प्रिय बहुजन साथियों,
आज देश के प्रति वफादारी की परिभाषा
बदल चुकी है! विकास के मायने बदल चुका है! सवालों व तर्को पर पाबंदी लगाई जा चुकी है!
विश्वविद्यालय व इसके पाठ्यक्रम तर्क व तथ्य के बजाय ब्रहम्णी विचारधारा को परोसकर
बुद्धिजीवी नही, हिन्दू आतंकवादी पैदा कर रहे हैं!
भारत की सरजमीं पर नौ दशकों से पल
रहा जातिवादी नारीविरोधी मनुवादी सनातनी वैदिक ब्रहम्णी हिन्दू आतंकवादी संगठन (आरएसएस)
का ब्रहम्णी हिन्दू आतंक समूचे भारत को अपने आगोश में समेट चुका है! संविधान को ताख
पर रखकर मनुवाद को पूर्णतः अंगीकार किया जा चुका है!
बुद्ध-अम्बेडकर की जन्म व कर्म भूमि
पर सरे-बाजार कत्ल-ए-आम किया जा रहा है! शोषक खुद को मसीहा बता रहा है! जंग-ए-आजादी
के दरमियान अंग्रेजी हुकूमत के लिए मुखबिरी करने वाले देश के वफादार कहे व कहलवाये
जा रहे हैं! भारत को पहचान दिलाने वाले कत्ल किये जा रहे हैं!
सरकारी कार्यालयों पर तिरंगे के बजाय
ब्रहम्णी आतंकवाद के प्रतीक भगवा ध्वज को निडारता से फहराया जा रहा है! गरीब लाचार
इंसान को कुल्हाड़ी से काटकर जिन्दा सिर्फ इसलिए जलाया जा रहा है क्योंकि वह मुसलमान
है! मुंगेर-भागलपुर में वंचित जगत को जानवरों के साथ जिन्दा जला दिया जा रहा है!
इंसानियत को शर्मसार करने वाले इन
दरिंदो को कुंठित ब्रहम्णी हिन्दू समाज अपनी रजामंदी ही नहीं दे रहा बल्कि इन दरिंदो
के समर्थन में सड़क पर आ चुका है!
संसद मौन है! न्यायपालिका में सन्नाटा
है! कार्यपालिका ऩिरंकुश है! चुनाव में ईवीएम मशीनों को नही बल्कि चुनाव आयोग को ही
हैक व हाईजैक किया जा चुका है!
मंजर यह है कि न्यायपालिका के जजेज,
चुनाव आयोग के आयुक्त, मानवाधिकार के संगठन, खुद मानवाधिकार आयोग व मुख्यधारा मीडिया
ब्रहम्णी हिन्दू आतंकवादियों की रखैल बन उनके बिस्तर पर लोट रही हैं!
मूलनिवासी समाज, उसकी अस्मिता व उनकी
की बहन-बेटिया पूर्णतः असुरक्षित है! मानवता कराह रही है! ब्रहम्ण व ब्रहम्णी रोगी
तांडव कर रहे हैं! ये ब्रहम्णी हिन्दू आतंकवादी सरेआम भारत के बदन को नोच रहे हैं!
ये हिन्दू आतंकवादी भारत का रेप नही, गैंग रेप कर रहे हैं! भारत लाचार है! लोकतंत्र
अंतिम सांसे गिन रहा है! संविधान को पहेले ही कैदकर कालकोठरी में पहुँचाया जा चुका
है!
दृश्य ऐसा है जैसे कि बेबस-लाचार भारत
किसी की राह देख रहा है! हॉ, ऱाह ही तो देख रहा है! उनकी राह जिन्होंने (मूलनिवासी)
भारत को विदेशियों (ब्रहम्ण-सवर्ण) से आजाद कराने का संकल्प उठाया था!
लेकिन दुःखद है क्योंकि, मूलनिवासी
समाज आज भी अपनी थोथी जातीय उच्चता व वर्चश्वता के लिए ही लड़ रहा है! भगवान के चंगुल
में फंसा भक्त बना हुआ है! अपने पुरखों को, अपने इतिहास को, अपने साथ हो रहे अत्याचार
को नजरअन्दाज करता नजर आ रहा है! लेकिन कब तक?
फिर भी मन के सुरंग के अंतिम छोर पर
आशा की किरण दिख रही क्योंकि लोकतन्त्र की खूबी है कि यह अपने घाव खुद ही भरता है!
लेकिन फिर भी मन चिंचित है क्योंकि भगवा आतंकवाद इस मंजर के खत्म होते-होते तमाम निर्दोषों
को दफन कर चुका होगा!
जय भीम, जय भारत!
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र इग्नू नई दिल्ली
दिसम्बर १७, २०१७
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