प्रिय बहुजन साथियों,
बाबा
साहेब डॉ अम्बेडकर भी कहते हैं कि समाज में यदि मूलचूल परिवर्तन लाना चाहते हो तो सबसे
पहले सारे धर्म ग्रंथों को बारूद से उड़ा दो! ये धर्म ग्रंथ ही इंसानों के मानसिक गुलामी
का एक अहम कारण है! धर्म के नाम पर जितने हत्या ब्लातकार हुए हैं उतने किसी युद्ध में
भी नहीं हुए हैं! और तो और, धर्म शास्त्रों व धर्म के ठेकेदारों ने धर्म के नाम पर
हुए कत्ल-ए-आम व बलात्कार तक को पाक करार दिया है!
रोज हो रहे अत्याचार हत्या
ब्लातकार, जिनकी एक तर्कवान इंसान भर्त्सना करता है, उसकी जड़ें धर्म की मिट्टी से
ही पोषित होती हैं!
धर्म का एक मात्र उद्देश्य
है समाज में कुछ लोगों की सामाजिक राजनैतिक व आर्थिक प्रतिष्ठा को कायम ऱखना! ये कुछ
लोग वही है जिनके पास धर्म का ठेका है! सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू धर्म का ठेका
ब्रह्मण के पास है, इस्लाम का मौलवी के पास, इसाई का पोप के पास तो सिख का उसके ठेकेदारों
के पास! जहाँ एक तरफ धर्म के ठेकेदारों ने हमेशा से अपने पथ को सर्वोत्तम बताया हैं,
वही दूसरी तरफ दूसरे के विचारों को बुराई के कमरों से नवाजा है! इसका कारण है बिल्कुल
स्पष्ट है कि जितने ज्यादा लोग साथ होगें धर्म की सत्ता उतनी ही बुलन्द होगी! धर्म
की सत्ता जितनी बुलन्द होगी उस धर्म के ठेकेदारों की राजनैतिक समाजिक व आर्थिक मजबूती
उतनी ही ज्यादा होगी! इसलिए हिन्दू, मुस्लिम व इसाई धर्म, जो दुनियां की सबसे बड़ी
आबादी को अपने आगोश में दबोचे है, सदा एक दूसरे को काफिर ही कहते हैं, एक दूसरे को
शत्रु समझते हैं! यही उनके मानने वालो को एक दूसरे के खून का प्यासा बना देती है!
हिन्दू धर्म ने धर्म के
चलते ही एक बड़े मानव समुदाय को शूद्र व अछूत घोषित कर उनके रूह तक की हत्या कर दी
है, इस्लाम की शुरुआत ही लूटपाट व खून-खराबे से हुई है! इसाई धर्म ने भी धर्म के नाम
पर लाखों का कत्ल करवाया है तो सिख भी इससे अछूता नही है! तथाकथित महाभारत युद्ध भी
धर्म के नाम पर ही लडा गया था, मुस्लिम की सारी समस्या ही उनका मजहबी मूर्खता ही है!
आज इस्लाम व हिन्दुत्व के नाम पर जितनी हिंसा हो रही है उतनी किसी अन्य के नाम पर नही!
बरीकी से गौर करे तो हम पाते हैं कि धर्म ही इन सब के लिए उकसाता है, धर्म ही समाज
की सभी बुराइयों का कारण है! धर्म ही है जो लोगों मे स्वातंत्र सोच को विकसित नहीं
होने देती है! धर्म ही एक मात्र नशा है जिसकी खुमारी कब्र तक उसके मानने वाले का पीछा
करती है! ये सब उसी धर्म ने करवाया है जिसके बारे में भक्त बडे ही गर्व से कहते हैं
कि धर्म शत्रुता नही, भाईचारा सिखाता है! हकीकत ये है कि मानव समाज मे मौजूद समस्त
बुराइयों का कारण धर्म ही है!
आगे, मुस्लिम की समस्या
यह है कि वह कुरान के खिलाफ कुछ सुनना ही नहीं चाहता है! हिन्दू की भी यही समस्या है
कि वो अपने वेद-पुराण-गीता-भागवत के खिलाफ कुछ सुनना नही चाहता है, यही समस्या इसाई
व सिख की भी है! ये सब अपने को सर्वोत्तम समझते हैं, यही इनकी मानसिक गुलामी का सबसे
बड़ा कारण है! ये सब भक्त है! भक्त उसे कहते हैं जिनमें खुद की कोई समझ नहीं होती है,
ये मानसिक रूप से गुलाम, वैचारिक रूप से विकलांग होते हैं! ये भक्त सिर्फ और सिर्फ
कूप मंडूक होते हैं, पूरे लकीर के फकीर मानसिक गुलाम होते है! इन सबकी वजह यही है कि
धर्म की सत्ता उसके मानने वालो की मानसिक गुलामी व मानसिक विकलांगता पर ही टिका है!
उदाहारार्थ - हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाला सावरकर खुद हिन्दु धर्म के बारे में
ना कुछ पढा था, ना कुछ जानता था! इस्लामिक स्टेट की बात करने वाला जिन्ना भी इस्लाम
को पसंद नहीं करता था! लेकिन दोनों ने ही धर्म के नाम लाखों को मौत के घाट उतरवा दिया!
पहले हुए, आज हो रहे और भविष्य में होने वाले सभी अमानवीय बुराइयों का कारण धर्म ही
होगा!
ऐसे में सभी भक्तों के
लिए जरूरी है कि वे अपने तर्क पट को खोले, उनकी मानसिक विकलांगता खुद-ब-खुद दूर हो
जायेगी! ध्यान रहे समाज को हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई की नही बल्कि सिर्फ और सिर्फ इंसान
चाहिए! धर्म तो बांटता है, तर्क व वैग्यानिकता हमें एक करती हैं! इसीलिए समाज को मानवता
के हित वाले नैतिक मूल्यों, तर्क व वैग्यानिक सोच की जरूरत है, बजाय कि किसी हिन्दू-मुस्लिम
जैसे हिंसक अमानवीय निकृष्ट धर्म के!
जय भीम,
जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास
छात्र
इग्नू
नई दिल्ली
जनवरी ०२, २०१८
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