शादी , जीवन का वह
मधुर उत्सव जिसमे एक ऐसे दोस्त का आगमन होता है जो अपने आपमें माँ - बाप
, भाई - बहन , बेटा - बेटी , पति - पत्नी और दोस्त - प्रेमी जैसे पवित्र रिश्तों
को समेटे रखता है । एक
ऐसा दोस्त जो हर सुख - दुःख में सदा साथ रहता है । हमारे ख्याल से , शादी जीवन
का सबसे अनोखा और महत्वपूर्ण निर्णय होता है । जीवन का यह
बंधन , हमारे जीवन की दिशा और दशा दोनों को तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाता है
।
लेकिन हमारे
भारतीय समाज में , शादी जैसे मधुर और पवित्र पर्व का महत्व , जीवन के एक निर्णायक
कदम के रूप में कम और झूठे समाज में माँ-बाप की झूठी नाक और साख बचने का जरिया ज्यादा
है । यह इस बात से साबित हो जाता है कि आज भी लगभग सारी
शादियाँ किसी ना किसी प्रकार के दबाब का परिणाम होती है
। भारतीय पुरुष प्रधान समाज में , बेटे की इच्छा को कुछ अहमियत मिल भी जाती है
, लेकिन बेटियो की तो खुले आम सौदेबाजी होती है । भारत आजाद जरूर है ,
लेकिन बेटियों की स्थिति गाय जैसे जानवरो से ज्यादा कुछ भी नहीं है । ये समाज और देश
राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होने के वजूद मुर्दों द्वारा बनायीं गयी सड़ी - गली , रूढ़िवादी
परम्परों और कुरीतियों का आज भी पूर्णता गुलाम है ।
हमारे समाज में
, झूठी इज्जत , झूठी नाक और पडोसी के सामने ओछी साख की खातिर बेटियों की
मवेशियों जैसे खरीद - फरोख्त , एक ऐसी परंपरा है जो सदियों से चली
आ रही है । भारतीय समाज में , बेटियों की जिंदगी , बेटियों की अपनी जिंदगी
कम और माँ-बाप की नाक ज्यादा होती है । इसी वजह से भारतीय समाज की बेटियों
को अपने मौलिक मूलभूत संवैधानिक और मानव अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है । नतीजा - उनके
प्रेम , प्रेमी और खुशियों की निर्मम हत्या , जीवन भर वैश्या जैसा जीवन । क्या
किसी भी तरह के दबाव में की गयी शादी , वास्तविक शादी हो सकती है ? जहाँ तक हमारा
विचार है - किसी भी तरह के दबाव में की गयी शादी कुछ और नहीं , बल्कि
बेटी को पति रुपी एक ग्राहक के लिए कोठे पर बैठना है । हमारे देश
का ये दुर्भाग्य ही है कि प्रेम विवाह को छोड़कर हमारे समाज की हर शादी इसी के तहत आती
है ।
आज हमारे समाज में
विरले और दुर्लभ ही शादियां होगीं जहाँ पर माँ-बाप अपने बच्चों के प्रेम , उनकी खुशियों
और उनके मानव अधिकारो की रक्षा और सम्मान करते है । आज भी भारत में जहाँ एक तरफ हर
बेटे का बाप , शादियों में बोली लगाकर अपने बेटे को खुले आम बेचता है , वहीं दूसरी
तरफ हर लड़की का बाप अपनी बेटी के लिए अपने हैसियत के अनुसार दामाद के रूप में अपनी
बेटी के लिए एक निजी बलात्कारी - ग्राहक खरीदता है । ये पति रुपी
बलात्कारी - ग्राहक जहाँ एक तरफ अपने कोठे की अपनी इस निजी वैश्या के
जीवन भर के भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेता है , तो वहीं दूसरी तरफ पूरे जीवन
इस वैश्या के दिल - दिमाग और शरीर का बलात्कारी रूप से उपभोग करता
है । जो माँ - बाप अपनी बेटी को प्यार करने का दवा करते है , वहीं माँ - बाप एक
तरफ समाज , धर्म और परम्परा के खौफ से बेटी के प्यार और उसके प्रेमी की
हत्या करते है , तो दूसरी तरफ अपनी बेटी को दामाद रूपी एक बलात्कारी - ग्राहक को सौपकर अपने
जीवन में कन्यादान का पुण्य कमाने का ढोग करते है । क्या यही विवाह रूपी पवित्र
और मधुर पर्व है ???
समाज की बदलती धारा
को देखते हुए , कुछ माँ - बाप बेटियों की इच्छा जानने का दावा जरूर करते है , लेकिन
यह एक कोरे झूठ के सिवा कुछ भी नहीं है । क्योकि यदि लोग बेटियो की इच्छा का
सम्मान करते तो खाप पंचायत , समाज और माँ-बाप द्वारा प्रेमियों की निर्मम हत्या क्यों
होती ? प्रेमी जोड़े खुदकुशी क्यों करते ? मनगढंत कहानियों में लिखे
राधा - कृष्ण की प्रेम गाथा लोग जितनी भक्ति , प्रेम और लगाव से गाते है
, उससे ज्यादा दिलचस्पी और चाव से प्रेमियों की हत्या करते है । आखिर क्यों
?
भारतीय समाज की ये
शादियाँ , जीवन का मधुर उत्सव नहीं , बल्कि उनके मानवाधिकारो की निर्मम हत्या और उनके
जीवन की सौदेबाजी है । इस समाज में , हमारे युवाओं को देश की सरकार
चुनने का अधिकार है , देश के भाविष्य का निर्णय करने का अधिकार है , लेकिन खुद
का जीवन और जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं है । आखिर क्यों ? यदि कोई
प्रेम विवाह कर ले तो पंचायत , समाज और घर में भूचाल जाता है । आखिर क्यों ?
हमारे युवाओं के जीवन
का निर्णय वो बूढ़े भेड़िये ( मुर्दो द्वारा बनायीं सड़ी-गली , अमानवीय कुरीतियों
को मानने वाले लोग ) करते है जिनकी खुद की जिंदगी कुछ दिनों
की ही मेहमान होती है । बूढ़े , कट्टर और रूढ़िवादी लोगों की इच्छा
के खिलाफ जाने का मतलब है - समाज और घर में चरित्रहीन होना । क्या ये
न्याय है ? माँ-बाप , जो अपना जीवन इन बच्चों के लिए जीते है , वे ही अपने बच्चो के
सबसे बड़े दुश्मन बन जाते है | आखिर क्यों ? माँ-बाप कहते है कि वे बच्चों के भले के
लिए सोचते है और सब-कुछ बच्चों के भले के लिए ही करते है | क्या ये तर्क यहाँ किसी
भी तरह न्याय संगत है ?
क्या घिसी-पिटी , अवमानवीय , रूढ़िवादी धर्म और परम्पराओ के नाम पर हमारे
युवाओं के अधिकारो और उनके जीवन की वलि चढाई जा सकती है ? आज की बेटी यानि
कल की माँ , जो लोगों को जीवन देती है , उसी के जीवन और अधिकारो वलि दी जाती है | आखिर
क्यों ? क्या ये बेटियों धर्म और परम्परों की वेदी के लिए बनी है ? क्या हमारे
युवाओ का उनके ही जीवन पर कोई अधिकार नहीं है ?
भारतीय समाज में महिलाओ
की गुलामी और उनकी दैनीय अवस्था का कोई जोड़ नहीं है । नारी की इस विवशता का सिर्फ
और सिर्फ एक ही हल है - प्रेम - विवाह । प्रेम - विवाह ही वह हथियार
है जो इस सड़ी - गली परम्पराओ वाले भारतीय समाज और इसकी निकृष्ट मानसिकता
से नारी जाती को मुक्ति दिला सकती है । भारतीय युवतियो और युवको को कदम से
कदम मिलकर प्रेम और प्रेम विवाह के पथ पर आगे बढ़ते हुए अपने मौलिक मूलभूत संवैधानिक
मानवाधिकार के लिए दृढ़ता पूर्वक लड़ना होगा । देश के नौजवान युवको और युवतियों
को एक साथ कंधे से कन्धा मिलकर भारतीय समाज के निकृष्ट परम्पराओ को नेस्तानाबूत करना
होगा । झूठे और ओछे समाज में झूठी नाक और इज्जत के नाम पर हो रहे अत्याचारो के खिलाफ
लड़ना होगा । किसी भी समाज में इज्जत और इज्जतदार होने का माप-दंड समाज में मानवाधिकारो
की रक्षा होती है है । इसलिए समाज में हो रहे मानव अधिकारो के हनन को रोकना होगा ,
पुराने अत्याचारी परम्पराओ को नेस्तनाबूत करते हुए सिर्फ और सिर्फ प्रेम और प्रेम
- विवाह को बढ़ावा देना होगा ।
देश के युवाओ ,
जब तक हमारे देश में
लोगों का मानवाधिकार सुरक्षित नहीं होगा , तब तक हमारे देश का भाविष्य सुरक्षति नहीं
होगा । जो युवा अपने
जीवन के अधिकारो के लिए नहीं लड़ सकता है , उससे देश के रक्षा की आशा करना व्यर्थ
है । आज देश को मानवाधिकारो के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारियों की जरूरत है
। आज दुनिया में विकाश का एक महत्वपपूर्ण मापदंड - देश में बेटियों के अधिकरों की रक्षा
, स्त्रियों की दशा , शिक्षा और जागरूकता है । क्या हमारा भारत और हमारे युवा और युवतियां
इस चुनौती के लिए तैयार है ???
रजनीकान्त इन्द्रा
विधि छात्र, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
जनवरी ०८, २०१४
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