मीडया सूचना को, विशेषज्ञों की राय और जनता के मत को हुकूमत
तक पहुंचाने और हुकूमत की नीतियों को जनता तक सम्यकता के साथ पहुँचाने का माध्यम हैं।
इसकी महत्ता इस बात से आंकी जा सकती हैं कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा
जाता हैं। लेकिन जब ये मीडिया पत्रकारिता के मायने, मकसद और इसमें निहित मूल्यों को
ताख पर रखकर सरकारी ये कॉर्पोरेट घरानों की दलाली करने लग जाय, जनता को सम्यक सूचना
देने के बजाय जनता को गुमराह करने लग जाए, सरकारी के गलत कदमों को उजागर करने के बजाय
उनकों छिपाने लग जाय तो सिर्फ पत्रकारिता के मूल्य ही नहीं बल्कि देश, देश की जनता
और उनके अधिकारों सहित पूरा का पूरा ढाँचा ही विनाश की तरफ बढ़ने लगता हैं।
आज के दौर में मीडिया इतनी शक्तिशाली हो चुकी हैं कि ये जब
चाहें जिसकी चाहें सरकार बनवा सकती है और जब चाहें जिसकी चाहें सरकार गिरा सकती हैं।
इसका सबसे बड़ा उदहारण लोकसभा चुनाव २०१४ & २०१९ हैं। ये दोनों चुनाव डेमोक्रेसी
के नहीं बल्कि मीडियाक्रैसी के उदहारण हैं। ये दोनों चुनाव जनता के बीच नहीं बल्कि
टेलीविजन के स्टूडियोज में बैठकर लड़े गए हैं। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, ढहती अर्थव्यवस्था,
हिन्दू आतंकवाद, जातिवाद, धार्मिक उन्माद, दलित-नरसंहार, मॉब लिंचिंग आदि ह्रदय विदारक
घटनों के चलते लोग अपने और अपनों की सुरक्षा और दो जून की रोटी को लेकर चिंतित हैं।
इसके पास इतनी फुर्सत कहाँ हैं कि ये देश और अपने हकों के हित में सोच सकें, सरकार
की ब्राह्मणी नीतियों को समझ सकें। ऐसे हालत में मीडिया का दायित्व बढ़ जाता हैं लेकिन
जब मीडिया ही साकार की पैरवी करने लगें तो जनता की आवाज हुकूमत के कानों तक कैसे पहुंचेगी
और हुकूमत के ब्राह्मणी षड्यंत्र को जनता कैसे समझेगीं?
जब मीडिया सरकार की पैरोकार बन जाय, पैसे के लिए पत्रकारिता
के मूल्यों से किनारा कर ले तो देश की राजनीति के सन्दर्भ में मीडिया का बदलता सुर
बहुत कुछ बयां करता हैं। भारत की राजनीति में सामाजिक संरचना का बहुत बड़ा प्रभाव हैं।
ब्राह्मणी शक्तियां नहीं चाहती हैं देश में समता कायम हो। ये नहीं चाहते हैं कि देश
के बहुजन समाज को देश की शासन सत्ता और संसाधन के हर क्षेत्र के हर पायदान पर समुचित
प्रतिनिधित्व और सक्रिय भागीदारी मिले। देश के संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विश्वविद्यालय,
उद्योगालय, सचिवालय, सिविल सोसाइटी आदि पर समाज के ऊँचें पायदान पर स्थापित लोगों का
अलोकतांत्रिक कब्ज़ा हैं। ये सारे सांसदों पर देश की ८५% जनता की भागीदारी को स्वीकार
करने को तैयार नहीं हैं। इनकी इस मंशा से मीडिया भी अछूता नहीं हैं। इसलिए भारतीय राजनीति
की दो खास ब्राह्मणी राजनैतिक दलों के संदर्भ में मीडिया का रुख बहुत कुछ कहता हैं।
यदि बात को हम २०१० से लेकर आज तक के सन्दर्भ में देखें तो हम पाते हैं कि कैसे मीडिया
देश में एक बायनरी तैयार करने में दोनों ब्राह्मणी राजनैतिक दलों (कांग्रेस और बीजेपी)
की मदद कर रहीं हैं ताकि बहुजन राजनीति को किनारे लगाया जा सकें।
ऐसे में देश के लोगों को मीडिया के रुख पर नज़र टिकाएं रहना
होगा। यदि हम २०१० से लेकर आज तक के मीडिया के सुर पर गौर करें तो हम पाते हैं कि जब
बिकाऊ मीडिया का रूख एक तरफा बदल जाए तो समझ लेना कि कांग्रेस आने वाली हैं क्योंकि
यूपीए-१ तक मीडिया कांग्रेस के पक्ष में थी लेकिन जब यूपीए-२ शुरू हुआ ही था कि किशन
हजारे और मीडिया ने बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया था। परिणाम ये हुआ
कि कांग्रेस की सरकार चली गयी और दूसरी वाली ब्राह्मणी पार्टी (बीजेपी) सत्तासीन हो
गयी।
इसी तरह से एनडीए-१ तक बिकाऊ मीडिया बीजेपी के पक्ष में रहीं
हैं लेकिन जल्द ही बिकाऊ मीडिया बीजेपी के खिलाफ बोलने वाली हैं, (या फिर यूँ कहें
कि बोलना कर दिया हैं) फिर सत्ता ब्राह्मणी बीजेपी के हाथ से निकलकर ब्राह्मणी कांग्रेस
के हाथों में चली जाएगी। इस ब्राह्मणी षडयंत्र को समझना बहुत आसान हैं, ये कोई रॉकेट
साइंस नहीं हैं बल्कि ये दो ब्राह्मणी दलों के मध्य समझौता हैं कि एक शिफ्ट (दशक) ब्राह्मणी
कांग्रेस सत्तासीन रहेगी और एक शिफ्ट ब्राह्मणी बीजेपी। मतलब कि चुनाव होगें, सत्तारूढ़
दाल बदलेगें, कुछ चहरे भी बदलेगें लेकिन सत्ता में सिर्फ और ब्राह्मणी पार्टियां ही
रहेगीं।
मतलब कि इनका मकसद साफ़ हैं कि बहुजनों के राजनेताओं को झूठे
भ्रष्टाचार आदि के आरोपों में बदनाम कीजिये, उनके जनाधार को गुमराह कीजिये, और बहुजन
नेताओं और राजनैतिक दलों को सत्तासीन होने से रोकिये और ब्राह्मणी सत्ता, धर्म, संस्कृति
व व्यवस्था को कायम रखिये।
दुःखद ये हैं कि बहुजन समाज का युवा ब्राह्मणी राजनैतिक दलों
के इस षड्यंत्र को समझने के बजाय बहुजन समाज का उन्मादी युवा दलित-बहुजन नेतृत्व के
खिलाफ ब्राह्मणी संगठनों व राजनैतिक दलों से संरक्षण प्राप्त और फण्डित रजिस्टर्ड संगठनों
और आर्मियों/सेनाओं/फौजों के द्वारा गुमराहित हो रहा हैं। बहुजनों के पास अब भी समय
हैं कि अपने बहुजन नेतृत्व को पहचाने और बाबा साहेब के नक़्शे-ए-कदम पर चलने वाली मान्यवर
साहेब की बनायीं राजनैतिक विरासत के साथ खड़े होकर बहुजनों को राजनैतिक रूप से अनाथ
होने बचाने के लिए एक साथ एक मंच पर आएं।
-----------------------------------------रजनीकान्त इन्द्रा-----------------------------------------
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