4 मार्च से 8 मार्च 2020 तक हम (रजनीकान्त
इन्द्रा) बहुजन आंदोलन के संदर्भ में महाराष्ट्र के गोदिया, भंडारा और नागपुर जिले
में रहे। कैडर के दरमियान बहुत से बहुजन अधिकारीयों और कर्मचारियों को सम्बोधित
करने के साथ-साथ मान्यवर साहेब के बारे सीखने का अवसर मिला। लोगों के सवालों की
बौछारों से रूबरू होते हुए साहेब के राजनैतिक दर्शन से हर सवाल
का मुकम्मल उत्तर दिया। लोगों के चहरे पर संतुष्टि देखर बहुत ही सुखद अनुभूति हुई।
इसी दरमियान अपने बहुजन साथी प्रशांत गजभिए (शहर अध्यक्ष, बसपा) और विलास
बौद्ध (जिला अध्यक्ष गोंदिया, बसपा) द्वारा हमें माननीय यशवंत निकोसे जी
के बारे में जानकारी मिली। निकोसे जी के सन्दर्भ को सुनकर मन रोमांचित हो उठा।
इसके बाद अगले दिन 07 मार्च 2020 को
करीब 5:40 पर हम (रजनीकान्त इन्द्रा और विलास बौद्ध जी) नागपुर में 2007 से 2012
तक उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार में सांस्कृतिक राज्यमंत्री व मान्यवर साहब का
यथासंभव साथ देने वाले माननीय यशवंत निकोसे जी से मुलाकात की।
हमारे लिए यह मुलाकात बहुत ही रोमांचकारी
रही क्योंकि इस मुलाकात के दरमियान माननीय निकोसे जी ने मान्यवर कांशीराम साहब और
बहन जी से संबंधित बहुत सारी संघर्ष गाथाएं शेयर की, जो किसी भी
बुद्ध-फुले-शाहू-आंबेडकरी विचारधारा वाले युवा को झकझोरने के लिए काफी हैं।
हमारा विश्वास है कि माननीय निकोसे जी
द्वारा मान्यवर साहब और बहन जी से संबंधित शेयर की गई सारी संघर्ष गाथाएं आज के
युवाओं और बहुजन आंदोलन से भटक चुके लोगों के लिए प्रेरणास्रोत व मार्गदर्शन का
कार्य करेंगी। फिलहाल, हमारी इस अहम मुलाकात के दरमियान मा. निकोसे जी द्वारा साझा
की गई मान्यवर साहब से जुड़ी एक अनोखी घटना का जिक्र हम (रजनीकान्त इन्द्रा) यहां
कर रहे हैं।
मा. निकोसे जी ने बताया कि सन 1980 के दशक
के शुरुआत का दौर था। मान्यवर साहब दीवारों पर पेंटिंग के जरिए बहुजन आंदोलन के
संदेशों को जन-जन तक पहुंचा रहे थे। इस दरमियान दीवारों पर पेंटिंग का काम रात के
समय हुआ करता था।
नागपुर में एक रात एक 20-22 साल के युवा
पेंटर साथी के साथ मा. निकोसे जी दीवारों पर पेंटिंग का कार्य कर रहे थे। रात काफी
हो चुकी थी। एक दीवार पर पेंटिंग करने के लिए सीढ़ी की जरूरत थी। इसलिए सीढ़ी की
खोज में निकोसे जी इधर-उधर भटक रहे थे लेकिन शहर में अंधेरा था। घरों की बत्ती बुझ
चुकी थी। लोग अपने-अपने बिस्तर पर जा चुके थे। इसलिए सीढ़ी मिलना मुश्किल हो गया
था। काफी कोशिस की लेकिन अंत में निराश होकर अपने युवा पेंटर साथी के मां.
निकोसे जी दीवार के पास बैठ गये।
कुछ देर के पश्चात मान्यवर साहब अपना कैडर
कार्य करके उधर से ही लौट रहे थे। मान्यवर साहब ने माननीय निकोसे जी को देखा तो
निकोसे जी से पूछा कि क्या हुआ? निकोसे जी ने साहब को बताया कि साहब दीवाल पर
पेंटिंग के लिए सीढ़ी की जरूरत है। लेकिन रात काफी हो चुकी है, घरों की बत्ती बुझ
चुकी है। इसलिए सीढ़ी नहीं मिल पा रही है।
इतना सुनने के बाद मान्यवर साहब खुद नीचे
झुक गए और अपने कंधों पर युवा पेंटर साथी को बैठने के लिए कहा।
फिर दीवाल के सहारे साहब अपने कंधे पर युवा पेंटर साथी को लेकर खड़े हो गए।
इसके बाद उस युवा पेंटर साथी ने साहब के कंधों पर बैठकर नागपुर की दीवारों पर
बहुजन संदेशों को उकेर दिया। इस तरह से अपने कंधों पर पेंटर को बिठाकर मान्यवर
साहब ने बहुजन आंदोलन के संदेशों को दीवारों पर लिखकर जन-जन तक पहुंचाया
और सकल बहुजन समाज को बहुजन आंदोलन से जोड़ने का अद्भुत काम किया। ऐसे थे
भारतीय लोकतंत्र के महानायक और राष्ट्रिय नेता मान्यवर काशीराम साहेब।
रजनीकान्त इन्द्रा
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