बहुजन वैचारिकी का संरक्षण: उन्माद के विरुद्ध एक संनाद
आज बहुजन समाज के कुछ नासमझ और उन्मादी तत्व यह अपेक्षा करते हैं कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी ब्राह्मणवादी दलों की भाँति जाति और धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने वालों, विशेषकर बहुजन युवाओं, को संरक्षण प्रदान करे। इनका मत है कि बसपा में गैर-बहुजनों को कोई हिस्सेदारी न दी जाए और उन्मादी बहुजन युवाओं को अलोकतांत्रिक तथा असंवैधानिक मार्गों से जाति-धर्म के नाम पर उत्पात मचाने की खुली छूट मिले। विडंबना यह है कि ये जोशीले युवा, जो संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सोशल मीडिया और मंचों पर संनाद करते रहते हैं, स्वयं असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कृत्यों के समर्थक हैं। क्या ऐसे व्यक्तियों से संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की आशा की जा सकती है? हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट है कि ये उन्मादी बहुजन युवा न केवल बहुजन आंदोलन, इसकी वैचारिकी और इसके उद्देश्यों से पूर्णतः विमुख हैं, अपितु अज्ञानता के गहन अंधकार में डूबे हैं। संभवतः ये ब्राह्मणवादी दलों और संगठनों के हाथों की कठपुतलियाँ मात्र हैं, जो मोटी रकम के लालच में बहुजन समाज को भ्रमित कर बुद्ध-आंबेडकरी आंदोलन की संवाहिका बहन कुमारी मायावती और बसपा को दुर्बल करने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
ये उन्मादी तत्व ब्राह्मणवादी शक्तियों से प्राप्त धन के बल पर शांति, शिक्षा और समृद्धि के प्रतीक बहुजन महानायकों के नाम का दुरुपयोग करते हुए हिंदू आतंकी संगठनों के पदचिह्नों पर चलकर सेनाएँ और आर्मियाँ गठित कर रहे हैं। उनका उद्देश्य बहुजन समाज को इसके मूल आंदोलन से विमुख करना है। बहुजन महानायकों के नाम पर संचालित ये सेनाएँ, आर्मियाँ, रजिस्टर्ड बामसेफ और अन्य बहुजन अथवा मूलनिवासी नामधारी संगठन मान्यवर कांशीराम साहेब के नाम की दुहाई देकर बहन जी की निंदा करते नहीं थकते। ऐसे व्यक्तियों को मान्यवर साहेब का यह अमर कथन स्मरण करना चाहिए: "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।" यह कथन भारतीय सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में लोकतंत्र की सर्वाधिक प्रामाणिक परिभाषा है। हमारे विचार में, बसपा के संदर्भ में यह सर्वथा स्पष्ट होना चाहिए कि बहुजन समाज के हितों का संरक्षण और भारत में समतामूलक समाज की स्थापना ही बसपा, बहुजन आंदोलन, इसकी वैचारिकी और बहन जी का परम लक्ष्य है।
दुखदायी सत्य यह है कि कुछ नासमझ लोग गैर-बहुजनों के दमन को ही बहुजन आंदोलन का सार समझ बैठते हैं। क्या गौतम बुद्ध, संत शिरोमणि रविदास, कबीरदास, गुरु घासीदास, बिरसा मुंडा, पेरियार, ज्योतिबा फुले, शाहू महाराज, बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर और मान्यवर कांशीराम साहेब की वैचारिकी का उद्देश्य गैर-बहुजनों का दमन था? यदि कोई ऐसा विचार करता है, तो वह केवल अज्ञानी ही नहीं, अपितु स्वयं ब्राह्मणवादी रोग से गहरे तक संदूषित है। बहुजन वैचारिकी, इसका आंदोलन और इसकी संवाहिका बसपा किसी भी जाति, धर्म अथवा वर्ग के विरुद्ध अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक अथवा अनैतिक टिप्पणी को स्वीकार नहीं करती। अतः यदि बहन कुमारी मायावती और बसपा ब्राह्मणवादी कृत्यों में लिप्त बहुजनों के प्रति भी कठोर कार्रवाई करती हैं, तो यह पूर्णतः न्यायसंगत है। भारत की महानायिका बहन जी ने बारंबार यह संदेश दिया है कि ब्राह्मणवादी सोच और कृत्यों वाले किसी भी व्यक्ति का बहुजन आंदोलन, इसकी वैचारिकी और बसपा में कोई स्थान नहीं है।
इसलिए सकल बहुजन समाज के साथ-साथ गैर-बहुजन समाज को यह स्मरण रखना चाहिए कि दमनकारी कभी मसीहा नहीं बन सकते। किसी भी समाज का दमन कर समतामूलक समाज की स्थापना संभव नहीं है। बसपा का संकल्प बहुजन महानायकों और महानायिकाओं की वैचारिकी पर आधारित है, जिसका उद्देश्य भारत में सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के माध्यम से समता और न्याय पर आधारित समाज का सृजन करना है। यह आंदोलन उन्माद और हिंसा का नहीं, अपितु शांति, शिक्षा और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। जो लोग इस पथ से भटककर ब्राह्मणवादी शक्तियों के हाथों बिक जाते हैं, वे न केवल स्वयं को अपितु संपूर्ण बहुजन समाज को धोखा देते हैं। अतः बहुजन समाज को इन उन्मादी तत्वों से सावधान रहते हुए अपने मूल लक्ष्य की ओर अग्रसर होना होगा।
दिनांक: 19 जुलाई 2020
स्रोत संदर्भ:
स्रोत संदर्भ:
- कांशीराम, मान्यवर, "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" (बहुजन संगठक में उद्धृत)
- आंबेडकर, बी.आर., अनहिलेशन ऑफ कास्ट (1936)
- बहुजन समाज पार्टी, नीति दस्तावेज और बहन कुमारी मायावती के वक्तव्य
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