प्रिय बहुजन साथियों,
आरक्षण को लेकर बहुजन भी बहुतायत में
गुमराह है, भ्रमित हैं! इसीलिए ब्रहम्णों की ही भाषा बोल रहे हैं! और, आरक्षण (बहुजन
समाज के लोगों के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के संवैधानिक व लोकतांत्रिक
अधिकार) को गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम ही समझ रहे हैं!
मतलब कि या तो स्वार्थ बस, अग्यानता
बस या फिर जनेऊ सभ्यता के प्रकोप के कारण, ये बहुजन समाज के भ्रमित लोग वही कर रहे
हैं जो ब्रह्मण चाहता है जबकि ये स्थापित सत्य है कि ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी कभी भी
किसी भी सूरत-ए-हाल में बहुजनों का हितैषी नही हो सकता है! हमारे निर्णय में, ऐसे भ्रमित
लोग ब्रहम्णी रोग से पीड़ित है! ऐसे लोगों को चाहिए कि वे अपने इलाज के लिए आरक्षण
के संदर्भ में बाबा साहेब को पढ़े, मान्यवर काशीराम साहेब को समझे - "जिसकी जितनी
संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी!"
जिन ब्रहम्णी रोगियों को लगता है कि
आरक्षण से बहुजनों का घर चलता है, आरक्षण रोज़गार का साधन मात्र है तो उनको पता होना
चाहिए कि बहुजन समाज की आबादी 100 करोड़ है लेकिन सरकारी नौकरी मुश्किल से 85 लाख बहुजनों
को ही मिली है (जिसमें क्लास सी व डी वालो की संख्या कुछ हद तक ठीक है जबकि क्लास ए
व बी की संख्या समुचित अनुपात में कम ही है क्योंकि क्लास ए व बी में आज भी आरक्षण
को समुचित ढंग से लागू नहीं किया गया है)! मतलब कि 99 करोड़ से अधिक बहुजन अपनी मेहनत
पर ही पल रहा है! इतिहास भी गवाह है कि बहुजन समाज हमेशा से श्रमण रहा है, अपनी मेहनत
की कमाई ही खाया है और आज भी श्रमण ही है और अपने मेहनत की कमाई खा रहा है! और, ये
बहुजन समाज आगे भी श्रमण ही रहेगा, खुद के मेहनत पर ही पल्लवित व फलित होता रहेगा!
जबकि सवर्ण, खासकर ब्रह्मण, पहले भी परजीवी व शोषक था और आज भी है! अतः स्पष्ट तौर
पर समझा जा सकता है कि आरक्षण से बहुजनों की जीविका नहीं चल रही है, और ना ही आरक्षण
बहुजन समाज की जीविका है! आरक्षण तो बहुजन समाज का संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकार
है!
(सनद रहे, बहुजन मतलब एससी एसटी ओबीसी
व कन्वर्टेड मॉइनोरिटीज!)
हमारे विचार से, सरकारी सेवा, नौकरी
आदि कभी भी रोजगार मात्र नही हो सकता है! आरक्षण देश की सत्ता व संसाधन के हर स्तर
पर समाज के हर तबके का समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी है, जबकि रोज़गार
एक बाई प्रोडेक्ट!
आरक्षण को गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
समझना, इस रूप में प्रचारित-प्रसारित करना आरक्षण की मूल भावना, इसको लेकर बाबा साहेब
की मंशा, मान्यवर काशीराम साहेब जी के अरमानों, बहन जी के सपनों व बहुजन समाज के लोगों
के संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकार की निर्मम हत्या करना है!
याद रहे,
आरक्षण बहुजन समाज के लोगों का देश
की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर उनका समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय
भागीदारी का संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकार है, नरेगा जैसा कोई गरीबी हटाओ कार्यक्रम
नहीं!
इस लिए यदि कोई आरक्षण को गरीबी हटाओ
कार्यक्रम समझता है तो वह ब्रहम्णी रोग से पीडित रोगी मात्र ही है!
धन्यवाद
जय भीम....
रजनीकान्त
इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
नवम्बर ३०, २०१७
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