Sunday, June 20, 2021

शोषितों को अपने नेतृत्व, वैचारिकी व आंदोलन का सम्मान करना सीखने की जरूरत है।

कुछ लोग सर्वजन और श्री सतीश चन्द्र मिश्रा के नाम पर बहुजन समाज को बरगलाने का काम कर रहे हैं। और इसे मुद्दा बनाकर परम आदरणीय बहनजी पर आरोप लगाते हुए उनकी बहन जी ने मिशन को खत्म कर दिया है, परंतु ऐसे लोगों को आत्ममंथन करते हुए यह सोचना चाहिए कि क्या वह लोग अपने नायकों एवं नायिकाओं को एक फिरके विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं या फिर उनके दूरदृष्टि, राष्ट्र निर्माण में योगदान और मानवता के लिए किए गए संघर्षों, उनके संदेशों को भी स्वीकार करेंगे?

ऐसे लोग अपने नायकों एवं नायिकाओं को अपने फिरके तक ही सीमित क्यों रखना चाहते हैं? ऐसे लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि भारत में 3% ब्राह्मण समाज में पैदा हुआ नेता अपने आप को पूरे देश का नेता बताता है, और उसका 3 फीसदी समाज भी यह पैरवी करता है कि उसके समाज में जन्मा नेता सिर्फ उसके समाज का नहीं बल्कि पूरे देश का नेता है, राष्ट्रीय नेता है।

हमारी आबादी 85 फीसदी है। फिर भी हमारे समाज के लोग अपने नायकों-नायिकाओं को एक जाति विशेष तक ही क्यों सीमित रखना चाहते हैं? यदि 3 फीसदी ब्रह्मण समाज का नेतृत्व करने वाला नेता राष्ट्रीय नेता है, और उसे सर्वसमाज का नेता कहा जाता है तो फिर 85 फ़ीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली परम आदरणीया बहन जी को दलित, पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक समाज के लोग बहनजी को सिर्फ दलित का नेता क्यों बताते हैं?

यदि आप अपने महानायकों-महानायकाकाओं को अपनी जाति विशेष तक ही रखना चाहते हैं तो यह आपके महानायकों एवं महानायिकाओं, उनके संघर्षों, उनके गौरव गाथाओं, आपके इतिहास और आपकी सांस्कृतिक विरासत का सबसे बड़ा अपमान है।

सोचने का विषय है कि यदि 3 फ़ीसदी वाला देश का नेता हो सकता है तो 85 फ़ीसदी आबादी का नेतृत्व करने वाली परम आदरणीय बहन जी को राष्ट्रीय नेता मानने से लोग इंकार क्यों करते रहते हैं?

फिलहाल, इसकी एकमात्र वजह ऐसे लोगों के मन में घोर जातिवादी मानसिकता का वास है जो कि शूद्रों में भी मौजूद हैं? यही वजह है कि मान्यवर साहब कहते हैं कि भारत की जाति व्यवस्था से जो समाज (अनूसूचित जाति) सबसे ज्यादा प्रताड़ित है, उसका भी वह (शूद्र समाज के) लोग नहीं देना चाहते हैं जो जाति व्यवस्था के प्रताड़ित तो है परन्तु अनूसूचित जाति से थोड़ा सा कम प्रताड़ित है।

कुछ लोगों का मानना हैं कि यह सब अफवाह मनुवादी लोग और उनकी मीडिया करती हैं। मनुवादी मीडिया अपनी विचारधारा व संस्कृति के अनुसार अपना कार्य कर रहीं हैं लेकिन बहुजन समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी खुद अपने नायकों एवं नायिकाओं के कद को संकुचित क्यों कर रहें हैं? आज यूट्वूब पर कुछ प्रोफ़ेसर लोग पत्रकारिता करते फिर रहे हैं। 

ये अपने विश्ववद्यालय में कितने बच्चों को सहयोग किया हैं, कितनों को पीएचडी में मदद की हैं, वंचित जगत के छात्रों का कितना सहयोग किया हैं, इसका जिक्र करने के बजाय पत्रकारिता कर रहे हैं। डिबेट में उनकों बुलाते हैं जिनकों अनैतिकता व अनुशासनहीनता के कारण या तो मान्यवर साहेब ने ही पार्टी से निकल दिया था या फिर बहनजी ने निकल दिया हैं। आज भारत के राष्ट्रिय फलक पर बहनजी एकमात्र नेता हैं जो बहुजन समाज की आवाज को बुलंद कर रहीं हैं परन्तु मनुवादी दलों से मिलकर स्वार्थपूर्ति के लिए यह लोग आज बहनजी को बाबासाहेब और मान्यवर साहेब का शत्रु साबित करने पर तुले हैं और जगजीवन जैसे गाँधीवादी लोगों को बाबासाहेब का परम मित्र।

मान्यवर काशीराम साहेब बीसवीं सदी के आठवें व नौवें दशक के संघर्ष के दौरान के अनुभव को याद करते हुए कहते हैं कि "उत्तर प्रदेश में मैंने देखा कि जो अधिकारी हैं, आईएएस हैं, आईपीएस हैं, इनका धंधा हैं कि वो हमारा विरोध करे।" यहीं चलन आज भी जारी हैं बसपा और बहनजी के खिलाफ सारा माहौल मनुवादी लोग कम उससे ज्यादा दलित-बहुजन समाज के सरकारी-नौकरीपेशा लोग कर रहें हैं। इसीलिए मान्यवर साहेब कहते हैं कि हमारे समाज के लोग मनुवादियों के ,चमचे भी नहीं बन पाये बल्कि मनुवादियों के चमचों के चमचे बनकर रह गए हैं। यहीं कारण हैं कि कुछ अपवादों को छोड़कर इन अधिकारी वर्गों ने ही बहुजन आन्दोलन को सबसे ज्यादा नुकसान किया हैं, और आज भी कर रहे हैं।

बहुजन आन्दोलन की वाहक बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले लोगों को सोचने की जरूरत हैं कि आज जब बहुजन समाज की राष्ट्रीय अस्मिता कायम हो चुकी है, ऐसे दौर में भी दुख इस बात का है कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोग भी इन समाजों में जन्मे महानायकों एवं महानायिकाओं को खुद भी सिर्फ अपनी जाति विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं, जबकि बहुजन समाज में जन्मे सभी महानायकों-महानायिकाओं, चाहे वह तथागत गौतम बुद्ध रहे हो, चाहे रैदास रहे हो, चाहे कबीर रहे हो, फुले शाहूजी, पेरियार, नारायणा गुरु, गाडगे, बाबासाहेब, मान्यवर साहब रहे हों या फिर आज सर्वसमाज का प्रतिनिधित्व करने वाली परम आदरणीया बहन जी है, यह सब भारत में समतामूलक समाज का निर्माण कर एक समतावादी भारत बनाना चाहते हैं, परंतु बहुजन समाज के लोग खुद अपने इन महानायकों एवं महानायिकाओं को अपनी जाति विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं। यह लोग खुद उन्हें राष्ट्रीय नेता या देश का नेता या फिर सर्वसमाज का नेता मानने से इनकार करते रहते हैं।

ऐसा करके यह लोग ना सिर्फ अपनी सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों का भी बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं।

फिलहाल, सर्वजन का नारा देने तथा सर्व समाज को बहुजन समाज पार्टी में स्थान देने की वजह से खुद दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक एवं आदिवासी समाज के लोग आज परम आदरणीय बहन जी का विरोध कर रहे हैं। और, उन पर मिथ्या आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने मिशन को खत्म कर दिया है। परंतु, ऐसे लोगों को अपने आप से कुछ सवाल पूछना चाहिए कि बहुजन समाज पर अत्याचार तो फुले के पहले और उनके समय में भी था, जो कि 1848 से लेकर अब तक जारी है।

हां, कारण में कुछ बदलाव है जो पहले से तय है, क्योंकि ये संक्रमण काल है। सामाजिक कारणों से जो अत्याचार हुए पिछले तीन दशकों से, जब से हम सत्ता में आयें हैं, गिरावट आई है। परन्तु, सामांती सोच एकाएक नहीं बदल सकता है। इसलिए सामांती सोच वाले अब बहुजन समाज पर इसलिए अत्याचार कर रहे हैं क्योंकि अब हम हर क्षेत्र में उनकी बराबरी कर रहे हैं।

कहने का मतलब है कि पहले हम पर होने वाले अत्याचार की वजह यह थी कि हम उन पर निर्भर थे, हम उनके गुलाम थे। परंतु आज अत्याचार इसलिए हो रहा है क्योंकि हम संविधान में निहित अधिकारों की वजह से उनकी बराबरी कर उनके सामांती वर्चस्व को चुनौती दे रहे हैं। और, इसका कारण हमारी राजनीति का परवान चढ़ना है, बुद्ध, फूले, शाहू, अंबेडकर के वैचारिकी पर आधारित समतवादी आंदोलन का सतत् आगे बढ़ना है, जिसमें मान्यवर के साथ परम आदरणीया बहन जी का प्रमुख योगदान है।

ऐसे में मिशन को नुकसान कहां हुआ है? यदि बहनजी ने सर्वजन कह कर नुकसान किया है तो क्या बुद्ध रैदास कबीर फूले साहू अंबेडकर काशीराम सिर्फ बहुजन का कल्याण चाहते थे?

क्या भारत के एक हिस्से से नफरत करके सिर्फ बहुजन-बहुजन करने से बेगमपुरा और अशोक का भारत बन सकता है?

यदि सवर्णों ने आपको बहिष्कृत व नफरत कर ग़ैर-बराबरी का बर्ताव किया तो क्या आप उनसे गैर-बराबरी व नफ़रत का बर्ताव कर समता को स्थापित कर सकते हैं?

बुद्ध करूणा व समता की बात करते हैं तो उनके नाम पर लोगों को नफ़रत और गैर-बराबरी क्यों सिखाया जा रहा है?

क्या रात-दिन ब्राह्मणों-सवर्णों को कोसना ही आंदोलन है? लोगों को समझना पड़ेगा कि इतिहास में हमारे साथ जो अत्याचार हुआ है उस अत्याचार से सीख लेते हुए भारत की गैर-बराबरी वाली व्यवस्था को हमेशा के लिए दफन करके, बराबरी वाली व्यवस्था को स्थापित करना होगा।

बराबरी वाली व्यवस्था सिर्फ किसी को कोसने मात्र से नहीं आएगी, बल्कि बहुजन समाज में जन्मे तमाम संतो गुरुओं महानायक एवं महानायिकाओं की विचारधारा, उनके संदेशों, उनके संघर्षों व गौरव गाथाओं को अपने जीवन में उतार कर उनकी वैचारिकी को एक पुंज में पिरोकर हकीकत की सरजमी पर लागू करने से भारत में समता मूलक समाज का सृजन किया जा सकता है।

परंतु दुखद है कि लोग सिर्फ इतिहास में हुए अत्याचारों पर चर्चा करते आ रहे हैं लेकिन उन अत्याचारों से निजात पाने के लिए बराबरी वाले समाज की स्थापना कैसे की जाए, इस पर लोग अपना समय और ऊर्जा लगाने के बजाय अपने विरोधी की संस्कृति को चर्चा के केंद्र में स्थापित कर गैर-बराबरी की संस्कृति को और मजबूत कर रहे हैं।

शोषितों को भारत की सामाजिक व्यवस्था व राजनीति के समीकरणों को समझने के साथ-साथ यह भी समझना होगा कि इनको यदि श्री सतीश चन्द्र मिश्रा और ब्राह्मणों को भागीदारी देने से किसी को नाराजगी क्यों होती हैं ?

ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि मान्यवर कांशीराम ने कहा था कि जब हम हुक्मरान बनेंगे तो हम समतामूलक समाज का निर्माण करेंगे, लोकतंत्र को मजबूत करेंगे, और संविधान को लागू करेंगे।

लोकतंत्र व संविधान की भावना यह कहती हैं कि जिस समाज के जितनी संख्या है उसको उसी अनुपात में उतनी भागीदारी मिलनी चाहिए। तो क्या आप यह समझते हैं कि ब्राह्मण लोग इस देश के नागरिक नहीं है? क्या आप उनको भागीदारी नहीं देना चाहते हैं? इतिहास में उन्होंने आपको भागीदारी नहीं दिया तो क्या आप उनकी भागीदारी को खत्म कर देंगे? यदि आप ऐसा करेंगे तो क्या यह संविधान के साथ-साथ लोकतंत्र की भावना के खिलाफ नहीं है ? और ऐसा करके क्या आप कभी भी समतामूलक समाज की स्थापना कर सकते हैं?

यदि बहन जी ने श्री सतीश चन्द्र मिश्रा को पार्टी में स्थान देकर मिशन को नुकसान पहुंचाया है तो आप बताइए कि जब बाबासाहब ने महाराष्ट्र में समता समाज संघ बनाया था तो कट्टर ब्राह्मण बाल गंगाधर तिलक के बड़े बेटे श्रीधर को समता समाज संघ अध्यक्ष क्यों बनाया था?  यदि ब्राह्मण को शामिल करने से मिशन खत्म हो जाता है तो यह मान लिया जाना चाहिए कि बाबासाहब द्वारा समता समाज संघ का अध्यक्ष एक ब्राह्मण को बनाने के समय मिशन लगभग खत्म हो गया था लेकिन क्या यह सत्य है?

इसलिए हमारा स्पष्ट मानना है कि बहुजन समाज के लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा, और बदलते दौर और बहुजन आंदोलन के बढ़ते कदमों के नए आयामों, समीकरणों एवं भारत भविष्य निर्धारण के लिए आवश्यक मूल्यों को समझते हुए भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्षरत भारत महानायिका परम आदरणीया बहन कुमारी मायावती जी द्वारा किए जा रहे समतामूलक भारत निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए।

रजनीकान्त इन्द्रा

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