एक
वैज्ञानिक सहर की शुरुआत हो सकता हैं कोरोना
हर विपदा का अंत एक सुनहरी सहर
के साथ होती हैं। कोरोना वॉयरस (COVID-19) ने दुनिया में एक भय का रूप ले लिया
हैं। चीन, अमेरिका, इटली जैसे देश इससे प्रभावित हो चुके हैं। इस वॉयरस के फ़ैलाने
की ठोस वजह अभी तक पता नहीं चल पायी हैं, और ना ही अभी तक इसका कोई सटीक इलाज
खोजा जा सका हैं। अलग-अलग मुल्कों की सरकारे लगातार इससे प्रभावित व मृत
लोगों के आंकड़े जारी कर रहीं हैं, जिनकी सख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं हैं, ऐसा
कहा जा रहा हैं।
भारत में तो ये वॉयरस जहाँ बहुजन समाज
में भय और आतंक का पर्याय बना दिया गया हैं वही सांस्कृतिक तौर पर अपराधी जातियों
(ब्राह्मण-सवर्ण) व मौजूदा दौर में उनकी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए वरदान साबित हो
चुकी हैं। पूरा बहुजन इस वॉयरस के भय से खुद को बचाने की जद्दोजहद कर रहा हैं
तो ऐसे में सरकार को राहत की साँस मिल रहीं हैं। बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, शाहीन
बाग़, दलित-बहुजन उत्पीड़न आदि मुद्दे दफ़न हो चुके हैं। सरकारी निगमों आदि के
निजीकरण के रास्ते खुल गए हैं। सड़के वीरान हो चुकी, दुकाने बंद पड़ी हैं, स्कूल बंद
हो गये हैं, उच्च न्यायलय तक में छुट्टियां हो चुकी हैं। कुल मिलाकर जहाँ
देश का बहुजन समाज भारत, भारतीय संविधान और अपने हकों के लिए सड़क से संसद तक अपनी
आवाज़ बुलंद कर रहा था, आज वही ये बहुजन समाज अपने जीवन की रक्षा के
लिए अपने-अपने घरों में कैद हो चुका हैं।
आज ऐसी हालत में जब देश की 85 फीसदी
आबादी वाला बहुजन समाज में भय में जी रहा हैं तो सरकार ने अयोध्या बाबरी
मस्जिद केस से फैसला सुनने वाले उच्चतम न्यायलय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को
पोस्ट-रिटायरमेंट-बेनिफिट देते हुए राज्यसभा में मनोनीत करवा लिया। फ़िलहाल,
ये महोदय किस विशेषज्ञता के लिए मनोनीत किये गए हैं, देश कोरोना के भय से ये सवाल
उठाने की स्थिति में नहीं हैं। देश की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने
एवं उद्योगपतियों को और मजबूत करने तथा बहुजन समाज को लूटने के लिए
कोरोना के नाम पर प्लेटफॉर्म टिकट 50 रुपये कर दिया हैं। हवाला ये दिया गया कि
इससे स्टेशन पर भीड़ कम होगी। जबकि हकीकत यह हैं कि स्टेशन पर एक यात्री के
साथ उसको स्टेशन पर पूरे सहित छोड़ने वाले ब्राह्मण-सवर्ण अब भी
आयेगें क्योंकि वे अमीर हैं, वे 50 नहीं, 500 भी देने के लायक हैं। ऐसे में यदि
इसकी मार पड़ेगीं तो सिर्फ और सिर्फ देश के पिछड़े-आदिवासी-दलित बहुजन समाज पर
ही पड़ेगी।
फ़िलहाल, इस कोरोना वॉयरस के इस आतंक के
माहौल में भारत जैसे देशों के भक्तों के लिए सीखने का बेहतरीन मौका हैं।
दुनिया का धर्म सदा से तार्किकता का विरोध करता आया हैं। इसने अपने धर्म के धंधे
को फ़ैलाने के लिए विज्ञानं का इस्तेमाल जरूर किया लेकिन फिर भी धर्म की
अफीम को विज्ञानं से ज्यादा तवज्जों दिया हैं। ये और बात हैं कि दुनिया के किसी भी
धर्माधिकारी ने आज तक कोई ऐसा अविष्कार नहीं किया हैं जिससे देश मानवता चैन की
साँस ले सकी हो। आलम ये हैं कि आज सारे धर्म के ठेकेदार, और उनके सभी
भगवान मास्क लगाये अपने जान की खैर मना रहें हैं।
ये स्थापित सत्य हैं कि धर्म का धंधा
भय के माहौल में और भी तेजी से फलता-फूलता हैं। इसलिए अपने धर्म के धंधे को
मजबूत करने के लिए ब्राह्मण खुलेआम ना सिर्फ गौ-मूत्र पी रहे हैं
बल्कि गोबर भी खाने में उनकों कोई एतराज नहीं हैं। ये और बात कि गोबर-गौमूत्र
वाले बाबा अपने शिविर अस्पताल में कम एम्स के चक्कर ज्यादा लगा रहें
हैं।
ऐसे में गोबर-गौमूत्र भक्तों को सीखने
की जरूरत हैं कि दुनिया में कोई ईश्वर-अल्लाह-गॉड आदि नहीं हैं। ना ही यह सभी
मनगढंत शक्तियाँ आपकी कभी रक्षा कर सकती हैं। आपकी रक्षा आपका आपसी सहयोग, आपका
आपसी भाईचारा, आपका चिंतनशील विवेक और नित नए प्रयोगों से मानवता हित में
कार्य करने वाला विज्ञानं ही कर सकता हैं।
महान समाज सुधारक पेरियार ई वी
रामास्वामी नायकर से सही फ़रमाया हैं कि ईश्वर को धूर्तों ने बनाया हैं, गुंडों
ने चलाया हैं और मूर्ख उसे पूजते हैं।
याद रहें, विज्ञानं के क्षेत्र में
अपना अहम् योगदान देने वाले सारे अविष्कारक नास्तिक ही रहें हैं। इस लिए जरूरत हैं
कि गोबर-गौमूत्र और धर्म के अफीम से आगे चलकर मानवता के लिए कार्य करने वाले
विज्ञानं को गले लगाकर एक नये भारत, एक नई दुनिया के सृजन के लिए सब समता-स्वतंत्रता-बंधुता
के सिद्धांत पर चलकर आगे बढ़ें। इसी में सकल मानव समाज की सुख-शांति-समृद्धि और
उन्नति निहित हैं।
--------रजनीकान्त
इन्द्रा--------
No comments:
Post a Comment