब करेगें जो ये नहीं चाहते है।

साथियों,
बाबा साहेब किसी एक राष्ट्र की ही नहीं बल्कि सकल मानव समाज की धरोहर है। इनका जन्म दिन सिर्फ ढोंगी हिन्दू ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की मानवता मना रही है। अच्छी बात है, कि कम से कम इतने सालों के बाद दुनिया ने बाबा साहेब के कार्यो और संघर्षों को पहचाना, उनकी कुर्बानी और योगदान को माना। बाबा साहेब को देशद्रोही कहकर उनका शोषण करने वाले ब्राह्मणी लोग यदि इन सब के बावजूद बाबा साहेब की जयंती मानते है तो इसमें ख़ुशी की बात है लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि इतने सालों तक जहर उगलने के बाद क्या हकीकत में ये ब्राह्मणी हिन्दू बाबा साहेब को अपनाना चाहते है, क्या उनकी विचार धारा को अपनाना चाहते है या सिर्फ उनकी फोटो को अपनाकर, अपने पोस्टरों पर लगाकर दलित वोट में सेंध लगाना चाहते है। ये विचार-विमर्श का विषय है।

साथियों,
बीजेपी सरकार की नीतियों, मंत्रिमंडल के संगठन, इस सरकार में दलितों पर बढ़ते अत्याचार के तहत ये बात बिलकुल साफ हो जाती है कि इन मनुवादी सनातनी ब्राह्मणों का बाबा साहेब डॉ आंबेडकर और उनकी विचारधारा से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है। ये लोग बाबा साहेब का नाम लेकर दलितों के वोट को हथियाना चाहते है। इसलिए इनके द्वारा किये जा रहे आयोजनों से सावधान रहने की जरूरत है। मुझें इस बात का दुःख है कि बाबा साहेब के अथक परिश्रम और कुर्बानी के बावजूद दलित और अन्य आंबेडकर अनुयायी ब्राह्मणवाद के चंगुल से अभी तक आज़ाद नहीं हो पाए है। इसका फायदा उठाकर इन ब्राह्मणी लोगों ने बाबा साहेब का ही भगवाकरण करने का प्रयत्न कर रहे है। बाबा साहेब का भगवाकरण मतलब कि गुलामी का नया आगाज।

साथियों,
यदि हम इतिहास पर नजर डाले तो हम पाते है कि बुद्ध धर्म का जन्म सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म और इनके शोषणवादी विचारधारा और कर्मकाण्ड के खिलाफ हुआ था। बुद्ध ने हिन्दू धर्म की हर प्रथा का घोर विरोध  किया था। बुद्ध में यज्ञों जैसे कि अश्वमेघ और अन्य का बहिष्कार किया था। बुद्ध द्वारा इनका विरोध करने का मतलब है कि मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म में इंसानियत का शोषण, मानवता की हत्या, नैतिकता का पतन, स्वतंत्रता की गुलामी, समता का हनन और भाईचारे की हत्या को एक त्यौहार और परम्परा के रूप में स्थापित कर मानवता का शोषण करने की विचारधारा का राज होना। यही इंसानियत का शोषण, मानवता की हत्या, नैतिकता का पतन, स्वतंत्रता की गुलामी, समता का हनन, भाईचारे की हत्या, जातिवाद और छुआछूत का राज ही हिंदुओं का रामराज्य है। 

साथियों,
महात्मा बुद्ध ने अपने वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण विचारों, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के सिद्धान्तों को समाज में स्थापित कर एक नए सामाजिक क्रांति को जन्म दिया जिसके परिणाम स्वरुप भारत की सरजमीं से ब्राह्मणी धर्म का लगभग अंत हो गया, पूरा भारत बुद्धमय हो गया। उसके बाद मानवतावादी बुद्ध धर्म भारत से आगे निकलकर पूरी दुनिया को मानवता का पाठ पढ़ाया, संसार में तर्कवाद और वैज्ञानिक सोच-विचार व ज्ञान की ज्योति जलायी। इसके साथ ही बुद्ध धर्म दुनिया के एक बड़े भू-भाग पर स्थापित हो गया। लेकिन अशोक महान के बाद भारत में बुद्ध धर्म को समाप्त करने के लिए ब्राह्मणों ने षड्यंत्र किया। अशोक महान के वंश के राजा ब्रहद्रथ की छल पूर्वक हत्या की गयी। इस हत्या के साथ ही भारत में अत्याचार, अनाचार और व्यभिचार की सत्ता फिर से स्थापित हो गयी, जाति व्यवस्था अत्याधिक मजबूत और कठोर कर दी गयी, छुआछूत का बोलबाला हो गया, स्त्रियों की गुलामी का नया आगाज शुरू हो गया। जबरन श्रमण सभ्यता के लोगों को हिन्दू बनाया गया, बौद्ध विहारों, नैतिकता, मानवता और विज्ञान के शिक्षा केंद्रों को ध्वस्त कर दिया गया, बुद्ध धर्म के संस्थानों के स्वरुप को बदलकर मंदिर बना दिया गया। आज के अयोध्या, मथुरा जैसे अन्य मंदिरों के स्थान पर पहले बौद्ध विहार हुआ करते थे जिसकी पुष्ठि अयोध्या विवाद के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में बनाई गयी कमिटी पहले ही कर चुकी है।

साथियों,

इतिहास गवाह है कि हिन्दू ब्राह्मणी धर्म में पहले मूर्ती नहीं हुआ करती थी लेकिन प्रेरणा स्रोत के रूप में स्थापित बुद्ध के मूर्ती की सामाजिक स्वीकृति व बुद्ध के विचारों के अद्भुद प्रचार-प्रसार से ही प्रेरित होकर हिन्दू ब्राह्मणी लोगों को अपनी शोषणवादी हिन्दू ब्राह्मणी धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, गणेश व  अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को गढ़ना शुरू किया। इसके साथ ही जहाँ बुद्ध धर्म में मूर्ती  मानवतावादी प्रेरणा स्रोत हुआ करती थी वही सनातनी हिन्दू धर्म में मूर्ती शोषण, अन्धविश्वास, पाखण्ड और धर्म के व्यापर का जरिया बन गयी। सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी लोगो ने अपने धर्म के प्रचार के लिए अतार्किक और अवैज्ञानिक मनगड़ंत पुराणों की रचना की और दलितों के साम्राज्य को दैत्य, राक्षस जैसे नाम देकर इनके शक्तिशाली पूर्बजों की हत्या को त्यौहार का रूप दे दिया। दुर्गा काली चामुंडी जैसी देवियों की रचना की इसी तरह के षडयंत्रो का परिणाम है। 

साथियों,

आज सवाल यह पैदा होता है कि यदि हिन्दू समाज में महिला दुर्गा काली जैसे शक्तिशाली थी तो राम जैसे लोगों में इतनी हिम्मत कहाँ से आ गयी कि अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकल दिया। यदि हिन्दू समाज की महिला इतनी ताकतवर थी तो उसने राम का विरोध क्यों नहीं किया? दुर्गा की मूर्ती लिए वेश्या के कोठे की मिटटी की जरूरत क्यों पड़ती है? दुर्गा की मूर्ती के लिए वेश्या के कोठे की मिट्ठी अनिवार्य होना हिंदुओं के देवियों के असली चेहरे को सामने लाता है। गणेश का असली पिता कौन है- ब्रह्मा या शंकर? इन सब सवालों का कोई सटीक जबाब नहीं है। ये सब स्थापित करता है कि हिंदुओं के सारे देवी-देवता मनगढंत है। समय की मांग के अनुसार ब्राह्मणों ने अपने धर्म व्यापार को आगे बढ़ाने और दलितों, आदिवासियों एवम पिछड़ों को गुलाम बनाये रखने ले लिए शोषणवादी व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए ही इन देवी देवताओं की रचना की गयी। यही कारण है कि हिंदुओं के अलग-अलग शास्त्रों के अनुसार इनके देवी-देवताओं की अलग-अलग व्याख्या है।

साथियों,
आज हमारा दलित, आदिवासी, पिछड़ा और महिला समाज ब्राह्मणों के इसी ब्राह्मणी षड्यंत्र का शिकार बना हुआ है। ब्राह्मणवाद के इसी रोग के चलते आज बुद्ध-आंबेडकर अनुयायी भी महात्मा बुद्ध और डॉ आंबेडकर की उसी तरह से पूजा-पाठ और अन्य कर्मकांड करते है जैसे कि ब्राह्मणी लोग करते है। कहने का मतलब ये है कि महात्मा बुद्ध ने जिन कर्मकांडों और प्रथाओं का विरोध किया, जिन परम्पराओं के खिलाफ सामाजिक जंग छेड़ कर मानवता स्थापित की, आज बुद्ध और उनके विचारों को लोग उसी अत्याचारी परंपरा के हिसाब से जन-मानस में स्थापित कर रहे है, पूजा-पाठ हो रहा है, भजन कीर्तन और आरती किया जा रहा है। ये सब कुछ और नही बल्कि ब्राह्मणी व्यवस्था की गुलामी और महात्मा बुद्ध, बौद्ध धर्म और श्रमण संस्कृति का ब्राह्मणीकरण है। दुनिया जानती है कि महात्मा बुद्ध मनुवादी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म के घोर विरोधी और मानवता के प्रवर्तक थे लेकिन इन ब्राह्मणी लोगों ने बुद्ध को कपटी विष्णु का अवतार बताकर महात्मा बुद्ध का ब्रह्माणीकरण करने की कोशिस की है। आज स्कूलों में बच्चों को यही पढ़ाया जा रहा है कि महात्मा बुद्ध कपटी विष्णु के अवतार थे। आज बुद्ध और अम्बेडकरी लोग ये तक नहीं समझ पा रहे है कि जिन महात्मा बुद्ध ने विष्णु और उनके अन्य देवी-देवताओं, वेदों, धर्मशास्त्रों, उनके सभी परम्पराओं, प्रथाओं और रीति-रिवाजों का विरोध किया था वे हिंदुओं के विष्णु का अवतार कैसे हो सकते है? 

साथियों,
जब से सनातनी ब्राह्मणी बीजेपी सत्ता में आयी है आंबेडकर को लेकर एक खींचातानी मची हुई है। आज कांग्रेस भी अम्बेडकरवादी होने का ढोंग कर रही है। कम्युनिस्ट पार्टियां भी आंबेडकर को अपना कह रही है, समाजवादी राजनितिक दल भी इस होड़ में पीछे नहीं है। इन सब का एक ही मकसद है आंबेडकर के नाम पर वोट बटोरना। बीजेपी ने भारत में अत्याचारी सनातनी हिन्दू धर्म को स्थापित करने और हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने की मुहीम ही छेड़ रखी है। साथ ही साथ हिन्दू धर्म का परित्याग करने वाले और हिन्दू धर्म को राजनितिक षड्यंत्र बताने वाले बाबा साहेब को अपनाकर उनके अनुयायियों का वोट बटोरने की नाकाम कोशिस कर रही है। हाल ही के दिनों में हमने अलीगढ में देखा कि बीजेपी के पोस्टरों पर बाबा साहेब की भगवा रंग की कोट में फोटो लगी है। नीले कोट वाले बाबा साहेब का एकाएक भगवा रंग की कोट, आखिर क्यों? 
साथियों,
बाबा साहेब मानवता की धरोहर है। बाबा साहेब के कार्यों को चित्रित करने का सबको सामान अधिकार है। बाबा साहेब की तस्वीर या फिर मूर्ती किसी भी रंग के कोट में बनायी जा सकती है। जहाँ तक कला और चित्रण के स्वतंत्रता के आज़ादी की बात है हम इस स्वतंत्रता का पूरा समर्थन करते है। लेकिन यहाँ सवाल यह पैदा होता है कि जब से बाबा साहेब की मूर्ती और तस्वीरों का चित्रण शुरू हुआ है सब लोगों ने बाबा साहेब को अधिकतर नीले कोट में ही चित्रित किया है। सवाल यह है बीजेपी की ऐसी क्या मजबूरी थी कि नीले कोट वाले बाबा साहेब को भगवा रंग की कोट पहनाने की जरूरत पड़ गयी।
साथियों,
बीजेपी द्वारा बाबा साहेब को भगवा रंग की कोट में चित्रित करना किसी भी तरह का कला या चित्रकारी नहीं बल्कि अम्बेडकरवाद बढ़ते कदमों के खिलाफ एक षड्यंत्र है। ये साजिश है अम्बेडकरवाद के बढ़ते कारवां की गति को मंद करने की। ये सोची समझी चाल है ब्राह्मणों द्वारा आंबेडकर के तीक्ष्ण, तार्किक विचारों को कमजोर करने की। हम सब जानते है कि भारत की ब्राह्मणी सरकारों और इतिहासकारों ने मुख्यधारा के इसिहास के पन्नों से कोरेगांव को मिटाने की कोशिस की है, झलकारीबाई को भी मुख्यधारा के इतिहास में वो जगह नहीं मिली जो कि उन्हें मिलनी चाहिए थी। आज़ादी की लड़ाई में शहीद दलित रणबांकुरों का कोई जिक्र नहीं मिलता है। यदि इतिहास को खगाले तो हम पाते है कि अंग्रेजों के खिलाफ जंग-ए-आज़ादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले खुसरव मूलनिवासी, महान त्यागमूर्ति पन्नाधाई धानुक , झलकारी बाई कोरी, महाबीरी देवी भंगी, उदइया चमार, मतादीन भंगी, चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर, बांके चमार, वीरा पासी, अछूत नेता केशव , रामचंद्र भंगी, नत्थू धोबी, रामपति चमार इत्यादि का भारत के आधुनिक इतिहास में कोई जिक्र ही नहीं है।

साथियों,

यदि हम स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को सच्चाई से देखें तो स्पष्ट होता है कि भारतीय मूलनिवासी समाज की देश की आजादी में मुख्य भूमिका रही है। लाखों दलित मूलनिवासी सपूत देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को गले में डालकर और सीने में गोली खाकर शहीद हो गए।1807 ई. में अलीगढ के गनौरी के किले में ढाई सौ अंग्रेज सिपाहियों को मौत के घाट उतार कर शहीद होने वाले उदइया चमार, 1857 में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई द्वारा झाँसी से निकल भागने के बाद उन्ही की वेशवूषा में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाली वीरांगना झलकारी बाई, बैरकपुर में अंग्रेज सेना की छावनी में पहली बार कारतूस और हैण्ड ग्रेनेड में सूअर और गाय की तांत लगाये जाने का राज खोलने वाले मातादीन भंगी, कासगंज जन-आंदोलन के अगुवा चेतराम जाटव व बल्लू मेहतर, बांके चमार, बीरा पासी, चौरीचौरा कांड के अमर शहीद रामपति चमार आदि तमाम अछूतों पर चौरीचौरा थाना फूंकने और 22 पुलिसकर्मी को जिन्दा जलाकर मारने के जुर्म में इन सबके विरुद्ध मुकदमा चला। मृत्यु दण्ड की सजा के बाद सभी को फाँसी पर चढ़ाया गया। अपनी मातृभूमि के लिए शहीद हुए ऐसे वीर अछूत योद्धाओं का ना तो इतिहास में नाम है और ना ही स्वतंत्रता दिवस के दिन उनका गुणगान किया जाता है। ब्राह्मणवादी लोगों ने वीर सपूत जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राण गवांये, उनको ही इतिहास से गायब कर दिया और इतिहास में ऐसे लोगों का गुणगान किया गया, जिनका आजादी की लड़ाई से कोई वास्ता ही नही रहा है, उदाहरण के तौर पर गोलवलकर, सावरकर, तिलक और अन्य। इन ब्राह्मणी लोगों ने भारत को आज़ाद करने में नहीं बल्कि भारत-पाकिस्तान बटवारा कराने में अपना योगदान दिया है जिसका दंश आज भी भारत की माटी झेल रही है। ये सब क्या है? यही ब्राह्मणवाद है, यही हिंदुत्व का एजेंडा है, यही भारत की बदकिश्मती है।

साथियों,
जिस तरह से ब्राह्मणी लोगों ने मुख्यधारा इतिहास के पन्नों में दलित मूलनिवासी शहीदों को जगह नहीं दिया उसी तरह से ये लोग बाबा साहेब के विचारों से डर गए है और उनके विचारों को हिंदुत्व की गंदगी से गन्दा करने का असफल प्रयास कर रहे है। ब्राह्मणी लोग समझ चुके है कि बाबा साहेब के तर्कों और उनके विचारों का उनके पास कोई तोड़ नही है। इसीलिए ये ब्राह्मणी लोग महात्मा बुद्ध की तरह ही आंबेडकर का भी ब्राह्मणीकरण करना चाहते है। बाबा साहेब का कोट नीले ही रंग का हो, ये कोई जरूरी नहीं है लेकिन आंबेडकर के अनुयायियों के लिए बाबा साहेब की जो छबि बनी है वो नीले कोट की है, आज नीला कोट अम्बेडकरवाद का परिचायक बन गया है, नीला रंग आज भारत में सामाजिक क्रांति का रंग बन चुका है, नीली क्रांति ब्राह्मणवाद के विध्वंश का प्रतीक है, नीला रंग भारत में समतामूलक समाज की ओर ले जाने वाली क्रांति का प्रतीक बन चुका है। यदि भारत में अन्य लोगों से तुलना करे तो निरक्षरता की तादाद आज भी दलित मूलनिविसयों में ही सबसे ज्यादा है। ऐसे गरीब दबे-कुचले दलित लोगों के लिए नीले कोट वाले बाबा साहेब स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व का प्रतीक है। यदि आज नीला रंग भारत में सामाजिक परिवर्तन का स्रोत बन चूका है तो क्यों ये ब्राह्मणी लोग बाबा साहेब को भगवा कोट में देखना चाहते है? हमारे ख्याल से बाबा साहेब के नीले कोट की जगह भगवा रंग की कोट को लाना बीजेपी द्वारा अम्बेडकरवाद के दर्शन को धूमिल करना, दलित शोषित समाज को गुमराह करना। आंबेडकर को फोटो तक सीमित करना, उनके  करना, ब्राह्मणवाद को मजबूत करना है, जातिवाद को बढ़ावा देना है, गौ-रक्षकों को संरक्षण देना है, हिन्दू आतंकवाद को पलना है, दलितों,आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर हो रहे जुल्मो-सितम को पोषण देना है। 

साथियों,

हम बाबा साहेब को किसी रंग विशेष में नहीं बाँधना चाहते है। बाबा साहेब की तमाम तस्वीरे है जिनमे बाबा साहेब ने धोती-कुरता जैसी कपडे पहन रखें है। लेकिन साथियों ये भी उतना ही सही है कि महापुरुषों की, सामाजिक परिवर्तन के महानायकों की एक सिग्नेचर पोज होती है जिसमे दुनिया उनको स्वीकार कर चुकी होती है जैसे कि हात्मा फुले, कबीर दस जी, संत शिरोमणि संत रैदास, मार्टिन लूथर किंग, अब्राहम लिंकन। इन सब की अपनी एक सिग्नेचर पोज है। उसी तरह बाबा साहेब भी तमाम तरह के वस्त्र पहनते थे लेकिन दुनिया ने बाबा साहेब को नीले कोट में स्वीकार किया है, लोग सामान्य तौर पर किसी भी नीले कोट वाली मूर्ती को देखकर ही समझ जाते है कि ये मूर्ती किसी और की नहीं बल्कि बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ति बाबा साहेब डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर की है। यदि दुनिया ने बाबा साहेब को नीले कोट में पहचाना है, तो ब्राह्मणी लोगों को क्या जरूरत पड़ी कि बाबा साहेब को भगवा रंग का कोट पहना दिया। हम सभी बुद्ध-आंबेडकर अनुयायियों को ये  समझने की जरूरत है।

साथियों,

शिक्षा के नाश से इतिहास का नाश हो जाता है। इतिहास के नाश होने से संस्कृति का नाश हो जाता है और संस्कृति के नाश से समाज को सर्वनाश हो जाता है। बीजेपी और अन्य ब्राह्मणी सरकारों और इतिहासकारों ने हमारे समाज के महापुरुषों और शहीदों को इतिहास के पन्नों से निकाल दिया है। हमारे समाज के लोगों के साथ स्कूलों और कालेजों में बुरा बर्ताव किया जाता है ताकि हम सब पढ़ न सके। इस तरह से ब्राह्मणी लोग हमारे समाज के लोगों की शिक्षा में हिस्सेदारी को नाश करना चाहते है, शिक्षा के नाश होने से हमारा इतिहास नष्ट हो जायेगा। इतिहास के नष्ट होने से संस्कृति और संस्कृति के नष्ट होने से समाज अपने आप ही नेस्तनाबूद हो जायेगा। बाबा साहेब हमारे लिए शिक्षा, इतिहास, संस्कृति और संघर्ष के प्रतीक है लेकिन बाबा साहेब के मूर्ती और तस्वीर का भगवाकरण करके ब्राह्मणी लोग हमारे शिक्षा, इतिहास और संस्कृति पर प्रहार कर रहे है। ये ब्राह्मणी लोग हमारे सांस्कृतिक धरोहर, जिनमे बाबा साहेब का नीला कोट भी शामिल है, को धूमिल करने का प्रयास कर रहे है। बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने खुद कहा है कि जो लोग अपना इतिहास नहीं जानते है वो कभी इतिहास नहीं बना सकते है। बाबा साहेब की मूर्ती और कोट के रंग आदि आज हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इस लिए ब्राह्मणी लोग हमारी इस संस्कृति पर प्रहार कर भी रहे है। हमें इस बात की चिंता सता रही है कि अम्बेडकरवादियों ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? 

साथियों,

टेलीविजन के चैनलों पर पर बैठ कर, अख़बारों और पत्रिकाओं में लेख के द्वारा आंबेडकर के विचारों को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। राज्यसभा चैनल के एक इंटरव्यू में आरएसएस के प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने कहा था कि बाबा साहेब १९५० के दौर में नागपुर स्थिति आरएसएस के कार्यालय में एक बार गए थे, और डॉ आंबेडकर बहुत खुश थे इस लिए यह बात सिद्ध होती है कि आंबेडकर का आरएसएस से कोई विरोध नहीं था, आंबेडकर हिन्दू धर्म को मानते थे। 

साथियों,
अब ये सोचने का विषय है कि यदि कोई किसी के घर एक बार चला जाय तो क्या इसका मतलब होता है कि वह उस घर का सदस्य बन जाता है। फ़िलहाल यही कहना है आरएसएस के पाखंडी प्रवक्ता राकेश सिन्हा का जो कि झूठ बोलने में माहिर है और पूरी तरह से बेशर्म और धूर्त है। राकेश सिन्हा को हम बेशर्म और धूर्त इस लिए  है क्योकि वो बिना किसी शर्मो-ह्या के बाबा साहेब द्वारा लिखित बातों को ही झुठलाने का नाजायज प्रयास करते है। यदि हम यह मान  बाबा साहेब नागपुर स्थित आरएसएस के हेड क्वाटर पर कभी गए भी थे तो धूर्त राकेश सिन्हा को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि उनके आरएसएस के हेडक्वाटर में जाने से वर्षों पहले बाबा साहेब ने यवला कांफ्रेंस में यह घोषणा कर दी थी कि मैं हिन्दू बनकर जरूर पैदा हुआ हूँ क्योकि इसे रोकना मेरे वश में नहीं लेकिन मैं आप सब को भरोषा दिलाता हूँ कि मैं एक हिन्दू के रूम में कतई नहीं मरूगां। राकेश सिन्हा से हम पूछना चाहते है कि यदि बाबा साहेब को आरएसएस और इनके अन्य हिन्दू संगठन यदि इतने ही प्यारे लगे थे तो बाबा साहेब ने हिन्दू धर्म को धर्म नहीं बल्कि लोगों को गुलाम बनाये रखने का राजनितिक षड्यंत्र क्यों कहा है?

साथियों,

बाबा साहेब के बारे में इस तरह की भ्रामक बातें फैलाकर ये ब्राह्मणी लोग बाबा साहेब का भगवाकरण करना चाहते है। इन लोगों के पास बाबा साहेब के तर्कों का कोई जबाब नहीं है। इसलिए ये लोग बाबा साहेब के बारे में भ्रामक बातें फैला रहे है, बोल रहे है और प्रचारित कर  रहे है। इनसे सदा सावधान रहने की जरूरत है। ये हम सब को सोचना चाहिए कि  हमारा शोषक आज हमारा हितैषी बनने की कोशिस क्यों कर रहा है? 

साथियों,
याद रखों जब आपके के सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन का ये ब्राह्मणी लोग विरोध करते है तो समझ लो कि आप सही दिशा में बढ़ रहे हो लेकिन यदि कोई ब्राह्मणी विचारधारा वाला आपका सहयोगी बनाने की कोशिस करे तो सावधान हो जाओ क्यो कि खतरा आस-पास ही है। 

साथियों,

एक बड़ी संख्या में आंबेडकर के अनुयायी भी आज बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की पूजा-पाठ, भजन कीर्तन और अन्य परंपरा उसी तर्ज पर कर रहे है जैसा कि ब्राह्मणी लोग अपनी मनगड़ंत देवी-वेदताओं के लिए करते है। मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी सनातनी हिंदुओं के देवी-देवता प्रतीक है मानवता की हत्या के, प्रतीक है मानवता के शोषण का, अनाचार, व्यभिचार, अत्याचार, कुकर्म और अनैतिकता के जबकि बाबा साहेब डॉ आंबेडकर प्रतीक है मानवता के, स्वतंत्रता के, समता के, बंधुत्व के, मानवाधिकारों के, शिक्षा के, तर्क और वैज्ञानिकता के। इसलिए बाबा साहेब का ब्राह्मणीकरण बाबा साहेब आंबेडकर का सबसे बड़ा अपमान है।

साथियों,
हिंदुओं की मान्यताओं के अनुसार विष्णु कलयुग में एक शुद्र के घर कलि रूप में अवतार लेगें। मुझें इस बात का डर है कि यदि आप सब अम्बेडकरवादी लोगों ने ब्राह्मणी मान्यताओं और परम्पराओं का बहिष्कार नहीं किया तो ये ब्राह्मणी लोग आने वाले भविष्य में डॉ आंबेडकर को ही विष्णु का अवतार घोषित कर उनको कलि बना देगें। यदि ऐसा हुआ तो भारत की सरजमी पर आंबेडकर और उनके विचारों का वही हश्र होगा जो बुद्ध धर्म और हमात्मा बुद्ध का हुआ था। यदि ऐसा हुआ तो इसके जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि अपने आप को आंबेडकर का अनुयायी कहने वाले लोग ही होगें। इतिहास गवाह है- हम इस लिए नहीं हारे है कि हम कमजोर थे बल्कि हम इस लिए हारे है क्योकि हमारे घरों में और हमारे समाज में ब्राह्मणी विभीषण अम्बेडकरवाद का चोंगा पहन कर अपने ही समाज और डॉ आंबेडकर के विचारों के खिलाफ ब्राह्मणी षड्यंत्र का हिस्सा रहे है। इस लिए ही यदि श्रमण संस्कृति, बुद्ध धर्म का भारत में पतन हुआ है तो इसके सबसे बड़े जिम्मेदार बुद्ध धर्म के लोग ही है जिन्होंने ने अपनी संस्कृति को सहेजने के बजाय ब्राह्मणवाद के चंगुल में फंस कर बुद्ध धर्म का ही ब्राह्मणीकरण करने में धूर्त ब्राह्मणों का साथ दिया है।
जय भीम, जय भारत !!!

रजनी कान्त इन्द्रा

सितम्बर २५, २०१६

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