यहाँ वाल्मीकि रामायण से कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहैं हैं,
जिनकी पुष्टि ‘वाल्मिकी रामायण' से की जा सकती हैं, जो बिना किसी संदेह के साबित
करते हैं कि भारत (बहुजन समाज, खासकर अछूतों) की प्रचीनतम व मूल जीवन-शैली और
संस्कृति धम्म आधारित है....
उग्र तेज वाले नृपनंदन श्रीरामचंद्र, जावाली
के नास्तिकता से भरे वचन सुनकर उनको सहन न कर सके और उनके वचनों की निंदा करते हुए
उनसे फिर बोले :-
“निन्दाम्यहं कर्म पितुः कृतं , तद्धस्तवामगृह्वाद्विप
मस्थबुद्धिम्।
बुद्धयाऽनयैवंविधया चरन्त , सुनास्तिकं धर्मपथादपेतम्।।”
(अयोध्याकाण्ड, सर्ग – 109. श्लोक : 33)
• सरलार्थ :- हे जावाली! मैं अपने पिता (दशरथ)
के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट
बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा। क्योंकि ‘बुद्ध’ जैसे नास्तिक मार्गी
, जो दूसरों को उपदेश देते हुए घूमा-फिरा करते हैं , वे केवल घोर नास्तिक ही नहीं,
प्रत्युत धर्ममार्ग से च्युत भी हैं।
“यथा हि चोरः स, तथा ही बुद्ध स्तथागतं।
नास्तिक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम्
स नास्तिकेनाभिमुखो बुद्धः स्यातम्।।”
(अयोध्याकांड, सर्ग -109, श्लोक: 34 / Page :1678)
सरलार्थ :- जैसे चोर दंडनीय होता है, इसी
प्रकार ‘तथागत बुद्ध’ और और उनके नास्तिक अनुयायी भी दंडनीय है । ‘तथागत'(बुद्ध)
और ‘नास्तिक चार्वक’ को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए। इसलिए राजा को चाहिए कि
प्रजा की भलाई के लिए ऐसें मनुष्यों को वहीं दण्ड दें, जो चोर को दिया जाता है।
परन्तु जो इनको दण्ड देने में असमर्थ या वश के
बाहर हो, उन ‘नास्तिकों’ से समझदार और विद्वान ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे मतलब
कि बहिष्कार करें।
कहने का मतलब यह है कि
"रामायण में बुद्ध का वर्णन है"।
रामायण में बुद्ध का वर्णन बिना किसी संदेह के
सिद्ध करता है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी है, ना कि बुद्ध से 2000 साल
पहले।। मतलब कि वाल्मीकि बुद्ध के बाद हुए थे। रामायण कहता है कि खुद वाल्मीकि
रामायण के एक पात्र है। मतलब राम और वाल्मीकि समकालीन है।
इससे सिद्ध होता है कि जब राम और वाल्मीकि
समकालीन थे, और वाल्मीकि ने अपनी रामायण में बुद्ध का वर्णन किया है तो बिना किसी
संदेह के सिद्ध हो जाता है कि बुद्ध
वाल्मीकि और उसके राम से कई सदी प्रचीनतम हैं।
मतलब कि बुद्ध धम्म प्राचीनतम है और जातिवादी
मनुवादी नारी विरोधी सनातनी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म से अभी हाल का ही है।
इससे एक बात और साबित होती है कि रामायण में
राम ने उन बुद्धिष्टों के बहिष्कार की बात की है जिनकों वो दण्ड नहीं दे सकता है
या जिनको दण्डित करना उसके वश में नहीं है या जिनका वो कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता
हैं।
मतलब कि बुद्धिष्ट
इतने शक्तिशाली है कि राम भी उनकों पराजित नहीं कर सकता है।
अब सामाजिक पटल पर गौर करें तो हम पाते हैं कि
रामायण में किये वर्णन के अनुसार राम की आदेश से बुद्धिष्टों का बहिष्कार हुआ।
परिणामस्वारूप, भारत में एक बहिष्कृत समाज
अस्तित्व में आया जिसे अछूत कहा जाता है, माना जाता है, जो कि आज भी मौजूद हैं। अब
यहॉ बिना किसी संदेह के ये सिद्ध हो जाता है कि आज के भारत के ये अछूत ही कल के
मूल बौद्ध हैं जिनकी रीति-रिवाजों, जिनकी जीवन-शैली में, संस्कृति में बुद्धिज्म
आज भी साफ-साफ झलकता है, और साथ ही साथ राम व ब्रहम्णी वैदिक धर्म के प्रति बग़ावत
भी।
आओं चले बुद्ध की ओर...
आओं चले धम्म की ओर...
आओं चले संघ की ओर...
नोट:- ये श्लोक ‘वाल्मिकि रामायण’ (मूल) से
उद्घृत है।
जय भीम...
नमों बुद्धाय...
रजनीकान्त इन्द्रा
फाउंडर एलीफ
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