भारत के मूलनिवासी बहुजनों के नाम पत्र
और
मूलनिवासी बहुजन समाज का वह हिस्सा जिसने ब्रहम्णों-सवर्णों की गुलामी करने से इनकार कर दिया, ब्रहम्णों-सवर्णों की संस्कृति का बहिष्कार कर दिया, वो बहिष्कृत-अछूत कहलाये!
हालांकि "द ग्रेट चमार" की यह संकल्पना स्थानीय स्तर पर सहारनपुर में बुद्ध के सम्यक अनुयायी अछूत समाज के साथ जो अत्याचार हो रहा था उसके प्रतिकार व अपनी खोई धाती को पुनः स्थापित करने का एक प्रयास था। ये स्थानीय स्तर पर दलित वंचित अछूत समाज को कुछ राहत दे सकने के लायक रहा हो सकता है लेकिन जब सहारनपुर का मुद्दा नेशनल मुद्दा बन गया तो ऐसे में "द ग्रेट चमार" की संकल्पना खुद बहुजन समाज के ही गले के लिए फांसी का फंदा बन गया। इसका कारण था - द ग्रेट चमार की संकल्पना को आगे लाने वाले युवाओं की नासमझी, अज्ञानता, अदिश जोशीला नेतृत्व, या यूँ कहें कि उनकी उन्मादी मूर्खता।
दुःखद है कि बुद्ध व बाबा साहेब के भक्तों की संख्या में घोर इज़ाफ़ा हो रहा है, भीम आर्मी जैसे संगठनों के लोग इसके ज्वलंत उदाहरण है। बुद्ध व बाबा साहेब के भक्तों की संख्या में घोर इज़ाफे का मुख्य कारण खुद बहुजन समाज के नेता, बुद्धिजीवी और अन्य पढ़ें-लिखे लोग हैं। हमें इन लोगों की मंशा पर शक नहीं है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये लोग बुद्ध व बाबा साहेब के विचारों को आम-जन तक सम्यक तौर पहुँचाने में कहीं न कहीं नाकाम रहे है। नतीजा, आम मूलनिवासी बहुजन बुद्ध-बाबा साहेब के विचारों को अपने जीवन में उतारने के बजाय ये लोग बुद्ध-बाबा साहेब की भक्ति करने लगे है। लोग मनगढंत राम चरित मानस की तर्ज़ पर भीम चरित मानस का पाठ करने कराने लगे हैं, कपोल-कल्पित भागवत-जागरण की तर्ज़ पर चंद्रोदय पाठ करने लगें। मतलब कि बुद्धिज़्म-अम्बेडकरिज़्म में घनघोर भक्ति का उदय।
ध्यान देने योग्य बात है कि बुद्ध-अम्बेडकर दोनों ने ही ईश्वर को नकार दिया, भक्ति को इनकार कर दिया लेकिन आज के नासमझ-मूर्ख बहुजनों ने ही बुद्ध-अम्बेडकर को ही भगवान बनाकर उनकी भक्ति शुरू कर दी है। इतिहास गवाह है कि यही ईश्वरीकरण-भगवानीकरण व भक्ति बुद्ध व बुद्धिज़्म को निगल गया, बुद्ध को मनगढंत विष्णु का अवतार बना दिया गया। नतीजा, भारत से बुद्ध और बुद्धिज़्म दोनों लगभग मिट गये। अतीत में हमारे पूर्वजों द्वारा जो गलती बुद्ध व बुद्धिज़्म के सन्दर्भ में की गयी थी आज बहुजन समाज वही गलती बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व अम्बेडकरिज़्म के साथ भी कर रहा है। यदि बहुजन नहीं सम्भला तो वह दिन दूर नहीं है जब ब्राह्मण बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर को कपोल कल्पित विष्णु का कलि अवतार घोषित कर देगा। ऐसा करते ही भारत की सरज़मी से बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर व अम्बेडकरिज़्म उसी तरह से नेश्तनाबूद हो जायेगें जैसे कि अतीत में बुद्ध व बुद्धिज़्म।
परिणामस्वरूप, भारत से मानवता, तर्कवाद, वैज्ञानिकता और न्याय खत्म हो जायेगा, ब्राह्मणवाद कायम हो जायेगा, मूलनिवासी बहुजन समाज एक बार फिर से राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक रूप से अनाथ होकर निकृष्टतम अमानवीय ब्राह्मणों व ब्राह्मणी व्यवस्था का गुलाम बनकर उनकी गुलामी करने को मजबूर हो जायेगा।
इसलिए भारत में मानवता, समता, स्वतंत्रता, बंधुता, न्याय, तर्कवाद और वैज्ञानिकता की ज़िम्मेदारी भारत के बुद्ध-अम्बेडकरी अनुयायियों के ही कन्धों पर टिकी है। बुद्ध-अम्बेडकरी अनुयायियों की ये नैतिक-मानवीय-सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि वो भारत के मूलनिवासी बहुजन समाज को जागरूक करें, लोगों को भगवान-भक्ति से मुक्ति पाने में उनका मार्गदर्शन उसी तरह से करें जैसा कि इतिहास में गौतम बुद्ध-बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर ने किया है।
बहुजन समाज से हमारी ये अपील है कि आप सब बुद्ध-अम्बेडकर के अनुयायी बनिये, भक्त नहीं। हम सब के लिए गौतम बुद्ध, बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर, सन्त कबीर दास, संत शिरोमणि संत रैदास, राष्ट्रपिता ज्योतिर्बा फूले, भारत की प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्री फूले, ममता व संघर्षमूर्ती माता रमाबाई, संत गाडगे, बहुजन महानायक मान्यवर काशीराम व अन्य सभी मानवता के महानायक-महानायिकाएँ आदि सिर्फ और सिर्फ हमारे लिए सम्मानीय महान मार्गदर्शक, विचारक, शिक्षा मानवता के प्रतीक मात्र है, कोई ईश्वर या भगवान् नहीं। इसलिए इन सभी महान महानायकों-महानयिकायों का ईश्वरीकरण इन सभी महानायकों-महानयिकायों की निर्मम हत्या करना है। अब तय आप सब को करना है कि आप इन महान महानायकों-महानयिकायों के विचारों को जिन्दा रखकर उनकी संघर्ष गाथाओं से प्रेरणा लेकर समता, स्वतंत्रता, बंधुता, न्याय, तर्कवाद, वैज्ञानिकता और मानवतावादी समाज के सृजन के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं, या फिर उन सभी महान महानायकों-महानयिकायों के विचारों व उनकी संघर्ष गाथाओं की निर्मम हत्या कर निकृष्टतम अमानवीय ब्राह्मणी व्यवस्था की गुलामी करना चाहते हैं।
फ़िलहाल, हकीकत तो ये है कि "द ग्रेट चमार" वाले ये जोशीले नवयुवक बाबा साहेब व उनके कारवाँ को जान ही नहीं पाए है। इसी का नतीजा है कि इन नवयुवकों ने बहुजन समाज को विखण्डित करने वाली "द ग्रेट चमार" की संकल्पना को ना सिर्फ गढ़ा है बल्कि बहुजन शत्रु ब्राह्मणी मीडिया के माध्यम से इन नवयुवकों ने "द ग्रेट चमार" जैसे जहर देश के कोने-कोने में पहुँचा दिया है।
यदि नामों की संकल्पना पर गौर करें तो "द ग्रेट चमार" वालों और ब्राह्मण अटल बिहारी में कोई ज्यादा अंतर है। जैसा कि हम सब जानते है कि गौतम बुद्ध शांति, समृद्धि, ज्ञान-शिक्षा और मानवता के प्रतीक है लेकिन ब्राह्मण अटल बिहारी ने १९९८ में पोखरण में हुए विध्वंशकारी परमाणु परिक्षण को अपने आराध्य निकृष्टतम हिंसक क्रूर अमानवीय राम-कृष्ण-विष्णु-शंकर-इंद्रा आदि का नाम ना देकर शांति-शिक्षा-मानवता के प्रतीक गौतम बुद्ध का नाम देते हुए कहा कि "बुद्धा स्माइलिंग"। क्या ये बुद्ध की छवि को विकृत करने का निकृष्टतम कृत्य नहीं है? इसी तरह से बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर भी अहिंसा, ज्ञान-शिक्षा, शान्ति, समृद्धि व मानवता के प्रतीक है, बोधिसत्व है लेकिन "द ग्रेट चमार" वाले नवयुवकों ने भी, अपनी नासमझी में ही सही, शान्ति-शिक्षा व मानवता के प्रतीक बाबा साहेब के नाम पर एक सेना ही बना डाली है - "भीम आर्मी या भीम सेना"। सेना या आर्मी, ये शब्द खून-खराबे से जुड़े है, हिंसात्मक कृत्य का प्रतीक है। ऐसे में, क्या इन नासमझ नवयुवकों ने बाबा साहेब के नाम व उनके दर्शन को विकृत करने का कार्य नहीं है ? हमारे विचार से ऐसी उग्र और मूर्खतापूर्ण "द ग्रेट चमार" की संकल्पना अम्बेडकरिज़्म की हत्या करने का हथियार है।
हालाँकि ये सत्य है कि सहारनपुर के स्थानीय स्तर पर भीम आर्मी वालों ने ब्राह्मणी सरकार की सहमति से दलित समाज के साथ हो रहे अत्याचार को देश के कोने-कोने में पहुँचाकर दुनिया के सामने ब्राह्मणी राजनीति, सरकारी ब्राह्मणी आतंकवाद व घिनौने ब्राह्मणी धर्म व इसके कुरूप चेहरे वाली व्यवस्था को बेनक़ाब करने का सफल प्रयास किया है। दलित-वंचित जगत के साथ हो रहे इस क्रूरतम अत्याचार के कई कारण है - जैसे कि बहुजन समाज के शासनिक-प्रशासनिक नुमाइंदों की अपने ही समाज के प्रति बेरुखी, दलितों का राजनीति, शासन-प्रशासन, सत्ता-संसाधन, संसद-विधानसभाओं, कार्यालय, सचिवालय, न्यायलय, मीडियालय, विश्वविद्यालय, उद्योगालय, सिविल सोसाइटी आदि में आज भी संविधान व लोकतन्त्र सम्मत समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी का ना होना। १९५० के बाद से किसी भी ब्राह्मणी या ब्राह्मणी रोग से ग्रसित सरकार, जिसने आज तक शासन किया है, द्वारा कभी भी देश के दलित-आदिवासी और पिछड़ों के सामाजिक उत्थान और जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए किसी कदम का ना उठाया जाना सबसे अहम् कारण है।
इस आधार पर बहुजन समाज और भीम आर्मी जैसे संगठनों को ये समझने की जरूरत है कि ये ब्राह्मणी मिडिया भीम आर्मी वालों को इतना कवरेज क्यों दे रही है ? हमारा स्पष्ट मत है कि ब्राह्मणी मिडिया भीम आर्मी का साथ इसलिए दे रही है क्योंकि भीम आर्मी का दिया "द ग्रेट चमार" की संकल्पना बहुजन समाज, बहुजन राजनीति, बहुजन एकता और बहुजन आन्दोलन के लिए कैंसर है। और, भारत के मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए "द ग्रेट चमार" रुपी कैंसर ब्राह्मणवाद के लिए प्राणवायु है। यही वजह है जिसके कारण ब्राह्मणी मिडिया द्वारा भीम आर्मी और "द ग्रेट चमार" को इतना कवरेज मिल रहा है। हालाँकि ये भी सच है कि "द ग्रेट चमार" और भीम आर्मी जैसे उन्मादी गैर-अम्बेडकरी संगठन इस बात से अन्जान है कि ये खुद अपने ही समाज के लिए कितने नुकसानदेह हैं। यही वजह है कि ये लोग ब्राह्मणों की चाल समझे बगैर अम्बेडकर कारवाँ के नाम पर ब्राह्मणवाद को मजबूत कर रहे है।
यदि किसी को ये लगता है कि "द ग्रेट चमार" की संकल्पना व भीम आर्मी जैसे संगठनों से बहुजनों का उद्धार हो जायेगा तो वो नादान है, नासमझ है। यदि किसी को लगता है कि "द ग्रेट चमार" और भीम आर्मी अम्बेडकरवादी है तो वो अज्ञानी हैं। क्योंकि, जय भीम कह देने मात्र से यदि कोई अम्बेडकरवादी हो जाता है तो ब्राह्मणी ब्रिगेड आजकल जय श्रीराम के बजाय जय भीम का ही जाप कर रही है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं है कि ब्राह्मण व ब्राह्मणी रोगी अम्बेडकरवादी हो गए है। अम्बेडकरवादी या अम्बेडकर अनुयायी बनने के लिए बाबा साहेब के विचारों के साथ-साथ बाबा साहेब के कारवाँ व कारवाँ के लक्ष्य को जानने व समझने की जरूरत है, बाबा साहेब का मिशन आपके कृत्य में दिखाई पड़ना चाहिए जो कि "द ग्रेट चमार" और भीम आर्मी वालों में पूरी तरह से नदारद है। इन लोगों ने भगवा आतंकवादियों की नक़लकर अपने माथे पर नीली पट्टी बाँधकर जय भीम करने के सिवा कुछ नहीं किया है। क्या ये अम्बेडकरवाद है ? उग्रता व उन्मादी भाषण अम्बेडकरवाद है क्या ? यही उग्रता सिखो के मामले में भिंडरवाला ने भी दिखाई थी। नतीजा, भिंडरवाला तत्कालीन सत्ता (कांग्रेस) के हाथों कठपुतली बनकर कांग्रेस के लिए काम करता रहा, और अंत में जब कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित होने लगा तो उसी कांग्रेस की सरकार ने देश की एकता-अखण्ता के नाम पर भिंडरवाला को नेपथ्य भेज दिया, कभी ना लौटने के लिए।
भिंडरवाला को मारने के चलते ही स्वर्ण मंदिर पर हमला हुआ जिसकी वजह से इंदिरा गाँधी की हत्या की गयी। परिणामस्वरूप, दिल्ली में ब्राह्मण द्वारा सिखों पर सुनियोजित आक्रमण किया गया जिसमें सरेआम सिर्फ और सिर्फ सिखों का क़त्ल-ए-आम हुआ, सिख महिलाओं और बच्चियों का गैंगरेप कर उनकों टायर में बांधकर जिन्दा जला दिया गया। मतलब कि जो भिंडरवाला सिखों का हितैषी बनकर सिखों के लिए काम करने का दम्भ भर रहा था वही भिंडरवाला ब्राह्मणों व ब्राह्मणी कांग्रेस सरकार के हाथ की कठपुतली बनकर अपने ही सिख समाज के लोगों की मौत का कारण बन गया, सिख महिलाओं व बच्चियों के गैंगरेप व जिन्दा जलाकर मारने की वजह बन गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भिंडरवाला एक दम्भी, अज्ञानी, उन्मादी व दिशाविहीन नौजवान था।
हमारे निर्णय में भिंडरवाला और भीम आर्मी के तथाकथित अध्यक्ष व इसकी गैंग के लोगों में कोई खास अंतर नहीं है। भिंडरवाला की तरह ही भीम आर्मी का अध्यक्ष भी दिशाविहीन, अज्ञानी, उन्मादी और नासमझ युवा है। भिंडरवाला का राजनैतिक इस्तेमाल ब्राह्मणी कांग्रेस ने किया था, भीम आर्मी वाले का राजनैतिक इस्तेमाल ब्राह्मणी बीजेपी कर रही है। भिंडरवाला की वजह से सिख मारे गए थे, भीम आर्मी की वजह से दलित मारे जा रहे है। भिंडरवाला ने अकाली दल का वोट काट कर कांग्रेस के लिए काम किया था, भीम आर्मी वाला भी, अपने स्थानीय स्तर पर ही सही, बीजेपी के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों की अपनी पार्टी बीएसपी का वोट काटने की फ़िराक़ में है।
ध्यान रहे, जब हम किसी जाति विशेष को बढ़ावा देते हैं या उसकी जातिसूचक अस्मिता को स्थापित करने की कोशिश करते हैं जैसे कि "द ग्रेट चमार" तो इससे सकल बहुजन समाज का बोध ना होकर एक जाति विशेष का बोध होता है! इसलिए इस प्रकार के नामों, विचारों व ऐसे मंदबुद्धि मूर्ख विचारकों की मूर्खता से जो बहुजन समाज देश का 85% हिस्सा है, स्वतः कई हिस्सों में टूट जाता है! परिणाम स्वरुप, पूरा का पूरा मूलनिवासी बहुजन समाज कमजोर पड़ जाता है। बुद्धिष्ट जीवन-शैली वाले मूलनिवासी बहुजन समाज की गुलामी का एक कारण उनका जाति के नाम पर कई वर्गों बँट जाना भी है।
फिलहाल, इन्हीं भीम आर्मी के लोगों की तर्ज़ पर ही कुछ अम्बेडकर भक्त / भक्तिन अपने राजनैतिक लाभ के लिए आत्मरक्षा के नाम पर खुद बहुजन समाज के लोगों के जीवन को ही खतरे में डालने का काम कर रहें हैं / रहीं है। ये अम्बेडकर भक्त / भक्तिन अपने भड़काऊ भाषणों में अक्सर कहते रहते है / कहतीं रहती है कि "आप सब अपने झण्डी में डंडी नहीं, लाठी लगाकर चलों"। अब सोचने वाली बात है कि मौजूदा सरकार ब्राह्मणी है, संविधान के बजाय मनुस्मृति से शासन चलाया जा रहा है, ब्राह्मणी शत्रु राजनैतिक-आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-शासनिक-प्रशासनिक तौर पर सशक्त है, ऐसे में क्या उससे उन्माद व हिंसा के जरिये पार पाया जा सकता है ? नहीं, बिलकुल नहीं। यदि हम किसी भी हिंसात्मक कृत्य की बात सोचेगें भी तो नुकसान बहुजन का ही होगा, हत्या बहुजनों की ही होगी, गैंगरेप बहुजनों की बहन-बेटियों का ही होगा। ऐसे में "झंडी की डंडी की जगह लाठी" की बात करने वाली मोहतरमा को ब्राह्मणी एजेंट पार्टियों से टिकट तो मिल जायेगा लेकिन बहुजन समाज की वही दुर्दशा होगी जो १९८४ में ब्राह्मणी आक्रमण में दौरान भिंडरवाला की वजह से सिखों का हुआ था। हमारा स्पष्ट मानना है क्रोध, उन्माद में छोटी-मोटी लड़ाईयाँ जीती जा सकती है, लेकिन सामाजिक परिवर्तन का महायुद्ध कभी नहीं। बहुजन समाज को अपना आन्दोलन उसी तर्ज़ पर लड़ना चाहिए जैसे कि गौतम बुद्ध, बाबा साहेब और मान्यवर काशीराम आदि ने अपने बहुजन आन्दोलन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए लोकतान्त्रिक संवैधानिक नैतिक मानवीय तार्किक व वैज्ञानिक तरीके से सकल मानवता के हित में बहुजन आन्दोलन को ना सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि बुलंदी के साथ लड़ते हुए लगातार फतेह भी हासिल की।
जय भीम...
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