Tuesday, September 29, 2015

Monday, September 28, 2015

Saturday, September 26, 2015

Thursday, September 24, 2015

SC on Parliamentary Disruption - Quotes





Constitution of Nepal - Quotes




Wednesday, September 23, 2015

Working of Reservation - Quotes


Tuesday, September 22, 2015

SC-ST-OBC Unity for a Beautiful India - Quotes


Baba Saheb For OBC - Quotes


Sunday, September 20, 2015

भारत में समाज सुधार : अंग्रेजी हुकूमत का अनमोल योगदान

यदि दलित इतिहासकारों को छोड़ दिया तो भारतीय इतिहासकार पूरी तरह से ब्राह्मणवाद और सामंती सोच से पीड़ित रहें है। उन्होंने ने इतिहास का निष्पक्ष लेखा-जोखा करने के बजाय ब्राह्मणों और सवर्णों का महिमामंडन कर भारतियों को गुमराह किया। भारतीय इतिहासकरों द्वारा रचित इतिहास हमेशा से भेद-भाव पूर्ण रहा है। 
 इन धूर्त इतिहासकारों ने जहाँ एक तरफ कट्टर हिंदूवादी सामंती सोच और मनुवाद से बीमार धूर्त राजनेता मोहनदास को महात्मा बना डाला तो वही दूसरी तरफ झलकारी बाई के अदम्य सहस, शौर्य और बहादुरी को लक्ष्मीबाई के नाम लिखा दिया, बाबा साहेब को सिर्फ दलित मसीहा और देश द्रोही बना डाला तो पटेल, तिलक, मालवीय इत्यादि जैसे कट्टर हिन्दू को भारत के मसीहा और सच्चा देशभक्त। 
 इसी चरण में इन धूर्त इतिहासकारों ने अंग्रेजों को सिर्फ एक शोषक के रूप में याद किया है और बीमार भारतीय सोच, ब्राह्मणवाद और मनुवाद जैसे निकृष्ट सिद्धांतों को पोषक के रूप में । 
 अंग्रेजों ने भारत का शोषण जरूर किया लेकिन इन्ही अंग्रेजों ने भारत को समाज सुधार एवं निकृष्ट ब्राह्मणों और उनके सिंद्धातों को नकार कर आधुनिक भारत को मानवाधिकार का अनमोल उपहार भी दिया है । आइये, एक नज़र डाले कि कैसे अंग्रेजी हुकूमत ने भारत की बीमार सोच को नश्तनाबूत कर, भारत समाज सुधार में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया - 
 1- अंग्रेजो ने 1795 अधिनयम 11 द्वारा शुद्रो को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
 2- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमे न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी । 6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल का सामन्त ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई।
 3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजो ने लगाया (लड़कियो के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमे दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)
 4- 1813 मे ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियो और धर्मो के लोगो को अधिकार दिया ।
 5- 1813 में अंग्रेजो ने कानून बनाकर दास प्रथा का अंत किया। 
 6- 1817 में समान नागरिक संहिता बनाया (1817 के पहले सजा का प्राविधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्मण को कोई सजा नही, शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था । अंग्रेजो ने सजा का प्राविधान समान कर दिया ।) 
 7- 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियो के शुद्धिकरण पर रोक लगाया (शुद्रो की शादी होने पर दुल्हन अपने घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देना पड़ता था)
 8- 1830 नरवलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के लिए ब्राह्मण शुद्रो (स्त्री व् पुरुष दोनों ) को मन्दिर में सिर पटक कर चढ़ा देता था) ।
 9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान ,धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।
 10- 1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ । जिसका प्रमुख उद्देश्य जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर कानून बनाने की व्यवस्था करना था।
 11- 1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों ने नियम बनाया कि शुद्रो के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फेक देना चाहिये । पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट, स्वस्थ एवं तेज़ दिमाग वाला पैदा होता है । यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे)
12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया।
 13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजो ने शुद्रो को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।
 14- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओ को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया।
 15- देवदासी प्रथा पर रोक । शुद्र अपनी लड़कियो को मन्दिर की सेवा के लिए दान देते थे । मन्दिर के पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेक देते थे और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगड़ना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमे 2 लाख देवदासियां मन्दिरो में पड़ी थी। यह प्रथा अभी भी दक्षिण भारत के मन्दिरो में चल रही है ।
 16- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत कर दिया।
 17- 1849 में कलकत्ता में जे ई डी बेटन ने एक बालिका विद्द्यालय ने स्थापित किया।
 18- 1854 में अग्रेजो ने 3 विश्वविद्यलय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किया ।1902 में विश्वविद्यलय आयोग नियुक्त किया गया।
 19- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजो ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियो से जकड़े शुद्रो की जंजीरो को काट दिया भारत में जाति, वर्ण और धर्म के विना एक समान क्रिमिनल लॉ लागु कर दिया।
 20- 1863 अंग्रेजो ने कानून वनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया ( आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रो को पकड़कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था । इस पूजा में मान्यता थी कि भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगे।)
 21- 1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।
 22- 1871 में अंग्रेजो ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ किया। यह जनगणना 1941 तक हुई । 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगाया।
 23- 1872 में सिविल मैरेज एक्ट द्धवारा 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओ एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़को का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाया।
 24- अंग्रेजो ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियो को सेना में भर्ती किया लेकिन 1892 में ब्राह्मणों के दबाव के कारण सेना में अछूतों की भर्ती बन्द हो गयी।
 25- रैयत वाणी पद्गति अंग्रेजो ने बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया।
 26- 1918 में अंग्रेजो ने साऊथ बरो कमेटी को भारत भेजा। यह कमेटी भारत में सभी जातियो का विधि मण्डल (कानून बनाने की संस्था) में भागीदारी के लिए आया। शाहू जी महाराज के कहने पर पिछडो के नेता भाष्कर राव जाधव ने एवम् अछूतों के नेता डा अम्बेडकर ने अपने लोगो को बिधि मण्डल में भागीदारी के लिये मेमोरण्डम दिया। 
27- अंग्रेजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया ।
 28- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दिया था और कहा कि इनके अंदर न्यायिक चरित्र नही होता है।
29- 25 दिसम्बर 1927 को डा अम्बेडकर द्वारा मनु समृति का दहन किया।
 30- 1 मार्च 1930 को डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक) प्रवेश का आंदोलन चलाया।
31- 1927 को अंग्रेजो ने कानून बनाकर शुद्रो को सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया।
 32- नवम्बर 1927 को साइमन कमीशन की नियुक्ति किया। 1928 को भारत के लोगो को अतरिक्त अधिकार देने के लिए आया। भारत के लोगो को अंग्रेज अधिकार न दे सके इस लिए इस कमीशन के भारत पहुचते ही गांधी ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। साइमन कमीशन अधूरा रिपोर्ट लेकर वापस चला गया । इस पर अंतिम फैसले के लिए अंग्रेजो ने भारतीय प्रतिनिधियों को 12 नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में बुलाया।
 33- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजो ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिसमे प्रमुख अधिकार निम्न दिए----
 A--वयस्क मताधिकार
 B--विधान मण्डलों और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतों को आरक्षण का अधिकार 
 C--सिक्ख, ईसाई और मुसलमानो की तरह अछूतों को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रो में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगे।
 D--प्रतिनिधियों के चुनने का दो बार वोट का अधिकार मिला एक वार चुन अपने प्रतिनिधियों को वोट देगे और दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देगे।
 34-- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई । अंग्रेजो ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया।
 35-- अंग्रेजो ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 से लेकर डा अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया। लेबरो को डा अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया।
 36-- 1937 में अंग्रेजो ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट का चुनाव करवाया।
 37-- 1942 में अंग्रेजो से डा अम्बेडकर ने 50 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतों एवम् पिछडो में बाट देने के लिए अपील किया । अंग्रेजो ने 20 वर्षो की समय सीमा तय किया था।
 38-- अंग्रेजो ने शासन प्रसासन में ब्राह्मणों की भागीदारी 2.5 प्रतिशत पर लेकर खड़ा कर दिया।

 अंग्रेजों ने भारत का आर्थिंक दोहन जरूर किया था लेकिन भारत के शूद्रों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों ) के जीवन की जंजीरों को कटाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान भी इन्ही अंग्रेजों ने दिया था ।
यदि हम ब्रिटिश इंडिया और इंडिपेंडेंट इंडिया पर गौर करे तो समाज सुधार और शूद्रों के उत्थान में ब्रिटिश इंडिया का योगदान सर्वश्रेष्ठ है जबकि अंग्रेजों के पहले के भारत एवं आज के इंडिपेंडेंट इंडिया का शून्य । ब्राह्मणवाद, सामंती सोच और मनुवाद जैसे मानसिक रोग से पीड़ित भारत, भारतीय समाज के सुधार के दृष्टिकोण से अंग्रेज किसी मसीहा से कम नहीं थे । 
 कुल मिलकर, यदि हम भारत में समाज सुधार के बारे में निष्पक्ष रूप से विश्लेषण करे तो हम पाते है कि समानता और सामाजिक सुधार के परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी हुकूमत ने १५० वर्षों में वो कर दिखाया जो भारत और भारतीय समाज अपने पूरे जीवन कल में नहीं कर सका ।
रजनीकान्त इन्द्रा 
सितम्बर २०, २०१५ 

Thursday, September 17, 2015

Feudalism in Indian Democracy - Quotes


Cause behind the Birth of Pakistan - Quotes


Why SC,ST & OBC get Exploited - Quotes


अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989

भारत में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों पर अत्याचार या उत्पीडन को रोकने के लिये अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम (The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989) भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया।
परिचय
यह कानून एस.सी., एस.टी. वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये। वास्तव में अछूत के रूप में दलित वर्ग का अस्तित्व समाज रचना की चरम विकृति का द्योतक हैं।
भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। इस अधिनियम में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दण्ड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं। यह अधिनियम 30 जनवरी 1990 से भारत में लागू हो गया।
यह अधिनियम उस व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करता है़। अधिनियम की धारा 3 (1) के अनुसार जो कोई भी यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर निम्नलिखित अत्याचार का अपराध करता है तो कानून वह दण्डनीय अपराध माना जायेगा-
1. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को जबरन अखाद्य या घृणाजनक (मल मूत्र इत्यादि) पदार्थ खिलाना या पिलाना।
2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करने या क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट, मल या मृत पशु का शव फेंक देना।
3. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़ा उतारना या उसे नंगा करके या उसके चेहरें पर पेंट पोत कर सार्वजनिक रूप में घुमाना या इसी प्रकार का कोई ऐसा कार्य करना जो मानव के सम्मान के विरूद्ध हो।
4. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के आबंटित भूमि पर से गैर कानूनी-ढंग से खेती काट लेना, खेती जोत लेना या उस भूमि पर कब्जा कर लेना।
5. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गैर कानूनी-ढंग से उनकें भूमि से बेदखल कर देना (कब्जा कर लेना) या उनके अधिकार क्षेत्र की सम्पत्ति के उपभोग में हस्तक्षेप करना।
6. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को भीख मांगनें के लिए मजबूर करना या उन्हें बुंधुआ मजदूर के रूप में रहने को विवश करना या फुसलाना।
7. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को वोट (मतदान) नहीं देने देना या किसी खास उम्मीदवार को मतदान के लियें मजबूर करना।
8. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरूद्ध झूठा, परेशान करने की नीयत से इसे पूर्ण अपराधिक या अन्य कानूनी आरोप लगा कर फंसाना या कारवाई करना।
9. किसी लोक सेवक (सरकारी कर्मचारी/ अधिकारी) को कोई झूठा या तुच्छ सूचना अथवा जानकारी देना और उसके विरूद्ध अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लियें ऐसें लोक सेवक उसकी विधि पूर्ण शक्ति का प्रयोग करना।
10. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जानबूझकर जनता की नजर में जलील कर अपमानित करना, डराना।
11. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी महिला सदस्य को अनादार करना या उन्हें अपमानित करने की नीयत से शील भंग करने के लिए बल का प्रयोग करना।
12. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी महिला का उसके इच्छा के विरूद्ध या बलपूर्वक यौन शोषण करना।
13. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लायें जाने वालें जलाशय या जल स्त्रोतों का गंदा कर देना अथवा अनुपयोगी बना देना।
14. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को किसी सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना, रूढ़ीजन्य अधिकारों से वंचित करना या ऐसे स्थान पर जानें से रोकना जहां वह जा सकता हैं।
15. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान अथवा निवास स्थान छोड़नें पर मजबूर करना या करवाना।
दण्ड
ऊपर वर्णित अत्याचार के अपराधों के लियें दोषी व्यक्ति को छः माह से पाँच साल तक की सजा, अर्थदण्ड (फाइन) के साथ प्रावधान हैं। क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा हैं। अधिनियम की धारा 3 (2) के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और-यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के खिलाफ झूठा गवाही देता है या गढ़ता हैं जिसका आशय किसी ऐसे अपराध में फँसाना हैं जिसकी सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास जुर्मानें सहित है। और इस झूठें गढ़ें हुयें गवाही के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को फाँसी की सजा दी जाती हैं तो ऐसी झूठी गवाही देने वालें मृत्युदंड के भागी होंगें।
यदि वह मिथ्या साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लियें दोष सिद्ध कराता हैं जिसमें सजा सात वर्ष या उससें अधिक है तो वह जुर्माना सहित सात वर्ष की सजा से दण्डनीय होगा।
आग अथवा किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा किसी ऐसे मकान को नष्ट करता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैं, वह आजीवन कारावास के साथ जुर्मानें से दण्डनीय होगा।
लोक सेवक होत हुयें इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह एक वर्ष से लेकर इस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा। अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्यों की उपेक्षा के दंड) के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो वह दण्ड का भागी होता। उसे छः माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं।
अन्य प्रावधान
धारा-14 (विशेष न्यायालय की व्यवस्था) के अन्तर्गत इस अधिनियम के तहत चल रहे मामले को तेजी से ट्रायल (विचारण) के लियें विशेष न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इससे फैसलें में विलम्ब नहीं होता हैं और पीड़ित को जल्द ही न्याय मिल जाता हैं। धारा-15 के अनुसार इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय में चल रहें मामलें को तेजी से संचालन के लिये एक अनुभवी लोक अभियोजक (सरकारी वकील) नियुक्त करने का प्रावधान हैं। धारा-17 के तहत इस अधिनियम के अधीन मामलें से संबंधित जाँच पड़ताल डी.एस.पी. स्तर का ही कोई अधिकारी करेगा। कार्यवाही करने के लियें पर्याप्त आधार होने पर वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनायें रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा तथा निवारक कार्यवाही कर सकेगा। धारा-18 के तहत इस अधिनियम के तहत अपराध करने वालें अभियुक्तों को जमानत नहीं होगी।
धारा-21 (1) में कहा गया हैं कि इस अधिनियम के प्रभावी ढंग ये कार्यान्वयन के लिये राज्य सरकार आवश्यक उपाय करेगी। (2) (क) के अनुसार पीड़ित व्यक्ति के लियें पर्याप्त के लियें सुविधा एवं कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई हैं। (ख) इस अधिनियम के अधीन अपराध के जाँच पड़ताल और ट्रायल (विचारण) के दौरान गवाहों एवं पीड़ित व्यक्ति के यात्रा भत्ता और भरण-पोषण के व्यय की व्यवस्था की गई हैं। (ग) के अन्तर्गत सरकार पीड़ित व्यक्ति के लियें आर्थिक सहायता एवं सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करेगी। (घ) के अनुसार ऐसे क्षेत्र का पहचान करना तथा उसके लियें समुचित उपाय करना जहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्यधिक अत्याचार होते हैं। अधिनियम की धारा 21 (3) के अनुसार केन्द्र सरकार राज्य सरकार द्वारा अधिनियम से संबंधित उठायें गयें कदमों एवं कियें गयें उपायों में समन्यव के लियें आवश्यकतानुसार सहायता करेगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1995 यह नियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का ही विस्तार हैं। अधिनियम के अधीन दर्ज मामलें को और अधिक प्रभावी बनानें तथा पीड़ित व्यक्ति को त्वरित न्याय एवं मुआवजा दिलाने के लियें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम 1995 पारित किया गया हैं।
धारा 5 (1) (थाना में थाना प्रभारी को सूचना संबंधी)- इसके अनुसार अधिनियम के तहत किये गयें अपराध के लियें प्रत्येंक सूचना थाना प्रभारी को दियें जानें का प्रावधान हैं। यदि सूचना मौखिक रूप से दी जाती हैं तो थाना प्रभारी उसे लिखित में दर्ज करेंगें। लिखित बयान को पढ़कर सुनायेंगें तथा उस पर पीड़ित व्यक्ति का हस्ताक्षर भी लेंगें। थाना प्रभारी मामलें को थाना के रिकार्ड में पंजीकृत कर लेगें। (2) उपनियम (1) के तहत दर्ज एफ.आई। आर. की एक काॅपी पीड़ित को निःशुल्क दिया जायेगा। (3) अगर थाना प्रभारी एफ.आई। आर. लेने से इन्कार करतें हैं तो पीड़ित व्यक्ति इसे रजिस्ट्री द्वारा एस. पी. को भेज सकेगा। एस.पी. स्वंय अथवा डी. एस.पी. द्वारा मामलें की जाँच पड़ताल करा कर थाना प्रभारी को एफ.आई। आर.दर्ज करने का आदेश देंगें।
धारा-6 के अनुसार डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी अत्याचार के अपराध की घटना की सूचना मिलतें ही घटना स्थल का निरीक्षण करेगा तथा अत्याचार की गंभीरता और सम्पत्ति की क्षति से संबंधित रिर्पोट राज्य सरकार को सौंपेगा। 
धारा-7 (1)-के तहत इस अधिनियम के तहत कियें गयें अपराध की जाँच डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी करेगा। जाँच हेतु डी.एस.पी. की नियुक्ति राज्य सरकार/डी.जी.पी. अथवा एस.पी. करेगा। नियुक्ति के समय पुलिस अधिकारी का अनुभव, योग्यता तथा न्याय के प्रति संवेदनशीलता का ध्यान रखा जायेगा। जाँच अधिकारी (डी.एस.पी.) शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर घटना की जाँच कर तीस दिन के भीतर जाँच रिर्पोट एस.पी.को सौपेगा। इस रिर्पोट को एस.पी.तत्काल राज्य के डी.जी.पी. को अग्रसारित करेगें। 
धारा-11 (1) में यह प्रावधान किया गया हैं कि मामलें की जाँच पड़ताल, ट्रायल (विचारण) एवं सुनवाई के समय पीड़ित व्यक्ति उसके गवाहों तथा परिवार के सदस्यों को जाँच स्थल अथवा न्यायालय जाने आने का खर्च दिया जायेगा। (2) जिला मजिस्ट्रेट/ एस.डी.एम. या कार्यपालक दंडाधिकारी अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति और उसके गवाहों के लियें न्यायालय जानें अथवा जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होने के लियें यातायात की व्यवस्था करेगा अथवा इसका लागत खर्च भुगतान करने की व्यवस्था करेगा। धारा 12 (1) में कहा गया हैं कि जिला मजिस्ट्रेंट और एस.पी. अत्याचार के घटना स्थल की दौरा करेंगें तथा अत्याचार की घटना का पूर्ण ब्यौरा भी तैयार करेंगें। (3) एस.पी. घटना के मुआवजा करनें के बाद पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेंगें तथा आवश्यकतानुसार उस क्षेत्र में पुलिस बल की नियुक्ति करेंगें। (4) के अनुसार डी.एम./एस.डी.एम. पीड़ित व्यक्ति तथा उसके परिवार के लियें तत्काल राहत राशि उपलब्ध करायेंगें साथ ही उचित मानवोचित सुविधा प्रदान करायेगें। 
नीला सलाम, जय संविधान
जय भीम,जय भारत !

अफ्रीका में गाँधी के आन्दोलन की सच्चाई

सबसे पहले गाँधी का अफ़्रीकी आन्दोलन शुरू होता है जब उसे अंग्रेजो ने अपने डिब्बे से धक्का देकर भगा दिया ।  अंग्रेजो ने ये कहकर गाँधी को वहा से भगाया कि कोई भी काला व्यक्ति गोरों के डिब्बे में सफ़र नहीं कर सकता ।  इस घटना से गाँधी को बहुत बड़ा सदमा लगा। तभी से उसे रंगभेद की वजह से होने वाले अन्याय का अहसास हुआ और उसने तभी से इसके खिलाफ आन्दोलन करने की ठान ली।  
अब इस आन्दोलन का विरोधाभास देखिये- भारतियों द्वारा रचित इतिहास कहता है कि मोहनदास ने ये आंदोलन अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद के खिलाफ किया था जबकि हकीकत में गाँधी ने ये आन्दोलन अफ़्रीकी लोगों के ऊपर होने वाले रंगभेदी अन्याय के विरुद्ध नही किया बल्कि साउथ अफ्रीका में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे रंगभेद और अन्याय के विरुद्ध था। गाँधी का कहना था कि हम भारतीय काले नहीं है । हमे भी अंग्रेजो के समान ट्रेन में सफ़र करने का अधिकार मिले।  उसके लिए गाँधी ने अंग्रेजों के सामने अपनी मांग रखी कि भारतीयों के लिए एक डब्बा आरक्षित रखा जाए लेकिन अंग्रेजो ने इससे साफ़ इंकार कर दिया।
यदि गांधी इतना ही महान होता तो वह काले लोगों के साथ सफर करने से परहेज़ करके सवर्णों के लिए एक अलग डिब्बे की मांग नहीं करता । इससे ये पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि गांधी भी अफ्रीकियों से उतना ही रंगभेद करता था जितना कि अंग्रेज ।

अब गाँधी के दुसरा आन्दोलन साउथ अफ्रीका के पोस्ट ऑफिस में प्रवेश के लिए था । वहा के हर पोस्ट ऑफिस में दो दरवाजे होते थे । एक दरवाजे से अंग्रेज और दुसरे से काले लोग प्रवेश करते थे । भारतीयों को भी उसी दुसरे दरवाजे यानि कि काले लोगों के दरवाजे से जाना पड़ता था । 
अफ्रीका में रह रहे सवर्णों को अफ्रीका के काले लोगों के साथ उसी दूसरे दरवाज़े से ही आना-जाना पड़ता था जो कि  सवर्णों और खुद मोहनदास को पसंद नहीं था । इसलिए गाँधी ने इसके खिलाफ जो आन्दोलन छेड़ा उसमे उसने अंग्रेजों के सामने भारतीयों के लिए तीसरे दरवाजे के मांग की, लेकिन अंग्रेजोने गाँधी की इस मांग को भी मानने से इनकार कर दिया। अब फिर वही सवाल यदि गाँधी संत था तो उसने अपने और सवर्णों के लिए एक अलग दरवाज़े के मांग क्यों की । मतलब साफ है की गांधी अफ़्रीकी काले अफ्रीकियों के साथ एक ही दरवाज़े से आना-जाना पसंद नहीं करता था । मतलब की गांधी भी अफ्रीकियों के साथ रंगभेद का बर्ताव करता था ।
एक विवेकशील इंसान बड़ी आसानी से सोच सकता कि मोहनदास के ये आन्दोलन अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद विरुद्ध था या भारतीयों को अन्य अफ्रीकियों की तरह मिल रहे बर्ताव के खिलाफ था ? मोहनदास द्वारा किये गए ये सभी आंदोलन कभी भी अफ्रीकियों के खिलाफ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ नहीं और ना ही अफ्रीका में बसे सर्वसाधारण भारतीयों के लिए था बल्कि ये आन्दोलन वहाँ पर व्यापर करने गए बनिया और बाकि उच्च वर्नियों एवं सवर्णों के लिए किया गया था ।
भारतीय इतिहास में तो हमें यही पढ़ाया गया कि गाँधी ने अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ अपना आंदोलन छेड़ा था । क्या गाँधी अफ्रीकियों में लोकप्रिय था? बिलकुल नहीं........ अगर वह लोकप्रिय होता तो 6 बार शांति के दिए जाने वाले नोबल पुरस्कार की अर्जी का अफ्रीकियों द्वारा विरोध क्यों किया जाता । क्यूँ हर बार अर्जी ख़ारिज कर दी गयी ? अभी अभी कुछ दिनों पहले साउथ अफ्रीका में गाँधी के पुतले को सफ़ेद रंग से पोता गया वो भी अफ़्रीकी लोगो द्वारा, क्यों ?
अंतर्राष्ट्रीय राजनितिक पटल पर भारत हमेशा अफ्रीका के साथ ऐतिहासिक रिश्ते की बात करता है लेकिन यदि ऐसा है तो अफ्रीकियों द्वारा भारतीयों के प्रति रवैया जरूर सक्रिय होता । यदि वाकई मोहनदास ने अफ्रीकियों के लिए कुछ किया होता तो अफ्रीकियों के दिल में भारत के प्रति प्रेम होता और अफ्रीका की सरकार भी एकतरफा चीन के साथ सारे महत्वपूर्ण समझौते करने से पहले भारत के बारे में अवश्य सोचता । 
इन सबसे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि गांधी कोई संत या महात्मा नहीं बल्कि एक मानसिक रूप से कट्टर हिंदूवादी, सांप्रदायिक, स्वार्थी और धूर्त राजनेता था।
जहाँ तक बात भारत के इतिहास की है भारत का इतिहास हमेशा से तोड़-मरोड़ कर सवर्णों के पक्ष में और उनके महिमा मंडन में लिखा गया है जो कि सच्चाई से परे है जिसके उदाहरण ये सभी तथाकथित सवर्ण मसीहा और उनके इतिहासकार है। भारत में आज भी ऐतिहासिक और बुनियादी सामाजिक तथ्यों को न तो पढ़ाया जाता है और ना ही प्रकशित किया जाता है जिसकी वज़ह से लगभग पूरा का पूरा भारतीय समाज और नौजवान गुमराह होते है और जो लोग इन ऐतिहासिक तथ्यों को गहराई और सच्चाई से जानकार विश्लेषण करना चाहते है वे भारत को छोड़कर ब्रिटेन और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करना बेहतर समझते है। 
क्या आप नहीं चाहते कि आपको और आपके के बच्चों को सच्चाई और तथ्यों से परचित कराया जाय । यदि हां तो पहले सवर्णों की गुलामी बंद करों । अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ पिछड़ों के कदम ताल करते हुए सवर्णों को सत्ता से फेकना होगा और अपने आपको इनके धर्म और षड्यंत्र से मुक्ति दिलानी होगी नहीं तो आप कभी भी अपना वज़ूद नहीं जान पाओंगे और ज़िन्दगी भर उनकी गुलामी ही करते रहोगे।
जय भीम, जय भारत  

Tuesday, September 15, 2015

Monday, September 14, 2015

Friday, September 11, 2015

Reservation leads Development - Quotes


Wednesday, September 9, 2015

Reservation & Integration - Quotes





Reservation and Indian Diversity - Quotes




Tuesday, September 8, 2015

Saturday, September 5, 2015

आरक्षण - Quotes




Friday, September 4, 2015

Thursday, September 3, 2015

RESERVATION

Q 1: What is reservation?
The word reservation is a misnomer. The appropriate word for it used in the Indian Constitution is Representation. It is not given to anyone in his individual capacity. It is given to individual as a representative of the underprivileged community. The beneficiaries of reservations are in turn expected to help their communities to come up.
Q 2: Why reservation?
The policy of reservations is being used as a strategy to overcome discrimination and act as a compensatory exercise. A large section of the society was historically denied right to property, education, business and civil rights because of the practice of untouchability. In order to compensate for the historical denial and have safeguards against discrimination, we have the reservation policy.
Q 3: Were Reservations incorporated by the founding fathers of the constitution only for first 10 years?
Only the political reservations (seats reserved in Loksabha, Vidhansabha, etc) were to be reserved for 10 years and the policy review was to be made after that. That is why after every 10 years the parliament extends political reservations.
The 10 year limit for reservations is not true for the reservations in education and employment. The reservations in educational institutions and in employment are never given extension as it is given for the political reservations.
Q 4: Why give reservations on basis of caste?
To answer this question we must first understand why the need for the reservations has arisen. The cause for the various types of disabilities that the underprivileged castes in India face / have faced, is the systemic historical subjugation of a massive magnitude based on caste system having a religious sanction. Therefore if the caste system was the prime cause of all the disabilities, injustice and inequalities that the Dalit-Bahujans suffered, then to overcome these disabilities the solution has to be designed on basis of caste only.
Q 5: Why not on basis of economic criterion?
Reservations should never be based on economic status for various reasons as follows:
1. The poverty prevailing among the Dalit-Bahujans has its genesis in the social-religious deprivations based on caste system. Therefore poverty is an effect and caste system a cause. The solution should strike at the cause and not the effect
2. An individual's Economic status can change. Low income may be taken to mean poverty. But the purchasing value of money, in India, depends upon caste. For example a Dalit can not buy a cup of tea even in some places.
3. Practical difficulties in proving economic status of individual to the state machinery are many. The weak may suffer.
4. In caste ridden India infested with rampant corruption, even for an unchangeable status like caste, the false "Caste Certificate" can be purchased. How much easier will it be to purchase a false "Income Certificate"? So income based reservation is impractical. It is no use arguing when both certificates can be bought, why caste only should form basis of reservation. It is certainly more difficult to buy a false caste certificate than a false income certificate.
5. Reservation is not an end in itself. It is a means to an end. The main aim is to achieve the active participation and sharing by the "socially excluded" humanity in all the fields of the affairs of the society. It is not panacea for all ills, neither it is permanent. It would be a temporary measure till such time the matrimonial advertisements in newspaper columns continue to contain the mention of caste.
Q 6: Should there be a creamy layer criterion or not?
The demand from anti-reservationists for introduction of creamy layer is ploy to scuttle the whole effectiveness of reservations. Even now out of all seats meant for SC/STs in IITs , 25-40 % seats remain vacant because it seems IITs do not find suitable candidates. Just imagine what would happen if by applying creamy layer criterion the SC/ST middle class, lower middle class people who are in position to take decent education are excluded from reservations benefit ! Will the poor among SC/STs be able to compete with these ‘privileged ‘students’ trained under Ramaiah and at various IIT-JEE training centers at Kota ? Of course Not.
This will lead to 100 % seats in IITs for SC/STs going vacant.
Q 7: How long should the reservations continue?
The answer to this question lies with the anti-reservationists. It depends on how sincerely and effectively the policy makers which constitute “privileged castes” people in executive, judiciary and legislature, implement the reservations policy. Is it just on part of “privileged castes” people who have enjoyed undeclared exclusive reservations for past 3000 years and continue to enjoy the same even in 21st century in all religious institutions and places of worship, to ask for the timelines for reservations policy?
Why do not they ask, how long the exclusive reservations for particular community in the religious institutions and places of worship are going to continue? The people who have acquired disabilities due to inhuman subjugation for 3000 years will need substantial time to come over those disabilities. 50 years of affirmative action is nothing as compared to 3000 years of subjugation.
Q 8: Will not the reservations based on castes lead to divisions in the society?
There are apprehensions that reservations will lead to the divisions in the society. These apprehensions are totally irrational. The society is already divided into different castes. On the contrary reservations will help in annihilating the caste system. There are around 5000 castes among the SC/ST and OBCs. By grouping these various castes under 3 broad categories of SC, ST and OBC, the differences among 5000 separate castes can be abridged. This is a best way of annihilation of castes. Therefore rather than making rhetoric about reservations leading to divisions in the society the anti-reservationists should make honest and sincere efforts to annihilate castes. Have these people made any efforts towards this direction? In most of the cases the answer is NO. The people making these anti-reservations rhetoric, all this time have been enjoying all the privileges that the Indian caste system offers to the “Privileged Castes”. As long as they enjoy the privileges of the caste system they do not have any qualms regarding it. But when it comes to making castes as basis for achieving social equality by providing representations these same people make noises. These are the double standards of highest order practiced by the ‘privileged’ people.
Q 9: Will not reservations affect the Merit?
As regards to how Merit is defined in a very narrow sense and what it actually means, following is the quote from an article by Prof Rahul Barman of IIT Kanpur.
“Is merit all about passing exams? After all, are the exams a means or an end? If the exams are means to look for ability to make better engineers, doctors and managers, then can there be better methods to look for such ability? After all in my first engineering class I was told that a good engineer is the one who can produce the best out of the least resources and similarly, management is supposed to find one’s way in an uncertain situation – or allocate scarce resources in the most optimal way possible. If that is so, whatever I have seen of our deprived masses (of which overwhelming majority belongs to the backward, dalit castes or adivasis), they have the astonishing capacity to make something productive from almost next to nothing! For the last few years I have been studying small industry clusters, like Moradabad brass, Varanasi silk and Kanpur leather. Put together (all the clusters in the country), they are exporting more than the IT sector and their cumulative employment will be several times of the whole of IT industry. In all these clusters they operate with miniscule resources – small investment, no electricity, forget about air-conditioning, non existent roads, lack of water, and little formal education. These clusters are primarily constituted of these so called backward/ dalit castes and are truly a tribute to the genius that our society is. But in spite of centuries of excellence these communities have hardly produced any formal ‘engineers’, ‘doctors’ and ‘managers’, and conversely these elite institutions have not developed any linkages with such industries and their people. “
Reservations of more than 60 % have existed in the 4 states of southern India and around 50 % in Maharashtra since last 50 years. On other hand in the north Indian states the 15 % ‘privileged castes’ have been enjoying 77 % of the seats in educational institutions and in employment (assuming that 23 % reservations for SC/STs are totally filled, which is not the case). The World Bank study has found that all the 4 South Indian states are much ahead of north Indian states in terms of their Human Development Index. It is a common knowledge that all the southern states and Maharashtra are much ahead in fields of education, health, industrial development, in implementing poverty alleviation schemes, etc. than the north Indian states. This shows that reservations have indeed helped the southern Indian states in making progress on various fronts. Whereas lack of adequate reservations is responsible for the lack of development in most of the north Indian states.
Q 10: Have existing reservations for SC/STs been effective or not?
The reservation policy in the public sector has benefited a lot of people. The Central government alone has 14 lakh employees. The proportion of Scheduled castes in class III and IV is well above the quota of 16 per cent and in class I and II, the proportion is around 8–12 per cent. So, the middle and the lower middle class that we see today from the Dalit community is because of reservation. With no reservation, the entry of these people in government services would have been doubtful. The situation is similar in education. An article in the EPW (Economic and Political Weekly) estimates that there are seven lakh SC /ST students in higher education and about half of them are there because of reservation. Reservation has certainly helped but there are limitations in any policy with the way it is implemented.