Wednesday, May 13, 2020

बहन कुमारी मायावती जी - भारत में सामाजिक परिवर्तन करती आ रहीं भारत महानायिका

बहन कुमारी मायावती जी
भारत में सामाजिक परिवर्तन करती आ रहीं भारत महानायिका

यदि भारत के संघर्षमयी इतिहास पर सिल-सिलेवार नज़र डाले तो हम पाते है कि भारत में समतामूलक समाज के स्थापना के लिए सामाजिक परिवर्तन की एक शास्वत परम्परा रहीं हैं। जिसमें ईश्वर का कोई स्थान नहीं रहा हैं। गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक, संत शिरोमणि संत रैदास, कबीर दस, गुरु घासीदास, नानक, ज्योतिर्बा फुले, माता सावित्रीबाई फुले, शाहूजी महाराज आदि जैसे महान संतों-गुरुओं ने अपने-अपने समय में मानवता हित में नास्तिकता की परम्परा को सतत आगे बढ़ाने का कार्य किया हैं। इस इतिहास की कड़ी में जब बर्बरता चरम पर पहुँच चुकी थी, ऐसे समय में भारत के फलक पर ज्योतिपुंज बोधिसत्व बाबा साहेब का उदय होता हैं।
बहुजन संतों-गुरुओं की वैचारिकी, अपने विवेक और अथक संघर्ष से बाबा साहेब ने सहस्त्रब्दियों से कायम ब्राह्मणवादी व्यवस्था व इसके शास्त्रों की बुनियाद को ही ध्वस्त कर दिया। बाबा साहेब के इस मिशन को मान्यवर काशीराम साहेब और बहन कुमारी मायावती जी ने आगे बढ़ते हुए ना सिर्फ अपने इतिहास और संस्कृति को जीवित किया बल्कि सदियों से गुलामी कर रहें समाज में शासक होने की महत्वकांक्षा जगाकर भारत के सामाजिक ताने-बाने को चुनौती देते हुए भारतीय राजनीति के मूल स्वरुप को ही बदल दिया हैं।
ब्राह्मणवादी मान्यताओं को कुचलती बहन जी
भारत के इतिहास में ०३ जून (१९९५); २१ मार्च (१९९७); ०३ मई (२००२) और १३ मई (२००७) की तारीखे बहुत अहम् हैं। ब्राह्मणी व्यवस्था के अनुसार ०३, २१, १३ आदि अंक बहुत अशुभ मन जाता हैं। इसकी पुष्टि इस बात से की जा सकती हैं कि जब स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा ध्वज फहराने की तैयारी चल रहीं थी, तब आरएसएस ने अंग्रेजी मुख्यपत्र (आर्गेनाइजर) के १४ अगस्त १९४७ वाले अंक में राष्ट्रिय ध्वज के तौर पर तिरंगे के चयन की खुलकर भर्त्सना करते हुए लिखा है कि "तीन का आंकड़ा अपने आप में अशुभ हैं, और एक ऐसा झण्डा जिसमे तीन रंग हो बेहद ख़राब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुकसानदायक होगा।[1]" बहन जी ने इन्हीं ब्राह्मणी अशुभ अंकों वाली तारीखों को चार-चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर इनके भ्रम व मिथक को रौदते हुए देशवासियों को अन्धविश्वास, ढोंग और पाखण्ड से मुक्त जीवन जीने का सन्देश देती हैं।
किसी भी देश या समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, ढोंग, पाखण्ड की भर्त्सना करते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन की बुनियाद बुद्धिवाद होनी चाहिए।[2]" इन्हीं सिद्धांतों को जीवन में उतार कर बहन जी समाज को बुद्धिवाद का सन्देश देती हैं। अन्धविश्वास और पाखण्ड की परम्परा को कुचलते हुए भारत में सामाजिक परिवर्तन की महानायिका व बाबा साहेब की वैचारिक पुत्री व मान्यवर साहेब की प्रिय शिष्या बहन कुमारी मायावती जी हिन्दुओं की अशुभ तारीखों को ही एक नहीं, दो नहीं, बल्कि चार-चार बार भारत में सर्वाधिक आबादी वाली उत्तर प्रदेश की बागडोर सम्भाल कर ऐसी हुकूमत की जिसकी मिशाल सम्राट अशोक महान से दी जाती हैं।
मान्यवर काशीराम साहेब की प्रिय शिष्या और उनकी एकमात्र उत्तराधिकारी होने का फ़र्ज़ निभाते हुए मान्यवर साहेब के इच्छानुरूप बहन जी ने मान्यवर साहेब की चिता को अग्नि दिया। ऐसा करके, समता का सन्देश देते हुए बहन जी ने ब्राह्मणी व्यवस्था की पुरुषवादी उस सोच को ठोकर मार दिया जिसमें ये मान्यता हैं कि चिता को अग्नि बेटा (पुरुष) ही देता हैं, जोकि पुरूषप्रधानता (ब्राह्मणवाद) का द्योतक हैं।
मनुवादी संस्कृति ने नारी को भोग-विलास की वस्तु करार किया हैं। ब्राह्मणी संस्कृति ने नारी को गुलाम का दर्ज़ा देकर उसके इंसानी अस्तित्व को नकारता रहा हैं। नारी को सजावट का सामान बनाने वाली ब्राह्मणी व्यवस्था को बहन जी ने ना सिर्फ सर के बल खड़ा कर दिया बल्कि अपने जोर-ए-संघर्ष की बदौलत भारत के राजनैतिक छाती पर लगातार गोल करते हुए उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर चार-चार ऐसी हुकूमत की कि आने वाले हाकिमों के लिए मार्गदर्शक व मिशाल बन गयी।
पिछड़े वर्ग की एक मात्र आवाज़ 
बहन जी पूरे देश में पिछड़े वर्ग और आदिवासी जगत के लिए शुरू से ही आवाज उठती रहीं हैं। पिछड़े वर्ग की उन्नति और उनके साथ हर तरह का न्याय बहन जी के आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहा हैं। बहन जी ने पिछड़े वर्ग के लिए बहुत सारे कार्य किये हैं लेकिन मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाकर मान्यवर साहेब और बहन जी भारत के राजनैतिक ताने-बाने को ही बदल दिया हैं। जग जाहिर हैं कि पिछड़े वर्ग के हक़ में मण्डल कमीशन की रिपोर्ट को क्रियान्वित कराने में जिन दो महान शख्सियतों ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनमे में लोकतंत्र के महानायक मान्यवर काशीराम साहेब और बहन कुमारी मायावती जी ही शामिल हैं। 
मान्यवर साहेब के साथ पिछड़ों के हक़ में आवाज बुलंद करने वाली बहन जी ही थी जिन्होंने मान्यवर के इस नारे को हर किसी की जुबां का तकिया कलाम बना दिया।
"मण्डल कमीशन लागू करों, वर्ना सिंहासन खली करों।"
ये नारा अस्सी के दशक में हर पिछड़े को झकझोर रहा था। लेकिन दुखद हैं कि पिछड़े वर्ग के लोगों में भी मान्यवर साहेब और बहन जी की जाति के प्रति इतनी घृणा भरी हैं कि वो पिछड़े वर्ग के मसीहा मान्यवर साहेब और बहन जी के संघर्षों को याद करने के बजाय सवर्ण विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपना मसीहा समझ रहा हैं। पिछड़े वर्ग की इस दुर्बुद्धि पर तरस आता हैं कि पिछड़ा वर्ग आज भी अपने हितैषी और अपने शोषक को चिन्हित नहीं कर पाया हैं।
फिलहाल इन सबके बावजूद यदि पूरी समग्रता के साथ अध्ययन करे तो हर निष्पक्ष विद्वान इसी नतीजे पर पहुँचता हैं कि भारत में बाबा साहेब और मान्यवर साहेब के बाद यदि पिछड़ों के लिए कोई पूरी ईमानदारी और निष्ठां के साथ कार्य कर रहा हैं तो वह भारत में पिछड़े वर्ग की एक मात्र राष्ट्रिय नेता बहन जी ही हैं।
समुचित स्वप्रतिनिधित्व व समुचित भागीदारी के सन्दर्भ में
मान्यवर काशीराम साहेब ने आवाज दी हैं कि "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी।" ये नारा भारत के लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए देश के हर नागरिक को उसके वाज़िब हक़ की पैरवी करता हैं। इसी कारण मान्यवर काशीराम साहेब को भारत लोकतंत्र का महानायक कहा जाता हैं।
बहन जी ने अपने शासनकाल में पहली बार उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को सरकारी संस्थाओं में उनका वाज़िब हिस्सा दिया। बसपा सरकार में पहली बार पिछड़े वर्ग ने स्वच्छ भर्ती के तहत आरक्षण का पूरा लाभ उठाया। बहन जी के नेतृत्व में ही पहली बार उत्तर प्रदेश के लोगों को विकास और रोजगार का अप्रतिम अवसर मिला। इसीलिए बहन जी के कार्यों और प्रशासन के संदर्भ में उत्तर प्रदेश की जनता खुद कहती हैं कि बहना का हैं एक ही पैगाम, स्वच्छ प्रशासन, उम्दा काम।
अपने शासनकाल में पिछड़े वर्ग के साथ-साथ अन्य वर्गों के लोगों की भागीदारी को तय करते हुए बहन जी लगातार निजी क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की मांग करती आ रहीं हैं। बहन जी ने अपने शासन काल में पिछड़े वर्ग के एक बड़े हिस्से के लिए पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान लागू किया जिसके जरिये सम्पूर्ण पिछड़े वर्ग के लिए पदोन्नति में आरक्षण का रास्ता खुल रहा था लेकिन खुद को सवर्ण समझने वाले एक शूद्र मुख्यमंत्री, (अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी), ने पिछड़े वर्ग के हक़ के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के बजाय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पदोन्नति पाये लोगों को पदावनत करने में ज्यादा बहादुरी समझी। ऐसा करके समाजवादी की उत्तर प्रदेश सरकार ने देश के कहार, कुम्हार, बरई, नाई, कुर्मी, अहीर, भर, मुस्लिम आदि के पदोन्नति में आरक्षण की राह पर ताला लगाने का कार्य किया हैं।
जहाँ एक तरफ पिछड़े वर्ग के एक बड़े हिस्से के लिए पदोन्नति में आरक्षण के लिए बहन जी ने पूरी ताकत से कांग्रेस की केंद्र सरकार पर दबाव बनायीं हुई थी वहीं दूसरी तरफ खुद को क्षत्रिय समझने वाले मुलायम सिंह यादव ने तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार को धमकी दे रहे थे कि यदि केंद्र ने पिछड़े वर्ग के बड़े हिस्से के हक़ में पदोन्नति में आरक्षण का बिल पास किया तो वो केंद्र से समर्थन वापस ले लेगें।[3] बहन जी व बसपा के दबाव में जब केंद्र सरकार संसद में पदोन्नति में आरक्षण का बिल लेकर आयी तो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के नेताओं में संसद में पदोन्नति में आरक्षण का बिल फाड़ दिया।[4]
देश के पिछड़े वर्ग के एक बड़े हिस्से के प्रति मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के नफरत को ससंद के भीतर ही नहीं, बल्कि बाहर भी देखा जा सकता हैं। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के पिछड़े वर्ग के पदोन्नति में आरक्षण का रास्ता बंद करने के लिए अपनी ताकत झोंक रहें थे। ऐसे समय में अपनी सूझ-बूझ से पिछड़े वर्ग की एक मात्र नेता बहन जी पूरे देश के अन्य सभी दलों को बिल के समर्थन में लाने के लिए अकेले ही जद्दोजहद कर रहीं थी।
खुद को सवर्ण समझने वाले समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव जैसों के विरोध के बावजूद भी पूरी तन्मयता के साथ कहार, कुम्हार, बरई, नाई, कुर्मी, अहीर, भर, मुस्लिम आदि पिछड़े वर्ग की एक मात्र राष्ट्रिय नेता बहन जी पूरी सिद्धत से देश के अहीरों, कुर्मियों, नाईयों, भरों, मुस्लिमों आदि को उनका वाज़िब दिलाने के लिए संसद के अलावा हर संभव मंच पर पिछड़े वर्ग आवाज बनकर संघर्ष कर रहीं हैं।
कुशल प्रशासक
          बहन जी विकास और भारत निर्माण के कार्य तो जगजाहिर हैं। ऐसे बहन जी के शासन में कानून-व्यवस्था की तरफ रुख करें तो हम पते हैं कि तो बहन जी व उनका संविधान सम्मत शासन एक मिशाल हैं। ऐसा शासन आज़ादी के भारत के इतिहास में इसके पहले नहीं मिलता हैं। यहीं वजह रहीं हैं कि बहन भी भारत में संविधान सम्मत शासन का प्रतीक बन चुकी हैं। उनके कार्यकाल में गुण्डे-मावली प्रदेश छोड़कर दूसरे प्रदेशों में बस गए थे। कुछ तो नेपाल आदि देशों में शरणागत हो गए थे। बहन जी के प्रशासन के सन्दर्भ में अपनी किताब 50 बहुजन नायक में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास - डॉ पूजा रॉय लिखते हैं कि "सख्त प्रशासन के लिए विपक्षी भी उनका लोहा मानते हैं”[5]
उत्तर प्रदेश में हिन्दू-मुस्लिम दंगों का एक चलन सा हो गया हैं। हिन्दुओं का वोट इकट्ठा करने के लिए बीजेपी जैसे दल तो मुस्लिमों की अज्ञानता का भरपूर लाभ उठाने के लिए समाजवादी पार्टी आदि ने मुस्लिमों को लामबंद कर सत्ता का पारिवारिक सुख उठाया हैं। यदि उत्तर प्रदेश के हिन्दू-मुस्लिम दंगों पर गौर किये जाय तो ये दंगे भाजपा और समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में ही हुए हैं।
मुजफरनगर दंगा-२०१३ हिन्दू-मुस्लिम लामबन्दी और वोट की राजनीति का पुख्ता प्रमाण हैं। मुजफ्फरनगर दंगों में पीड़ित लोग आज भी कैम्पों में गुजर-बसर कर रहें हैं। दंगा शांत होने के बाद यदि तत्कालीन सपा सरकार चाहती तो उनकों विशेष पैकेज देकर वापस बसा सकती थीं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। क्योंकि मुस्लिम जितना परेशान होगा, समाजवादी पार्टी का मुस्लिम वोट बैंक उतना ही मजबूत होगा। लेकिन यदि आप बहन जी के शासन पर गौर करे तो आप पायेगें कि उन्होंने कभी किसी भी तरह के दंगों को पनपने का अवसर ही नहीं दिया। यहीं कारण रहा हैं कि बहन जी का कार्यकाल पूरी तरह से दंगामुक्त रहा हैं।
२०१० में जब बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले में इलाहबाद उच्च न्यायलय का फैसला आने वाला था उस समय कोई अप्रिय घटना ना घट जाये, ऐसा सोचकर पूरा देश दहशत में था। लेकिन उत्तर प्रदेश को बहन जी ने सख्त व संविधान सम्मत ऐसा शासन अता किया कि उत्तर प्रदेश में किसी अप्रिय घटना को अंजाम देने की बात तो दूर, किसी असामाजिक अराजक तत्व को इसके बारे में सोचने की भी हिम्मत नहीं हुई।
बहन जी ने पूरे उत्तर प्रदेश में संविधान व कानून का ऐसा राज कायम किया कि प्रदेश में पहली बार हर जाति व धर्म के लोगों ने अपने आपको सुरक्षित महसूस किया। उनकों संविधान, लोकतंत्र व कानून की शक्ति का एहसास हुआ। इस प्रकार उत्तर प्रदेश के लोगों के मन में पहली बार संविधान, लोकतंत्र और कानून ने प्रति सम्मान व श्रद्धभाव देखने को मिला। बहन जी के शासन के संदर्भ में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास - डॉ पूजा रॉय लिखतेहैं कि "चाहे किसी जाति या धर्म का व्यक्ति हो प्रदेश की आमजनता ने बसपा शासन में हमेशा सुरक्षित महसूस किया।[6]"
ब्रिटिश पद्धति पर कार्य करने वाली भारत की नौकरशाही जनता से ढंग से पेश तक नहीं आती थी। थानों में प्राथमिक सूचना रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं होती थी। नौकरशाही पूरी तरह से निरंकुश बन चुकी थीं। ऐसे में बहन जी ने पहली बार नौकरशाहों को उनका कर्तव्य बताया। जनता के साथ कैसे पेश आते हैं, इसका सलीका सिखाया। जहाँ एक तरफ कर्तव्यों से विमुख और अपने पॉवर का दुरूपयोग करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करते हुए दर्जनों की तादाद में निलंबन व स्थान्तरण किया, वहीँ दूसरी तरफ ईमानदार और कर्तव्य-परायण अधिकारियों और कर्मचारियों को सम्मानित भी किया।
बहन जी पहली अधिकारियों-कर्मचारियों के सामन्ती रवैये पर पूरी तरह लगाम लगा कर जनता को जनता के शासन का एहसास करा दिया। पहली बार जनता ने स्वशासन का स्वाद चखा और खुद को सामंती मानसिकता वाले नौकरशाहीं के गुलाम होने के बजाय देश का शासक महसूस किया। बहन जी और उनके मुख्यमंत्रित्व काल के बारे में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास - डॉ पूजा रॉय लिखती हैं कि “वह उत्तर प्रदेश की पहली ऐसी नेता हैं जिन्होंने नौकरशाहों को बताया वह मालिक नहीं, जनसेवक हैं”[7]
बहुजन इतिहास के प्रति सजगता 
बाबा साहेब कहते हैं कि जो अपना इतिहास नहीं जानता हैं, वो कभी इतिहास नहीं बना सकता हैं। बहन जी खुद एक सुशिक्षित और अपने समाज, संस्कृति के प्रति सजग नागरिक रहीं हैं। बहन जी की इसी जागरूकता और सजगकता का परिणाम हैं कि उन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज का इतिहास, संस्कृति और उसके महानायकों-महनायिकाओं के सदेश को संगमरमर के कठोर निर्दयी पत्थरों पर उकेर दिया।
कल्पनाशीलता और स्थापत्य कला के क्षेत्र में बहन जी का योगदान पूरे भारत में अप्रितम हैं। देश के मेहनतकश बहुजन के इतिहास और उनकी संस्कृति के प्रति बहन जी की सजगता और समर्पण का उदहारण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और नोएडा जैसे शहरों में बड़ा ही सहज हैं। इसके आलावा बसपा के शासन काल में बनवाये गए सरकारी भवनों, इमारतों, नए जिले मुख्यालयों आदि की कारीगरी में बुद्धिज़्म शैली के स्तूप के तौर पर स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं। इसके अलावा अम्बेडकर स्मारक लखनऊ, मान्यवर काशीराम साहेब इको गार्डन लखनऊ, राष्ट्रिय दलित प्रेरणा स्थल, नोएडा, गौतम बुद्ध नगर आदि में संगममर के कठोर पत्थरों पर खुदे बहुजन इतिहास और उनकीं संघर्षमयी गौरवगाथएँ के साथ बहुजन समाज के महानायकों-महनायिकाओं के सन्देश देश के मेहनतकश बहुजन समाज के प्रेरणा और शिक्षा के स्रोत हैं।
ओबीसी, एससी व एसटी समाज के मूल धम्म बुद्धिज़्म को बहन जी ने संगमरमर के कठोर व निर्दयी पत्थरों पर इस कदर उकेरा हैं कि इतिहासकार बहन जी को आज का अशोक कहते हैं। बहन जी के कल्पनाशीलता व स्थापत्य कला के सबूत पूरे उत्तर प्रदेश में फैले हैं। बहन जी ने स्थापत्य कला के लिए राजस्थान लाल पत्थरों का बहुत बड़े पैमाने पर प्रयोग किया हैं। भारत में स्मारकों के निर्माण पर गौर करे तो मुगलों के बाद बहन जी का ही नाम शुमार किया जाता हैं।
बहुजन समाज के अछूत वर्ग के ही खिलाफ आये दिन अत्याचार हो रहा हैं। अपने शोषक की असली पहचान नहीं होने कारण के बहुजन समाज का एक अहम हिस्सा पिछड़ा वर्ग भी इन अछूतों से नफ़रत करता हैं। ऐसे में बहन जी के प्रति नफ़रत का अत्याचार बहुत ही अहम् हैं। इसी नफ़रत का परिणाम हैं कि कोई अछूतों को हाकिम की कुर्सी पर बैठे नहीं देखना चाहता हैं। बाबा साहेब अछूतों के प्रति सामाजिक तौर पर सांस्कृतिक जातियों के नफ़रत कारण बताते हुए कहते हैं कि "हमारे देश में स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व इन सिद्धांतों की स्थापना के लिए अस्पृश्य समाज का पक्ष ही असली जंग लड़ रहा है।[8]"
"बाबा साहेब डॉ के पद चिन्हों पर अग्रसर बहन जी
          बाबा साहेब के संघर्षों में बुद्धिज़्म में वापसी सबसे अहम् हैं। बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर १२ मई १९५६ को बीबीसी लन्दन से वार्ता करते हुए कहते हैं कि "मै बुद्ध धम्म को प्राथमिकता देता हूँ क्योंकि यह एक साथ संयुक्त रूप से तीन सिंद्धांत प्रतिपादित करता हैं, जो कोई आउट नहीं करता। अन्य सभी धर्म ईश्वर, आत्मा या मरने के बाद के जीवन की चिंता में लिप्त हैं। बुद्ध धम्म प्रज्ञा की शिक्षा देता हैं। यह करुणा की शिक्षा देता हैं। यह समता की शिक्षा देता हैं। इस धरती पर कुशल व सुखी जीवन के लिए मानव को यही चाहिए। बुद्ध धम्म की इन्हीं शिक्षाओं से मुझे प्रेरणा मिली। इन्हीं शिक्षाओं से पूरी दुनिया को प्रेरित होना चाहिए। समाज को ना तो ईश्वर और ना ही आत्मा बचा सकती हैं।[9]
बहन जी को सबसे ज्यादा बाबा साहेब ने ही प्रभावित किया हैं। इसके बाद बाबा साहेब की प्रेरणा से बुद्धिज़्म से जुड़ते हुए भारत में बुद्धिज़्म को एक नया आयाम दिया दिया। आज भारत, खासकर उत्तर भारत, में बुद्धिज़्म प्रतीकों के निर्माण के जरिये भारत में जन-जन को बुद्धिज़्म से जोड़ने का अहम् कार्य किया है।
बाबा साहेब के पदचिन्हों पर चलते हुए ही बहन जी ने बुद्धिज़्म को अपने जीवन-शैली के रूप में पूरी तरह से अंगीकार किया हैं। बहन जी के आवास, दफ्तर और उनका कार्यकाल बुद्धिज़्म से किस तरह से प्रभावित हैं, इसका प्रमाण उत्तर प्रदेश में उनके द्वारा किया गया निर्माण कार्य हैं। यहाँ तक कि बहन जी ने मान्यवर काशीराम साहेब का अन्तिम संस्कार भी खुद उन्होंने बुद्धिज़्म की जीवन पद्धति से ही किया हैं। 
बौद्ध धम्म को स्थापित करती बहन जी 
भारत के इतिहास को नकारने वाले इतिहासकारों को याद दिलाते हुए बाबा साहब कहते हैं कि "इतिहासकार शायद जिसे भूल चुके हैं ऐसी एक बुनियादी बात हिंदी इतिहास पढ़ने वाले छात्रों को ध्यान में रखनी होगी और वह है कि प्राचीन हिंदुस्तान में बौद्ध और ब्राह्मणों के बीच हुई लड़ाई।[10]" 
भारत के इतिहास के संदर्भ में इश्लाम के आगमन के चलते इतिहास के बदलते रुख के सन्दर्भ में बाबा साहेब लिखते हैं कि "इस्लाम धर्म ने इस देश में कदम नहीं रखा होता तो ब्राह्मण और बौद्धों के बीच की लड़ाई लंबे समय तक चलती। स्वतंत्रता, समता और बंधुता का आदेश देने वाला दुनिया के इतिहास में बुद्ध ही पहला व्यक्ति होगा। अब वह आदेश नष्ट हो चुका है। आज हिंदू समाज को उसी की सबसे अधिक जरूरत है। क्रांति के खिलाफ प्रतिक्रांति की विजय के कारण वह आदेश नष्ट हुआ।[11]"
बौद्ध धम्म की जो संस्कृति भारत से लगभग नष्ट हो चुकी थी। बहन जी ने अपने कार्यकाल में इसको पुनः स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया हैं। बहन जी ने अपने शासन काल में ०६ सितम्बर १९९७ में उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर जिला बनाया। इस गौतम बुद्ध नगर जिले में विश्वस्तरीय गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, महामाया प्रौधौगिकी विश्वविद्यालय, पञ्चशील इण्टर कॉलेज, सवित्रीबाईफुले बालिका इण्टर कॉलेज, विश्वस्तरीय बुद्ध अन्तरराष्ट्रीय परिपथ, राष्ट्रिय दलित प्रेरणा स्थल एवं ग्रीन गार्डन, गंगा एक्सप्रेसस वे के निर्माण ने गौतम बुद्ध नगर को दुनिया के फलक पर स्थापित कर भारत में बौद्ध परम्परा को मुख्यधारा में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया हैं।
देश के मूल आधारभूत संरचना के संदर्भ में बहन जी के दूरदृष्टि का कोई सानी नहीं हैं। बहन जी द्वारा बनवाये गए एक्प्रेस वे सिर्फ रोडवेज यातायात के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि यह आपातकाल में वायुसेना द्वारा लड़ाकू विमान के लैंडिंग और टेकऑफ के लिए उपयोगी हैं। इसका परिक्षण वायुसेना द्वारा पहले ही किया जा चुका हैं। 
बहन जी द्वारा किये गए आधारभूत संरचना निर्माण और उनकी दूरदृष्टि के संदर्भ में दलित दस्तक पत्रिका के संपादक अशोक दास - डॉ पूजा रॉय लिखते हैं कि “नोएडा से शुरू होकर आगरा जाने वाला ताज एक्सप्रेस वे और बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल की ऐसी उपलब्धि है, जिसके बारे में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी सोच भी नहीं सकते थे।”[12]
इसके अलावा बहन जी ने अपने कार्यकाल में श्रावस्ती कौशाम्बी, कुशीनगर, महामाया नगर, सिद्धार्थ नगर, पंचशील नगर, महामाया नगर, प्रबुद्ध नगर आदि जिलों का गठन किया। आधारभूत संरचना व संस्थाओं की स्थापना की तरफ रुख करे तो बहन जी ने गौतम बुद्ध उद्यान, बुद्ध द्वार, कुशीनगर,  गौतम बुद्ध स्पोर्ट्स स्टेडियम; गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा का कानपुर में अनावरण; दिल्ली-गौतम बुद्ध नगर की सीमा पर गौतम बुद्ध की प्रतिमा का अनावरण; कपिलवस्तू विशेष क्षेत्र प्राधिकरण तथा उच्च स्तरीय बौद्ध परिपथ का गठन; गौतम बुद्ध नागरिक टर्मिनल, बरेली आदि बहन जी के बौद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार में किये गए कार्यों की दास्तान गर्व से सुनते हैं।
इतिहास गवाह हैं कि प्राचीन काल में देश का मेहनतकश बहुजन गुलामी की जंजीरों को तोड़कर शासक वर्ग में शुमार हुआ हैं। बहुजन समाज में इस मानसिक क्रान्ति का कारण बताते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "बुद्ध ने वेदों पर जो हल्ला बोला, उसी कारण शूद्रों का सेवा धर्म गया और वे राज्यकर्ता बने।[13]"  बहन जी ने बुद्ध वैचारिकी से प्रेरित होकर बुद्धिज़्म को अपने जीवन-शैली के तौर पर अपनाया हैं। इसी चलते बहन जी ने सकल बहुजन समाज को जागृत करने का कार्य किया। इस मानसिक क्रान्ति का परिणाम यह हुआ कि सदियों से गुलाम रहे बहुजन समाज ने खुद की शासन क्षमता को स्थापित कर अपने आपको हुक्मरानों की जमात में खड़ा कर लिया।
सत्य की खोज के सन्दर्भ में बौद्ध संस्कृति के योगदान को चिन्हित करते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "बुद्ध ने बेहद आसान शब्दों में सत्य की व्याख्या बताई थी। इंद्रियों को जो समझ में आए वही सत्य है”।[14] आगे बाबा साहेब ब्राह्मणों के षड्यंत्र का खुलासा करते हुए कहते हैं कि “ब्राह्मणों का यह कहना कि, जो वेदों के अनुसार है, यानी वेद किसे कहते हैं, वही सत्य है। बौद्ध क्रांतिकारी थे और ब्राह्मण प्रतिगामी।[15]" बौद्ध धम्म की इसी मानव कल्याणकारी संस्कृति को दुनिया के फलक पर स्थापित करने के लिए बहन जी ने बौद्ध विहार शांति उपवन, लखनऊ; बौद्ध संग्रहालय तथा हैरिटेज पार्क कुशीनगर का आलिशान निर्माण कराया।
बौद्ध धम्म को बाबा साहेब मानसिक क्रान्ति मानते हुए प्राचीन भारतीय इतिहास के हवाले से कहते हैं कि "बौद्ध दर्शन ने सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक क्रांति के जरिए शूद्रों को अब पद प्राप्त करवा दिया था। उस दौरान कई शूद्रों के राजा बनने के उदाहरण उपलब्ध हैं।[16]"  बुद्धिज़्म की इस मानसिक क्रान्ति को एक फिर से दुनिया के फलक पर ले जाने के लिए बहन जी ने खुद ०३-१० अक्टूबर १९९५ में दक्षिण कोरिया, थाईलंड तथा जापान की यात्रा किया। भारतियों के ज़हन से मिट चुके बौद्ध संदेशों से जोड़ने के लिए बहन जी ने सारनाथ में त्रि-दिवसीय बौद्ध महोत्सव का आयोजन कराया।
इस तरह से बहन जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर गौर करने पर स्पष्ट होता हैं कि बुद्धिज़्म को बहन जी ने अपने जीवन में सिर्फ अंगीकार किया बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित करने का कालजयी कार्य किया हैं।
"शिक्षित करों, संघर्ष करों, संगठित करों” की कसौटी पर खरी बहन जी
भारत में सतत आगे बढ़ रहे "बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन" को लोग बाबा साहेब के तीन संदेशों पर खरा उतरना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता हैं। बहन जी, बाबा साहेब के मूल मन्त्र "शिक्षित करों, संघर्ष करों, संगठित करों"[17] को अपने जीवन में अपनाकर सतत बहुजन समाज पार्टी के माध्यम से दिन-प्रतिदिन "बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन” को कैसे आगे ले जा रहीं हैं। इसकी एक पड़ताल अहम हैं।
"शिक्षित करों" के तहत आधारभूत संरचना का भव्य निर्माण 
बाबा साहेब डॉक्टर अंबेडकर कहते हैं कि "राजनैतिक आंदोलनों को हम जितना महत्व देते हैं उतना ही महत्व हमें शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए देना होगा शिक्षा के बगैर हम महत्वपूर्ण पद हासिल नहीं कर सकते और जब तक महत्वपूर्ण पद हम हासिल नहीं करते, तब तक यह नहीं कहा जा सकता है कि सत्ता हमारे हाथ आई है।[18]" बहन जी ने बाबा साहेब की इसी मंशा के मुताबिक ही राजनीतिक जागरूकता के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी और उम्दा कार्य करते हुए उत्तरप्रदेश के प्रत्येक जिले में गौतम बुद्ध छात्रावास की स्थापना; गौतम बुद्ध शासकीय डिग्री कॉलेज, फैजाबाद; यशोधरा महिला विद्यालय, कुशीनगर; महामाया महिला डिग्री कॉलेज; महामाया विद्यालय इन्टर कॉलेज; मान्यवर कांशीराम साहेब कृषि एवं प्रौधौगिकी विश्वविद्यालय बाँदा; महात्मा ज्योतिर्बा फुले विश्वविद्यालय रुहेलखण्ड; छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर; छत्रपति शाहू जी महाराज भागीदारी भवन, लखनऊ; छत्रपति शाहू जी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ; आई.ए.एस./पी.सी. एस. मेडिकल तथा इंजीनियरिंग परीक्षाओं की तैयारी के लिये छत्रपति शाहू जी महाराज प्रशिक्षण केन्द्र, लखनऊ जैसे मूलभूत शैक्षणिक संस्थानों आदि का भव्य निर्माण कराया।
उत्तर प्रदेश में बहन जी ने अपने कार्यकाल में 7 मेडिकल कॉलेज, 6 इंजीनियरिंग कॉलेज, 2 होमियोपैथिक कॉलेज, 24 से अधिक पॉलिटेक्निक कॉलेज, 2 पैरा मेडिकल कॉलेज, 6 विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय, 200 से अधिक डिग्री कॉलेज, 200 से अधिक इंटर कॉलेज, 572 हाई स्कूल, 5549 से अधिक प्राइमरी स्कूल, 23 डाइट, 100 से अधिक ITI आदि के साथ उत्तर प्रदेश में ना सिर्फ शिक्षा के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण किया बल्कि इसके जरिये प्रदेश व अन्य प्रदेश के लोगों को रोजगार भी मुहैया कराया। शिक्षा के लिए आधारभूत संरचना के विकास के अलावा बहन जी संसद, विधान सभा, प्रेस विज्ञप्ति, बामसेफ (बसपा) कैडर के जरिये लगातार समाज को उनके हक़ों और देशहित के मुद्दों के प्रति शिक्षित करती आ रहीं हैं।
"संघर्ष करों" - बहन जी की दिनचर्या रहीं हैं
 मान्यवर काशीराम साहेब कहते हैं कि सत्ता संघर्ष का परिणाम होता हैं। यदि बहन जी के जीवन पर गौर करे तो हम पाते हैं कि बहन जी ने बचपन से ही समाज की गैर-बराबरी पर प्रश्न-चिन्ह लगाना शुरू कर दिया था। बहन जी का परिवार बाबा साहेब के कार्यों से अवगत था। इसलिए बहन जी को अम्बेडकरी परिवेश बचपन से ही मिला हुआ था। लेकिन उनका असली संघर्ष तब शुरु होता हैं जब बहन जी सिविल सर्विसेस के लिए की जाने वाले तैयारी को छोड़कर मान्यवर काशीराम के साथ जाना शुरू कर दिया। जिसके चालत उनकों अपने ही घर में विरोध झेलना पड़ा। एक समय वो भी आया जब बहन जी को बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन के लिए अपने पिता जी का घर भी छोड़ना पड़ा।
इस दरमियान बहन जी ने बहुजन समाज को कैडर देने का कार्य भी किया। इस दौरान बहन जी ने ना सिर्फ घर की दहलीच पार की बल्कि स्थापित ब्राह्मणी मान्यताओं को खुली चुनौती दे डाली। जब कोई दलित अपने ही घर में अपनी चारपाई तक पर ब्राह्मणों-सवर्णों के सामने बैठने का सहस नहीं कर सकता था उस दौर में बहन जी ने स्थापित मनुवादी व्यवस्था को खुलेआम चुनौती देती हुई भारत के गलियों में बहुजन समाज को तैयार कर रहीं थी।
एक समय वो भी आया जब क़र्ज़ में डूब जाने के कारण मान्यवर साहेब निराश हो जाते थे। मान्यवर साहेब ये कहने लगते थे कि लगता हैं, अब सामाजिक बदलाव कला कारोबार बंद करना पड़ेगा। कर्ज़दारी के ऐसे दौर में जब कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था तब बहन जी अपने चार-पांच साल की कमाई को मान्यवर साहेब के सुपुर्द कर दिया।
गलियों में भटक-भटक कर बहुजन समाज की नारी जगत को तैयार करना आसान काम नहीं था। राजनैतिक दल बना जाने के बाद बहन जी को कई बार जेल की यात्रा तक करनी पड़ी। राष्ट्रिय सुरक्षा कानून के तहत बहन जी को कई बार गिरफ्तार भी किया गया। बहन जी के संघर्षों के संदर्भ में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के समाज विज्ञानं विभाग के मुखिया प्रो विवेक कुमार कहते हैं कि "दुखद हैं, लोगों को बहन जी के कान की बूंदे, पैर की सैंडल आदि दिखाई पड़ता हैं लेकिन बहन जी के पैर के छाले दिखाई नहीं पड़ते हैं।"
बहन जी के इन्हीं संघर्षों से प्रभावित होकर लोग बहन जी को सम्मान और प्रेम से नोटों की माला पहना देते हैं तो मनुवादी मीडिया के साथ-साथ बहुजन समाज में जन्मे चमचों को तकलीफ होती हैं लेकिन उनकों बहन जी का त्याग दिखाई नहीं पड़ता हैं।
बहुजन विरोधियों की मंशा इस कदर दूषित हैं कि वे बहन जी के कपड़ों, सैंडल, कान के बूंदें और हाथ की घडी तक पर आपत्ति जताते हैं। हमारे विचार से, बहन जी के कपड़ों, सैंडल, कान के बूंदें और हाथ की घडी के संदर्भ को बाबा साहेब के १० सितम्बर १९४५ को वन्हाड़ प्रांतीय शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के पहली परिषद् अकोला में बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के वक्तव्य से समझा जा सकता हैं। इस परिषद् में बहुजनों को अपने संघर्ष से प्रेरित करते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि “कोट, बूट, पैंट पहनकर मैं आपके सामने खड़ा हूं। मेरे हाथ में सोने की घड़ी है। मैं साफ-सुथरा हूं। मुझे महार कहने की हिम्मत किसी में है क्या? इसके बावजूद में महार हूं। मैं अगर पहले ही हार मान कर बैठ जाता तो क्या यही स्थिति आती? मेरे हाथ में आज जो सोने की घड़ी दिखाई दे रही है, क्या वह दिखाई देती?”[19] स्पष्ट हैं की बहन जी के कपड़ों, सैंडल, कान के बूंदें और हाथ की घडी और इनके ठाट-बाट का वहीँ सन्देश हैं जो बाबा साहेब के कोट, बूट, पैंट और सोने की घडी का हैं।
मान्यवर काशीराम साहेब के साथ मिलकर बहन जी ने ना सिर्फ खुद संघर्ष किया बल्कि बहुजन समाज को समता मूलक समाज के सृजन के लिए तैयार कर उनकों संघर्षों का आदि बना दिया हैं। बाबा साहेब, मान्यवर काशीराम साहेब के साथ-साथ बहन जी के इन्हीं संघर्षों का परिणाम हैं कि आज देश का पिछड़ा वंचित आदिवादी और अल्पसंख्यक समुदाय ब्राह्मणवादियों और पूँजीपतियों की आँखों आखें डालकर सवाल कर रहा हैं। न्यायपालिका के गलियारों में जिरह कर रहा हैं। कार्यालयों में चहलकदमी करते हुए हर पल देश के लिए सबसे हानिकारक ब्राह्मणवादी रुपी बीमारी को पैरों तले कुचल रहा हैं। मजदूर मालिकों के सामने जी हुजूरी के बजाय अपने हक़ों के लिए आवाज उठा रहा हैं। संसद से लेकर सड़क तक अपनी दस्तक दे रहा हैं। बहन जी का संघर्षमयी जीवन बहुजन समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं। बहन जी के इन्हीं संघर्षों के कारण दुनिया उनकों आयरन लेडी बहन कुमारी मायावती जी कहती हैं।
"संगठित करों" के तहत बसपा का अनुशासित नेतृत्व
मान्यवर साहेब से सीखें हुनर का सटीक इस्तेमाल करते हुए बहन जी मान्यवर साहेब जी की अनुपस्थिति में भी बहुजन समाज को बसपा जैसे विशाल संगठन की छॉव एक साथ लेकर कदम-दर-कदम आगे बढाती जा रहीं हैं। इतना बड़ा संगठन हैं। इसकी विशालता और सफलता से राजनीतिक धुरन्धर भी आश्चर्य में हैं। ऐसे में बसपा और बहन जी के खिलाफ मनुवादियों द्वारा किये जाने षड्यंत्रों का अस्तित्व लाज़मी हैं। मनुवादी अपने मंसूबे में कामयाब तो नहीं हो सकता लेकिन बहुजन समाज में ही पैदा हुए चमचों को हथियार बनाकर बहन जी और बसपा के खिलाफ किये जा रहे षड्यंत्रों से उसकी राह बाधा जरूर डाल रहें हैं। अपने विवेक और कौशल से बहन जी बुद्ध-रैदास-फुले-अम्बेडकर-काशीराम के बताये मार्ग पर पूरी सिद्धत से आगे बढ़ाते हुए लगातार बसपा और बहुजन समाज के खिलाफ की जा रहीं साज़िशों नाकाम कर बुलंदी की तरफ बढती ही जा रहीं हैं।
फिलहाल, बहन जी पर बहुजन समाज में चमचों द्वारा लगातार मनगढंत आरोप लगाए जाते हैं। आरोपों की ये एक परम्परा हैं जो बाबा साहेब के ज़माने में भी था। ऐसे चमचों से सावधान रहने का सन्देश देते हुए मान्यवर काशीराम कहते हैं कि "२४ सितम्बर १९३२ को पूना समझौता दलित वर्गों पर थोप दिया गया। इसके साथ ही चमचा युग शुरू हो गया।[20]"
कांग्रेस ने ऐसे चमचों (जगजीवनराम, कजलोलकर आदि) का ही इस्तेमाल कर बाबा साहेब के समतामूलक समाज के आन्दोलन में रोड़ा अटकाने का कार्य किया। बाद में, कांग्रेस और भाजपा ने कम्युनिष्टों से साथ मिलकर मान्यवर काशीराम साहेब के खिलाफ भी चमचों (राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के हाथों बिके वो सभी लोग जो जिन्होंने १९८७ में बामसेफ का रजिस्ट्रेशन करवाया और इसके सदस्य बने; रामविलास पासवन; उदितराज आदि) का इस्तेमाल कर बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी पर कदम दर कदम आगे बढती बसपा मिशन को मिटाने का प्रयास किया। फिलहाल, ब्राह्मणवादी राजनैतिक दलों के रहमो-करम पर उनकी चमचागिरी कर रहें रजिस्टर्ड बामसेफ द्वारा आज भी पूरी सिद्धत के साथ बसपा और बहन जी का विरोध जारी हैं। इस समय दलित समाज में  जन्मे कुछ चमचे नौजवान भाजपा और कांग्रेस के हाथों में खेलकर बसपा के मिशन को तोड़ने में ब्राह्मणवादी दलों को पूरा सहयोग दे रहीं हैं।
ब्राह्मणवादी दलों के लिए खेल रहीं रजिस्टर्ड बामसेफ जैसों संगठनों के बावजूद बसपा पूरी मजबूती के साथ "बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन" को पूरी तन्मयता से आगे ले जारी हैं। यदि बसपा के सफलतापूर्वक कदम-दर-कदम आगे बढ़ने की वजह को जानना हैं तो तमिलनाडु में ई वी रामास्वामी पेरियार नायकर के जस्टिस पार्टी के मिटने की कहानी से समझा जा सकता हैं।
दक्षिण भारत में १९२०-१९३६ के दरमियान बहुजन दल, जस्टिस पार्टी बहुत बलवान था। १०३७ के बाद जस्टिस पार्टी कमजोर हो गयी। और, १९४४ आते-आते इसका राजनैतिक अस्तित्व ख़त्म हो गया। २४ सितम्बर १९४४ को  मद्रास के कोन्नेमर होटल में दक्षिण के ब्राह्मणेतर आन्दोलन के सन्दर्भ में लोगों को सम्बोधित करते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "ब्राह्मणेतर पक्ष आपके इलाके में 20 साल से सत्ता में था। इसके बावजूद वह ब्राह्मण वर्ग को नेस्तनाबूद नहीं कर पाया। इसके कई कारण है। उनमें से प्रमुख कारण है - इस पक्ष के लोगों की स्वार्थान्धता, भेड़िया श्वसन का आकर्षण, पढ़े-लिखे ब्राह्मणेतरों में समाज से अलिप्त रहने का भाव, पक्ष के उद्देश्य और नीत की संकीर्णता और संगठन की शिथिलता आदि।[21]"
आगे बाबा सहेब जस्टिस पार्टी की कार्य प्रणाली चिन्हित करते हुए कहते हैं कि "1917 से 1937 के दरमियान यह पक्ष सत्ता में रहा। लेकिन उसे जनता के हित का काम करने से अधिक ब्राह्मण वर्ग को गाली-गलौज करना ही अधिक महत्वपूर्ण लगा। उसी में इस पक्ष की पूरी ताकत खर्च हो गई।[22]"
जस्टिस पार्टी के विपरीत बहन जी के कुशल नेतृत्व में बसपा बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी को मजबूती के साथ अंगीकार कर अपने पथ पूरे अनुशासन के साथ अग्रसर हैं। बसपा का कोई भी पदाधिकारी/कार्यकर्ता यदि कोई भी असंवैधिनक व असंसदीय टिपण्णी नहीं कर सकता हैं। यदि उसने ऐसा किया तो तुरंत उसको पार्टी से बहार कर दिया जाता हैं। बसपा अभद्र टिपण्णी और गली-गलौच एवं असंसदीय कृत्यों पर सख्ती से पेश आती हैं। बहन जी के नेतृत्व में बसपा का ये अनुशासन बसपा की मजबूती का राज हैं। 
रोजगार के क्षेत्र में जस्टिस पार्टी की उदासीनता का वर्णन करते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "अपने रिश्तेदारों को नौकरियां दिलाने का मुख्य कार्य ही इन्होने सर्वाधिक किया। नौकरी पर लगे युवा ब्राह्मणेतर समाज से अलिप्त  रह कर ऐसो-आराम से जीवन बिताने लगे”[23]
बहन जी अपने छोटे से कार्यकाल में 88 हजार बीटीसी शिक्षकों की भर्ती, 41 हज़ार कांस्टेबल की भर्ती, आशा योजना जिसके तहत 2007-10 तक 1,36,183 आशाओं का चयन किया गया, 12244 शिक्षामित्रों की नियुक्ति, 108848 सफाईकर्मियों की भर्ती, 1052 विकलांगो को उचित दर की दुकानों का आवंटन, 59690 बीटीसी अध्यापको का प्रशिक्षण करवाके भर्ती की गयी, और 2195 गाँव में 3332 किलोमीटर की सड़को व अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, इंजिनीरिंग कॉलेजों, पॉलिटेक्निक, आईटीआई, महाविद्यालयों, स्कूल, विश्वविद्यालय, सरकारी भवन, स्मारक, मदरसों आदि आधारभूत संरचना के निर्माण कार्य द्वारा प्रदेश के लोगों को स्थानीय रोजगार देने का अप्रितम कार्य किया हैं। इसके अलावा रूटीन होने वाली भर्तियों को तीव्र कर लोगों को रोजगार मुहैया कराने का साहसिक कार्य किया हैं। 
प्रदेश की जनता को न्याय उपलब्ध कराने, शासन-प्रशासन व कानून-व्यवस्था को कानून सम्मत करने के लिए 6 नए मंडल का गठन, 23 नए ज़िलों का गठन, 23 जिला अस्पताल, 23 जिला एवं सत्र न्यायालय, 23 जिलाधिकारी कार्यालय, 23 विकास भवन, 23 पुलिस लाइन, 23 एआरटीओ ऑफिस, 45 से अधिक नई तहसीलों का गठन, 40 से अधिक विकास खंड बनवाये।
जहाँ एक तरफ बीजेपी और समाजवादी की सरकारों ने अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश को दंगाप्रदेश बनाकर मुस्लिमों को असुरक्षित कर उनकी उन्नति पर रोक लगा दिया था, वही दूसरी तरफ बहन जी ने उत्तर प्रदेश को दंगामुक्त प्रदेश मुस्लिम समाज की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं। इसके साथ ही मुस्लिम समाज के बच्चों को छात्रवृत्तियाँ देने के साथ-साथ मुस्लिमों के लिए 169 मदरसों और उत्तर की राजधानी में मान्यवर श्री कांशीराम जी उर्दू अरबी फ़ारसी यूनिवर्सिटी लखनऊ, निर्माण करवाने के साथ-साथ लखनऊ और गाजियाबाद में हज हॉउस का भी निर्माण करवाया। 
गरीबों की बस्तियों के विकास के लिए बहन जी ने 28419 से अधिक अम्बेडकर ग्राम, 2400 सामुदायिक केन्द्र बनवाये। बसपा सरकार ने प्रदेश भूमिहीनों को दो लाख एकड़ से ज्यादा पट्टे देने के साथ कब्ज़ा भी दिलाया। 
बेरोजगारों के लाभ हेतु कौशाम्बी, कन्नौज, औरैया, चित्रकूट, श्रावस्ती, बलरामपुर, संत कबीरनगर, ज्योतिबा फुले नगर, चंदौली तथा बागपत में रजिस्ट्रेशन सेंटर स्थापित किये गए, नवनिर्मित जनपद मान्यवर कांशीराम नगर में एम्प्लॉयमेंट ऑफिस स्थापित किया गया। 
आगे बाबा साहेब जस्टिस पार्टी के लोगों के ब्राह्मणीकरण का खुलासा करते हुए कहते हैं कि "ब्राह्मणों को गालियां देने वाले ब्राह्मणेतर फिर ब्राह्मणों की ही तरह गंध लगाने, पूजा करने, अच्छे कपड़े पहनना आदि ब्राह्मणों के आचार-विचारों को अपनाने लगे। सो, ब्राह्मणवाद को नष्ट करने की ब्राह्मणेतरों के पार्टी की जो नीति थी वह किसी कोने में दुबकी रही और ब्राह्मणवाद उसी प्रकार जिंदा रहा।[25]"
इस सन्दर्भ में यदि बसपा को देखें तो बसपा ने राजनैतिक क्रमचय-संचय जरूर किया, लेकिन कभी अपने मूलभूत सिद्धांत (बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी वैचारिकी) से कभी समझौता नहीं किया हैं। बसपा ने सामाजिक समीकरण को समझते हुए बहुजन समाज की सत्ता स्थापीत करने के लिए पार्टी के पदों की संरचना में फेरबदल किया मिशन को प्राथमिता पर ही रखा। क्योकि मान्यवर साहेब कहते हैं कि राजैनतिक सत्ता मिले या मिले लेकिन सामाजिक परिवर्तन का कारवां चलते रहना चाहिए। बहन जी ने मान्यवर इस सिद्धांत सदा गले लगाए हुई हैं।
किस तरह से जस्टिस पार्टी के लोग अपनी संस्कृति और दर्शन को पहचानने में असफल रहें, इसको बताते हुए बाबा साहेब कहते हैं कि "ब्रामणेतर पार्टी को इस बात का पूरा ज्ञान नहीं हुआ कि वे ब्राह्मणों से भिन्न हैं, उनके और अपने दर्शन में जमीन-आसमान का फर्क है। इसी फर्क को जानकर उसी के अनुकूल वे बर्ताव ना कर सके। ब्रामणेतरों के बर्ताव से यही बात साबित होती रही है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ दर्जे के ब्राह्मण हैं, और खुद दोयम दर्जे के ब्राह्मण हैं।[26]"
 इस संदर्भ में बसपा को देखें तो हम पाते हैं कि पहली बार मुख्यमंत्री की शपथ लेते ही बहन जी सबसे पहले लखनऊ में परिवर्तन चौक के निर्माण की करवाई शुरू करवाई। इसके बाद बौद्ध धम्म के प्रतीकों, बहुजन महानायकों-महानायिकाओं के नाम पर स्कूल, कॉलेज, जिले, स्मारक, विश्वविद्यालय और योजनाए चलाकर अपनी संस्कृति और आन्दोलन से पूरी जनता को अवगत कराने का उम्दा कार्य किया हैं।
बाबा साहेब जस्टिस पार्टी द्वारा लोकतान्त्रिक मूल्यों को स्थापित ना कर पाने का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि "ब्रामणेतर पक्ष के नेता भी विद्वान और तर्कशुद्ध तरीके से सोचने वाले श्रेष्ठ नहीं थे। अपने पक्ष की नीति को व्यापक बनाकर उसे लोकतंत्र की स्थापना करने के लिए उपयोग में लाना उनसे नहीं हो पाया। नेता कैसे हों? साफ नीति बनाने वाले और बनाई गई नीति का लक्ष्य पाने के लिए जी-जान से जुट जाने वाले नेता होने चाहिए।[27]"
लोकतंत्र के मूल्यों के सन्दर्भ में बसपा को देखे तो बसपा भारत की एक मात्र राष्ट्रिय पार्टी हैं जिसमे लगभग ५६ फीसदी युवाओं की भागीदारी हैं। बसपा ने हर जाति, धर्म व तबके को पार्टी के अंदर ऊपर से लेकर नीचे तक के पदों पर आसीन किया हैं। बसपा की एकमात्र सरकार हैं जिसने जाति-धर्म से ऊपर उठकर संविधान सम्मत शासन और न्याय दिलाने का कार्य किया हैं।
इस तरह से ब्राह्मणवादियों द्वारा किये जा रहे तमाम षड्यंत्रों से कुशलतापूर्वक निपटने के साथ-साथ बहुजन समाज के चमचों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए बहन जी जिस कुशलता से मिशन को आगे ले जा रहीं हैं, उससे साबित हो चुका हैं कि बहन जी एक कुशल शासक होने के साथ-साथ एक बेहतरीन संगठनकर्ता हैं, मान्यवर काशीराम साहेब के परिनिर्वाण के बाद की बसपा और २००७-१२ की पूर्ण बहुमत वाली बसपा सरकार बसपा इसका सबूत हैं।
बहन जी के कुशल नेतृत्व का पुख्ता प्रमाण हैं कि उनके एक इशारे पर बसपा के सांसद से लेकर पार्षद-प्रधान तक ने कोरोना महामारी के दौरान देशहित में ना सिर्फ आर्थिक योगदान दिया बल्कि जगह-जगह कैम्प लगाकर अपने घर लौट रहें मजदूरों को भोजन-पानी की पूरी व्यवस्था किये हुए हैं। रोज कमाने-खाने वाले गरीबों का रोजगार छिन चुका हैं। ऐसे बहन जी के निर्देश पर बसपा के राष्ट्रिय महासचिव से लेकर बूथ कार्यकर्ताओं ने निःस्वार्थ भाव से प्रेमपूर्वक जरूरतमंदों के घर तक राशन पहुंचाने का अप्रतिम कार्य किया हैं।
ये स्पष्ट हैं कि जितना विश्वास देश के बहुजन समाज को बहन जी पर हैं उतना विश्वास देश के किसी भी नेता पर नहीं हैं। देश के पिछड़े वर्ग के विश्वास के कारण ही बहन जी एक इशारे पर बसपा का पूरा का पूरा वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर हो गया। नतीजा, समाजवादी पार्टी ने गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव-२०१८ की दोनों सीटों पर जीत दर्ज़ की। 
इसलिए, बहन जी के कुशल नेतृत्व और बसपा की मजबूती का ही परिणाम हैं कि देश के कोने-कोने में बाबा साहेब का सन्देश पहुँच रहा। विश्वविद्यालयों में लोग आज बाबा साहेब की तश्वीरे लेकर अपने हक़ों के लिए तानाशाही ब्राह्मणी हुकूमत चुनौती दे रहें हैं। ये बहन जी से प्रेरणा पाकर ही आज बुर्के में कैद मुस्लिम महिलायें दिल्ली के शाहीन बाग़ में एनआरसी-सीसीए के ख़िलाफ़ ब्राह्मणी तानाशाह के खिलाफ खुली बग़ावत कर रहीं हैं। ये बहन जी के निपुण नेतृत्व का सबसे ताजा उदहारण हैं कि आज कोरोना महामारी मे जब देश के उद्योग घराने, धन्नासेठ आदि कालाबाज़ारी कर मजदूरों बेबसी का फायदा उठाकर मुनाफा कमाने में जुटे हैं, ऐसे समय में बहुजन समाज के लोग देशहित में मानवता की रक्षा के लिए सबसे आगे खड़े होकर बहन जी के निर्देशानुसार अपन-अपना यथासंभव योगदान कर रहें हैं।
बहन जी के प्रति जाति व्यवस्था के पोषकों की घृणा 
बहन जी के प्रति घृणा के चलते ही सांस्कृतिक तौर पर अपराधी जातियों (Culturally Criminal Caste) द्वारा उनके खिलाफ बदजुबानी की जाती हैं, झूठे मुकदमों में उलझाया जाता हैं, उनकों मिशन से विचलित करने का प्रयास किया जाता हैं। दलित वंचित जगत में दलाल और चमचे पैदा किये जाते हैं। इन सबकी एक वजह हैं बहन जी समतामूलक समाज के सृजन के लिए समर्पण। यकीन मानिये यदि बहन जी अछूत कौम की ना होती तो ब्राह्मण-सवर्ण इनके सर पर स्वतः ताज रख देता हैं। बहन जी के उम्दा प्रशासन, कल्पनाशीलता, कार्यक्षमता, स्थापत्य कला, वात्सल्य भावना, करुणा, मैत्री और बुद्धिज़्म के शील भावना जैसे गुणों से ब्राह्मण-सवर्ण तबका इतना प्रभावित हैं कि देश की बागडोर खुद बहन जी को सौप देता, परन्तु बहन जी की जाति (अछूत-चमार) आड़े आ जाती हैं। नतीजा, ब्राह्मणो-सवर्णों द्वारा बहन जी से घृणा की जाती हैं।
एक महत्वपूर्ण बात और हैं। आज बहुजन समाज के दल प्रान्तीय स्तर पर कार्यरत हैं। कुछ ने प्रान्त के स्तर पर हुकूमत भी की हैं। परन्तु ब्राह्मणी रोगियों (Culturally Criminal Caste) की नफ़रत सिर्फ बहन जी के प्रति ही क्यों हैं। इसका जबाव ये हैं कि बसपा को छोड़कर जितने भी दल राजनीति कर रहें हैं उनका मक़सद सत्ता का सुख भोगते हुए सत्ता को अपने परिवार को हस्तांतरित करना। जबकि बहन जी और बसपा की राजनीति का मक़सद हैं भारत में व्यवस्था परिवर्तन करना। सामाजिक परिवर्तन कर समतामूलक समाज का निर्माण करना। रैदास के बेगमपुरा की स्थापना करना। यहीं कारण हैं ब्राह्मण-सवर्ण बहन जी से नफ़रत करता हैं। 
बहुजन समाज के अछूत वर्ग के ही खिलाफ आये दिन अत्याचार हो रहा हैं। अपने शोषक की असली पहचान नहीं होने कारण के बहुजन समाज का एक अहम हिस्सा पिछड़ा वर्ग भी इन अछूतों से नफ़रत करता हैं। ऐसे में बहन जी के प्रति नफ़रत का अत्याचार बहुत ही अहम् हैं। इसी नफ़रत का परिणाम हैं कि कोई अछूतों को हक़ीम की कुर्सी पर बैठे नहीं देखना चाहता हैं। अछूतों के प्रति सांस्कृतिक तौर पर अपराधी समाज (Culturally Criminal Society) के नफ़रत को इस बात से भी समझा जा सकता हैं कि अछूत ही भारत में वह कौम हैं जो समतामूलक समाज के सृजन के लिए बुद्ध के ज़माने से लेकर आज तक संघर्ष कर रहा हैं। बहन जी ने भी स्पष्ट कहा हैं कि राजनीति उनके लिए भारत में सामाजिक व्यवस्था का परिवर्तन समतामूलक समाज की स्थापना करने के एक महत्वपूर्ण जरिया मात्र हैं। यहीं जिसके कारण गैर-बराबरी और जाति व्यवस्था का पोषक समाज अछूतों व बहन जी से नफ़रत करता हैं। भारत में समता, स्वतंत्र और बंधुत्व के सिद्धांत पर भारत निर्माण करने वाले अछूत वर्ग के संदर्भ मे बाबा साहेब कहते हैं कि "हमारे देश में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व इन सिद्धांतों की स्थापना के लिए अस्पृश्य समाज का पक्ष ही असली जंग लड़ रहा है।[28]"
ब्रह्मण जनता हैं कि यदि बहुजनों में जागरूकता आ गयी तो वे मानसिक गुलामी की सारी बेड़ियाँ तोड़ डालेगें। यदि बहुजन समाज अपने मूल बौद्ध धम्म व संस्कृति से जुड़ गया तो ब्राह्मणवाद का षड्यंत्र हमेशा-हमेशा के ध्वस्त हो जायेगा। बाबा साहेब बताते हैं कि ब्राह्मणी हिन्दू धर्म का सदा के लिए बहिष्कार करते हुए बुद्धिज़्म से जुड़कर ही इस देश का बहुजन समाज अपने जीवन की दुश्वारियों और ब्राह्मणों की गुलामी से मुक्ति पा सकता हैं। बाबा साहेब कहते हैं कि "बुद्ध ने वेदों पर जो हल्ला बोला, उसी कारण शूद्रों का सेवा धर्म गया और वह राज्यकर्ता बने।[29]" बाबा साहेब के बताये रास्ते पर चलते हुए बहन जी ने ब्राह्मणवाद का बहिष्कार कर दिया हैं। और, भारत को बौद्धिक (बौद्ध) बनाने के लिए कार्य कर रहीं हैं। ये भी एक महत्वपूर्ण कारण हैं जिसकी वजह से ब्राह्मणी रोगी बहन जी घृणा करते हैं।
“बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन” वालों का कर्तव्य –
        जब सामाजिक संरचना में ऊँचे पायदान पर बैठी जातियाँ ऊर्ध्वाधर श्रेणीबद्ध समाज की संरचना को बनाये रखना चाहता हैं, समाज को गैर-बराबरी की बनाये रखता हैं। ऐसे में सकल समाज को अपने महानायकों-महानयिकाओं द्वारा बनायीं गयी वैचारिकी को मजबूती से पकड़ कर आगे बढ़ने की जरूरत हैं। मिशन को आगे ले जाने के विषय में बाबा साहेब कहते हैं कि "आंदोलन की मजबूती के लिए सभी कार्यकर्ताओं को अपने वरिष्ठों के आदेशों को बिना शिकायत स्वीकारने होंगे।[30]"
मतलब स्पष्ट हैं कि ब्राह्मणी दलों के हाथों में कठपुतली बनकर खेल रहे बहुजन समाज के दलालों व चमचों से पूरी तरह सतर्क व सावधान रहते हुए बाबा साहेब के बाद मान्यवर साहेब और मान्यवर साहेब के बाद समतामूलक समाज के लिए समर्पित भारत में सामाजिक परिवर्तन की भारत महानायिका बाबा साहेब की वैचारिक पुत्री और मान्यवर साहेब की शिष्या बहन कुमारी मायावती जी पर पूरा भरोसा कर उनके साथ पूरी मजबूती के साथ खड़ा रहना बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य हैं। 
भारत महानायिका
बहन जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर गहन विश्लेषण करने के पश्चात् दलित दस्तक पत्रिका के संपादक अशोक दास - डॉ पूजा रॉय लिखाते हैं कि "मायावती उसी साल पैदा हुई, जिस साल बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का परिनिर्वाण हुआ। 15 जनवरी 1956 को मायावती ने इस दुनिया में आंखें खोली तो तकरीबन 11 महीने बाद 6 दिसंबर को बाबा साहब ने आंखें मूंद ली, जैसे निश्चिंत हो गए हो कि चलो कोई जिम्मेदारी संभालने वाला आ गया।[31]"
बहन जी के हिम्मत, हौसले और व्यक्तित्व से ही प्रेरणा पाकर देश के कोने-कोने से वंचित मेहनतकश वर्ग व सकल नारी समाज अपने-अपने हक़ों के लिए आवाज़ बुलंद कर रही है, अपनी स्वतंत्र अस्मिता को स्थापित कर रहीं हैं। बहन जी का व्यक्तित्व, जीवन-शैली, उनका महान संघर्ष और अन्दाज भारत की आवाम, खासकर पिछड़ा वर्ग, दलित वर्ग, आदिवादी और धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक वर्ग के प्रेरणास्रोत हैं। आज बहन जी भारत में समतामूलक आन्दोलन का प्रतीक बन चुकी हैं।
बहन जी व्यक्तित्व व कृतित्व के संदर्भ में सुप्रसिद्ध युवा शायर राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी लिखते हैं कि -
नादार की तक़दीर का तारा हैं बहन जी,
बदलाव की बहती हुई धारा हैं बहन जी।
बाहर न निकल पायी जो ग़ुरबत के भंवर से,
उस क़ौम की कश्ती का किनारा हैं बहन जी।
रहते हैं जहां शेरे-बबर मेमनों के साथ,
वो अम्न-ओ- मोहब्बत का इदारा हैं बहन जी।।
बोधिसत्व विश्वविभूति शिक्षाप्रतीक मानवतामूर्ति राष्ट्रनिर्माता बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर के मिशन व लक्ष्य के प्रति समर्पण के मद्देनज़र बहन जी सिर्फ एक महान राजनेता ही नहीं, बल्कि भारत में समतामूलक समाज के सृजन के लिए सामाजिक परिवर्तन करती आ रहीं अदम्य साहस प्रतीक समाज सुधारक भारत महानायिका हैं। भारत महानायिका बहन कुमारी मायावती जी आज बहुजन समाज की ही नहीं, बल्कि सकल मानव समाज के लिए वो रौशन मीनार हैं जिनकी रौशनी से बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन का हर शख्स ये तय करता हैं कि वो मिशन की राहों पर हैं या नहीं।
रजनीकान्त इन्द्रा (Rajani Kant Indra)
एमएएच, इग्नू-नई दिल्ली




[1]शम्सुल इस्लाम,आरएसएस को पहचाने (13वां संसोधित संस्करण), फारोस मिडिया एण्ड पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-13
[2]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-401
[3]पदोन्नति में आरक्षण बिल राज्य सभा में पारित, बीबीसी (हिंदी), 17 दिसंबर 2012
[4]प्रमोशन में आरक्षण बिल पर बवाल, मंत्री के हाथ से बिल छीनकर फाड़ा, जी न्यूज (हिंदी), दिसंबर १९, २०१२
[5]अशोक दास - डॉ पूजा रॉय, 50 बहुजन नायक, दास पब्लिकेशन (तीसरा संस्करण - सितंबर, 2018), पृष्ठ संख्या-124
[6]अशोक दास - डॉ पूजा रॉय, 50 बहुजन नायक, दास पब्लिकेशन (तीसरा संस्करण - सितंबर, 2018), पृष्ठ संख्या-124
[7]अशोक दास - डॉ पूजा रॉय, 50 बहुजन नायक, दास पब्लिकेशन (तीसरा संस्करण - सितंबर, 2018), पृष्ठ संख्या-124
[8]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-423
[9]प्रो विवेक कुमार और अशोक दास, राष्ट्र निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर, दास पब्लिकेशन (प्रथम संस्करण, 2016), पृष्ठ संख्या-176
[10]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-401
[11]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-402
[12] अशोक दास - डॉ पूजा रॉय, 50 बहुजन नायक, दास पब्लिकेशन (तीसरा संस्करण - सितंबर, 2018), पृष्ठ संख्या-124
[13]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-421
[14]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-401
[15]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-401
[16]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-420
[17]मान्यवर काशीराम साहेब, चमचा युग, चतुर्थ संस्करण-2018, सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-101
[18]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-497
[19]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-507
[20]मान्यवर काशीराम साहेब, चमचा युग, चतुर्थ संस्करण-2018, सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ संख्या-79
[21]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-404
[22]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-404
[23] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-404
[24] बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-404
[25]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-404-05
[26]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-405
[27]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-405
[28]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-423
[29]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-423
[30]बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर, बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय, खंड-39 भाग-2, डॉक्टर अंबेडकर प्रतिष्ठान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली (2019); पृष्ठ संख्या-434
[31]अशोक दास - डॉ पूजा रॉय, 50 बहुजन नायक, दास पब्लिकेशन (तीसरा संस्करण - सितंबर, 2018), पृष्ठ संख्या-122

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