साथियों,
हमारा भारत त्यौहारों के देश है। इस भारत में विभिन्न धर्म और मान्यताओं
के मानने वाले लोग रहते है। इन सभी का अपने अलग-अलग त्यौहार है। इसी कड़ी में आज हम
बात करते है राखी के त्यौहार का। वैसे तो राखी के त्यौहार के अलग-अलग मायने बताने का
प्रयास किया गया है। कुछ लोग इसे हिन्दुओ का त्यौहार कहते है तो कुछ लोग भाई-बहन का
त्यौहार कहते है तो कुछ लोग इसे पूरी तरह से सेक्युलर त्यौहार मानते है। ये लोगों की
अपनी-अपनी मान्यता हो सकती है, लेकिन यदि हम राखी या रक्षाबंधन के मूल अर्थ को समझे
और इसके ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि को देखें तो निःसंदेह रक्षाबंधन हिन्दू का और खासकर ब्राह्मणों
का त्यौहार है। हिन्दू के शास्त्रों में राखी का बाकायदा जिक्र है।
हालांकि यह सच है कि भारत में जैन धर्म आदि के लोग भी राखी को एक अलग मायने के चलते मनाते है।
साथियों,
इस तरह से रक्षाबंधन के अनेक रूप दिखाई पड़ते है लेकिन यदि इसकी शुरुआत की बात करे तो राखी निसंदेह एक हिन्दू ब्राह्मणी त्यौहार है। अब यदि हम राखी के अलग-अलग पहलुओ को देखे तो देवासुर संग्राम के एक पत्नी अपने पति को राखी बढ़ती, गुरु-शिष्य एक दूसरे को राखी बांधते है, स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में किये वर्णन के अनुसार बलि का साम्राज्य छीनने के वामन ब्राह्मण बलि को राखी बँधता है, ब्राह्मणों द्वारा रचित वैश्यावृति से ओत-प्रोत महाभारत में भी द्रौपदी द्वारा कृष्ण को और कुंती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने का जिक्र मिलता है, पुरोहित अपने गुलाम यजमानों को राखी बांधता है, राजपूत महिलायें अपने राजपूतों को राखी बांधती है, कर्मावती-हुमायूँ और बंग-भंग के दौरान भी रक्षाबंधन का जिक्र मिलता है। इतने सारे अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में राखी का अस्तित्व होने के बावजूद राखी भाई-बहन का त्यौहार माना जाता है।
यदि हम राखी के सामाजिक प्रभाव पर डालें तो हम कि राखी का त्यौहार एक सबल पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को निर्बल होने का एहसास जताना। मतलब साफ है कि पुरुष प्रधान समाज नारी को निर्बल और अबला बताने का प्रयास हर संभव ढंग से करता चला आ रहा है। समाज में रीति-रिवाज और त्यौहारों के नाम पर वर्चश्व पसन्द सामंती विचार धारा को बनाये रखने रखने के लिए मनुवादियों द्वारा गढ़ा गया एक और रक्षा बंधन।
बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ती समता नायक बाबा साहेब डॉ आंबेडकर द्वारा रचित संविधान जहाँ नारी पुरुष के समानता की बात करता है वही ब्राह्मणी मनुवादी लोग पुरुष प्रधानता को कायम रखने के लिए रक्षबंधन जैसे त्यौहारों को बढ़ावा देते आ रहे है।
साथियों,
इन्द्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बाँधा लेकिन कोई भी हिन्दू अपनी पत्नी से रक्षाबंधन नहीं बँधवाता है, आखिर क्यों? इसका जबाब यही हो सकता है कि यदि पत्नी पति की रक्षा के लिए राखी बांधती है तो पुरुष कमजोर नज़र आता है और नारी सशक्त क्योकि जब इंद्र कमजोर पड़ा था तब ही उसकी पत्नी इन्द्राणी ने उसे रक्षाबंधन का धागा बांध था। लेकिन जब पुरुष अपनी बहन से राखी बंधवाता है तो उसी समय ये साबित हो जाता है पुरुष प्रधान अहि और नारी एक आश्रित मात्र। इसी तरह जब बहन अपने भाई को राखी बांधती है तो वो बहन खुद को खुद ही कमजोर साबित कर देती है।
साथियों,
दुनिया में सबसे बड़ा बंधन है हमारे प्यार, विश्वास, मानवता और हमारे जैविक रिश्ते। यदि हमारे जैविक रिश्ते हम बही-बहनों को एक सूत्र में नहीं बांध सकता है तो मामूली रेशम का धांगा कैसे बाँध सकता है।
इस तरह से रक्षाबंधन के अनेक रूप दिखाई पड़ते है लेकिन यदि इसकी शुरुआत की बात करे तो राखी निसंदेह एक हिन्दू ब्राह्मणी त्यौहार है। अब यदि हम राखी के अलग-अलग पहलुओ को देखे तो देवासुर संग्राम के एक पत्नी अपने पति को राखी बढ़ती, गुरु-शिष्य एक दूसरे को राखी बांधते है, स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में किये वर्णन के अनुसार बलि का साम्राज्य छीनने के वामन ब्राह्मण बलि को राखी बँधता है, ब्राह्मणों द्वारा रचित वैश्यावृति से ओत-प्रोत महाभारत में भी द्रौपदी द्वारा कृष्ण को और कुंती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने का जिक्र मिलता है, पुरोहित अपने गुलाम यजमानों को राखी बांधता है, राजपूत महिलायें अपने राजपूतों को राखी बांधती है, कर्मावती-हुमायूँ और बंग-भंग के दौरान भी रक्षाबंधन का जिक्र मिलता है। इतने सारे अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में राखी का अस्तित्व होने के बावजूद राखी भाई-बहन का त्यौहार माना जाता है।
यदि हम राखी के सामाजिक प्रभाव पर डालें तो हम कि राखी का त्यौहार एक सबल पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को निर्बल होने का एहसास जताना। मतलब साफ है कि पुरुष प्रधान समाज नारी को निर्बल और अबला बताने का प्रयास हर संभव ढंग से करता चला आ रहा है। समाज में रीति-रिवाज और त्यौहारों के नाम पर वर्चश्व पसन्द सामंती विचार धारा को बनाये रखने रखने के लिए मनुवादियों द्वारा गढ़ा गया एक और रक्षा बंधन।
बोधिसत्व विश्वरत्न शिक्षा प्रतीक मानवता मूर्ती समता नायक बाबा साहेब डॉ आंबेडकर द्वारा रचित संविधान जहाँ नारी पुरुष के समानता की बात करता है वही ब्राह्मणी मनुवादी लोग पुरुष प्रधानता को कायम रखने के लिए रक्षबंधन जैसे त्यौहारों को बढ़ावा देते आ रहे है।
साथियों,
इन्द्राणी ने इंद्र को रक्षा सूत्र बाँधा लेकिन कोई भी हिन्दू अपनी पत्नी से रक्षाबंधन नहीं बँधवाता है, आखिर क्यों? इसका जबाब यही हो सकता है कि यदि पत्नी पति की रक्षा के लिए राखी बांधती है तो पुरुष कमजोर नज़र आता है और नारी सशक्त क्योकि जब इंद्र कमजोर पड़ा था तब ही उसकी पत्नी इन्द्राणी ने उसे रक्षाबंधन का धागा बांध था। लेकिन जब पुरुष अपनी बहन से राखी बंधवाता है तो उसी समय ये साबित हो जाता है पुरुष प्रधान अहि और नारी एक आश्रित मात्र। इसी तरह जब बहन अपने भाई को राखी बांधती है तो वो बहन खुद को खुद ही कमजोर साबित कर देती है।
साथियों,
दुनिया में सबसे बड़ा बंधन है हमारे प्यार, विश्वास, मानवता और हमारे जैविक रिश्ते। यदि हमारे जैविक रिश्ते हम बही-बहनों को एक सूत्र में नहीं बांध सकता है तो मामूली रेशम का धांगा कैसे बाँध सकता है।
रजनीकान्त इन्द्रा
इतिहास छात्र, इग्नू
अगस्त १७, २०१६
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