रजनीकान्त इन्द्रा, संस्थापक-अध्यक्ष एलीफ, के अनुसार
"ब्राह्मणी संस्कृति से पूरी तरह अलग बहुजन सांस्कृतिक विरासत को एक नए सिरे
से स्थापित करने हेतु बहुजन महोत्सवों, महापर्वों व त्यौहारों (अम्बेडकर महोत्सव_१४
अप्रैल और दीक्षा-दीप महोतसव / दीक्षा महादीपावली_१४ अक्टूबर) के माध्यम से बाबा साहेब
को चौराहे, गली और गांव की मूर्तियों से आगे ले जाते हुए हर बहुजन के घर व हर बहुजन
के ज़हन में बाबा साहेब व बाबा साहेब के दर्शन को स्थापित करने व एक नव ऊर्जावान क्रन्तिकारी
सांस्कृतिक धरोहर के पुनर्स्थापना के मिशन पर चल रही एक विचारधारा है - एलीफ।"
रजनीकान्त इन्द्रा के नेतृत्व में अस्तित्व में आए एलीफ का
मकसद बहुजन समाज को ब्राह्मणी संस्कृति से आज़ाद कराकर बहुजनों को अम्बेडकरी विचारधारा से जोड़ते
हुए अपनी सांस्कृतिक विरासत व सत्ता को एक नए सिरे से स्थापित करना है। बहुजन समाज
को ब्राह्मणों के सारे तीज-त्यौहार से मुक्त कर बहुजन समाज के अपने त्यौहार को स्थापित
करते हुए अपनी संस्कृति को मजबूत करने का मिशन है - एलीफ।
इसकी शुरुआत इन्द्रा साहेब की अगुवाई में शिक्षा भूमि अम्बेडकर
नगर उ.प्र. से १४ अप्रैल २०१६ को हुई है। सांस्कृतिक विरासत को स्थापित करने के मिशन
की शुरुआत शिक्षा-ज्ञान-शांति-समृद्धि-मानवता पर आधारित दो बहुजन महापर्वों से की गयी है क्योंकि किसी भी संस्कृति में त्यौहारों बहुत महत्वपूर्ण
स्थान है।
इसके तहत दो मुख्य त्यौहार चुने गए है -
(१) रजनीकान्त इन्द्रा के नेतृत्व में १४ अप्रैल को अम्बेडकर
जयंती के रूप में मनाये जाने की परम्परा को खत्म करते हुए, क्योंकि जयन्ती सिर्फ एक
दिवस बनकर रह जाता है, जयन्ती एक राजनैतिक शब्त है, इसका ज्यादातर इस्तेमाल राजनीती
के लिए ही होता आया है, अम्बेडकर महोत्सव की शुरुआत की गयी है। इन्द्रा साहेब के नेतृत्व
में सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहर को नए सिरे से स्थापित करते हुए एलीफ १४ अप्रैल को
आंबेडकर महोत्सव के रूप में मनाने और पूरी दुनिया में फ़ैलाने का काम कर रहा है। रजनीकांत
इन्द्रा कहते है, "१४ अप्रैल सिर्फ और सिर्फ एक इन्सान का जन्म दिन मात्र नहीं
है बल्कि ये ज्ञान के जन्म का दिन है, अम्बेडकर दर्शन के जन्म का दिन है, इसलिए ज्ञान
के प्रतीक बाबा साहेब को राजनीतिक जयंती से आगे ले जाते हुए सांस्कृतिक धरोहर के रूप
में स्थापित करने की सख्त जरूरत है।" इसलिए उन्होंने अम्बेडकर जयन्ती की राजनैतिक परम्परा को ख़त्म कर, बहुजनों की सांस्कृतिक परम्परा को परवान चढ़ाने के लिए १४ अप्रैल
को अम्बेडकर महोत्सव के नाम से एक महापर्व के रूप मनाने की परम्परा की बुनियाद रखीं।
(२) रजनीकान्त इन्द्रा के अनुसार "दीपावली शब्द पर हिन्दुओं
का कोई कॉपी राइट नहीं है, दुनिया के अलग-अलग देशों में दीपावली का त्यौहार अलग-अलग
मान्यताओं के तहत मनाया जाता है। मिथकीय ही सही लेकिन प्रतीकात्मक तौर पर हिन्दुओं
की दीपावली नरसंहार व महाविद्वान महाराज रावण की हत्या का जश्न है। मेरी निगाह में
कोई भी सभ्य इंसान या समाज नरसन्हार को जश्न के रूप में मानाने की इज़ाज़त नहीं देगा।"
आगे इन्द्रा साहेब कहते है कि "दीपावली का दीया ज्ञान का प्रतीक है, बुद्ध खुद
ज्ञान के प्रतीक है, बाबा साहेब भी ज्ञान के प्रतीक है। इसलिए हम बहुजन समाज के लोगों
को हिन्दुओं की मानवाधिकारों के हनन के प्रतीक ब्राह्मणी दीपावली का बहिष्कार कर, हर साल १४
अक्टूबर के दिन ज्ञान (बाबा साहेब) को ज्ञान (बुद्ध) से सम्मानित करते हुए ज्ञान का
दिया जलाकर सारी दुनिया में ज्ञान व मानवता का प्रकाश फ़ैलाने वाले दीक्षा-दीप महोत्सव
/ दीक्षा महदीपवली का महापर्व मनाना चाहिए। हमारे निर्णय में बुद्ध और बाबा साहेब के
ज्ञान को ज्ञान प्रतीक दीपक से सम्मानित करते हुए, सकल मानवता को सुख-शान्ति-ज्ञान व समृद्धि का सन्देश देने
वाले दीक्षा-दीप महोत्सव / दीक्षा महादीपावली के त्यौहार को मनाया जाना सर्वोत्तम है।"
बाबा साहेब ने १४ अक्टूबर को बुद्ध धम्म को अपनाया था। इसलिए इन्द्रा साहेब की अगुवाई में एलीफ ने १४ अक्टूबर को दीक्षा महादीपवली मानाने के
निर्णय किया और मनाया। अब आंबेडकर महोत्सव व दीक्षा-दीप महोत्सव / दीक्षा महादीपावली को पूरी दुनिया में
फ़ैलाने और जन-जन तक पहुँचाने के लिए इन दोनों महापर्वों का प्रचार-प्रसार जोरों से
चल रहा है। रजनीकान्त इन्द्रा जी कहना है कि "हमें अपनी संस्कृति खुद स्थापित
करनी होगी, वो भी एकदम नए सिरे से, हमारे त्यौहार किसी की हत्या या किसी के मनवाधिकार
के हनन के रूप में नहीं बल्कि ज्ञान पर्व के रूप में मनाये जायेगें। हमारे सारे उत्सव
ज्ञान के प्रतीक होगें जिनमे अमानवीयता, हिंसा व ब्राह्मणवाद का रत्तीभर भी अंश नहीं होगा।"
आगे रजनीकान्त इन्द्रा कहते है कि "१४ अप्रैल और १४ अक्टूबर दोनों
ही आधुनिक भारत की सरज़मी पर ज्ञान के जन्म का दिन है। इसलिए हम सब १४ अप्रैल को आंबेडकर
महोत्सव और १४ अक्टूबर को दीक्षा-दीप महोत्सव / दीक्षा महादीपवली का पर्व मानते है।
बहुजनों के दोनों महत्वपूर्ण महापर्वों की तिथियाँ ऐतिहासिक तौर पर तथ्य है और तय है
- अम्बेडकर महोत्सव (१४_अप्रैल) और दीक्षा महादीपावली (१४_अक्टूबर), इस तरह से ये तिथियाँ
हमेशा के लिए स्थिर और ब्राह्मणों के पंचागों से पूर्णतयः आज़ाद है।
१४ अप्रैल के दिन जहाँ एक तरफ हम सब बाबा साहेब के विचारों व मिशन
पर कारवां चर्चा करते है, गीत-संगीत के कार्यक्रम करते है, अपने-अपने घरों में पकवान बनते
है और आपस में मिलजुल बाबा साहेब व ज्ञान की विचारधारा और अपनी सांस्कृतिक धरोहर के
इस महापर्व को अम्बेडकर महोत्सव के रूप में मानते है, वहीं दूसरी तरफ हमारी दीक्षा-दीप
महोत्सव / दीक्षा महादीपावली में कोई शोर-शराबा नहीं होता है क्योकि हमारा मानना है
कि शिक्षा-दीक्षा का पर्व प्रदुषण वाले वातावरण में नहीं मनाया जा सकता है, इसलिए
पटाखों पर पाबंदी है। दीक्षा-दीप महोत्सव / दीक्षा महादीपावली के दिन भी शिक्षा से
ओत-प्रोत गीत-संगीत, पकवान और ज्ञान के दीपक को कतार में जलाकर हम बिना किसी प्रदुषण
के दीक्षा-दीप महोत्सव / दीक्षा महादीपावली का महापर्व मानते है। इन पर्वों पर हम बच्चों
को कलम-किताब जैसे शिक्षा संबधी उपहार देते है। कहने का तात्पर्य ये है कि ये दोनों
बहुजन महापर्व ज्ञान के महापर्व हैं। इसलिए बिना किसी प्रदुषण के ज्ञान सम्बंधित मूल्यों
को ध्यान में रखकर सुख-शान्ति-ज्ञान व समृद्धि प्रतीक इन बहुजन महापर्वों को मनाया जाता है।
१४ अक्टूबर २०१६ को एलीफ (रजनीकान्त इन्द्रा A-LEF) के नेतृत्व
में शिक्षा भूमि अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश की सरजमीं से शुरू हुए समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व-वैज्ञानिकता-शिक्षा-मानवता
पर आधारित भारत के मूलनिवासी बहुजन समाज का अपना, अम्बेडकर महोत्सव (१४ अप्रैल) व दीक्षा-दीप
महोत्सव / दीक्षा महादीपावली (१४ अक्टूबर), का महापर्व उत्तर प्रदेश के कई जिलों जैसे कि अम्बेडकरनगर, आज़मगढ़, सुल्तानपुर,
इलाहबाद, गोरखपुर, बस्ती, मैनपुरी से होते हुए नांदेड़ (महारष्ट्र), गोंदिया (महाराष्ट्र)
आदि जिलों में अपनी दस्तक दे चुका है। ऐसे में माननीय रजनीकान्त इन्द्रा, एलीफ के ससंथापक-अध्यक्ष,
और हम समस्त एलीफ सदस्य, आप सब से निवेदन करते है कि आप सब ब्राह्मणों के सारे तीज-त्यौहारों का
बहिष्कार कर, उनके मदिरों का परित्याग कर आप सब ज्ञान और शिक्षा के प्रतीक इन बहुजन
महापर्वों को, बिना किसी राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक-पर्यावरणीय प्रदुषण के,
ज्ञान के महापर्व के रूप में मनाये और समस्त बहुजनों तक इन दोनों बहुजन त्यौहारों को
पहुँचाकर बहुजनों के इन दोनों महापर्वों को दुनिया के पटल पर अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को स्थापित करें।
दीपशिखा इन्द्रा, एलीफ