मेहनतकश वर्ग (बहुजन समाज) के संगठित होने
का अप्रतिम अवसर
भारत के मेहनतकश वर्ग के हक़ों के खिलाफ ब्राह्मणों सवर्णों और
पूंजीपतियों की कांग्रेस ने 1939 के दरमियान मजदूर वर्ग (बहुजन समाज) को
गुलाम बनाए रखने के लिए जो कानून पारित किया था, जिसके तहत मजदूरों द्वारा अपने हक
के लिए किए जाने वाले हड़ताल को भी दंडनीय अपराध करार दिया गया था, जिसमें जबरन
सुलह का प्रावधान था, उसके संदर्भ में देश के मजदूर वर्ग के महानायक
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर कहते हैं -
"विदेशी अंग्रेजों ने अपने राज में जो नहीं किया वह सब लोग करते
दिखाई देते हैं। जिन बातों के बारे में विदेशी अंग्रेजों को भी शर्म आती थी वह
बातें लोगों से मिले वादे के आधार पर चुने गए अपने ही देश के नेताओं ने की है।
निहत्थे सैनिकों पर गोलियां बरसा कर उन्हें जान से मार डालना पेट के लिए लड़ने
वाले कामगारों की हड़ताल को अपराध करार देने वाला कानून अंग्रेज सरकार नहीं बना
सकी थी जिसे कांग्रेस की सरकार ने बेझिझक बना रही है।"[1]
जब कांग्रेस ने भारत सरकार अधिनियम १९३५ के तहत हुए
चुनाव के परिणामस्वरूप अपनी प्रांतीय सरकार बनाई तो कांग्रेस ने भी
शरमायादारों के हक में मजदूरों का हक छीनकर उन्हें गुलाम बनाए रखने के लिए कानून
बना रही थी। ठीक यही हालात आज फिर देश में पैदा हो गया है। जहां पर सिर्फ पार्टी
का नाम बदल गया है। गौर कीजिए भारतीय जनता पार्टी की मंशा, इस पर काबिज लोग और
इसका विधान बिल्कुल वही है जो कांग्रेस का उस समय अलिखित तौर पर हुआ
करता था और आज भी हैं। इसीलिए मान्यवर कांशी राम साहब ने बीजेपी और कांग्रेस के
संदर्भ में एक को सांपनाथ तो दूसरे को नागनाथ कहा है।
जिस तरह से कांग्रेस शरमायादारों के इशारों पर देश के
मेहनतकश को गुलाम बनाए रखने के लिए कानून बना रही थी। ठीक उसी प्रकार आज भारत में
भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकारों ने, केंद्र सरकार की मंशा से,
धन्नासेठों के हाथों में देश के मेहनतकश को गुलाम बनाए रखने के लिए उनके
अधिकारों को 3 साल के लिए निलंबित करने का अध्यादेश लाकर उसे कानूनी जामा
पहना दिया है। इसके मुताबिक ना सिर्फ उनके अधिकारों को निष्प्रभावी कर दिया
गया बल्कि अब देश के मेहनतकश वर्ग को 8 के बजाय 12 घंटे मजदूरी करनी पड़ेगी।
इतिहास खुद को दुहरा रहा है। मजदूर वर्ग के महानायक बाबा
साहब डॉ अम्बेडकर के जमाने में कांग्रेस ने और मेहनतकश
वर्ग की मसीहा बहन कुमारी मायावती जी के समय में भाजपा ने मेहनतकश वर्ग
के खिलाफ कठोर कानून लाकर देश के मजदूर वर्ग को गुलाम बना दिया है।
उस समय (१९३८) बाबा साहब ने सदन से लेकर के सड़क तक, हर मंच और अपने
लेख व पत्र के माध्यम से देश के मेहनतकश समाज के हित में सरकार के काले कानून के
खिलाफ जंग छेड़ रखा था। ठीक उसी तरह से आज (२०२०) देश में देश के मेहनतकश पिछड़े,
वंचित और आदिवासी मजदूर समाज के हक के लिए मजदूर वर्ग की महानायिका बहन कुमारी
मायावती जी ने भी पुरजोर विरोध करते हुए मजदूर हकों के लिए पैरवी कर रही हैं।
ब्राह्मणवादियों और पूंजीपतियों की पालतू भाजपा सरकार के इस काले
कानून (अध्यादेश) के खिलाफ बहन जी ने ट्विटर, प्रेस विज्ञप्ति और प्रेस कांफ्रेंस
के माध्यम से कहा है कि कोरोना प्रकोप में मजदूरों श्रमिकों का सबसे ज्यादा बुरा
हाल है। फिर भी उनसे 8 के बजाय 12 घंटे काम लेने की शोषणकारी व्यवस्था पुनः देश
में लागू करना अति दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। श्रम कानून में बदलाव देश की रीढ़
श्रमिकों के व्यापक हित में होना चाहिए, ना कि कभी भी उनके अहित में।
मजदूरों की स्वस्थ जीवन के लिए बाबा साहब द्वारा किए गए युग
क्रांतिकारी परिवर्तन का हवाला देते हुए भारत में लोकतंत्र की महानायिका बहन
कुमारी मायावती जी कहती हैं कि परम पूज्य बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने श्रमिकों के
लिए प्रतिदिन 12 घंटे नहीं, बल्कि 8 घंटे श्रम व उससे ज्यादा काम करने पर ओवरटाइम
देने की युग परिवर्तनकारी काम तब किया था जब देश में श्रमिकों/ मजदूरों का शोषण
चरम पर था। भाजपा सरकार से सवाल करते हुए बहन जी कहती हैं कि बाबा साहब डॉ भीमराव
अंबेडकर द्वारा किये गये युग परिवर्तनकारी कानून को बदल कर देश की मेहनतकश बहुजन
समाज को उसी शोषणकारी युग में धकेलना क्या उचित है?
देश के मजदूर बहुजन समाज की दुश्वारियां को गहराइयों से महसूस करते
हुए आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती जी मौजूदा भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारों से
अपील करते हुए कहती हैं कि देश में वर्तमान हालात के मद्देनजर श्रम कानून में ऐसा
संशोधन करना चाहिए ताकि खासकर जिन फैक्टरी/प्राइवेट संस्थानों में श्रमिक कार्य
करते हैं वही उनके रुकने आदि की व्यवस्था हो। किसी भी स्थिति में वह भूखे ना मरे,
और ना ही उन्हें पलायन की मजबूरी हो। ऐसी कानूनी व्यवस्था होनी चाहिए।
भाजपा सरकार की बहुजन विरोधी और पूंजीवादी मानसिकता को स्पष्ट करते
हुए भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन जी कहती हैं कि वैसे तो अभी कुछ
काम का पता नहीं है। परंतु सरकारें बेरोजगारी व भूख से तड़प रहे करोड़ों
श्रमिकों/मजदूरों के विरुद्ध शोषणकारी डिक्टेट लगातार जारी करने में तत्पर है। यह
अति दुखद व सर्वदा अनुचित है। जबकि इस कोरोना के संकट में इन मजदूरों को ही सबसे
ज्यादा सरकारी मदद व सहानुभूति की जरूरत है।
साथ ही मजदूरों के प्रति सरकार की क्रूर मंशा को दुनिया के सामने
रखते हुए मान्यवर कांशीराम साहब की शिष्या बहन कुमारी मायावती जी महाराष्ट्र के
औरंगाबाद के निर्दयी हादसे का जिक्र करते हुए कहती है कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद
के पास मालगाड़ी द्वारा रौंद दिए जाने से घरों को पैदल लौटने वाले लाचार व मजबूर
19 प्रवासी मजदूरों की मौत पर गहरा दुख हुआ। रोष व्यक्त करते हुए मजदूर वर्ग की
महानायिका बहन कुमारी मायावती जी कहती हैं कि उस घटना का दृश्य बहुत ही
विचलित करने वाला है, तथा यह सब केंद्र व राज्य सरकारों की लापरवाही व
असंवेदनशीलता का परिणाम है।
आगे, मजदूर वर्ग की राश्ट्रीय नेता बहन कुमारी मायावती जी कहती
हैं कि एक तरफ तो सरकारें भूखे व लाचार लाखों प्रवासी मजदूरों से घोर अमानवीय
व्यवहार करते हुए उनसे क्रूरता के साथ किराया भाड़ा तक वसूल रही हैं, तो दूसरी तरफ
अमीरों के लिए दयावान बनी हुई हैं। जोकि सरकार की गरीब व मजदूर-विरोधी व
धन्नासेठ-समर्थक आचरण को स्पष्ट करती है।
मजदूरों के दुःख को एहसास करते हुए बहन जी कहती हैं कि केंद्र व
राज्य सरकारे प्रवासी मजदूरों को ट्रेनों व बसों आदि से भेजने के लिए उनसे किराया
भी वसूल रहीं हैं। ब्राह्मणी व पूंजीपतियों द्वारा पोषित सरकारों के ढुलमुल रवैये
पर कड़ा ऐतराज़ जताते हुए बहन जी सभी सरकारों से कहती हैं कि या तो आप मजदूरों
को सरकारी खर्चें पर उनके घर पहुँचाने की व्यवस्था कीजिये या फिर स्पष्ट कीजिये की
आप मज़दूरों का किराया नहीं दे पाएगीं। यदि सरकारें मज़दूरों का किराया नहीं दे सकती
हैं तो बतायें जिससे कि बीएसपी अपने सामर्थ्यवान लोगों से मदद लेकर देश की रीढ़
मेहनतकश बहुजन वर्ग को उनके घर भेजने में कर सकें।
कोरोना की इस महामारी के दौर में सबसे पीड़ित
वर्ग देश का गरीब मेहनतकश वर्ग हैं। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर बहन जी
कहती हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस,
जिसे मई दिवस के रूप में, मजदूर व मेहनतकश वर्ग हर वर्ष धूमधाम से मनाते हैं,
परन्तु वर्तमान कोरोना महामारी व लाॅकडाउन के कारण उनकी रोजी-रोटी पर अभूतपूर्व
गहरा संकट छाया हुआ है। ऐसे में केन्द्र व राज्यों की कल्याणकारी सरकार के रूप में
भूमिका बहुत ही जरूरी है। इसलिए केन्द्र व राज्य सरकारों से अपील है कि वे
करोड़ों गरीब मजदूरों व मेहनतकश परिवार वालों के जीवनदायी हितों की रक्षा में
सार्थक कदम उठाएं व उन बड़ी प्राइवेट कम्पनियों का भी संज्ञान लें जो केवल अपना
मुनाफा बरकरार रखने के लिए कर्मचारियों की सैलरी में मनमानी कटौती कर रही हैं।
दुनिया जब कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहीं हैं ऐसे में बहन जी सबसे
पहले राजनीति से ऊपर उठकर अपने सभी सांसदों, विधायकों, पार्षदों, पंचायत सदस्यों
और ग्राम प्रधानों के साथ-साथ अपने बीएसपी कार्यकर्ताओं और बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी
मिशन के अनुयायियों से भी मेहनतकश वर्ग के हित में आर्थिक सहयोग की अपील करती हैं।
और, सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं सभी लोगों ने बहन जी की आज्ञा का पालन करते हुए एक
अनुशासित संगठन के अनुशासित सदस्य की तरह दिल खोलकर सहयोग करते हैं। जगह-जगह सडकों
पर पैदल, सायकिल आदि से अपने-अपने वतन लौटने वाले मेहनतकश के लिए भोजन, पानी व
शरबत आदि की व्यवस्था करते हुए बसपा के कार्यकर्ता और जिलाध्यक्ष पूरी तत्परता से
लगे हुए हैं।
फिलहाल, यदि इस बात पर गौर किया जाए तो हम
पाते हैं कि चाहे कांग्रेस रही हो या आज की भाजपा, ये दोनों ही पार्टियां
ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी हैं। इनके नीति निर्धारण के कार्यकारिणी में ब्राह्मणों
और शर्मायेंदारों का कब्जा है।
ब्राह्मण जहां पिछड़ी जातियों, वंचित जगत और आदिवासी पर सामाजिक तौर
पर शोषण करने की युक्ति करता रहता है, वहीं दूसरी तरफ धन्नासेठों का गिरोह देश की
रीढ मेहनतकश मजदूर का खून पसीना चूस कर अपनी अट्टालिकायें खड़ी करने व निज स्वार्थ
मात्र के लिए दौलत बटोरने की जद्दोजहद में तरह-तरह के षड्यंत्र करता रहता है। इसी
का परिणाम है कि ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी शक्तियों ने मिलकर के कोरोना महामारी
की आड़ में देश के मेहनतकश वर्ग को गुलाम बनाए रखने का एक घिनौना कुचक्र रचा है।
यहां ध्यान देने योग्य है कि ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद दो अलग-अलग
विचारधाराओं का जिक्र किया गया है। लेकिन हकीकत में भारत के सामाजिक संरचना पर
निगाह डालने पर स्पष्ट हो जाता है कि यह दोनों विचारधारायें अलग-अलग नहीं, बल्कि
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक दूसरे की पोषक हैं। दोनों का उद्देश्य एक
हैं - देश के बहुजन समाज का दमन। भाजपा-कांग्रेसी आदि ब्राह्मणी दलों की
ब्राह्मणवादी मानसिकता जहां जाति के आधार पर शोषण करती है तो वही इन ब्राह्मणवादी
दलों को धन मुहैया कराने वाले धन्नासेठ अपने पालतू सरकारों की शह पर पूंजीवादी
नीतियों से देश के मजदूर वर्ग (बहुजन समाज) का शोषण करती है।
याद रहे,
देश का बहुजन समाज (अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग
और कन्वर्टेड मॉयनार्टीज) ही भारत का मेहनतकश मजदूर श्रमिक वर्ग है। बहुजन समाज ही
भारत में श्रमण व नास्तिक संस्कृति का वाहक हैं।
यहां गौर करने वाली बात है कि ब्राह्मणवादियों
और पूंजीपतियों, इन दोनों का शिकार, इन दोनों का लक्ष्य एक ही है - मेहनतकश बहुजन
समाज, और इसका हर संभव शोषण। सनद रहे, देश का मेहनतकश कोई और नहीं, देश का पिछड़ा
वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग ही हैं। स्पष्ट हैं कि ब्राह्मणी व
पूंजीवादी सरकारों का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ देश के बहुजन समाज, जोकि श्रमण
संस्कृति का वाहक है, के बढ़ते राजनीतिक कदमों को रोक कर उनकी सामाजिक आर्थिक
शैक्षणिक और सांस्कृतिक तरक्की पर किसी भी तरह से रोक लगाना।
ऐसे में देश के मेहनतकश बहुजन समाज के लिए यह बहुत ही दुख की घड़ी
है। इस समय देश का मेहनतकश वर्ग क्रूर तानाशाही के जुल्म से होकर गुजर रहा है। ऐसे
में देश के बहुजन समाज को, जो कि देश का मेहनतकश वर्ग है, को चाहिए कि वह अपने
संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकारों का संपूर्ण इस्तेमाल करते हुए अपनी सुरक्षा,
अपने हक, अधिकार, संविधान और लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए कमर कस कर
तैयार हो जाए।
बाबा साहब की यह बात ध्यान देने योग्य है जो 7 नवंबर 1938 की मुंबई
कामगरो की हड़ताल सफल होने के बाद शाम के समय डेढ़ लाख कर्मचारियों की सभा को
मुम्बई कामगार मैदान पर संबोधित करते हुए भारत के मजदूर वर्ग के मसीहा बाबा साहब
डॉ अम्बेडकर कहते हैं कि यह काला कानून हमारी छाती पर सवार होने वाला है,
जिसके तहत हड़ताल को आपराधिक कृत्य करार किया जाने वाला हैं। क्या हम सिर्फ यही
करते रहेंगे कि कांग्रेस कानून बनाएगी और हम उसका विरोध करेंगे, केवल झंडे
फहराएंगे, नारे लगायेंगे और फिर बैठे रहेंगे। यदि ऐसा है तो मैं कहूंगा कि आप जैसा
महामूर्ख कोई नहीं है। जिस कांग्रेस सरकार ने घोड़े पर सवार होकर हमारे अधिकारों
पर लगाम लगाई है, उस कांग्रेस सरकार को ही उड़ा देना सही है। [2]
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर द्वारा बोला गया यह स्टेटमेंट आज भी पूर्ण
रूप से प्रसांगिक है। देश के हालात बद से बदतर हो चुके हैं। देश में बेरोजगारी आज
तक सबसे चरम पर है। अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। हिंदू आतंक तांडव कर रहा है।
सरकार निरंकुश व तानाशाह हो चुकी हैं। ब्राह्मणवाद चारों तरफ आतंक फैलाए हुए हैं। शरमायादारों ने
मजदूरों को गुलाम बनाने की राह प्रशस्त करवा ली है। ऐसे में यह मेहनतकश मजदूरों (बहुजन
समाज) के संगठित होने का अप्रतिम अवसर है।
ऐसे में, क्यों ना देश का मेहनतकश मजदूर (बहुजन समाज) देश में बाबा
साहेब की वैचारिक पुत्री के नेतृत्व में एक झण्डा (नीला), एक पार्टी (बीएसपी), और
एक बहुजन महानायिका (बहन कुमारी मायावती) के नेतृत्व में संगठित होकर संवैधानिक व
लोकतांत्रिक अधिकारों का संपूर्ण इस्तेमाल करके उस सरकार को ही ध्वस्त कर दे जिस
सरकार ने देश की मेहनतकश मजदूर (बहुजन समाज) जनता के माथे पर गुलामी का ठप्पा लगाया है।
क्यों ना इस देश का मेहनतकश वर्ग बहन जी के कुशल नेतृत्व में नीले झण्डे के नीचे
बसपा के मंच पर एकत्रित होकर बाबा साहेब के उस सपने को साकार कर दे जिसका ऐलान
बाबा साहेब ने १६ मई १९३८ को चिपलून में देश के किसानों, खेतिहर-मजदूरों और
फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों की सभा में बाबा साहेब किया था कि
"आप (बहुजन समाज) में से किसी को इस देश का प्रधानमन्त्री बना हुआ मैं देखना
चाहता हूँ। मुट्ठीभर सफेदपोशों का नहीं, मैं आप ८५% लोगों का राज़ चाहता
हूँ।"[3]
जय भीम जय भारत जय संविधान, नमो बुद्धाय
रजनीकान्त
इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच,
इग्नू-नई दिल्ली
उद्धरण -
[1] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण
वाड़्मय, खंड-39 भाग -2, पृष्ठ संख्या-234
डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और
अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019)
[2] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण
वाड़्मय, खंड-39 भाग -2, पृष्ठ संख्या-203
डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और
अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019)
[3] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर
संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग -2, पृष्ठ संख्या-142
डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और
अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019)
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