सबसे पहले गाँधी का अफ़्रीकी
आन्दोलन शुरू होता है जब उसे अंग्रेजो ने अपने डिब्बे से धक्का देकर भगा दिया । अंग्रेजो
ने ये कहकर गाँधी को वहा से भगाया कि कोई भी काला व्यक्ति गोरों के डिब्बे में
सफ़र नहीं कर सकता । इस घटना से गाँधी को बहुत बड़ा सदमा लगा। तभी
से उसे रंगभेद की वजह से होने वाले अन्याय का अहसास हुआ और उसने तभी से इसके खिलाफ
आन्दोलन करने की ठान ली।
अब इस आन्दोलन का विरोधाभास देखिये- भारतियों द्वारा रचित इतिहास कहता है कि मोहनदास ने ये आंदोलन
अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद के खिलाफ किया था जबकि हकीकत में गाँधी ने ये
आन्दोलन अफ़्रीकी लोगों के ऊपर होने वाले रंगभेदी अन्याय के विरुद्ध नही किया बल्कि
साउथ अफ्रीका में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे रंगभेद और अन्याय के विरुद्ध
था। गाँधी का कहना था कि हम भारतीय काले नहीं है । हमे भी अंग्रेजो
के समान ट्रेन में सफ़र करने का अधिकार मिले। उसके लिए गाँधी ने अंग्रेजों के
सामने अपनी मांग रखी कि भारतीयों के लिए एक डब्बा आरक्षित रखा जाए लेकिन अंग्रेजो
ने इससे साफ़ इंकार कर दिया।
यदि गांधी इतना ही महान होता तो वह काले लोगों के साथ सफर करने से परहेज़ करके सवर्णों के लिए एक अलग डिब्बे की मांग नहीं करता । इससे ये पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि गांधी भी अफ्रीकियों से उतना ही रंगभेद करता था जितना कि अंग्रेज ।
अब गाँधी के दुसरा आन्दोलन साउथ अफ्रीका के पोस्ट ऑफिस में प्रवेश के लिए था । वहा के हर पोस्ट ऑफिस में दो दरवाजे होते थे । एक दरवाजे से अंग्रेज और दुसरे से काले लोग प्रवेश करते थे । भारतीयों को भी उसी दुसरे दरवाजे यानि कि काले लोगों के दरवाजे से जाना पड़ता था ।
अफ्रीका में रह रहे सवर्णों को अफ्रीका के काले लोगों के साथ उसी दूसरे दरवाज़े से ही आना-जाना पड़ता था जो कि सवर्णों और खुद मोहनदास को पसंद नहीं था । इसलिए गाँधी ने इसके खिलाफ जो आन्दोलन छेड़ा उसमे उसने अंग्रेजों के सामने भारतीयों के लिए तीसरे दरवाजे के मांग की, लेकिन अंग्रेजोने गाँधी की इस मांग को भी मानने से इनकार कर दिया। अब फिर वही सवाल यदि गाँधी संत था तो उसने अपने और सवर्णों के लिए एक अलग दरवाज़े के मांग क्यों की । मतलब साफ है की गांधी अफ़्रीकी काले अफ्रीकियों के साथ एक ही दरवाज़े से आना-जाना पसंद नहीं करता था । मतलब की गांधी भी अफ्रीकियों के साथ रंगभेद का बर्ताव करता था ।
एक विवेकशील इंसान बड़ी आसानी से सोच सकता कि मोहनदास के ये आन्दोलन अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद विरुद्ध था या भारतीयों को अन्य अफ्रीकियों की तरह मिल रहे बर्ताव के खिलाफ था ? मोहनदास द्वारा किये गए ये सभी आंदोलन कभी भी अफ्रीकियों के खिलाफ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ नहीं और ना ही अफ्रीका में बसे सर्वसाधारण भारतीयों के लिए था बल्कि ये आन्दोलन वहाँ पर व्यापर करने गए बनिया और बाकि उच्च वर्नियों एवं सवर्णों के लिए किया गया था ।
भारतीय इतिहास में तो हमें यही पढ़ाया गया कि गाँधी ने अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ अपना आंदोलन छेड़ा था । क्या गाँधी अफ्रीकियों में लोकप्रिय था? बिलकुल नहीं........ अगर वह लोकप्रिय होता तो 6 बार शांति के दिए जाने वाले नोबल पुरस्कार की अर्जी का अफ्रीकियों द्वारा विरोध क्यों किया जाता । क्यूँ हर बार अर्जी ख़ारिज कर दी गयी ? अभी अभी कुछ दिनों पहले साउथ अफ्रीका में गाँधी के पुतले को सफ़ेद रंग से पोता गया वो भी अफ़्रीकी लोगो द्वारा, क्यों ?
यदि गांधी इतना ही महान होता तो वह काले लोगों के साथ सफर करने से परहेज़ करके सवर्णों के लिए एक अलग डिब्बे की मांग नहीं करता । इससे ये पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि गांधी भी अफ्रीकियों से उतना ही रंगभेद करता था जितना कि अंग्रेज ।
अब गाँधी के दुसरा आन्दोलन साउथ अफ्रीका के पोस्ट ऑफिस में प्रवेश के लिए था । वहा के हर पोस्ट ऑफिस में दो दरवाजे होते थे । एक दरवाजे से अंग्रेज और दुसरे से काले लोग प्रवेश करते थे । भारतीयों को भी उसी दुसरे दरवाजे यानि कि काले लोगों के दरवाजे से जाना पड़ता था ।
अफ्रीका में रह रहे सवर्णों को अफ्रीका के काले लोगों के साथ उसी दूसरे दरवाज़े से ही आना-जाना पड़ता था जो कि सवर्णों और खुद मोहनदास को पसंद नहीं था । इसलिए गाँधी ने इसके खिलाफ जो आन्दोलन छेड़ा उसमे उसने अंग्रेजों के सामने भारतीयों के लिए तीसरे दरवाजे के मांग की, लेकिन अंग्रेजोने गाँधी की इस मांग को भी मानने से इनकार कर दिया। अब फिर वही सवाल यदि गाँधी संत था तो उसने अपने और सवर्णों के लिए एक अलग दरवाज़े के मांग क्यों की । मतलब साफ है की गांधी अफ़्रीकी काले अफ्रीकियों के साथ एक ही दरवाज़े से आना-जाना पसंद नहीं करता था । मतलब की गांधी भी अफ्रीकियों के साथ रंगभेद का बर्ताव करता था ।
एक विवेकशील इंसान बड़ी आसानी से सोच सकता कि मोहनदास के ये आन्दोलन अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेद विरुद्ध था या भारतीयों को अन्य अफ्रीकियों की तरह मिल रहे बर्ताव के खिलाफ था ? मोहनदास द्वारा किये गए ये सभी आंदोलन कभी भी अफ्रीकियों के खिलाफ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ नहीं और ना ही अफ्रीका में बसे सर्वसाधारण भारतीयों के लिए था बल्कि ये आन्दोलन वहाँ पर व्यापर करने गए बनिया और बाकि उच्च वर्नियों एवं सवर्णों के लिए किया गया था ।
भारतीय इतिहास में तो हमें यही पढ़ाया गया कि गाँधी ने अफ्रीकियों के साथ हो रहे रंगभेदी भेदभाव के खिलाफ अपना आंदोलन छेड़ा था । क्या गाँधी अफ्रीकियों में लोकप्रिय था? बिलकुल नहीं........ अगर वह लोकप्रिय होता तो 6 बार शांति के दिए जाने वाले नोबल पुरस्कार की अर्जी का अफ्रीकियों द्वारा विरोध क्यों किया जाता । क्यूँ हर बार अर्जी ख़ारिज कर दी गयी ? अभी अभी कुछ दिनों पहले साउथ अफ्रीका में गाँधी के पुतले को सफ़ेद रंग से पोता गया वो भी अफ़्रीकी लोगो द्वारा, क्यों ?
अंतर्राष्ट्रीय राजनितिक
पटल पर भारत हमेशा अफ्रीका के साथ ऐतिहासिक रिश्ते की बात करता है लेकिन यदि ऐसा
है तो अफ्रीकियों द्वारा भारतीयों के प्रति रवैया जरूर सक्रिय होता । यदि
वाकई मोहनदास ने अफ्रीकियों के लिए कुछ किया होता तो अफ्रीकियों के दिल में
भारत के प्रति प्रेम होता और अफ्रीका की सरकार भी एकतरफा चीन के साथ सारे महत्वपूर्ण
समझौते करने से पहले भारत के बारे में अवश्य सोचता ।
इन सबसे एक बात स्पष्ट हो
जाती है कि गांधी कोई संत या महात्मा नहीं बल्कि एक मानसिक रूप से कट्टर
हिंदूवादी, सांप्रदायिक, स्वार्थी और धूर्त राजनेता था।
जहाँ तक बात भारत के इतिहास
की है भारत का इतिहास हमेशा से तोड़-मरोड़ कर सवर्णों के पक्ष में और उनके महिमा
मंडन में लिखा गया है जो कि सच्चाई से परे है जिसके उदाहरण ये सभी तथाकथित सवर्ण
मसीहा और उनके इतिहासकार है। भारत में आज भी ऐतिहासिक और बुनियादी सामाजिक तथ्यों
को न तो पढ़ाया जाता है और ना ही प्रकशित किया जाता है जिसकी वज़ह से लगभग पूरा का पूरा
भारतीय समाज और नौजवान गुमराह होते है और जो लोग इन ऐतिहासिक तथ्यों को गहराई और सच्चाई
से जानकार विश्लेषण करना चाहते है वे भारत को छोड़कर ब्रिटेन और अमेरिका के विश्वविद्यालयों
में पढ़ाई करना बेहतर समझते है।
क्या आप नहीं चाहते कि आपको
और आपके के बच्चों को सच्चाई और तथ्यों से परचित कराया जाय । यदि हां तो पहले सवर्णों
की गुलामी बंद करों । अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के साथ पिछड़ों के कदम ताल करते
हुए सवर्णों को सत्ता से फेकना होगा और अपने आपको इनके धर्म और षड्यंत्र से मुक्ति
दिलानी होगी नहीं तो आप कभी भी अपना वज़ूद नहीं जान पाओंगे और ज़िन्दगी भर उनकी गुलामी
ही करते रहोगे।
जय भीम, जय भारत
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