Sunday, June 6, 2021

दोहरे मापदण्ड वाली बहुजन पत्रकारिता

भारत की गैर-बराबरी वाली संस्कृति के पैरोकार हमेशा से पिछड़े, आदिवासी और वंचित जगत की स्वतंत्र राजनीति के विरोधी रहें हैं। गैर-बराबरी की सोच वाले दल, संगठन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवी सब एकसाथ पिछड़ों, आदिवासियों, वंचितों और अल्पसंख्यकों की एकमात्र राजनीतिक पार्टी व भारत में समतामूलक आन्दोलन की वाहक बहुजन समाज पार्टी के बारे में सदैव से दोहरा मापदंड अपनाते आ रहे हैं। यहीं वजह हैं कि बाबासाहेब, मान्यवर साहेब और बहनजी ने भी अपनी मीडिया के जरिये ही अपने संदेशों को भारतवासियों तक पहुँचाने का निर्णय लिया।

18 जनवरी 1943 को पूना के गोखले मेमोरियल हाल में महादेव गोविन्द रानाडे के 101वीं जयंती समारोह में ‘रानाडे, गाँधी और जिन्ना’ शीर्षक से दिया गया। उन्होंने कहा, "मेरी निंदा कांग्रेसी (सभी मनुवादी) समाचार पत्रों द्वारा की जाती है। मैं कांग्रेसी (सभी मनुवादी) समाचार-पत्रों को भलीभांति जनता हूं। मैं उनकी आलोचना को कोई महत्त्व नहीं देता। उन्होंने कभी मेरे तर्कों का खंडन नहीं किया। वे तो मेरे हर कार्य की आलोचना, भर्त्सना व निंदा करना जानते हैं। वे मेरी हर बात की गलत सूचना देते हैं, उसे गलत तरीके से प्रस्तुत करते हैं और उसका गलत अर्थ लगाते हैं। मेरे किसी भी कार्य से कांग्रेसी-पत्र (सभी मनुवादी) प्रसन्न नहीं होते। यदि मैं कहूं कि मेरे प्रति कांग्रेसी (सभी मनुवादी) पत्रों का यह द्वेष व बैर-भाव अछूतों के प्रति हिंदुओं के घृणा भाव की अभिव्यक्ति ही है, तो अनुचित नहीं होगा।"

आज भी मनुवादी लोगों में कोई बदलाव नहीं हुआ था। पिछड़े, आदिवासी, वंचित जगत को मानीवय हक़ दिलाने वाले बाबासाहेब के प्रति मनुवादियों का जो रवैया था वह बदस्तूर आज भी जारी हैं जो कि बाबासाहेब के आन्दोलन की वाहक बहनजी और बसपा के प्रति दुष्प्रचार के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। परन्तु इससे भी ज्यादा दुखद पहलू हैं बहुजन चैनल्स के नाम पर दुकान चला रहे बहुजन समाज के युट्यूबर्स व पत्रकार। जब इनकी पत्रकारिता व चैनल्स शुरू होते हैं तो बहनजी और बसपा के नाम पर, लोग बहनजी की फोटो अपने पत्रिका के कवर पेज पर छापते हैं, जब बहुजन समाज में इनकी विश्वसनीयता स्थापित हो जाती, इनकों इनकी आमदनी के लिए चन्दा और सब्सक्राइबर्स मिल जाते हैं तो बहुजन-विरोधियों के बीच इनकी एक कीमत तय हो जाती हैं। फिर ये लोगों को बुद्ध-फुले-शाहू-काशीराम के वैचारिकी की वाहक आदरणीया बहनजी और बसपा के पति भड़काते हुए गुमराह करना शुरू करते हैं, ये बहुजन समाज के चमचों को बहुजन हितैषी साबित करना शुरू कर देते हैं।

मतलब कि बहुजन समाज व इसकी अस्मिता के नाम से शुरू वाली पत्रिका वकायदा एक व्यापार बन जाती हैं। यही वजह हैं कि मनुवादी मीडिया के साथ-साथ बहुजन मीडिया भी बसपा व बहनजी के प्रति दोहरा मापदण्ड अपनाते हैं। बहुजन मीडिया व अन्य मीडिया के चरित्र पर गौर करेंगे तो आप पायेगें कि -

१) जब भी कोई बसपा से निकल दिया जाता हैं या छोड़कर चला जाता है तो चाहे मनुवादी मीडिया हो या फिर बहुजन समाज के युटयुबर्स, सब लोग उन्हें कद्दावर नेता कहते हैं, क्यों? जबकि अपने ही विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में ये अपन एक प्रधान या जिला पंचायत सदस्य तक नहीं जीता सकते हैं। साथ-साथ अपने विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में अपनी जाति का भी पूरा वोट नहीं पाते और पड़ोस के विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र में पार्टी को अपनी जाति का एक भी वोट नहीं दिला पाते हैं। इसके बावजूद बहुजन समाज की शत्रु मीडिया ऐसे नेताओं को कद्दावर व दिग्गज करार करती हैं जो क़ि बहुजन समाज, बसपा और बहनजी के प्रति नफरत, घृणा का द्योतक हैं। (राम अचल राजभर और लालजी वर्मा पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बसपा से निष्काषित, ०३ जून, २०२१)

२) बसपा के अंदर जब भी कोई फेरबदल होता है तो उस पर सबसे ज्यादा प्रश्न उनसे पूछे जाते हैं जो बसपा को ना तो वोट करते हैं, ना सपोर्ट करते हैं और ना ही वह बसपा के होते हैं, ना ही बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन के बारे में कुछ जानते हैं, क्यों? बहुजन समाज के शत्रु, चमचे व मनुवादी लोग किसी भी सूरत में बसपा के बारे में सच्चाई बयां कर सकते हैं? यदि नहीं तो बहुजन समाज के शत्रुओं से बहुजन समाज के हित के बारे में सवाल कैसे किया जा सकता हैं।

३) यह सच हैं कि बसपा की तरफ से परम आदरणीया बहनजी के अलावा कोई भी मीडिया से मुखातिब नहीं होता हैं जिसकी मुख्य वजह बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन, बहुजन समाज व बसपा के प्रति मीडिया का नफरती व द्वेषपूर्ण रवैया हैं। मीडिया के इस व्यवहार से निपटने के लिए ही बहनजी ने लिखित प्रेस-विज्ञप्ति को वरीयता देती हैं ताकी उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश ना किया जा सके। इसके बावजूद बहुजन युट्यूबर्स भी बसपा के बारे में जब भी इंटरव्यू करते हैं तो कभी भी बसपा के समर्थकों से नहीं बल्कि बसपा के विरोधियों से बसपा की राजनीति के बारे नजरिया प्रस्तुत करते हैं, क्यों?

४) बसपा के अंदर क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है, इस पर टिप्पणी देने के लिए हमेशा गैर-बसपा के लोग ही सामने क्यों आते हैं? बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन के शत्रु यह तो बताते हैं कि "भर समाज" के एक विधायक को बसपा ने निष्कासित कर दिया, परन्तु ये लोग यह क्यों नहीं बताते हैं कि उत्तर प्रदेश बसपा की कमान एक "भर समाज" के नेता के ही हाथ में हैं। बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन शत्रु ये नहीं पूछते हैं कि जिन लोगों को बसपा से निकला गया हैं वे लोग पार्टी के पदाधिकारी होते हुए पार्टी के खिलाफ खड़े किये कैंडिडेट का समर्थन क्यों कर रहे थे?

५) कांग्रेस, भाजपा या अन्य किसी क्षेत्रीय दल में जब कोई फेरबदल होता है तो हमेशा उसके समर्थकों व करीबियों से सवाल-जवाब किया जाता है, जानकारी इकट्ठा की जाती हैं, परंतु जब बसपा में कुछ फेरबदल होता है तो बसपा के विरोधियों से सवाल जवाब क्यों किया जाता है, जब कि यह स्थापित सत्य है कि बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन का शत्रु सदैव बसपा का विरोधी करेगा। बसपा के बारे में कोई भी राय बनाने से पहले जनता को भी स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन का शत्रु बसपा का सही पक्ष कैसे रख सकता हैं।

उपरोक्त सवालों से यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुजन समाज के यूट्यूब के मीडिया और मनुवादी मीडिया व जितने सारे अखबार पत्र पत्रिकाएं है, सब मिलकर के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अपने-अपने निहित स्वार्थ के लिए बुद्ध--फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन की वाहक बहुजन समाज पार्टी व इसकी नेत्री परम आदरणीया भारत महानायिका बहन जी के रास्ते में अवरोध उत्पन्न करना चाहते हैं। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि बसपा बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन पर सतत अग्रसर हैं जिसकी वजह से लोग अपने-अपने निहितार्थ लगातार बसपा का विरोध कर रहे है।

यह विरोध यह बह प्रमाणित करता हैं कि इसकी जड़े निरंतर गहरी होती जा रही है। परंतु बहुजन समाज के जो स्वघोषित बुद्धिजीवी हैं, उनकी गणित और उनकी राजनीति हमेशा सीटों की संख्या तथा हुल्लड़बाजी वाले विरोध तक ही सीमित रहती है, और वह लोग इसी हुल्लड़बाजी को विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका समझते हैं। यही वजह है कि वह बसपा के संविधान व लोकतंत्र निहित मूल्यों के प्रति गहरी आस्था व निष्ठा को समझ नहीं पाते हैं। नतीजा, ऐसे लोग खुद गुमराह होकर बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करते हुए सर्व समाज को गुमराह करने का कार्य करते हैं।

अतः स्पष्ट हैं कि बहुजन मीडिया हो या मनुवादी मीडिया, ये दोनों ही अपने-अपने स्वार्थ के चलते पत्रकारिता के मूल्यों से भटक गयी हैं। यही कारण हैं कि बहनजी अपने कार्यकर्ताओं पर पूर्ण भरोसा करते हुए कहती हैं कि "हमारे कार्यकर्ता ही हमारी मीडिया हैं।" इसलिए बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी मिशन के लोगों का ये दायित्व हैं कि वो बहनजी के ट्विटर संदेशों, प्रेस विज्ञप्ति और प्रेस कॉन्फ्रेंस को ज्यादा से ज्यादा शेयर करते हुए बहनजी के संदेशों व पार्टी के निर्णय को इसके मूल रूप व मूल अर्थ में में जन-जन तक पहुंचाकर अपने बुद्ध-फुले-अम्बेडकरी आन्दोलन, इसकी एकमात्र वाहक राजनैतिक दल बसपा व इनकी मुखिया परम आदरणीया बहनजी, संवैधानिकता व लोकतन्त्र को मजबूत कर राष्ट्रनिर्माण में अपना श्रेष्टतम योगदान दें।

रजनीकान्त इन्द्रा

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