सितम्बर २०१७ के पहले सप्ताह की बात है। २६ राष्ट्रिय राइफल कुमाऊ
रेजिमेंट किस्तवार जम्मू-कश्मीर में पोस्टेड सिपाही कमलेशभाई गोकुलभाई जाधव को दलित
होने के कारण मेस से निकल दिया गया है, उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। अपने
विभाग से न्याय ना मिलने के कारण उसने सोशल मीडिया पर वीडियों के जरिये अपनी बात देश
के सामने रखकर न्याय की लगाई। वो अपने वीडियों में कहता है कि इसके वाद उसका क्या होगा
वो खुद भी नहीं जानता है। मतलब साफ़ है उसके साथ कुछ भी हो सकता है।
फ़िलहाल उसे न्याय कब मिलता है, मिलता है भी कि नहीं। कोई नहीं जानता
है। लेकिन जिस आर्मी को कानून और अनुशासन का पाबन्द माना जाता है, इस सिपाही ने
उसकी कलई खोल कर रख दी है। कमलेशभाई गोकुलभाई जाधव अकेले सिपाही नहीं है जो जातिवाद
से पीड़ित है, इनकी तरह ही देश के अन्य सभी संस्थाओं में कार्यरत अन्य सभी मूलनिवासी
बहुजन समाज के सिपाही/अधिकारी/कर्मचारी आदि भी ब्राह्मणों की बनायीं छुआछूत व जातिवाद से
पीड़ित है। बस अंतर् इतना है कि कमलेशभाई इस ब्राह्मणी अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई
जबकि अन्य लोग ख़ामोशी से इसे अपनी नियति मानकर सहन कर लेते है।
भारतीय सेनाओं में जातिवाद-छुआछूत की ये अमानवीय समस्या आर्मी की समस्या
मात्र नहीं है, इसकी जड़ें भारत के नारीविरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी
हिन्दू सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था व धर्म में निहित है। ये नारीविरोधी
जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू धर्म ही इस व्यवस्था को संचालित करता
है, मान्यता देता है जिसके कारण चंद मुट्ठीभर ब्राह्मण-सवर्ण देश की ८५% से भी अधिक
जनसख्या के ऊपर सदियों से ना सिर्फ हुकूमत करता आ रहा है बल्कि देश की ८५५ आबादी
को अमानवीय जिंदगी जीने को मजबूर कर रखा है।हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज को ये समझना
होगा कि हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि एक सोची समझी साज़िश है, देश के
मूलनिवासी बहुजन समाज व सकल नारी समाज को सत्ता-संसाधन से दूर रखने का। ये आतंकवाद
है। ये मानवीय मूल्यों के साथ किया गया अब तक का निकृष्टतम अत्याचार है।
इन्हीं ब्राह्मणी अत्याचार को नेस्तनाबूद करने के लिए बोधिसत्व
विश्वरत्न मानवतामूर्ति शिक्षा प्रतीक बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर जी ने
मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को देश की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर
पर समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए, भारत के सामाजिक
व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण करने के लिए, समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित समाज का
सृजन करने के लिए, भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए संविधान में अनुच्छेद
१५ & १६ और ३३२ & ३३४ का विशेष प्रावधान किया जिसके तहत बाबा साहेब ने देश
की सत्ता व संसाधन के हर क्षेत्र के हर स्तर पर मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों
के लिए समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी के मूलभूत संवैधानिक
व लोकतान्त्रिक अधिकार को सुनिश्चित कर देश में लोकतंत्र की नींव रखकर न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व
पर आधारित नए समाज के सृजन का नया आगाज किया है।
इन्हीं मूलभूत अधिकारों के कारण आज देश का असली वारिश मूलनिवासी बहुजन
समाज ब्राह्मणी व्यवस्था का तिरस्कार कर देश में न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर
आधारित समाज के नव सृजन की तरफ अग्रसर है, लेकिन बाबा साहेब के न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व
पर आधारित कारवां से नारीविरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी निकृष्टतम
समाज को तकलीफ हो रही है। नतीजा- आये दिन देश के हर गली-हर मोहल्ले, हर चौक-हर चौराहे,
हर विद्यालय-हर विश्वविद्यालय, हर दफ्तर-हर कोर्ट में लोकतंत्र को सन्दर्भ में लाये
बगैर तथाकथित एन्टीनाधारी मेरिट के नाम पर मूलनिवासी बहुजन समाज के अधिकारों को बदनाम किया
जा रहा है।
समाज, सत्ता व संसाधन के हर पायदान पर असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक तरीके
से कब्ज़ा जमाये बैठे ये ब्राह्मणी लोग आये दिन मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों के बाबा
साहब प्रदत्त मूलभूत संवैधानिक व लोकतान्त्रिक मानवाधिकारों के खिलाफ आग
उगलते रहते है। ये ऐसा माहौल खड़ा कर देना चाहते है कि खुद मूलनिवासी समाज को ये लगने
लगे कि आरक्षण से देश का नुकसान हो रहा है और ये मूलनिवासी बहुजन समाज खुद आरक्षण
के प्रति निष्क्रिय हो जाए। हालांकि ये होने वाला नहीं है।
जब हमारा ब्राह्मणी दुश्मन लगातार हमारे संवैधानिक व लोकतान्त्रिक
अधिकारों के साथ लगातार छेड़छाड़ कर रहा है, दुष्प्रचार कर रहा है, तो ऐसे में हमारा
कर्तव्य है कि हम सब मिलकर राष्ट्रनिर्माण में आरक्षण के योगदान को
जन-जन तक पहुँचाये। देश को मालूम होना चाहिए कि आरक्षण की वजह से देश का लोकतंत्र मजबूत
हुआ है, लोगों को सरकारों के गिरेबान पकड़ कर पूछने का हक़ मिला है कि तुमने देश हित में,
लोगों के विकास हित क्या किया है? इसलिए संविधान में निहित मूलनिवासी बहुजन समाज के
लोगों के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) के अधिकार को समझना
होगा, देश को समझाना भी होगा।
सनद रहे, भारत के एससी-एसटी समाज को दो तरह का समुचित स्वप्रतिनिधित्व
व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) का अधिकार मिला हुआ है। एक, अनुच्छेद ३३२
& ३३४ के तहत देश की संसद व विधानसभाओं में सुरक्षित सीटों का प्रबंध जो कि
सिर्फ दस साल के लिए होता है जिसका कार्यकाल समय-समय पर संविधान संसोधन करके बढ़या
जाता रहता है। दूसरा, अनुच्छेद १५ & १६ के तहत जिसके तहत मूलनिवासी बहुजन
समाज के लोगों को शैक्षणिक संस्थानों-सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व मिला हुआ है, जिसकी
कोई समय-सीमा तय नहीं है।
मूलनिवासी बहुजन समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी
(आरक्षण) के संदर्भ में पटेल को जबाब देते हुए बाबा साहेब ने खुद कहा है
कि जब देश में लोकतंत्र (सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक) पूरी
तरह से लागू हो जायेगा तो आरक्षण की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। कहने का तात्पर्य
यह है कि जब देश में लोकतंत्र (सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक) पूरी
तरह से लागू हो जायेगा तो संविधान के अनुच्छेद १५, १६, ३३२ & ३३४ संविधान
के अनुच्छेद ३५६ (राष्ट्रिय आपातकाल से सम्बंधित प्रावधान- जैसा कि बाबा
संविधान सभा में कहा था कि संविधान का अनुच्छेद ३५६ सामान्य समय में एक "मृत अनुच्छेद"
की तरह रहेगा लेकिन जब भी देश को कोई राष्ट्रिय विपदा आएगी है तो ये अनुच्छेद
३५६ स्वतः जीवित हो जायेगा और राष्ट्रिय विपदा के ख़त्म होते ही ये अनुच्छेद ३५६
फिर से "मृत अनुच्छेद" हो जायेगा) की तरह ही सुषुप्तावस्था में चला
जायेगा लेकिन जब-जब मूलनिवासी बहुजन समाज के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकारों
की हत्या का प्रयास किया जायेगा तो संविधान के अनुच्छेद १५, १६, ३३२ & ३३४
स्वतः सक्रिय हो जायेगे। इसलिए किसी को भी मूलनिवासी बहुजन समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व
व सक्रिय भागीदारी के मूलभूत संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकारों से सम्बंधित किसी
भी तरह की गलत अवधारणा पालने की कतई भी जरूरत नहीं है।
संविधान में हर प्रावधान इतना स्पष्ट संदेशों व आदेशों के साथ लिखा
है लेकिन फिर भी नारीविरोधी जातिवादी सनातनी मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों
द्वारा संविधान व मूलनिवासियों के अधिकारों का लगातार पुरजोर विरोध किया जा रहा है।
इस विरोध का सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है कि ये नारीविरोधी जातिवादी सनातनी
मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी हिन्दू आतंकवादियों का समाज व संगठन ये
नहीं चाहता है कि भारत में लोगों के बीच समानता हो, सबको स्वत्रंत्रता हो, लोगों
में आपस में भाई-चारा हो क्योंकि ये ब्राह्मणी आतंकवादी समाज जनता है कि यदि देश में
न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व की सत्ता लागू हो जाएगी तो ब्राह्मणी व्यवस्था का सदा
के लिए अंत हो जायेगा। ये हिन्दू आतंकवादी संगठन चाहते है कि भारत में निकृष्टतम रामराज्य
की शासन प्रणाली लागू हो जाये, देश को मनुवाद से चलाया जाय, देश कमें मूलनिवासियों
के अधिकारों को छीन कर उन्हें फिर से जानवरों से भी बद्तर स्थिति में जीने को मजबूर
कर दिया जाय। इसीलिए ये हिन्दू आतंकवादी संगठन बार-बार देश की सत्ता व संसाधन के सभी
संस्थानों में मूलनिवासी बहुजन समाज के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक समुचित स्वप्रतिनिधित्व
व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) के प्रावधान का लगातार विरोध करते रहते है। ये हिन्दू
आतंकी लोग हमेशा संविधान के समीक्षा व मूलनिवासी बहुजन समाज के अधिकारों की समीक्षा
की बात को बढ़ा-चढ़ाकर गलत मानसिकता से प्रचारित-प्रसारित करते रहते है। जिस समाज
के पास निष्पक्ष न्यायिक चरित्र होता ही नहीं है वो निकृष्टतम समाज बुद्धिज़्म के सिद्धांत
पर बनी उस व्यवस्था के समीक्षा की बात कर रहा है जो अभी तक की सर्वोत्तम व्यवस्था
है, सर्वोत्तम संविधान है।
ये ब्राह्मणी हिन्दू आतंकी लोग आज़ादी के बाद से लेकर आजतक खुद
सत्ता पर काबिज है लेकिन ये आतंकी कभी खुद की समीक्षा करने की बात नहीं करते है। आज
देश को जरूरत है कि ये समीक्षा की जाये कि आज़ादी के बाद से आज तक की ब्राह्मणी सरकारें
तथा एन्टीनाधारी मेरिटवाले क्या संविधान निहित मूलभूत लक्ष्य "लोकतंत्र
(सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक); समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व पर आधारित समाज" बना
पाये?
जहाँ तक रही मूलनिवासी बहुजन समाज के संवैधानिक व लोकतान्त्रिक
समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी (आरक्षण) की बात तो भारत में, एससी-एसटी
को दो तरह का संवैधानिक व लोकतान्त्रिक समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी
(आरक्षण) का अधिकार मिला हुआ है लेकिन ब्राह्मणी आतंकवादी समाज के लोग विरोध
सिर्फ अनुच्छेद १५ & १६ के तहत एससी-एसटी को मिले आरक्षण का ही करते है, अनुच्छेद
३३२ & ३३४ के तहत एससी-एसटी को मिले आरक्षण का नहीं। फ़िलहाल ब्राह्मण-सवर्ण विरोध
ही सही लेकिन इन विरोधों के चलते संविधान के अनुच्छेद १५ & १६ के तहत मिले आरक्षण
की चर्चा तो हो जाती है लेकिन अनुच्छेद ३३२ & ३३४ के तहत एससी-एसटी को मिले आरक्षण
की चर्चा तक कभी नहीं हुई, इसके लिए कभी सड़कों पर आंदोलन नहीं हुआ, कभी किसी ब्राह्मण-सवर्ण
ने इसका विरोध नहीं किया, इसलिए अनुच्छेद ३३२ & ३३४ के तहत एससी-एसटी को मिले आरक्षण
की समीक्षा आवश्यक है। आखिर क्या वजह है कि ब्राह्मणी आतंकवादी समाज के लोग मूलनिवासियों
को अनुच्छेद ३३२ & ३३४ के तहत मिले अधिकार का विरोध छोड़िए बल्कि समर्थन करते रहते
है जिसका पुख्ता प्रमाण ये है कि ब्राह्मणी रोगियों द्वारा बिना किसी चर्चा के
हर दस साल में इस अधिकार को अगले दस साल के लिए बढ़ा दिया जाता है। ब्राह्मणों व सवर्णों के सन्दर्भ में मूलनिवासी बहुजन समाज को ये याद रखना चाहिए कि कौन उसका हितैषी है और कौन उसका शोषक? जहाँ तक रही ब्राह्मणों
की बात तो ये गौर करने वाली बात है कि यदि ब्राह्मण आप का विरोध करे तो आप
समझ जाओ कि आप सही रास्ते पर चल रहे हो। यदि ब्राह्मण चुप रहे तो समझ जाओ कि ब्राह्मण
कोई षड्यंत्र कर रहा है। यदि ब्राह्मण आपके साथ खड़ा हो जाये, आपके हित की बात करे,
आपका हितैषी बनने लगे तो सावधान हो जाओ क्योंकि खतरा आपके सर पर है। कहने
का तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण कभी भी किसी भी परिस्थिति में आपका हितैषी नहीं हो सकता
है। ब्राह्मण-सवर्ण एक परजीवी है। ब्राह्मण अमरबेल की तरह होता है। जैसे अमरबेल जिस
पेड़ पर लगता है, उसे ही सुखकर खुद हरा-भरा रहता है। ठीक उसी तरह से ब्राह्मण भी
जिसके ऊपर निर्भर रहता है उसके ही खून को चूस-चूसकर ही खुद हरा-भरा, हृष्ट-पुष्ट व
स्वस्थ रहता है। ऐसे में ब्राह्मण से सदा सावधान रहना चाहिए। मतलब साफ़ है कि यदि
ब्राह्मण मूलनिवासी समाज के संविधान निहित अनुच्छेद ३३२ & ३३४ का समर्थन कर रहा
है तो मूलनिवासी बहुजन को समझ जाना चाहिए कि खतरा मूलनिवासी बहुजन के सर पर है। इसलिए मूलनिवासी बहुजन समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी
को सन्दर्भ में रखते हुए संविधान के अनुच्छेद ३३२ & ३३४ की समीक्षा होनी ही
चाहिए।
संविधान के अनुच्छेद ३३२ & ३३४ के तहत मूलनिवासी बहुजन समाज को
मिले राजनैतिक आरक्षण का अधिकार, जो सिर्फ दस साल के लिए होता है जिसे हर दस साल
पर रिन्यू किया जाता है, पर ब्राह्मण-सवर्ण कभी चर्चा नहीं करते है, क्यों ? कोई
टेलीविजन चैनल, अख़बार, पत्रिका इसको मुद्दा नहीं बनाते है, क्यों ? इसका एक मात्र कारण
यही है कि इस आरक्षण की बदौलत मूलनिवासी बहुजन समाज के हितैषी नेता
नहीं बल्कि जगजीवनराम, रामदास अठावले, रामबिलास पासवान, जीतनराम मांझी, रामनाथ
कोबिंद, और उदितराज जैसे कौम के दलाल पैदा होते है, जो अपनी कौम के बजाय ब्राह्मणी
बीजेपी व कांग्रेस की सेवा करते है। नतीजा, बहुजन कौम के इन दलालों को ब्राह्मणी
बीजेपी, कम्युनिस्ट और कांग्रेस जैसे दल मूलनिवासी बहुजन नायकों और महनायिकाओं
के खिलाफ खड़ा करके मूलनिवासी बहुजन समाज को उसके मुद्दों से भटकाकर गुमराह करते
है। इसलिए संविधान के अनुच्छेद ३३२ & ३३४ की समीक्षा होनी चाहिए।
याद रहे, ब्राह्मण-सवर्ण हमेशा बहुजनों के नौकरियों, शिक्षण संस्थानों
आदि के आरक्षण का विरोध ही करता है, राजनैतिक आरक्षण (अनुच्छेद ३३२ & ३३४) का
नहीं क्योंकि राजनैतिक आरक्षण से ब्राह्मणी बीजेपी व कांग्रेस को फायदा है जबकि संविधान
के अनुच्छेद १५ & १६ के मूलभूत अधिकारों के तहत मिले नौकरियों, शिक्षण संस्थानों
वाले आरक्षण से भीम-फुले के अनुयायियों को जिसके कारण हम इस लायक हुए है कि हम अपनी
आवाज दुनिया तक पहुँचा सकते है। इसलिए समीक्षा होनी चाहिए, आज तक के सत्तासीन दलों
की क्षमता, कार्यकुशलता और एन्टीनाधारी मेरिट का।
इस बात की भी समीक्षा होनी चाहिए कि मौजूदा आतंकवादी आरएसएस
के नेतृत्व वाली ब्राह्मणी बीजेपी सरकार में बहुजन राजनैतिक आरक्षण (अनुच्छेद
३३२ & ३३४) के तहत रामदास अठावले और उदितराज जैसे ७६ बहुजन दलाल बीजेपी से सांसद
है लेकिन क्या कभी इन्होने उस राजनैतिक आरक्षण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को स्वीकारा
जिसकी बदौलत ये सत्तारूढ़ ब्राह्मणी बीजेपी में बहुजन नुमाइंदगी का झूठा दावा कर
रहे है?
राजनैतिक आरक्षण (अनुच्छेद ३३२ & ३३४) का प्रावधान बाबा साहेब
ने बहुजन के सच्चे नुमाइन्दों को संसद व विधानसभाओं में भेजने के लिए किया था लेकिन
इससे अभी तक जगजीवन राम, रामदास अठावले, रामबिलास पासवान, रामनाथ कोबिंद और उदितराज
जैसे बहुजन दलाल ही पैदा हुए है। इसलिए मूलनिवासी बहुजन समाज को संविधान द्वारा
मिले राजनैतिक आरक्षण (अनुच्छेद ३३२ & ३३४) के समीक्षा की नितान्त जरूरत है।
अब भारत में, समय आ चुका है कि अनुच्छेद ३३२ & ३३४ के तहत एससी-एसटी
को मिले आरक्षण की समीक्षा की जाय क्योंकि इस प्रावधान का उद्देश्य था वंचित और आदिवासी
जगत के नुमाइन्दे पैदा करना लेकिन इससे रामदास अठावले, रामबिलास पासवान, जीतनराम मांझी और
उदितराज जैसे दलाल पैदा हो रहे है। इन दलालों की पैदावार को रोकने लिए तथा मूलनिवासी
बहुजन समाज के समुचित स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भगीदारी के अधिकार को और कारगर
व न्यायिक बनाने के लिए संविधान में समुचित संसोधन की जरूरत है। बहुजन
समाज को खुद भी राजनैतिक आरक्षण की समीक्षा करनी चाहिए। साथ ही इस बात की भी समीक्षा
होनी चाहिए कि आजतक की सभी सरकारों ने जो भी नीतिया बनायीं है वो सब कितना संचविधान
सम्मत है। इन सबकी चर्चा संसद के पटल पर और अन्य जनमंचों पर भी प्रबलता व प्रखरता
से होनी चाहिए। अब इसके लिए सड़क पर आंदोलन होना ही चाहिए।
देश मूलनिवासी बहुजन समाज के स्वप्रतिनिधित्व व सक्रिय भागीदारी ने
संवैधानिक व लोकतान्त्रिक अधिकारों को बहुत देर तक नकार नहीं सकता है। आज स्कूलों-कालेजों
व विश्वविद्यालयों से दहाड़ रहा मूलनिवासी बहुजन समाज का छात्र, विधायिका
से भीम गर्जना करती मूलनिवासी बहुजन महानायिका बहन कुमारी मायावती जी, न्यायपालिका
के गलियारों से गुर्राते जस्टिस कर्णन, सचिवालयों से हुँकरते मान्यवर काशीराम
के वैचारिक वंशज, मीडियालयों के गलियारों में सनसनी फैलते मूलनिवासी बहुजन पत्र-पत्रिकायें,
उद्योगालयों में पैठ बनता डिक्की, मूलनिवासी बहुजन साहित्य जगत में हमारी धरोहर को
लिपिबद्ध करते हमारे लेखक-विचारक, सिविल सोसाइटी से नेतृत्व करते बाबा साहेब के वंशज
"हम भारत के लोग", सेना के बीच से बोल रहा सिपाही, हम सब
की एकता-अखण्डता, बाबा साहेब के मिशन प्रति हमारी कटिबद्धता और न्याय-समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व
पर आधारित समाज के नव सृजन के लिए आगे बढ़ते हमारे कदम बाबा साहेब के बढ़ते बहुजन
कारवाँ के परिचायक है, ये द्योतक है कि बाबा साहेब का कारवाँ सिर्फ आगे ही नहीं
बढ़ रहा है बल्कि जातिवाद की जड़ों हिलाकर रख दिया है। बस जरूरत में भारत में एक बड़े
सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन की जिसकी आगाज़ हो चुका है जिसके बाद भारत में बची-खुची
लम्बी सांसे लेता ब्राह्मणवाद हमेशा-हमेशा के लिए गहरी नींद में सो जायेगा,
कभी ना उठने के लिए।
जय भीम, जय भारत!
जय मूलनिवासी बहुजन समाज, जय मूलनिवासी बहुजन महाक्रान्ति!!
(रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू नई दिल्ली)
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