बहुजन आंदोलन: मार्गदर्शन का पथ, मुक्ति का नहीं
बहुजन आंदोलन की पावन यात्रा का प्रारंभ जगद्गुरु तथागत गौतम बुद्ध से माना जाता है, जिन्होंने मानवता को शांति, समता और करुणा का मार्ग दिखाया। इस ज्ञानदीप्त परंपरा को सम्राट अशोक, संत शिरोमणि रविदास, कबीरदास, गुरु घासीदास, नारायण गुरु, राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज, बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, मान्यवर कांशीराम साहेब और सामाजिक परिवर्तन की महानायिका बहन कुमारी मायावती जैसे महानायकों और महानायिकाओं ने अविचल भाव से आगे बढ़ाया। इन सभी ने विपरीत परिस्थितियों के मध्य भी समाज को मार्गदर्शन प्रदान किया, जिसके फलस्वरूप भारत के शूद्रों, अछूतों, आदिवासियों और शोषित-पीड़ित वर्गों में सामाजिक चेतना और परिवर्तन की ज्योति प्रज्ज्वलित हुई। यह आंदोलन केवल नेतृत्व का नहीं, अपितु संपूर्ण समाज का है, और इसका आधार मार्गदर्शन है, न कि काल्पनिक मुक्ति।
इस दीर्घ पथ पर अनेक संकट और विरोध आए। मनुवादियों और तत्कालीन बहुजन समाज के कुछ अज्ञानी तत्वों ने ज्योतिबा फुले का तिरस्कार किया, बाबासाहेब को अंग्रेजी शासन का एजेंट कहकर अपमानित किया, मान्यवर साहेब को विदेशी शक्तियों का गुप्तचर ठहराया, और आज बहन जी को मनुवादी संगठनों जैसे आरएसएस और भाजपा का सहयोगी बताने का दुस्साहस किया जा रहा है। किन्तु बहन जी अडिग रहकर बहुजन समाज को सत्य और सावधानी का संदेश देती रही हैं। बहुजन आंदोलन की मूल भावना ज्ञान और मार्ग की है, न कि मनुवादी "मोक्ष" की। तथागत बुद्ध ने कहा था, "अहं मार्गदाता अस्मि, न तु मुक्तिदाता।" इसी संदेश को आंदोलन के प्रत्येक संनादक ने दोहराया, परंतु मनुवाद के प्रभाव में डूबा बहुजन समाज अपने नेतृत्व को मार्गदाता के बजाय मुक्तिदाता मानने की भूल करता है। वह अपनी जिम्मेदारी नेतृत्व के कंधों पर डालकर स्वयं किनारे खड़ा हो, मनुवाद के अंधेरे नृत्य का साक्षी बनता है। यह समाज मनुवाद से इतना ग्रस्त है कि अपने नायकों से एक सर्वशक्तिमान "मुक्तिदाता" की अपेक्षा करता है, और उनमें मनुवादी देवताओं की काल्पनिक छवि खोजता है।
बहुजन समाज बुद्ध को श्रद्धांजलि देता है, किन्तु मनुवादी हिंसा और उन्माद का अनुसरण करता है। यही कारण है कि वह संवैधानिक और लोकतांत्रिक मार्ग से सत्ता प्राप्त करने के बजाय धरना, तोड़-फोड़, जुलूस और अनर्गल प्रलाप में अपनी शक्ति और समय व्यय करता है। बाबासाहेब और मान्यवर साहेब ने संवैधानिक पथ की वकालत की, और बहन जी उसी मार्ग पर अग्रसर हैं, किन्तु बहुजन समाज को मनुवादी हिंसक रास्ते अधिक आकर्षक प्रतीत होते हैं। तथागत का कथन है, "यथा चिंतति, तथैव फलति।" बहुजन समाज अपनी ऊर्जा भाजपा के भय का प्रचार करने, बहुजन-विरोधी दलों जैसे टीएमसी, आप, राकांपा, आरजेडी, जदयू, सपा और कांग्रेस को समर्थन देने में नष्ट करता है, और फिर प्रश्न उठाता है कि बहन जी और बसपा सत्ता से दूर क्यों हैं। यह समाज स्वयं को बौद्ध परंपरा का संवाहक कहता है, परंतु यह नहीं समझ पाया कि बहन जी मार्गदाता हैं, मुक्तिदाता नहीं। वे शांति, सुख, समृद्धि और सामाजिक परिवर्तन का मार्ग दिखा रही हैं, किन्तु क्या समाज उस पथ पर चल रहा है?
ऐतिहासिक सत्य साक्षी है कि जब समाज ने बुद्ध के मार्ग का अनुसरण किया, भारत विश्वगुरु बना। जब वह भटक गया, मनुवाद ने उसकी पहचान और गौरव छीन लिया। इसी प्रकार, जब बहुजन समाज ने बहन जी के मार्गदर्शन को अपनाया, वह सत्ता में रहा, उत्तर प्रदेश का सर्वांगीण विकास हुआ, और विश्व मंच पर उसकी पहचान स्थापित हुई। किन्तु जब वह मनुवादी षड्यंत्रों का शिकार होकर अपने नेतृत्व से विमुख हुआ, तो सत्ता से वंचित होकर शोषण की गहरी खाई में धंस गया। इसमें दोष मार्गदाता का नहीं, समाज का है। बहन जी मार्गदाता हैं, जो समाज को संवैधानिक और लोकतांत्रिक पथ पर चलने का संदेश देती हैं, किन्तु मुक्ति का दायित्व समाज का स्वयं का है। जब तक बहुजन समाज इस सत्य को नहीं अपनाएगा, और अपनी जिम्मेदारी स्वयं नहीं उठाएगा, वह मनुवाद के बंधनों से मुक्त नहीं हो सकेगा। यह आंदोलन नेतृत्व का सहारा है, परंतु इसकी सफलता समाज के सक्रिय संनाद पर निर्भर है।
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स्रोत संदर्भ:
स्रोत संदर्भ:
- गौतम बुद्ध, "अहं मार्गदाता अस्मि, न तु मुक्तिदाता" (धम्मपद)
- आंबेडकर, बी.आर., बुद्ध और उनका धम्म (1957)
- कांशीराम, मान्यवर, बहुजन संगठक में उद्धृत वक्तव्य
- बहन कुमारी मायावती, विभिन्न सार्वजनिक वक्तव्य और बसपा नीति दस्तावेज