पृथक
निर्वाचन के प्रावधान के तहत वंचित समाज को दो वोटों का अधिकार मिला था जिसमे वंचित
समाज एक वोट का इस्तेमाल वंचित समाज उसी तरह से करता जिस तरह से आज के आम चुनाव में
कर रहा है लेकिन दूसरे वोट की खासियत ये थी कि इसमें वोटर और उम्मीदवार दोनों ही वंचित
समाज से होते और अपनी जनसख्या के अनुसार में वंचित समाज सिर्फ वंचित समाज से वंचित
समाज के प्रतिनिधि को चुनता और संसद व विधान सभाओं में भेजता। और, ये लोग सच्चे अर्थों
में किसी पार्टी विशेष के प्रति निष्ठा रखने के बजाय वंचितों के अधिकारों के प्रति
निष्ठा रखते और यदि कहीं गलती से भी ये वंचित समाज के प्रतिनिधि वंचित समाज के प्रति
निष्ठावान नहीं रह पाते तो अगली बार वंचित समाज खुद उन्हें उखड फेकता।
इस तरह
से देखा जाय तो हमारी आबादी (एस सी -एस टी ) लगभग २५% के आस-पास है। इस तरह से संसद
व विधान सभाओं में एक चौथाई लोग सिर्फ और सिर्फ वंचित समाज के होते और लोग जिसे चाहते
उसी की सरकार बनती। और, जब कोई भी सरकार वंचितों के अधिकारों के खिलाफ जाता तो ये एक
चौथाई लोग किसी भी सरकार को उखाड़ फेकने के लिए काफी होते। इस तरह से सदियों से दबाया-कुचला
समाज अपनी बेड़ियों को काटकर इस देश का या तो खुद हुक्मरान बन जाता या फिर हुक्मरान
बनाने वाला। और, यदि ऐसा होता तो शायद जाती व्यवस्था भी अब तक खत्म हो चुकी होती और
भारत का मूलस्वरूप समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व आधारित समाज और संस्कृति बन चुका होता।
ऐसी
दशा में सहारनपुर, ऊना या अन्य किसी भी तरह का अत्याचार वंचितों पर नहीं हो सकता था।
और यदि गलती से भी, सहारनपुर या अन्य कोई भी घटना घटती तो वंचित समाज, वंचित समाज पर
उठने वाला हाथ नहीं काटते बल्कि उस सरकार की जड़ को ही काट देते जो उनकों सह दे रही
है।
धूर्त
गाँधी जो कि एक कट्टर हिन्दू थे और सब जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो वर्णाश्रम और जातिव्यवस्था,
जिसमे गाँधी अटूट विश्वास रखते थे, मिट्टी में मिल जायेगा। इस लिए गाँधी ने उपवास रुपी
षड्यन्त्रात्मक व अत्याचारी हथियार का इस्तेमाल किया और वंचितों के इस अधिकार को छीन
लिया और बाबा साहेब को मजबूरी में आरक्षण से ही समझौता करना पड़ा।
बाबा
साहेब ने अगले दिन धिक्कार दिवस में रोते हुए कहा था कि
"मेरी
बच्चों,
मैंने
पूना पैक्ट पर साइन करके अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की है लेकिन मै मजबूर था।
मेरे
बच्चों,
मेरी
इस गलती को सुधर लेना था।"
बाबा
साहेब ने आरक्षण नहीं पृथक निर्वाचन क्षेत्र मांगा था लेकिन गाँधी ने उपवास करके रैमसे
मैक डोनाल्ड आवार्ड को नकार दिया और वंचितों को आरक्षण देने का प्रस्ताव रखा और मजबूरी
बस बाबा साहेब को मानना पड़ा।
धन्यवाद
जय भीम,
जय भारत !
रजनीकान्त
इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू
जून १६, २०१७
No comments:
Post a Comment