विद्वान कुलपति महोदय,
महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय, वर्धा
विषय - मान्यवर काशीराम साहेब
परिनिर्वाण दिवस पर विचार-गोष्ठी का आयोजन करने और प्रधानमंत्री को खत
लिखने के कारण छः विद्वान बहुजन छात्रों के निष्काषन के सन्दर्भ में।
महोदय,
विश्वविद्यालय ज्ञान के उत्पादन,
संकल्पनाओं के प्रतिपादन, विचारों के सृजन, परंपरागत प्राप्त मानवज्ञान व नवीन
ज्ञान का संरक्षण, नवीन ज्ञान के अनुसंधान, संवर्धन एवं प्रसार का केंद्र होता हैं।
विश्वविद्यालय साहित्य, कला, दर्शन, समाजविज्ञान, विज्ञान, प्रशासन, व्यवसाय,
व्यापार-उद्योग, प्रबन्धन, चिकित्सा एवं तकनीकी आदि के शिक्षण-प्रशिक्षण एवं
अनुसंधान का श्रेष्ठ स्थान होता हैं। ऐसे में ज्ञानानुसंधान एवं प्रसार के लिए यह
आवश्यक है कि विश्वविद्यालयों में बौद्धिक आज़ादी कायम रहें। विश्वविद्यालय
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में सद्भावना स्थापित करने के भी शक्तिशाली माध्यम हैं।
छात्र और शिक्षक विश्वविद्यालय के दो महत्वपूर्ण अंग हैं, जिनका कार्य देश-समाज के
सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श, सवाल-जवाब व समीक्षा करना होता है। शिक्षा संस्थानों
में सोचने-समझने, अभियक्ति करने और नए-नए तरीके आजमाने की आजादी जरूरी है। किसी भी
देश व समाज की उन्नति के लिए उस देश व समाज के शैक्षणिक सस्थानों में आजादी जरूरत
होती है क्योंकि यही आज़ादी शिक्षा के सन्दर्भ में प्रथम कदम होता हैं, जो वास्तव
में ज्ञान ही नहीं बढ़ाता हैं बल्कि नए विचारों व नए कामों के लिए
रास्तें भी खोलता हैं।
ऐसे में, पिछले लगभग आधे दशक से,
विश्वविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में आये दिन शिक्षकों और शिक्षार्थियों
के मूलभूत अधिकारों को रौदा जा रहा हैं। शैक्षणिक संस्थानों में आये दिन समाज के
एक खास (वंचित) वर्ग के साथ मानसिक उत्पीड़न हो रहा हैं जिसके चलते बहुजन समाज के
बच्चे विश्वविद्यालयों की आज़ाद फिजाओं में भी भयभीत रहने को मजबूर हैं। भारत में
ही शैक्षणिक संस्थानों में हो रहें अत्याचार का सबसे घिनौना उदहारण - रोहित
वेमुला, डेल्टा मेघवाल, पायल तडवी आदि की सांस्थानिक हत्या हैं।
ऐसे में, देश व हुकूमत के सामने सबसे
अहम् सवाल यह हैं कि क्या भय, तिरस्कार और लाचारी के माहौल में ज्ञान का उत्पादन,
संवर्धन और संरक्षण सम्भव हो सकता हैं? छात्र देश की बौद्धिक बुनियाद की अहम् ईंट
होते हैं। क्या इस ईंट को कमजोर करके देश को बौद्धिकता की तरफ अग्रसर किया जा सकता
हैं? क्या छात्रों के मनोबल और उनके संविधान प्रदत्त मौलिक हक़ - इज़हार-ए-ख्याल
(अनुच्छेद १९) को दफ़न करके शोध व नवाचार किया जा सकता हैं, जो कि शोध व नवाचार
की बुनियादी जरूरत होती हैं? क्या विश्वविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों
में संविधान के अनुच्छेद २८ (१) की मंशा के विपरीत किसी एक फिरके, धर्म को
बढ़ावा दिया जा सकता हैं? ऐसे तमाम सवाल हैं जो कि देश के विश्वाविद्यालयों और अन्य
शैक्षणिक संस्थानों की आज़ादी की सरेआम निर्मम हत्या कर रहें हैं जो कि देश, देश की
जनता और हुकूमत के लिए सबसे अहम् हैं। यदि विश्वविद्यालय जैसे महत्वपूर्ण
संस्थान ऐसे सवाल नहीं करेगा तो क्या देश की भोली-भली आम
जनता ऐसे प्रश्नों का जबाब तलाशने की जहमत उठा पायेगी?
विश्वविद्यालयों की छात्र शक्ति ने
समय-समय पर देश की तानाशाही हुकूमतों को भी संविधान सम्मत कार्य करने पर
मजबूर कर देश व समाज के प्रति अपना अहम् योगदान दिया हैं। देश में फैली
अराजकता, आतंकवाद, वंचित-बहुजन (एससी-एसटी-ओबीसी-कन्वर्टेड मॉयनॉरिटीज़) समाज की मॉब
लिंचिंग, ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था, भुखमरी (Global Hunger
Index Rank - 103), भ्रष्टाचार (Corruption Perception Index Rank - 78), कश्मीर
में अपने ही घर में कैद जनता और वंचित जगत के साथ घातांकीय तौर पर
बढ़ते अपराधों के खिलाफ लिखना और हुकूमत से सवाल करना, क्या गलत हैं? ये सवाल
देश का बुद्धिजीवी वर्ग नहीं करेगा तो आखिर देशहित के इन अहम् मुद्दों को कौन
उठाएगा? क्या लोकतंत्र में आम जनता, छात्र-शिक्षक व अन्य बुद्धिजीवी वर्ग
हुकूमत से सवाल भी नहीं पूछ सकते हैं? हमारे विचार ऐसे सवाल पूछना मुल्क के हर
शहरी का बुनियादी व कानूनी हक़ हैं। विश्वविद्यालय तो ऐसी संस्था हैं जो देश हर
संस्था (कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका, मीडियालय, उद्योगालय, सचिवालय,
सिनेमा, सिविल सोसाइटी, विदेशनीति और देश-समाज से जुड़ें हर मुद्दे) की
समीक्षा करता हैं, और इसको करना भी चाहिए क्योंकि ये विश्वविद्यालयों की
देश व समाज के प्रति प्रथम नैतिक जिम्मेदारी हैं। ऐसे में, क्या महात्मा
गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, के छः विद्वान बहुजन छात्रों
द्वारा माननीय प्रधानमन्त्री जी को खत लिखा जाना गलत हैं?
मान्यवर काशीराम साहेब परिनिर्वाण
दिवस मनाये जाने सन्दर्भ में -
बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जैसे महानतम
विभूति ने विश्वविद्यालयों के प्रांगण में चहल-कदमी करके ही देश को दुनिया का
सर्वश्रेठतम संविधान दिया, अर्थजगत में नए आयाम गढ़े, इतिहास की सदियों पुरानी
दरिया के रूख को मोड़कर देश की दिशा व दशा बदलने वाले मानवीय मूल्यों को
स्थापित किया हैं। भारत की राजनैतिक समीकरण को नए सिरे से स्थापित करने वाले
मान्यवर कांशीराम साहेब जैसी महान शख्सियत विश्वविद्यालयों से ही होकर
निकली हैं। बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर और मान्यवर साहेब के अतिरिक्त नेल्सन
मंडेला व मार्टिन लूथर किंग जैसी शख्सियत भी किसी ना किसी विश्वविद्यालय से ही
निकले हैं। विश्वविद्यालय जहाँ एक तरफ समाज की दिशा व दशा बदलने वाले छात्रों को
जन्म देता हैं वहीँ दूसरी तरफ ये देश व समाज में अहम् योगदान देने वाले महानायकों
व महानायिकाओं और उनके वैचारिकी को स्थापित भी करता हैं।
मान्यवर कांशीराम साहेब एक ऐसी ही
महान शख्सियत हैं जिन्होंने सदियों-सदियों से गुलाम रहें कौम को उस राह पर चलना
सिखा दिया जिसके बदौलत सदियों-सदियों से गुलाम रहीं कौम ने भारत की सर्वाधिक आबादी
वाले उत्तर प्रदेश की सरजमीं पर एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, बल्कि चार-चार बार
हुकूमत की हैं। ऐसी महान शख्सियत का जन्मदिन और परिनिर्वाण दिवस व उनकी जिंदगानी
से जुडी तमाम घटनाओं के सन्दर्भ में विचार-गोष्ठी ज्ञान उत्पादन और वैचारिक
समीक्षा का सशक्त माध्यम होता हैं। मान्यवर काशीराम साहेब भारत की राजनीति के
शिक्षार पर विराजमान वो नाम हैं जिनके वैचारिकी ने भारत की ८५ फीसदी आबादी को देश
का नागरिक होने का एहसास कराया हैं। ऐसी शख्सियत अपने आप में खुद ही एक विचारधारा
हैं, दर्शन हैं। ऐसी महान शख्सियत पर दुनिया हर विश्वविद्यालय शैक्षणिक संस्थान
में शोध होना चाहिए, उनकी वैचारिकी का संरक्षण और प्रसार होना चाहिए।
ऐसे में, महात्मा गाँधी
अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कैम्पस में मान्यवर काशीराम
साहेब के परिनिर्वाण दिवस पर विचार-गोष्ठी का आयोजन करने वाले छः
विद्वान बहुजन छात्रों का विश्वविद्यालय से निष्काषन देश-समाज और दुनिया के लिए हानिकारक
ही नहीं, बल्कि विध्वंशक कदम भी हैं। ये बौद्धिकता पर पहरा हैं, देश के
मानसिक विकास पर भक्ति की तलवार हैं। छात्रों के शोध सम्बंधित मूलभूत हकों की
हत्या हैं। खौफ के ऐसे आलम में, क्या विश्वविद्यालय, इसके छात्र, शोधार्थी और
विद्वान शिक्षक किसी भी तरह से ज्ञान का उत्पादन, संवर्धन और प्रसार कर सकेगें?
अतः देश का एक शहरी होने के
नाते, हम आप विद्वान महोदय से निवेदन करते हैं कि महात्मा गाँधी
अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कैम्पस में मान्यवर
काशीराम साहेब परिनिर्वाण दिवस पर विचार-गोष्ठी का आयोजन करने और
प्रधानमंत्री को खत लिखने वाले छः विद्वान बहुजन छात्रों के निष्काषन को तत्काल रद्द कर देश के अन्य विश्वविद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी भयमुक्त माहौल बनाने का सन्देश
दिया जाय, भारत के आइन में दर्ज़ इज़हार-ए-ख्याल के बुनियादी हक़ का सम्मान किया जाय, संविधान की हत्या करने के लिए उठने वाले कदमों के प्रति जनता को जागरूक किया जाय,
विश्वविद्यालयों के मूल चरित्र को संरक्षित कर विश्वविद्यालयों को ज्ञान-उत्पादन, संवर्धन, प्रसार व अनुसंधान के केंद्र के रूप में पुनः स्थापित किया जा जाय।
रजनीकान्त इन्द्रा
संस्थापक - एलीफ
दिनांक - 12.10. 2019
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