पुलवामा
अटैक के बाद से जगह-जगह जुलूस निकाले जा रहे हैं। इन जुलूसों में छोटे-छोटे बच्चों
समेत नवयुवक शामिल हैं। उनके हाथों में भारत का राष्ट्रध्वज है। सभी लोग पाकिस्तान
मुर्दाबाद, वन्दे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा रहें है। लेकिन कई स्थानों
पर ऐसे जुलूसों के अवलोकन से कुछ बेहद विचलित करने वाली हकीकत सामने आती है। इन्हें
देखकर ऐसा लगता है मानो देशभक्ति कम देशभक्ति का दिखावा अधिक हो रहा है. जुलूस में
शामिल लोगों के चेहरे पर गुस्सा, नाराज़गी कम, मुस्कान ज्यादा दिखाई पड़ रही है। बहुत
से लोग तो कदम कदम पर सेल्फी लेते हुए उसे फेसबुक पर पोस्ट भी किये जा रहे हैं। ऐसा
करते हुए यह खुद को तो बड़ा देशभक्त साबित कर ही रहे हैं साथ ही समुदाय विशेष के खिलाफ
लगातार आग भी उगल रहे हैं। यह सबकुछ देखकर मन में बहुत से सवाल खड़े होते हैं।
पुलवामा
में जो कुछ भी हुआ वो अमानवीय है। जनता दुखी जरूर है लेकिन देश में रोष का माहौल जबरन
बनाया जा रहा है। मीडिया द्वारा इसे प्रचारित व प्रसारित किया जा रहा है। सोशल मीडिया
व मुख्यधारा मीडिया पर सैनिकों की लाशों की तश्वीरें शेयर की जा रही हैं। मीडिया पर
रात दिन युद्ध को जरुरी बताने वाली और पूर्व में सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में किये
गए सरकार के शौर्यपूर्ण कारनामे का गुणगान करती परिचर्चाएं हो रही हैं। इसी क्रम में
लगातार अनेक नेताओं-अभिनेताओं के बयान भी आ रहे हैं जो धर्मनिरपेक्षता को देश के लिए
खतरा बता रहे हैं। कुल मिलकर ऐसा लगता है मानो पुलवामा हमले की आड़ में जैसे देश में
एक उन्माद और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों
के ठीक पहले इस तरह की कोशिशों की संभावना पहले से भी व्यक्त की जा रही थीं। हालाँकि
इस तरह के मामलों में तो किसी भी सूरत में राजनीति नहीं होनी चाहिए।
यहाँ
एक और बात ध्यान देने योग्य है। पुलवामा हमले के बाद लोगों द्वारा पाकिस्तान के प्रति
अपने गुस्से, नाराज़गी व नफ़रत को जाहिर करने के नाम पर देश की गलियों में पाकिस्तान
मुर्दाबाद के नारे लगाये जा रहे हैं। यह गुस्से की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हो सकती है।
लेकिन सवाल तब उठता है जब आप जान बूझकर मुस्लिम बस्तियों में घुसकर आक्रामक रूप से
ऐसे नारे लगाते हैं और खुद को अधिक बड़ा देशभक्त बताते हुए दूसरे समुदाय की देशभक्ति
पर सवाल उठाते हैं। ऐसा करने वाले यह भूल जाते हैं इस देश की आन बान और शान के लिए
इसी माटी में अब्दुल हमीद (उत्तर प्रदेश) और नसीर अहमद (जम्मू और कश्मीर) जैसे सिपाही
शहीद हो चुके हैं। यह कितनी अजीब बात है कि हम यह नहीं देखते कि शहीद होने वालों में
कोई ब्राह्मण है कि नहीं, कोई क्षत्रिय है कि नहीं, कोई गुजराती है कि नहीं क्योंकि
हम सब भारतवासी हैं और सेना या अर्धसैनिक बलों में सबकी एक ही पहचान होती है, जो है
– भारतीय। ऐसे में सिर्फ मुसलमानों से ही देशभक्ति का सर्टिफिकेट क्यों माँगा जाता
है। देश को सोचने की जरूरत है कि ये सब कहीं देश को फिर से हिन्दू बनाम मुस्लिम करने
की तैयारी तो नहीं है।
फ़िलहाल
मौजूदा हालत के देखते हुए यही निष्कर्ष निकल कर सामने आता है कि गलियों में नारे लगते
हुए फेरी करने वाले मासूम बच्चों को ये तक नहीं मालूम है कि देश, देशभक्ति और राष्ट्रवाद
क्या होता है। देश और देशभक्ति के नाम पर इन मासूम बच्चों को कट्टरता सिखाया जा रहा
है। इनको देश की लगभग १८% मुस्लिम आबादी से नफ़रत करना सिखाया जा रहा है। इन बच्चों
को सिखाया जा रहा है कि मुस्लिम मतलब पाकिस्तान और पाकिस्तान मतलब मुस्लिम। इन बच्चों
के जहन में स्थापित किया जा रहा है कि आतंकवादी मतलब मुस्लिम और मुस्लिम मतलब आतंकवादी।
देश में साम्प्रदायिकता और नफ़रत का ऐसा बीज बोया जा रहा है जिसकी फसल आने वाले समय
में हमें काटनी होगी।
रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली
(Published on Bahishkrit Bharat web portal on Feb. 19, 2019)
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