प्रिय
बहुजन साथियों,
यदि
"मान" शब्द से "मानव" शब्द बना है, मतलब कि "मान" (गुफा)
में रहने वाले "मानव" कहलाये (प्रो राजेन्द्र प्रसाद सिंह) तो इस प्रकार
से, निःसन्देह हम कह सकते हैं कि बहुचर्चित "दानव" शब्द "दान"
शब्द से ही बना है, मतलब कि जो गरीब-लाचार-दुःखी जन को "दान" (भ्रमित जन
का सम्यक् मार्गदर्शन करे, ग्यान दे, शिक्षा दे, मानवता के लिए जिये) दे, वही दानव
है!
इस लिहाज
से गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक, फूले, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर निःसन्देह महादानव है! मानव में जो श्रेष्ठ है वही दानव है, और जो सर्वश्रेष्ठ है वह महादानव! महान मानव ही दानव हैं, और महानतम् दानव ही महादानव! मानवता रक्षक समाज के लोग ही राक्षस कहलाते हैं! अपार बलशाली व युद्ध कला में पारांगत मानव को ही दैत्य कहते हैं! राक्षस, दानव, दैत्य जैसे उपनाम तर्कशील, दयावान, दानवीर, प्रकृति
व मानवता रक्षक नागवंशियों के लिए प्रयुक्त होता है जो कि बुद्ध धम्म के लोग होते हैं!
जय भीम....
रजनीकान्त
इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
नवम्बर ३, २०१७
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