आरक्षण वाले डॉक्टर्स ने ही
सबसे पहले मात दी कोरोना को,
भीलवाड़ा मॉडल को सलाम कर रही
है पूरी दुनिया
कोरोना
की महामारी में भारत के लगभग सभी निजी अस्पताल बंद हो चुके। प्राइवेट क्लिनिक के डॉक्टर्स
भी अपने-अपने घरों में कैद हो चुके हैं। निजीकरण के पैरोकार भी आज सरकारी अस्पतालों
और सरकारी संस्थानों को धन्यवाद कर रहें हैं। योग्यता, मेरिट, क्षमता व दक्षता आदि
की दुहाई देने वाले योग्यता के ठेकेदार अपने-अपने घरों में बैठकर गोबर-गौमूत्र के सेवन
की सलाह देकर विज्ञान मुक्त भारत बनाने में लगे हुए हैं। आरक्षण और दलित-वंचित जगत
की भागीदारी को कोसने वाले तथाकथित उच्च जातीय स्वघोषित विद्वान मौन धारण कर चुके।
ऐसे में आरक्षित सीटों पर चयनित होकर आने वाले चिकित्सकों, प्रशासकों, सफाईकर्मियों
आदि ने जिस जिम्मेदारी और काबिलियत के साथ अपनी भूमिका का निर्वाह किया है और कर रहे
हैं वह उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो आरक्षण को राष्ट्र के लिए नुकसानदेह
मानते हुए इसे समाप्त करने और निजीकरण की वकालत करते रहे हैं।
आज जबकि
कोरोना ने दुनिया के सबसे अधिक विकसित देशों को भी घुटने पर ला दिया है राजस्थान के
भीलवाड़ा का कोरोना नियंत्रण मॉडल देश ही नहीं, दुनिया के लिए मिसाल बन गया है। लेकिन
इससे भी अधिक कमाल की बात यह है कि भीलवाड़ा में कोरोना संक्रमण पर काबू पाने का कारनामा
अंजाम देने वाली टीम आरक्षण वाले दलित-आदिवासियों और पिछड़े लोगों की हैं। उदयपुर मेडिकल
कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बी.एल. मेघवाल एवं डॉ. रामावतार बैरवा के नेतृत्व वाली
टीम ने भीलवाड़ा में ये साहसिक और सराहनीय कार्य करके जहाँ एक तरफ दुनिया में एक अनोखा
मॉडल प्रस्तुत किया हैं वही दूसरी तरफ दलित-वंचित जगत के हक़ों के विरोधियों को एक बार
फिर एहसास करा दिया कि यदि अवसर मिले तो वे तथाकथित योग्यता व मेरिटधारियों से कहीं
से भी कम नहीं हैं।
मीडिया
तंत्र में विगत 9 अप्रैल को धर्मेंद्र शुक्ला और शाबिर मंसूरी के हवाले से प्रकाशित
रिपोर्ट के अनुसार भीलवाड़ा मॉडल की अगुवाई करने वाले उदयपुर मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट
प्रोफेसर डॉ. बी.एल. मेघवाल एवं डॉ. रामावतार बैरवा के नेतृत्व वाली टीम में डॉ. गौतम
बुनकर (SC), डॉ. दौलत मीणा (ST), डॉ. सुरेन्द्र मीणा (ST), डॉ. देव किसान सरगरा
(SC), डॉ. मनीष वर्मा (SC), डॉ. कविता वर्मा (SC), डॉ. चंदन (SC), डॉ. महेश (SC), डॉ.
राजकुमार (SC), डॉ. शिव (SC), डॉ. सत्यनारायण वैष्णव (OBC) शामिल हैं। ये सभी डॉक्टर्स
“आंबेडकरवादी डॉक्टर्स संगठन” के सदस्य है। देश और अपने कार्य के प्रति समर्पण के चलते
ये डॉक्टर्स कई दिनों तक अपने घर घर भी नहीं गए। पत्रिका अखबार के मुताबिक डॉ. गौतम
बुनकर ने बताया कि कार्य के चलते 20 दिनों तक वे अपने परिवार तक से नहीं मिल पाए हैं।
डॉ. रामावतार बैरवा कहते हैं कि सुबह से काम शुरू होता हैं तो अगली सुबह के चार बजे
तक कार्य चलता ही रहता हैं। डॉ. सुरेंद्र मीणा की बीबी गर्भवती हैं। कोरोना की इस घडी
में डॉ. सुरेंद्र अपनी पत्नी के सहयोग को याद करते हुए इस उनकों साधुवाद देते हैं।
डॉक्टर्स की इस टीम के साथ सहयोग करने वाले नर्सिंग स्टाफ का योगदान भी उम्दा और प्रेरणाप्रद
हैं। पत्रिका अखबार ने सत्यनारायण धोबी, सीमा मीणा, दीपक मीणा, दीपक खटीक, प्रवीण के
साथ अन्य सभी अम्बेडकरवादी स्टाफ को गर्व के साथ याद करते हुए उनके उनके योगदान को
सराहा हैं।
भीलवाड़ा
के इन अम्बेडकरवादी डॉक्टर्स व नर्सिंग स्टाफ ने मुसीबत के समय कीर्तिमान स्थापित कर
एक बार फिर से योग्यता पर जातिगत विशेषाधिकार का दावा करने वाले आरक्षण विरोधियों को
सोचने पर मजबूर कर दिया हैं। इन्होंने यह बता दिया है कि यदि उचित सुविधा और अवसर मिले
तो दलित-बहुजन समाज से आने वाला व्यक्ति भी न सिर्फ समाज के अन्य वर्गों के साथ कदम
मिलकर चल सकता है बल्कि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में भी अपना योगदान दे सकता है।
मुश्किल वक़्त में देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार बहुजन समाज के इन
डॉक्टर्स के कारनामों को देखकर आरक्षण विरोधियों यह ज्ञान हो जाना चाहिए कि आरक्षण
नागरिक गतिशीलता को बढ़ावा देकर देश की लोकतांत्रिक जड़ों को और गहरा कर संवैधानिक-लोकतांत्रिक
मूल्यों को और मजबूत करता हैं। आरक्षण योग्यता, दक्षता और कार्य क्षमता का दमन नहीं
करता है बल्कि शासन-सत्ता और देश के अन्य सभी क्षेत्रों में देश के सभी नागरिकों की
योग्यता, कार्य क्षमता और दक्षता को समान अवसर देकर समावेशी भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण
योगदान करता है। अब आरक्षण विरोधियों को समझ जाना चाहिए कि आरक्षण भारत निर्माण, राष्ट्र
निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है। आरक्षण का विरोध, भारत में नागरिक गतिशीलता का विरोध
है, देश की सम्पूर्ण योग्यता, कार्यक्षमता और दक्षता के सदुपयोग का विरोध है, देश की
लोकतांत्रिक निर्णय निर्माणकारी प्रक्रिया में देश के हर नागरिक की सामान भागीदारी
का विरोध है, संवैधानिक मूल्यों का विरोध है और अंततः देशद्रोह है।
रजनीकान्त इन्द्रा, (बहिष्कृत भारत, अप्रैल १०, २०२०)
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