रो रहा है लाल किला,
ताजमहल विरान है।
सिसक रही है बुद्ध की धरती,
दुःखी अम्बेडकर संविधान है।
मैं इसकी गवाह हूँ,
मैं बुद्ध-अशोक-अम्बेडकर की आवाज हूँ।
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
बढ़ी सांप्रदायिकता, जातिवाद बढ़ा,
स्थापित हो गया ब्राह्मणवाद।
संसद पर कब्जा कर आतंकियों ने,
बना दिया हिंदू सरकार।
जनता हक को बिलख रही है,
बढ़ रहा है सरकारी अत्याचार।
मैं इसकी गवाह हूँ,
मैं कबीर-रैदास-नानक की आवाज हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
लाल संग संविधान को छाती से चिपकाए,
आगे बढ़ रही हैं देश की मांयें,
ठिठुर रहा है सारा जहां,
शिशिर-शरद है परवान यहां,
मैं इसकी गवाह हूँ,
मैं फूले-शाहू-पेरियार की आवाज हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
भुलाकर दुश्वारियां कुदरत की,
पीढ़ियों के हक को सजो रही हैं,
गली, गांव-मोहल्लों में,
बंधुत्व के धागें को पिरों रहीं हैं,
मैं संघर्ष की गवाह हूँ,
मैं बिरसा-तिलका-घासी की आवाज हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
जनता ने बागडोर सौंपी जिसे,
वही उन्हें बेघर बना रहा है,
जनता की ही खा कर,
जनता को ही आंख दिखा रहा है,
फासीवाद की इम्तहा हुई,
लोकतन्त्र कराह रहा हैं,
मैं इसकी गवाह हूँ,
मैं रमा-सावित्री-झलकारी की आवाज हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
गाय सुरक्षित है, नारी संग व्याभिचार है।
हिंदुस्तान का शासन है, भारत लाचार है।
पुलवामा उरी षड्यंत्र, वोट का आधार है।
किसान मरे या जवान,
हुक्मरानों को नहीं परवाह है,
ये हिंदुत्व का आतंकवाद है,
मैं इसकी गवाह हूँ,
मैं उदा-फातिमा-फूलन की आवाज हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
देख प्रकोप मनुष्यता का,
मानवता चीख रहीं हैं।
हिटलरशाही की पराकाष्ठा,
बहुजन का हक़ मार रहीं हैं।
मैं इसकी गवाह हूँ,
मैं बहना-काशीराम-बहुजन की आवाज हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ,
मैं शाहीन बाग हूँ।।
रजनीकांत इंद्रा
23.01.2020
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