ब्राह्मण जो नारीविरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म का कर्ता-धर्ता है, ने समाज को हजारों जातियों में बाँटकर पूरे मूलनिवासी बहुजन समाज को छिन्न-भिन्न कर दिया है। परिणाम स्वरुप शक्तिशाली सशक्त शान्तिप्रिय समृद्धिशाली मानवीय गौरवशाली मूलनिवासी समाज चंद मुट्ठीभर ब्राह्मणों व ब्राह्मणी रोगियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गया है। ये मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी दीन-हीन दशा, अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को अपनी नियति मान चुका है। लेकिन धन्य है वो लोग जिन्होंने ने ब्राह्मणी दमन के खिलाफ ना सिर्फ आवाज उठाई बल्कि पूरे ब्राह्मणी व्यवस्था को नेस्तनाबूद करने का बिगुल ही फूँक दिया। इसी आंदोलन की वजह से १९४७ के बाद का दलित-वंचित समाज थोड़ा-बहुत अपने मूलभूत अधिकारों से वाकिफ हुआ और बहुजन आंदोलन को बहुजन महाक्रान्ति बना दिया। इसी बहुजन महाक्रान्ति की वजह से ब्राह्मण-सवर्ण आज वो सब करने को मजबूर हो गए जो ये कभी भी नहीं करना चाहते है।
ऐसे में आज कुछ ब्राह्मण दलितों के हितैषी बनने की कोशिस कर रहे है। ये बताना चाहते है कि वे वंचित समाज के विरोधी नहीं है, लेकिन फिर भी आये दिन वंचित जगत पर अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में सबसे अहम् सवाल ये है कि ब्राह्मण किस दलित को पसंद करता है, कौन दलित ब्राह्मणों का प्यारा है, और क्यों? साथ ही ये भी सवाल उठता है कि ब्राह्मण सवर्ण किस दलित से सबसे ज्यादा नफ़रत करता है, और क्यों?
ब्राह्मणों के दलित प्रेम के इस संदर्भ में भारत के दलित समाज को दो हिस्सों में बांटकर देखने की जरूरत है। एक, वे दलित जो ब्राह्मणों के प्यारे है। ये वह दलित समाज है जिनमे अनपढ़ और साक्षर दोनों लोग आते है। ब्राह्मणों के प्यारे इस दलित समाज में साक्षरता तो हो सकती है लेकिन शिक्षा का पूर्ण अभाव है। ये लोग ब्राह्मणी कर्मकाण्ड करते है, ब्राह्मणी देवी-देवताओं की पूजा करते है, उपवास-व्रत करते है, श्राद्ध करते है, भगवत-रामायण पाठ करते है, सत्यनारायण की कथा सुनते है, खुद को सहर्ष या मजबूरन नीच स्वीकार करते है, अपने बहुजन भाई से जलन करते हुए आरक्षण विरोधी है। बाबू साहब और ब्राह्मण देवता की जी हुजूरी करते है। इन दलितों में बाबू जग जीवनराम, रामदास अठावले, रामविलास पासवान, रामनाथ कोबिंद व माता रानी समेत तमाम हिन्दू देवी-देवताओं के दलित समाज के भक्त आदि शामिल है। संक्षेप में इन्हें गाँधी का हरिजन खा जाता है।
ब्राह्मण प्रिय इन दलितों को आरक्षण की वजह से आगे बढे, पढ़े-लिखे, नौकरी-पेशा दलितों के खिलाफ कुछ इस तरह से भड़काया जाता है कि आरक्षण का लाभ तो सिर्फ कुछ लोगों को ही मिला है, तुम्हारे पडोसी के घर में तो तीन-तीन नौकरियों हो गयी है, तुम्हारे घर में एक भी नौकरी नहीं है। तुम्हारे पडोसी का घर तो पक्का है, उसके पास गाड़ियाँ है, तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है। ऐसे ही सवाल करके अशिक्षित गरीब बहुजन के मन में उसके अपने बहुजन भाई के प्रति नफरत घोल दी जाती है। और, नतीजा ये होता है कि अशिक्षित गरीब बहुजन भाई अपने ब्राह्मणवादी शत्रु से लड़ने के बजाय अपने ही खुद के बहुजन भाई से लड़ना शुरू कर कर देता है।
दूसरा, ये वे वंचित लोग है जो आरक्षण की वजह से पढ़-लिखकर आगे बढे है। ये वे दलित है जो ब्राह्मणी रीति-रिवाजों को नहीं मानते है, ब्राह्मणवाद का घोर विरोध करते है, समाज में बाबा साहेब और बुद्ध के विचारों को फ़ैलाने का कार्य करते है, आरक्षण के लिए संघर्षरत है। ये वो दलित है जो समता मूलक समाज की स्थापना के लिए सतत संघर्ष कर रहा है। ये वो दलित है जो ब्राह्मणों-सवर्णों की आँखों में आँखें डालकर सवाल करता है, ब्राह्मणी व्यवस्था, ब्राह्मणी रीति-रिवाज, कर्म-काण्ड, वेदों-शास्त्रों आदि को चैलेन्ज करता है। इन्हें बाबा साहेब का दलित समाज भी कहते है।
ऐसे में ब्राह्मण-सवर्ण वंचित जगत को दो भाग में बांटकर बहुजन समाज को बहुजन समाज से ही लड़वाता है। ब्राह्मण-सवर्ण समाज जिन दलितों से लड़ता है, नफरत करता है, उनके बारे में अच्छी तरह से जनता है कि यही वो दलित समाज का अहम् हिस्सा है जो बहुजन समाज के सामाजिक परिवर्तन के आन्दोलन को आगे ले जा रहा है। ब्राह्मण-सवर्ण जानता है यही पढ़ा-लिखा, नौकरी-पेशा दलित बहुजन की आवाज को बुलंद कर भारत से ब्राह्मणी रोग को खत्म कर रहा है। इसलिए ब्राह्मण-सवर्ण दलित समाज के इस फिरके से घोर नफ़रत करता है। नफ़रत का आलम ये है कि उनकी हत्या तक कर देता है। ब्राह्मणी आतंकवादियों द्वारा मारे गए कलबुर्गी, पंसारे, गौरी लंकेश और रोहित वेमुला जैसे लोग इसके उदहारण हैं।
ऐसे में बहुजन समाज के ब्राह्मणी रोगियों को समझना होगा कि उनके दादा-परदादा सदियों से ब्राह्मणी व्यवस्था की गुलामी करते आ रहे है। सिवाय शोषण के ब्राह्मणी व्यवस्था की गुलामी में उनकों क्या मिला? बहुजन ब्राह्मणी रोगियों को समझना होगा कि उनका शोषक उनका हितैषी कभी नहीं हो सकता है। साथ ही साथ पढ़े-लिखे आगे बढ़ रहे दलित समाज के लोगों को भी चाहिए कि वो अपने गुमराह बहुजन भाई को अकेला ना छोड़े, उनको उनके हक़ और सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में उनकी अहम् भूमिका से उनकों अवगत करायें, बाबा साहेब के मिशन के मूल स्वरुप से साक्षात्कार करायें।
याद रहें, बाबा साहेब ब्राह्मणों के "फूट डालों, राज करों" की थ्योरी से अच्छी तरह से वाकिफ थे। इसीलिए बाबा साहेब बहुजनों को शिक्षा रुपी हथियार संग संगठित होकर संघर्ष करने का सन्देश देते है। बहुजन समाज के लोगों, आपको सदा याद रखना होगा कि ब्राह्मण-सवर्ण आपका शोषक है, कट्टर शत्रु है। ये ब्राह्मण-सवर्ण किसी भी सूरत-ए-हाल में आपका और आपके बहुजन समाज हितैषी नहीं हो सकता है। ये आपको आपके बहुजन भाई के खिलाफ भड़काने का ही कार्य करेगा, आपके आन्दोलन को कमजोर करने षड्यंत्र करेगा। इसलिए ब्राह्मणों-सवर्णों पर किसी भी सूरत-ए-हाल में भरोसा मत करना। अपने बहुजन साथियों के साथ बहुजन कारवाँ को आगे ले जाने का कार्य करों। इसी में आपकी, आपके समाज संग सकल भारत की मुक्ति निहित है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू, नई दिल्ली
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